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20210512

रसखान और रहीम : भारतीय साहित्य और संस्कृति को योगदान -प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Rasakhan and Rahim: Contribution to Indian Literature and Culture - Prof. Shailendra Kumar Sharma

भारतीय सांस्कृतिक चेतना और मूल्यों के सच्चे संवाहक हैं रसखान और  रहीम – प्रो. शर्मा 

रसखान और रहीम : भारतीय साहित्य और संस्कृति को योगदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी


भारत की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी रसखान और रहीम : भारतीय साहित्य और संस्कृति को योगदान  पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। मुख्य वक्ता राष्ट्रीय मुख्य संयोजक प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे थे। आयोजन के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं हिंदी सेवी श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ओस्लो नॉर्वे, हिंदी परिवार, इंदौर के संस्थापक एवं साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर,  डॉक्टर शबाना हबीब, तिरुअनंतपुरम, केरल, डॉ रजिया शेख, बसमत, हिंगोली, महाराष्ट्र, डॉ अर्चना झा, हैदराबाद एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने किया। 






मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि महाकवि रसखान और रहीम ने भारतीय सांस्कृतिक चेतना और जीवन मूल्यों को सरस ढंग से अभिव्यक्ति दी है। दोनों कवियों के माध्यम से भारतीय साहित्य को व्यापकता और विस्तार मिला। रसखान सच्चे अर्थों में रस की खान हैं। भक्ति का अत्यंत उदात्त रूप रसखान के यहां देखने को मिलता है। आराध्य के साथ तादात्म्य, उनके अप्रतिम सौंदर्य का वर्णन तथा अनन्यता का बोध रसखान के काव्य की विशेषताएं हैं। रसखान ने प्रेम पंथ की विलक्षणता को अत्यंत सरल ढंग से प्रकट किया है। उनके छंद प्रेम रस से सराबोर हैं। उनके काव्य में लौकिक और पारलौकिक दोनों प्रकार के प्रेम का सुंदर समन्वय दिखाई देता है। दिल्ली के गदर ने उन्हें व्यथित कर दिया था और वे ब्रजभूमि में आकर पुष्टिमार्ग में दीक्षित हो गए थे। रहीम ने भारतीय संस्कृति से जुड़े अनेक आख्यान, मिथक, लोक विश्वास और पदावली का बहुत सार्थक प्रयोग किया है। उनके काव्य में ऐसे अनेक  प्रसंग मिलते हैं, जो प्रायः सामान्य जन की निगाह से ओझल होते हैं। रहीम के काव्य में जीवन का कटु यथार्थ भी झलकता है। 



वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि रहीम के दोहे आज भी प्रासंगिक हैं। उनका प्रत्येक दोहा बहुमूल्य है। कोविड-19 के संकट के दौर में उनकी कविताएं नया प्रकाश देती हैं। श्री शुक्ल ने रसखान की प्रसिद्ध रचना मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गांव के ग्वारन को सस्वर सुनाया।



मुख्य वक्ता प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि महाकवि रसखान और रहीम के हृदय में राधा कृष्ण के प्रति गहरी आस्था थी। हिंदी साहित्य जगत में रहीम एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनका कार्यक्षेत्र और जीवन अनुभव अत्यंत विस्तृत और व्यापक रहा है। रहीम महान दानवीर, युद्धवीर और कुशल राजनीतिज्ञ थे। राज दरबार में वे शीर्ष पदों पर रहे, वही युद्ध क्षेत्र में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। व्यावहारिक जगत में उन्होंने कड़वे मीठे अनुभव प्राप्त किए थे, जो उनके नीतिपरक दोहों के विषय बने। रहीम शृंगार, भक्ति और नीति - तीनों में समान अधिकार से लिखते थे। उनके व्यक्तित्व में शस्त्र और शास्त्र का समन्वय दिखाई देता है। वे सच्चे धार्मिक आश्रयदाता थे। उनका जीवन अत्यंत संघर्षशील रहा। रहीम और रसखान का संपूर्ण साहित्य हिंदी ही नहीं, भारतीय साहित्य की धरोहर है। रसखान के काव्य में सांस्कृतिक सौमनस्य का भाव प्रकट हुआ है। वे बताते हैं कि प्रेम के माध्यम से सामान्य गोपिकाएं थी कृष्ण को सहज ही प्राप्त कर लेती हैं।




हिंदी परिवार, इंदौर के संस्थापक एवं साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए कहा कि भक्तिकाल हिंदी का स्वर्ण युग है। इस महत्वपूर्ण युग के दो रत्न हैं - रसखान और रहीम। दोनों कवि भारतीय आत्मा के प्रति सजगता पैदा करते हैं। दोनों ने देश को एकता के सूत्र में बांधने का अविस्मरणीय प्रयास किया। आज के दौर में भारतीय जनमानस को इनसे प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए। 







