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20201025

शक्ति उपासना : प्रतीकार्थ और चिंतन - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

सृष्टि का कोई भी कण अछूता नहीं है शक्ति से – प्रो शर्मा 

अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ शक्ति आराधना के प्रतीकार्थ और चिंतन पर गहन मंथन   


प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश - दुनिया के विद्वान वक्ताओं ने भाग लिया। यह संगोष्ठी शक्ति उपासना : प्रतीकार्थ और चिंतन पर केंद्रित थी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् डॉ जी डी अग्रवाल, इंदौर, प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री शरद चन्द्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, डॉ अनिता मांदिलवार, डॉ अशोक सिंह, मुंबई, शिवा लोहारिया, जयपुर एवं महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ भरत शेणकर, अहमदनगर ने की।




लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय चिंतन परंपरा और लोक व्यवहार में शक्ति के विषय में अत्यंत महत्वपूर्ण विचार उपलब्ध हैं। शक्ति से सृष्टि का कोई भी कण अछूता नहीं है। कारण वस्तु में कार्य के उत्पादन में उपयोगी अपृथक् धर्म विशेष होता है, उसे शक्ति के रूप में मान्यता मिली है। शक्ति आराधना के विशिष्ट दार्शनिक आधार हैं। अधिकांश भारतीय दर्शनों में  सृष्टि के मूल तत्त्वों के बीच शक्ति की स्वतंत्र सत्ता स्वीकार की गई है। कार्यों की अनंतता के कारण शक्ति की भी अनंतता मानी गई है। शाक्त दर्शन और लोक मान्यता के अनुसार शक्ति सर्वव्यापक और सर्वोपरि है। मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति बिना शक्ति की कृपा से संभव नहीं है। भारत में सदियों से नगर, ग्राम, दुर्ग, वन, पर्वत, द्वार आदि सभी प्रमुख स्थानों पर देवी उपासना के साक्ष्य मिलते हैं। वस्तुतः शक्ति एक ही है, किंतु उपासकों के दृष्टि भेद से शक्ति के नाम और रूपों में भेद पाया जाता है। 





मुख्य अतिथि श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि भारतीय संस्कृति में नारी का सम्मान उसके विशिष्ट गुण और संस्कारों के कारण होता आ रहा है। मातृ शक्ति के त्याग, तपस्या और साधना से ही यह संपूर्ण सृष्टि संचालित है। शक्ति आराधना का विशिष्ट आध्यात्मिक महत्त्व है।




विशिष्ट अतिथि डॉ प्रभु चौधरी ने कहा कि नवरात्रि शक्ति आराधना का अद्वितीय पर्व है। शक्ति साधना के अनेक आयाम हैं, जिनमें व्रत, उपवास, अनुष्ठान, यज्ञ आदि का विशेष महत्व है। गायत्री आदि वैदिक मंत्रों के जाप से इष्ट फल की सिद्धि होती है।




अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉक्टर भरत शेणकर, अहमदनगर ने कहा कि शक्ति आराधना की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। इसमें परिवेश और  युगानुकूल परिवर्तन होता रहा है।




विशिष्ट अतिथि प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, डॉ अशोक सिंह, मुंबई, डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ अनिता मांदिलवार एवं डॉ सुनीता चौहान, मुंबई ने देवी आख्यान और उपासना से जुड़े विभिन्न प्रसंगों और उनके मर्म की चर्चा की।


विशिष्ट अतिथि डॉ जी डी अग्रवाल, इंदौर ने मधुर स्वर में आई रे आई दुर्गा महारानी शेर पर होकर सवार गीत की प्रस्तुति की।



अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ आशीष नायक, रायपुर डॉक्टर समीर सैयद, अहमदनगर, डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई,  डॉक्टर कामिनी बल्लाल,  रश्मि चौबे, आगरा, पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ लता जोशी, मुंबई, डॉ श्वेता पंड्या आदि सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे। 




प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ रश्मि चौबे ने की। संस्था का परिचय एवं प्रतिवेदन डॉ लता जोशी, मुंबई ने प्रस्तुत किया।  


आयोजन की संकल्पना एवं स्वागत भाषण डॉ प्रभु चौधरी की ने दिया।


राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का संचालन डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने किया। आभार प्रदर्शन संस्था के शिक्षाविद डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने किया। 











