जीवन के सभी क्षेत्रों में जरूरी है सम्प्रेषण कौशल – प्रो. शर्मा
अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ सम्प्रेषण कौशल : प्रमुख आयाम और महत्ता पर मंथन एवं श्रेष्ठ संचालन सम्मान अलंकरण
सृजनधर्मियों की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी एवं श्रेष्ठ संचालन अलंकरण समारोह का आयोजन किया गया। संगोष्ठी सम्प्रेषण कौशल : प्रमुख आयाम और महत्ता पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष एवं साहित्यकार डॉ विनय कुमार पाठक, बिलासपुर थे। विशिष्ट वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन की विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार डॉ मीरासिंह, यूएसए, नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल, प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ मनीषा सिंह, मुंबई ने किया। कार्यक्रम में श्रेष्ठ संचालनकर्ताओं को सम्मानित किया गया।
मुख्य अतिथि साहित्यकार डॉ विनय कुमार पाठक, बिलासपुर ने कहा कि सभा, संगोष्ठी आदि में संचालक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उसे हाशिए पर डालना उचित नहीं है। कोई बड़ा ज्ञानी हो, किंतु उसमें सम्प्रेषणीयता न हो तो गतिरोध उत्पन्न हो जाता है। संप्रेषण में अति नाटकीयता से भी बचना चाहिए। आजादी के आंदोलन में कई बड़े नेताओं ने हिंदी को अपनी सम्प्रेषणीयता का माध्यम बनाया था, उसका प्रभाव भी पड़ा।
विशिष्ट अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि सूचना, भाव और विचारों के आदान प्रदान के लिए श्रेष्ठ सम्प्रेषण क्षमता की जरूरत होती है। जीवन के सभी क्षेत्रों में सम्प्रेषण कौशल आवश्यक है। शिक्षा, सृजन, व्यवसाय, राजनीति, प्रशासन, समाजकर्म - सभी के लिए यह मेरुदंड के समान है। यह एक गतिशील, द्विपक्षीय और उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है, जिसे निरन्तर अभ्यास से साधा जा सकता है। संप्रेषणकर्ता को श्रोताओं की रुचि और पृष्ठभूमि की भिन्नता को जानना - समझना चाहिए, अन्यथा सम्प्रेषण में अवरोध उत्पन्न हो जाएगा। प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण के लिए स्वयं की स्पष्ट अभिव्यक्ति के साथ अपने लक्ष्यों और जरूरतों को लेकर सजगता जरूरी है। बगैर किसी टकराहट के विचारों का विनिमय अच्छे सम्प्रेषण का गुण है। सम्प्रेषण के दौरान दोनों पक्षों की योग्यता समान होने पर यह प्रक्रिया आसान हो जाती है।
मुख्य वक्ता डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि सामाजिक जीवन में संभाषण कला की आवश्यकता होती है। सामान्य वार्तालाप में भी इसका महत्व है। अच्छे संभाषण के लिए रोचकता और सरसता होना आवश्यक है। संदेशों के आदान प्रदान के दौरान निरंतर क्रिया प्रतिक्रिया होती है। संभाषण कर्ता को गुण और दोषों की पहचान होनी चाहिए। सम्भाषण एक प्रकार की शक्ति है। इसमें श्रेष्ठता को अपनाना जरूरी है। श्रेष्ठ संचालन के लिए विशिष्ट गुणों को व्यवहार में लाना आवश्यक है। व्यक्तित्व, भाषा, आवाज आदि के आधार पर संचालन कार्य बेहतर हो सकता है।
प्रवासी साहित्यकार डॉ मीरा सिंह, यूएसए ने कहा कि संप्रेषण एक महत्वपूर्ण कला है, जो प्रयासों से निरंतर निखार पर आती है। वाणी के माध्यम से दूसरों तक अपने विचारों को पहुंचाने के लिए सजगता आवश्यक है। सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में संप्रेषण कौशल बेहद जरूरी है। वर्तमान दौर में शिक्षक का दायित्व बहुत बढ़ गया है।
विशिष्ट अतिथि डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने कहा कि संभाषण एक विशिष्ट कला है। निरंतर अभ्यास करने से इसमें कुशलता प्राप्त की जा सकती है। किसी भी सभा या बैठक के संचालन के लिए पर्याप्त तैयारी की आवश्यकता होती है।
उद्बोधन में वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि संप्रेषणकर्ता को प्रसन्न मुख होना चाहिए। श्रेष्ठ संचालक वह है जो निरभिमानी होकर अपने कार्य को अंजाम दे। किसी भी कार्यक्रम की सफलता के लिए संचालक की बहुत बड़ी भूमिका होती है। उसे अपने दायित्व का निर्वाह करते हुए सजग और सतर्क रहना चाहिए। इस कला को सदैव निखारने के प्रयास जरूरी
संगोष्ठी की प्रस्तावना महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत करते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने एक सौ से अधिक कार्यक्रम कोविड-19 के काल में सफलतापूर्वक संपन्न किए हैं। हम लोग शून्य से सौ तक आए हैं, यह उपलब्धि है। इस दौरान जिन संचालकों ने श्रेष्ठ संचालन किया, उन्हें सम्मानित किया जा रहा है। इससे अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिलेगी।
इस मौके पर कोविड 19 के दौर में आयोजित सौ से अधिक ऑनलाइन कार्यक्रमों में संचालन करने वाले श्रेष्ठ संचालनकर्ताओं को सम्मान पत्र अर्पित उन्हें सम्मानित किया गया। इनमें डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, श्रीमती लता जोशी, मुंबई, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, श्री भरत शेणकर, अहमदनगर, अपर्णा जोशी, इंदौर, सुंदरलाल जोशी सूरज, नागदा, डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, डॉ रागिनी शर्मा इंदौर सम्मिलित थे।
संगोष्ठी के प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ रूली सिंह, मुंबई ने की। अतिथि परिचय डॉक्टर ममता झा, मुंबई ने दिया। स्वागत भाषण डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई ने दिया।
संगोष्ठी में श्रीमती गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ सुनीता गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, लता जोशी, मुंबई, अनीता ठाकुर, अर्पणा जोशी, इंदौर, डॉ मनीषा सिंह, मुंबई, रीना सुरड़कर, डॉ सुनीता चौहान, मुंबई, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।
राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉ मनीषा सिंह, मुंबई ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ सुनीता चौहान, मुंबई ने किया।
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