डॉ रजिया शहनाज़ शेख, बसमत, हिंगोली, महाराष्ट्र ने कहा कि रसखान भक्तिकाल के कृष्ण भक्त सगुण -निर्गुण कवि के रूप में जाने जाते हैं। उनका वास्तविक नाम सैय्यद इब्राहिम है, लेकिन उनके साहित्यिक गुण के कारण उन्हें रसखान कहा जाता है। उनका एक-एक पद्य जैसे रस की खान है। रसखान मुस्लिम होते हुए भी कृष्ण भक्त कवि हैं, यही कारण है कि रसखान ने हिंदू मुस्लिम एकता के लिए एक सेतु के रूप कार्य किया है। वे एक भारतीय समन्वयवादी कवि रहे हैं, जिनका समग्र साहित्य ही गंगा-जमुनी तहजीब का प्रमाण है। वे सौहार्द के कवि है। उन्होंने कृष्ण भक्ति के आगे सब कुछ त्याग दिया। रसखान के काव्य संग्रह सुजान रसखान और प्रेम वाटिका प्रमुख हैं। उन्होंने भागवत का अनुवाद फारसी और हिंदी में किया। भारत के उदारवादी समन्वय मूलक संस्कृति में पूर्ण आस्था रखने वाले कविवर अब्दुल रहीम खानखाना निसंदेह हिंदी के ऐसे समर्थ कवियों में शीर्षस्थ रहे हैं, जिन्होंने इस्लाम के संस्कार होते हुए भी अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदू धर्म, संस्कृति, दर्शन, समाज और देवी-देवताओं का भरपूर सम्मान और श्रद्धा के साथ चित्रण किया है।


डॉक्टर शबाना हबीब, तिरुअनंतपुरम ने कहा कि रहीम भारतीय उदारवादी और समन्वयात्मक संस्कृति के पोषक हैं। वे फारसी, संस्कृत, हिंदी, तुर्की आदि अनेक भाषाओं में निष्णात थे, लेकिन उन्होंने हिंदी की अविस्मरणीय सेवा की। हिंदी साहित्य के इतिहास में सतसई के रचनाकर कवि बिहारी के बाद रहीम को ही दोहा एवं सोरठा छंद का जादूगर कहा जा सकता है। तुलसीदास और गंग के वे समकालीन थे। अकबर के दरबारी कवियों में रहीम का उल्लेखनीय स्थान था, तथापि कविवर रहीम स्वयं कवियों को आश्रय प्रदान करते थे। इस विषय में महाकवि केशव, आसकरण, मंडन, नरहरि, गंग आदि ने रहीम की प्रशंसा की है। बिहारी, मतिराम, व्यास, वृंद, रसनिधि आदि कवियों का साहित्य रहीम की रचनाओं से प्रभावित रहा है। अपने युग के कवियों के प्रति उनके हृदय में गहरा सम्मान था और उन्होंने अनेक कवियों को सहयोग भी दिया। उनके काव्य में भक्ति और शृंगार के साथ परस्पर सौहार्द के दर्शन होते हैं। वे सरल और सरस हृदय मानव थे। नगरसभा के दोहों के माध्यम से उन्होंने नारी सौंदर्य का चित्रण किया है।






डॉ अर्चना झा, हैदराबाद ने कहा कि रहीम ने पौराणिकता, रीति नीति और मानवीय कर्म को अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। उन्होंने गंगा जमुनी तहजीब को प्रस्तुत करते हुए आपसी सद्भाव का संदेश दिया। रहीम सामाजिक चेतना जागृत करने वाले कवि हैं। वे संक्रमण काल के कवि हैं, जब निरंकुशता का विरोध होने लगा था।


संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कहा कि रसखान और रहीम सौहार्द की संस्कृति के संवाहक हैं। ईश्वर की भक्ति के साथ भारत भूमि के प्रति उनमें गहरा अनुराग था। उनके सृजन में किसी प्रकार का आडंबर नहीं है। उनका साहित्य भारत की अमूल्य निधि है। कृष्ण की विविध लीलाओं को इन कवियों ने अपने काव्य में कुशलता से बांधा है। वैश्विक आपदा के बीच मनोबल बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना जैसी संस्थाएं महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं।


राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्देश्य और विषय वस्तु पर प्रकाश डाला। 