20201013

देवशिल्पी विश्वकर्मा और उनका अवदान - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

प्राचीन भारतीय विज्ञान की समृद्ध परम्परा से जुड़ने का प्रयत्न करें 

देवशिल्पी विश्वकर्मा पूजन और उनके व्यापक अवदान पर केंद्रित सारस्वत संगोष्ठी  

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी - एसओआईटी में भगवान विश्वकर्मा पूजन और सारस्वत संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह अकादमिक  संगोष्ठी देवशिल्पी विश्वकर्मा और उनके व्यापक अवदान पर केंद्रित थी। आयोजन के मुख्य अतिथि कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय थे। विशिष्ट अतिथि कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, शासकीय  अभियांत्रिकी महाविद्यालय के प्रो. संजय वर्मा एवं डीएफओ श्री पंड्या थे।

 


संगोष्ठी के मुख्य अतिथि कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में शिल्पज्ञ विश्वकर्मा जी का अद्वितीय योगदान है। अपने इतिहास को लेकर हमें गौरव का भाव होना चाहिए। भारत में प्राचीन काल से तक्षशिला, उज्जयिनी, नालन्दा जैसे महत्त्वपूर्ण विद्या केंद्र रहे हैं। दुनिया में निर्यात का एक चौथाई भाग भारत से निर्यात किया जाता था। हमारी तकनीक अत्यंत समृद्ध रही है। नए दौर में समाज में श्रम के महत्त्व को जानना होगा। वास्तु, धातु विद्या, रसायन विज्ञान आदि सभी क्षेत्रों में हमें प्राचीन भारतीय विज्ञान की परम्परा से जुड़ना होगा। भारतीय मनीषा द्वारा किए गए शून्य के आविष्कार पर आज का कम्प्यूटर विज्ञान टिका हुआ है। नदियों को जोड़ने की दिशा में आज विचार किया जा रहा है। प्राचीन काल में भगीरथ ने गंगा के उद्गम और विराट जलधारा को तैयार किया। भगवान शिव ने जल संरक्षण का उदाहरण प्रस्तुत किया था। रसायन विद्या के क्षेत्र में संजीवनी बूटी जैसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं। हेड ट्रांसप्लांट के उदाहरण भी प्राचीन ग्रंथों में  मिलते हैं। हमें ब्रिटिश राज से उपजी गुलाम मानसिकता से मुक्त होना होगा।  


विशिष्ट अतिथि कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भगवान विश्वकर्मा इस सृष्टि की परम अभियांत्रिकी के पुरोधा हैं। भारतीय परंपरा मानती है कि उन्होंने इस विराट ब्रह्मांड का शिल्पन किया है। वैदिक मान्यता है कि विश्व में जो कुछ भी दृश्यमान है, उसके रचयिता विश्वकर्मा हैं। शिल्प उनका श्रेष्ठतम कर्म है। उनसे जुड़े अनेक साहित्यिक साक्ष्यों का संकेत है कि वे यंत्रों के अधिष्ठाता, नगरों, भवनों और आभूषणों के परिकल्पक के साथ अत्यंत शक्तिशाली आयुधों के आविष्कारक हैं। भारतीयों ने सदियों से शिल्प कर्म को उच्च स्थान दिया है, जिसके कारण दुनिया को चकित कर देने वाले असंख्य निर्माण भारत में हुए। राजा भोज के काल में मालवा क्षेत्र में विज्ञान और तकनीक का व्यापक विकास हुआ। उस दौर में समरांगण सूत्रधार जैसे अनेक ग्रन्थ लिखे गए। पुरातन विज्ञान के अध्ययन के साथ शिक्षक एवं विद्यार्थी स्वयं के ज्ञान को निरंतर अद्यतन करते रहें।




प्रो संजय वर्मा ने कहा कि भगवान विश्वकर्मा ने अनेक नगरों का नियोजन किया।  भारतीय परंपरा में उनकी शिल्पज्ञ के रूप में मान्यता रही है। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए प्राचीन ज्ञान विज्ञान के साथ जुड़ने के लिए प्रयास करें। हमें विभिन्न यंत्रों, दवाइयों का आयात कम कर आत्मनिर्भर बनना होगा। सीखने को आतुर छात्र और सिखाने के लिए समर्पित शिक्षक से ही शिक्षा का स्तर बेहतर हो सकता है। 