संगोष्ठी का सफल संचालन एवं आभार प्रदर्शन रायपुर, छत्तीसगढ़ की डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक ने किया। उन्होंने कहा कि रसखान स्नेह के रस में डूबे हुए थे। कृष्ण के रूप सौंदर्य का उन्होंने सरस चित्रण किया है।




सरस्वती वंदना डॉ रूली सिंह, मुंबई ने प्रस्तुत की। स्वागत गीत संस्था की कार्यकारी अध्यक्ष कवयित्री श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने प्रस्तुत किया। 

संगोष्ठी में संस्था के अध्यक्ष शिक्षाविद् श्री ब्रजकिशोर शर्मा, कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉक्टर गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज, डॉ रूली सिंह, मुंबई, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, मुंबई, डॉक्टर दिव्या पांडेय, डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।








20210508

विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर : मानवतावाद और वैश्विक परिदृश्य - प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा | World Poet Rabindranath Tagore: Humanism and Global Perspectives - Prof. Shailendra Kumar Sharma

विश्व मानवता का पथ सदा आलोकित करती रहेंगी टैगोर की रचनाएं – प्रो. शर्मा 

नॉर्वेजियन भाषा में टैगोर का अनुवाद सुनाया श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने


विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर : मानवतावाद और वैश्विक परिदृश्य पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी


सृजनधर्मियों की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर : मानवतावाद और वैश्विक परिदृश्य  पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं हिंदी सेवी श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ओस्लो नॉर्वे एवं प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन के विशिष्ट अतिथि  हिंदी परिवार, इंदौर के संस्थापक एवं साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता, राष्ट्रीय मुख्य संयोजक प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉक्टर मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉक्टर शैल चंद्रा धमतरी, छत्तीसगढ़, एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ लता जोशी, मुंबई ने किया। 





मुख्य अतिथि साहित्यकार नॉर्वे के श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि टैगोर दुनिया के सभी देशों में जाने जाते हैं। उन्होंने दुनिया के अनेक देशों की यात्रा की थी और उन्हें अपनी कलम के माध्यम से संजोया। बिना टैगोर के भारतीय साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। उनकी रचनाओं में व्यापक अर्थ भरे हुए हैं। उनकी कविताओं की प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी। श्री शुक्ल ने टैगोर की कविता के अंशों का अनुवाद करते हुए उन्हें नॉर्वेजियन भाषा में सुनाया।




विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर कालजयी रचनाकार हैं। उनके लिए राष्ट्रीयता और विश्व मानवता परस्पर पर्याय थे। आज विश्व चेतना बिखर रही है, उसे पुनः जोड़ने और परस्पर सद्भाव लाने के लिए टैगोर के मार्ग पर चलना आवश्यक है। उन्होंने उपनिषद के दर्शन के आलोक में अपनी दृष्टि विकसित की थी, किंतु पश्चिम से आने वाले साहित्य और विचारों के प्रति भी वे सजग थे। टैगोर की महान रचनाएं विश्व मानवता का पथ सदैव आलोकित करती रहेंगी। एक साथ कई रूपों में उन्होंने भारतीय संस्कृति का उदात्त संदेश समूचे विश्व को दिया। उनका संदेश है कि प्रकृति के साहचर्य के बिना मनुष्य अधूरा है, इसीलिए उन्होंने शिक्षा और प्रकृति के संबंधों को केंद्र में रखते हुए शांति निकेतन की स्थापना की। ईश्वर के साथ मनुष्य के शाश्वत सम्बन्ध को टैगोर ने अपनी रचनाओं में अलग-अलग रूपों में उभारा है। वे ऐसे मानवतावादी विचारक थे, जिन्होंने अनेक विधाओं में अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया।



वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर की प्रतिष्ठा विश्व कवि के रूप में है। उनकी प्रेरणा से महात्मा गांधी ने मातृभाषा के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा पर बल दिया। वे राष्ट्रभाषा हिंदी और देवनागरी लिपि के पक्षधर थे। टैगोर मानते हैं कि मनुष्य सेवा सर्वोपरि सेवा है। श्री वाजपेयी ने कहा कि रवींद्र नाट्य गृह एवं रवींद्रनाथ टैगोर मार्ग के माध्यम से इंदौर ने उनकी स्मृतियों को संजो कर रखा है। 



डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता ने कहा कि टैगोर ने प्रकृति के सान्निध्य में शैक्षिक परिसर को स्थापित किया था, जो शांतिनिकेतन के रूप में विश्व प्रसिद्ध है। प्रकृति के प्रत्येक वृक्ष को अपने पुत्र के समान मानते थे। वे महान मानवतावादी साहित्यकार थे। टैगोर के प्रति संपूर्ण हिंदी साहित्य सदैव ऋणी रहेगा। उनका समूचा साहित्य, संगीत और चित्र कृतियाँ व्यक्ति के प्रतिबिंब बन गए हैं। उनके कथा साहित्य और नाटकों पर बांग्ला में 216 फिल्में बनी हैं।



अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्री जी डी अग्रवाल,  इंदौर ने कहा कि टैगोर ने साहित्य, संगीत, चित्रकला, शिक्षा, दर्शन आदि जैसे कई क्षेत्रों में महारत हासिल की थी। उनका लेखन विपुल है, उसका जितना मंथन करें कम होगा। आज के अंध भौतिकता के दौर में टैगोर अनेक प्रेरणाएँ देते हैं।



संगोष्ठी की प्रस्तावना रखते हुए प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि परंपरा और संस्कार के साथ आधुनिकता का संगम टैगोर के जीवन और कृतित्व में दिखाई देता है। वे महान क्रांतिकारी विचारक और दार्शनिक थे। टैगोर ने राजनीति से स्वयं को दूर रखा। वे हिंदी के भक्त कवियों से जुड़े थे। उन्होंने कबीर की वाणी का अनुवाद बांग्ला में किया। इसी प्रकार महाकवि सूर, तुलसी और विद्यापति को लेकर भी उन्होंने लिखा। 



डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने कहा कि साहित्य, कला और दर्शन के क्षेत्र में टैगोर की अनुपम उपलब्धियां हैं। उनका दर्शन प्रकृतिवाद और आदर्शवाद का समन्वित रूप लिए हुए है। उनका शिक्षा दर्शन अध्यात्म केंद्रित है। वे मानते हैं कि सृजनात्मक क्रियाओं से मानव व्यक्तित्व का निर्माण संभव है। उन्होंने युवाओं के मानसिक विकास के साथ उनके सर्वांगीण विकास पर बल दिया। वे युवाओं में तपस्या की भावना जरूरी मानते हैं। उनकी विश्वविख्यात रचना गीतांजलि का अनुवाद दुनिया की अनेक भाषाओं में हुआ है।


डॉक्टर शैल चंद्रा, धमतरी ने कहा कि टैगोर का साहित्य वसुधैव कुटुंबकम् का संवाहक है। वे मनुष्य को परमात्मा की महान कृति मानते हैं।  उनके हृदय में पीड़ित मानवता के प्रति गहरी संवेदना थी। उन्होंने शोषण से मुक्ति की चेतना को अपने काव्य में व्यक्त किया है। वे सही अर्थों में विश्व कवि थे। गांधीजी के विचारों का उन पर प्रभाव था।



राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी की प्रस्तावना,  विषय वस्तु  और संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। 


सरस्वती वंदना रूली सिंह, मुंबई ने की। स्वागत भाषण डॉक्टर ममता झा, मुंबई ने दिया और टैगोर की प्रसिद्ध रचना मेरा शीश नवा दो सुनाई।



संगोष्ठी का सफल संचालन मुंबई की डॉक्टर लता जोशी ने किया। उन्होंने हरिप्रसाद द्विवेदी की रचना एक कुत्ता और एक मैना की चर्चा की और कहा कि टैगोर का जगत के प्राणियों और वनस्पतियों के साथ गहरा संबंध था। 





आभार गाजियाबाद की डॉक्टर रश्मि चौबे ने व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि टैगोर सार्वभौमिक और सार्वकालिक रचनाकार हैं। उनका सन्देश है कि यदि हमारे विचार शुद्ध होंगे तो विश्व सुख और शांतिमय हो जाएगा।


संगोष्ठी में संस्था की कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ ममता झा, डॉ रूली सिंह, मुंबई, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉक्टर शैल चंद्रा, धमतरी, छत्तीसगढ़, श्रीमती आर्यावती सरोज, लखनऊ, श्री ओम प्रकाश प्रजापति, नई दिल्ली, डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, मुंबई, डॉक्टर लता जोशी, मुंबई, डॉक्टर रोहिणी डावरे, डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई  आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।
















 






 




विश्व मानवता का पथ सदा आलोकित करती रहेंगी टैगोर की रचनाएं – प्रो. शर्मा*


*विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर : मानवतावाद और वैश्विक परिदृश्य पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी*

- BEKHABARON KI KHABAR -

- BKKNEWS -


https://www.bkknews.page/2021/05/blog-post_8.html


*विश्व मानवता का पथ आलोकित करती रहेंगी टैगोर की रचनाएं - प्रो शर्मा*

*नॉर्वेजियन भाषा में टैगोर का अनुवाद सुनाया श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने*


*विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर  :  मानवतावाद और वैश्विक परिदृश्य पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी*


https://www.pnvexpres.page/2021/05/blog-post_19.html



*विश्व मानवता का पथ आलोकित करती रहेंगी टैगोर की रचनाएं - प्रो शर्मा*

*नॉर्वेजियन भाषा में टैगोर का अनुवाद सुनाया श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने*


*राष्ट्रीय शिक्षक संघ चेतना ने आयोजित की विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर  :  मानवतावाद और वैश्विक परिदृश्य पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी*

 https://www.raajdhaninews.com/255707/

20210505

नारी सशक्तीकरण और हमारा दायित्व - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Women's Empowerment and Our Responsibility - Prof. Shailendra kumar Sharma

नारी सशक्तीकरण के जरूरी है मूल्य प्रणाली में व्यापक बदलाव हो – प्रो. शर्मा 

महिला सशक्तीकरण पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी


सृजनधर्मियों की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी महिला सशक्तीकरण और हमारा योगदान पर केंद्रित थी। संगोष्ठी की मुख्य अतिथि साहित्यकार एवं राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई एवं विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन की विशिष्ट अतिथि डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉक्टर मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉक्टर अनुसूया अग्रवाल, महासमुंद, छत्तीसगढ़, डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता संस्था के राष्ट्रीय मुख्य संयोजक प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने किया।

 



मुख्य अतिथि साहित्यकार और मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि समाज के विकास के लिए पुरुष और स्त्री दोनों को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। स्त्री को स्वयं सक्षम बनना होगा। स्त्री में  निर्णय लेने की अपार क्षमता है, इसके साथ उसे अधिकार भी मिलने चाहिए। 




विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि स्त्री सशक्तीकरण के लिए जरूरी है कि समाज की मूल्य प्रणाली में व्यापक परिवर्तन हो, जो पितृसत्तात्मक समाज से जुड़ी है। निरंतर जटिल होती आर्थिक और सामाजिक संरचना के बीच स्त्री को मुकम्मल पहचान मिलना चाहिए। यह तब ही संभव है जब सभी क्षेत्रों में सहभागिता के साथ स्त्री के पास निर्णय लेने का अधिकार हो। आज भी देश की करोड़ों स्त्रियां शिक्षा से वंचित हैं। नारी सशक्तीकरण के लिए जरूरी है कि स्त्री शिक्षित हो और उसे आर्थिक अधिकार भी मिलें। 














अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि भारतीय समाज में संस्कृति में प्राचीन काल से महिलाओं का विशिष्ट स्थान रहा है। प्राचीन ग्रंथों में नारी को देवी का स्थान प्राप्त है। इसलिए जरूरी है कि नारी सशक्तीकरण के साथ ही स्त्री स्वयं अपने महत्व को समझे।




मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने कहा कि बाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक स्त्री ही अपनी विभिन्न भूमिकाओं के माध्यम से  पुरुष का आधार बनी रहती है। नारी सृजन शक्ति का प्रतीक है। वर्तमान में राष्ट्र के विकास में महिलाओं की भूमिका को पहचानना आवश्यक है।


महासमुंद, छत्तीसगढ़ की डॉक्टर अनुसूया अग्रवाल ने कहा कि घर, परिवार और समाज में आज भी नारी की स्थिति दोयम दर्जे की है। भारतीय समाज आज भी महिला सशक्तीकरण के संबंध में चिंतित दिखाई देता है। स्त्री जन्म का औचित्य ही इसमें है कि वह संघर्ष के साथ अपना अस्तित्व बनाए रखे।


वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि स्त्री और पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों के समान सहयोग से ही परिवार, समाज और राष्ट्र का निर्माण संभव है।


कोलकाता की डॉक्टर सुनीता मंडल ने कहा कि यह विडंबना है कि स्त्री पैदा नहीं होती है, वरन उसे बनाया जाता है। आज की नारी शिक्षित तो है पर जब निर्णय की बात आती है तो उसे अलिप्त रखा जाता है। 

प्रारंभ में संगोष्ठी का प्रास्ताविक वक्तव्य डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला ने देते हुए नारी चेतना से जुड़े विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला।

राष्ट्रीय संगोष्ठी की प्रस्तावना,  विषय वस्तु  और संस्था की गतिविधियों पर महासचिव श्री प्रभु चौधरी, उज्जैन ने विस्तार से प्रकाश डाला। सरस्वती वंदना डॉ सुनीता गर्ग ने की। अतिथि परिचय रूली सिंह, मुंबई ने एवं स्वागत भाषण डॉक्टर दिव्या पांडेय ने दिया।




संगोष्ठी का सफल संचालन रायपुर की डॉ पूर्णिमा कौशिक ने किया।  आभार अहमदनगर की डॉक्टर रोहिणी डाबरे ने व्यक्त किया।

संगोष्ठी में डॉक्टर उर्वशी उपाध्याय प्रयागराज, डॉ ममता झा, डॉ मनीषा सिंह, डॉ सुनीता यादव, डॉ रूली सिंह, मुंबई, डॉक्टर सुनीता गर्ग, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉक्टर शैल चंद्रा, धमतरी, छत्तीसगढ़, डॉक्टर दीपिका सुतोदिया, गुवाहाटी, असम, श्रीमती आर्यमा सान्याल, वाराणसी, सरस्वती वर्मा, रीना सुरड़कर, डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, डॉक्टर लता जोशी, मुंबई, डॉक्टर रोहिणी डावरे, डॉ सुनीता चौहान आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्य  जन उपस्थित थे। संगोष्ठी के साथ संस्था की आगामी कार्य योजना एवं गतिविधियों पर विचार किया गया। बैठक में आगामी सम्मेलन सितंबर माह में प्रयागराज में करने का निर्णय लिया गया। साथ ही स्मारिका प्रकाशन एवं अन्य गतिविधियों के लिए समिति गठन एवं अन्य निर्णय लिए गए।







20210303

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष नियुक्त | Prof. Shailendrakumar Sharma Appointed as the Dean of Faculty of Arts, Vikram University

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष नियुक्त | Prof. Shailendrakumar Sharma appointed as the Dean of Faculty of Arts, Vikram University


मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 के प्रावधान के अंतर्गत कुलाधिपति जी, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के द्वारा प्रो  शैलेंद्रकुमार शर्मा आचार्य एवं हिंदी विभागाध्यक्ष को दो वर्ष की कालावधि के लिए विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकाय का संकायाध्यक्ष  नियुक्त किया गया है। कई ख्यात सम्मानों और पुरस्कारों से विभूषित डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा वर्तमान में हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म. प्र.) के हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए अनेक नवाचारी प्रयत्न किए हैं, जिनमें विश्व हिंदी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र, मालवी लोक साहित्य एवं संस्कृति केन्द्र, भारतीय जनजातीय साहित्य एवं संस्कृति केन्द्र एवं भारतीय भक्तिकालीन साहित्य एवं संस्कृति केंद्र की संकल्पना एवं स्थापना प्रमुख हैं।

 



प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा ने भाषा और साहित्य से संबंधित उच्च स्तरीय पुस्तकों का लेखन और संपादन किया है। उनकी देश-विदेश की महत्वपूर्ण और श्रेष्ठतम संस्थाओं से सम्बद्धता रही है। उन्होंने देश-विदेशों में विभिन्न विषयों पर सैकड़ों व्याख्यान और परिसंवाद में शोध आलेख प्रस्तुति की है। उन्होंने पचहत्तर से अधिक विद्यार्थियों का शोध निर्देशन किया है। प्रो शर्मा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य शोध पत्रिका अक्षरवार्ता के प्रधान संपादक हैं। आलोचना, निबंध लेखन, संस्मरण, इंटरव्यू, नाटक तथा रंगमंच समीक्षा, लोकसाहित्य एवं संस्कृति विमर्श, राजभाषा हिन्दी एवं देवनागरी के विविध पक्षों पर लेखन एवं अनुसंधान कार्य में निरंतर सक्रिय प्रो शर्मा ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की शोध परियोजना के अन्तर्गत 'साठोत्तर हिन्दी नाट्‌य साहित्य और भारतीय रंगचेतना’ विषय पर अनुसंधान किया है।


उनकी मुख्य कृतियाँ हैं  : शब्दशक्ति संबंधी भारतीय और पाश्चात्य अवधारणा तथा हिन्दी काव्यशास्त्र, देवनागरी विमर्श, मालवा का लोकनाट्य माच और अन्य विधाएं, महात्मा गांधी : विचार और नवाचार, सिंहस्थ विमर्श, हिन्दी भाषा संरचना, मालवी भाषा और साहित्य आदि। इनके अलावा अवन्ती क्षेत्र और सिंहस्थ महापर्व, प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य, हिंदी कथा साहित्य, मालव सुत पं सूर्यनारायण व्यास, आचार्य नित्यानंद शास्त्री और रामकथा कल्पलता, हरियाले आंचल का हरकारा : हरीश निगम, हिन्दी नाटक, निबंध तथा स्फुट गद्य विधाएँ एवं मालवी भाषा साहित्य, मालव मनोहर, हिंदी भाषा और नैतिक मूल्य, हरीश प्रधान : व्यक्ति और काव्य, स्त्री विमर्श : परंपरा और नवीन आयाम, मालव मनोहर,  संत शिरोमणि सेनजी आदि प्रमुख ग्रंथों सहित निबंध, आलोचना, भाषाशास्त्र, मालवी भाषा, लोक संस्कृति आदि विषयों पर लगभग 40 पुस्तकों का लेखन एवं संपादन प्रो शर्मा ने किया है। आपने केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा का हिंदी-भीली अध्येता कोश तैयार करने में संपादक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।


उन्हें अर्पित किए गए महत्वपूर्ण एवं ख्यात सम्मान और पुरस्कार हैं :  आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सम्मान, म. प्र. लेखक संघ, भोपाल द्वारा हिन्दी समीक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए डॉ. संतोष तिवारी समीक्षा सम्मान, राष्ट्रीय कबीर सम्मान, हिंदी सेवी सम्मान,  भाषा- भूषण सम्मान, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार, आचार्य विनोबा भावे राष्ट्रीय नागरी लिपि सम्मान, अक्षर आदित्य सम्मान, आलोचना भूषण सम्मान, अभिनव शब्द शिल्पी अलंकरण, साहित्य सिंधु सम्मान, विश्व हिन्दी सेवा सम्मान आदि।


प्रो शर्मा ने थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया, मॉरीशस एवं म्यांमार की अकादमिक यात्राएँ की हैं। मॉरीशस में 2018 में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में उन्होंने शोध पत्र प्रस्तुति एवं आलेख वाचन सत्र की अध्यक्षता की। थाईलैंड में अक्टू 2013 और सिडनी - ऑस्ट्रेलिया में जून 2017 में आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में उन्होंने व्याख्यान दिए, इसके साथ उन्हें क्रमशः विश्व हिन्दी सेवा सम्मान तथा साहित्य सिंधु सम्मान से अलंकृत किया गया।


राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के संरक्षक आचार्य एवं अध्यक्ष हिन्दी अध्ययनशाला प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा को विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष के पद पर कुलाधिपति के निर्देश पर की गई नियुक्ति पर राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के अध्यक्ष ब्रजकिशोर शर्मा, मार्गदर्शक हरेराम वाजपेयी, डॉ. हरिसिंह पाल, महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी, प्रवक्ता सुंदरलाल जोशी सूरज, डॉ. शिवा लोहारिया, गरिमा गर्ग, डॉ. रश्मि चौबे, जी.डी. अग्रवाल, अनिल ओझा, प्रभा बैरागी, प्रो. जगदीशचन्द्र शर्मा, प्रगति बैरागी आदि ने हर्ष व्यक्त किया है।



















20210209

फणीश्वरनाथ रेणु का कथा – साहित्य : युग चेतना और ग्रामीण यथार्थ के परिप्रेक्ष्य में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Phanishwarnath Renu's Fiction: In the Context of Era Consciousness and Rural Reality - Prof. Shailendra Kumar Sharma

रेणु जी ने कथा साहित्य के माध्यम से राष्ट्रीय रूपक तैयार किया  

ग्रामीण भारत के दर्शन होते हैं रेणु जी के कथा साहित्य में 

रेणु हैं आदिम गंध के रचनाकार

कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु जन्म शतवार्षिकी पर  राष्ट्रीय संगोष्ठी


विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रख्यात कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु की जन्म शत वार्षिकी पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी फणीश्वरनाथ रेणु का कथा साहित्य : युग चेतना और ग्रामीण यथार्थ के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित थी। आयोजन के प्रमुख वक्ता इग्नू, नई दिल्ली के समकुलपति और आलोचक  प्रो. सत्यकाम एवं मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई के  विभागाध्यक्ष एवं आलोचक प्रो करुणाशंकर उपाध्याय थे। अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा ने की। आयोजन की विशिष्ट अतिथि  प्रो. प्रेमलता चुटैल, प्रो. गीता नायक, डॉ नरेन्द्रसिंह फौजदार, मथुरा, डॉ जगदीशचंद्र शर्मा, डॉ सी एल शर्मा, रतलाम, डॉ प्रतिष्ठा शर्मा आदि ने  विचार व्यक्त किए। 




मुख्य अतिथि प्रो. सत्यकाम, नई दिल्ली ने कहा कि फणीश्वरनाथ रेणु ने कथा साहित्य के माध्यम से राष्ट्रीय रूपक तैयार किया है। संकट और संक्रांति के काल में उन्होंने जो रचा, वह आज भी प्रासंगिक है। उन्हें भारतीय परंपरा के लेखक के रूप में देखा जाना चाहिए। उनका मैला आंचल भारतीय सांस्कृतिक चेतना का उपन्यास है। वे नव निर्माण और विकास की दृष्टि के बीच नया दृष्टिकोण विकसित कर रहे थे। उनका उपन्यास परती परिकथा पर्यावरणीय कथा के रूप में है।




लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि फणीश्वरनाथ रेणु के कथा साहित्य में युग चेतना के साथ अपनी जमीन पर खड़े ग्रामीण भारत के दर्शन होते हैं। उनके द्वारा चित्रित गांव, लोक समुदाय और संस्कृति जीवंतता  लिए हुए हैं। उनका परती परिकथा कोसी बांध निर्माण की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है, जो एक साथ पर्यावरणीय, सामाजिक और प्रेम संबंधों से जुड़े मुद्दों की ओर ध्यान खींचता है। उनकी कहानी पहलवान की ढोलक महामारी के बीच मृत्यु का साक्षात्कार करते लोगों में संजीवनी का काम करती है। 







आलोचक प्रो. करुणाशंकर उपाध्याय, मुम्बई ने कहा कि रेणु आदिम गंध के रचनाकार हैं। उनका मैला आंचल जयशंकर प्रसाद के उपन्यास कंकाल की परंपरा का उपन्यास है। ग्रामीण अंचल को समुचित सम्मान दिलाने का कार्य रेणु जी ने किया। उन्होंने निरंतर संघर्षरत मनुष्य जीवन के बहुस्तरीय आयामों को प्रकट किया। वे ग्राम्यांचल का चित्र ही नहीं खींचते, उसमें परिवर्तन की बात भी करते हैं। रेणु जी ने कहा है कि वे प्रेम की खेती करना चाहते हैं। वर्तमान में यांत्रिकी प्रभुत्व के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है, उसका प्रभाव मन पर भी पड़ रहा है। रेणु जी उसे सरस बनाना चाहते हैं।

प्रो. प्रेमलता चुटैल ने कहा कि रेणु जी ने अंचल को  नायक बनाया। उनकी कहानी पहलवान की ढोलक तत्कालीन दौर में हैजे की महामारी के मध्य प्रेरणा जगाने का काम करती है, जो आज भी प्रासंगिक है। कहानी में ढोलक की थाप महामारी से जूझ रहे लोगों को प्रेरणा देती है।




प्रो. गीता नायक ने कहा कि ग्रामीण आत्मीयता की गंध रेणु के साहित्य में मिलती है। उनका उपन्यास परती परिकथा रंगमंच की तरह दिखाई देता है। वह स्वतंत्रता के बाद के यथार्थ का जीवंत दस्तावेज है। संयुक्त परिवार की सुंदरता उनके उपन्यासों में मिलती है।



डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि रेणु जी ने कथा साहित्य में एक नई जमीन तोड़ी। आलोचकों ने उनकी उपलब्धि और सीमाओं दोनों को प्रकट किया, किंतु यह जरूरी है कि उन्हें समग्रता से देखा जाए।  


डॉ सी एल शर्मा, रतलाम ने कहा कि रेणु जी के उपन्यासों में प्रस्तुत चरित्र हमारे आसपास के समाज में आज भी मौजूद हैं। वे हमें वास्तविक जीवन से  भटकाते नहीं हैं। 


डॉ प्रतिष्ठा शर्मा ने कहा कि कृषि हमारे देश की रीढ़ है। रेणु जी ने सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक सभी क्षेत्रों में गांव की विशिष्ट भूमिका को अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया।




आयोजन में प्रोफेसर सत्यकाम  का सारस्वत सम्मान प्रो शर्मा, प्रो चुटैल, प्रो नायक आदि द्वारा उन्हें शॉल, साहित्य एवं स्मृति चिन्ह अर्पित कर किया गया।



आयोजन के पूर्व गांधी अध्ययन केंद्र में महात्मा गांधी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। साथ ही महात्मा गांधी चित्र दीर्घा और ग्रंथालय एवं विश्व हिंदी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र का अवलोकन अतिथियों ने किया।




इस अवसर पर प्रोफेसर हरिमोहन बुधौलिया, श्रीमती हीना तिवारी आदि सहित अनेक शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।




संचालन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ नरेन्द्रसिंह फौजदार एवं डॉ गीता नायक ने किया।













रेणु जन्मशती प्रसंग

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