संगोष्ठी के प्रारम्भ में भगवान विश्वकर्मा और यंत्र का पूजन किया गया। 


संस्थान के निदेशक डॉ डी डी बेदिया ने कुलपति प्रोफेसर पांडे एवं अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ अर्पित कर किया।


अकादमिक संगोष्ठी की संकल्पना संस्थान के निदेशक डॉ डी डी बेदिया ने प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि भगवान विश्वकर्मा जी का योगदान देव शिल्पी के रूप में सुविख्यात है। उनके अविस्मरणीय कार्यों से हमें टेक्नो मैनेजमेंट की प्रेरणा लेनी चाहिए।


डीएफओ श्री पंड्या ने कहा कि नए कार्य के लिए मौलिकता जरूरी है। कल्पनाशीलता और रचनात्मकता से नया कार्य सम्भव होता है।


कार्यक्रम में डॉ कमलेश दशोरा, डॉ स्वाति दुबे, डॉ राजेश्वर शास्त्री मुसलगांवकर आदि सहित संस्थान के अनेक शिक्षक, कर्मचारी, विद्यार्थी एवं प्रबुद्ध जन उपस्थित थे। 


इस अवसर पर संस्थान परिसर में वट, नीम और पीपल की पौध त्रिवेणी का रोपण कुलपति प्रोफेसर पांडे एवं अतिथियों ने किया। संस्थान के शिक्षकों, कर्मचारियों और विद्यार्थियों द्वारा एक सौ ग्यारह पौधों का रोपण परिसर में किया गया।


कार्यक्रम का संचालन राशि चौरसिया एवं प्रतिभा सराफ ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ विष्णु कुमार सक्सेना ने किया।












20200910

भारतीय संस्कृति और साहित्य में मातृ तत्त्व - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

मातृ तत्त्व की अपार महिमा का निरूपण हुआ है संस्कृति और साहित्य में – प्रो. शर्मा 

भारतीय संस्कृति और साहित्य में मातृ तत्त्व पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी

प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा भारतीय संस्कृति और साहित्य में मातृ तत्त्व पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। प्रमुख वक्ता साहित्यकार श्री त्रिपुरारिलाल शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन ने की। 






प्रमुख अतिथि लेखक एवं आलोचक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन ने कहा कि भारतीय संस्कृति, परम्परा और साहित्य में मातृ तत्त्व की अपार महिमा का निरूपण हुआ है। शास्त्र और लोक दोनों ने ही मातृ तत्व को अनेक रूपों में महत्त्व दिया है। माँ ही हमें सर्वप्रथम व्यावहारिक और आध्यात्मिक जीवन से जोड़ती है। मां मात्र देवधारी जीव नहीं है, वह आदिशक्ति और जगत जननी का साक्षात् प्रतिरूप है। माँ ही सृजन, उर्वरता, संवेदना और भावी संभावनाओं का मूल आधार है। विभिन्न दर्शनों और पंथों में परस्पर वैचारिक असमानता के बावजूद मातृ तत्त्व के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। मातृ शक्ति के लौकिक और अलौकिक गुणों का गान करने में देव भी स्वयं को असमर्थ पाते हैं। आज स्त्री - पुरुष लैंगिक अनुपात बिगड़ रहा है, ऐसे में हमें स्त्रियों के सम्मान और बेटियों के बचाव के लिए व्यापक जागरूकता लानी होगी।





वन्दनीया गीता देवी चौधरी स्मृति सम्मान से सम्मानित किए गए पांच संस्कृतिकर्मी : 


कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार डॉ शंभू पंवार, झुंझुनू, डॉ भरत शेणकर, राजुर, महाराष्ट्र, डॉ रागिनी स्वर्णकार शर्मा, इंदौर, डॉ. संगीता पाल, कच्छ एवं श्रीमती रेणुका अरोरा, गाजियाबाद को वंदनीया मां गीता देवी चौधरी जयंती सम्मान 2020 से सम्मानित किया गया। उन्हें सम्मान के रूप में शॉल, श्रीफल, प्रशस्ति पत्र और सम्मान राशि अर्पित की गई। 







कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि मां एक व्यक्ति नहीं है, सर्वव्यापी तत्व है। संपूर्ण जीव - जगत की सृष्टि बिना मां के संभव नहीं। पुराणों में संकेत मिलता है कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है लेकिन माता कभी कुमाता नहीं होती। श्रीकृष्ण सरल ने मां को लेकर सुंदर काव्य पंक्तियां प्रस्तुत की हैं, मां वर्ण केवल एक, जिस पर वर्णमाला ही न्यौछावर। शब्द केवल एक, जिसमें अर्थ का सागर भरा है।




डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि इस्लाम में नारी को बहुत ऊंचा दर्जा मिला है। इस्लाम में माना गया है कि मां के पैरों के नीचे जन्नत है। पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने बेटियों के संरक्षण के लिए उन्हें उच्च स्थान दिलाया। हमें अंतर्मन से सोचना होगा कि समाज में स्त्री को सम्मान दिया जाए।




साहित्यकार श्री त्रिपुरारिलाल शर्मा, इंदौर ने कहा कि सभ्यता वास्तव में संस्कृति का अंग है। मन और आत्मा की संतुष्टि के लिए ज्ञान, संस्कार और अध्यात्म से रिश्ता आवश्यक है। भारत में मातृ तत्व को लेकर महत्वपूर्ण विचार हुआ है।



संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि मातुश्री गीता देवी चौधरी की स्मृति में वर्ष 2018 से प्रतिवर्ष विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिभाओं को सम्मानित किया जाता है। स्वागत भाषण डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई ने दिया। संस्था परिचय श्री राकेश छोकर ने दिया। कार्यक्रम में डॉ भरत शेणेकर, राजूर, महाराष्ट्र, डॉ शंभू पंवार, झुंझुनू, डॉ रागिनी स्वर्णकार शर्मा, इंदौर, डॉ. संगीता पाल, कच्छ ने भी विचार व्यक्त किए।  





संगोष्ठी में डॉ लता जोशी, मुंबई, मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉक्टर प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ वी के मिश्रा, रामेश्वर शर्मा, श्री अनिल ओझा, इंदौर, डॉ रश्मि चौबे, श्री राकेश छोकर, डॉ शैल चंद्रा, डॉ ममता झा, श्री सुंदर लाल जोशी, नागदा, राम शर्मा, मनावर, मनीषा सिंह, अनुराधा अच्छावन, समीर सैयद, डॉ श्वेता पंड्या, विजय शर्मा, पंढरीनाथ देवले, मीनाक्षी चौहान आदि सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।




प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ संगीता पाल ने की।

कार्यक्रम का संचालन रागिनी शर्मा, इंदौर ने किया। आभार प्रदर्शन श्री अनिल ओझा, इंदौर ने किया।











20200720

पर्यावरण संरक्षण : भारतीय चिंतन और हरियाली अमावस्या - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

भारतीय चिंतन परम्परा में प्रकृति, भगवान के समतुल्य - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

हरियाली अमावस्या पर्व पर राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी 

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा हरियाली अमावस्या पर्व पर अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश - दुनिया के अनेक विद्वानों, शोधकर्ताओं और प्रतिभागियों ने भाग लिया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ सुधांशु शुक्ला, पौलेंड, श्रीमती रमा शर्मा, जापान, डॉ कपिल कुमार, बेल्जियम थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं साहित्यकार प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने की। संगोष्ठी को डॉ कामराज सिंधु, कुरुक्षेत्र, श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने संबोधित किया। यह अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी पर्यावरण संरक्षण : भारतीय चिंतन और हरियाली अमावस्या पर एकाग्र थी।

संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ सुधांशु शुक्ला, पौलेंड ने कहा कि संपूर्ण विश्व आज पर्यावरण को लेकर चिंतित है। भारत अनादि काल से नदियों, पर्वतों, पेड़ और पौधों को लेकर आस्था भाव रखता आ रहा है। भारतीय चिंतन में प्रकृति को भगवान के समतुल्य महत्त्व मिला है, जो हमें सब कुछ देती है। 


मुख्य वक्ता प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि प्रकृति के साथ आत्मीय रिश्ता, लगाव और पूजा भाव भारतीय संस्कृति और परंपरा का महत्त्वपूर्ण अंग है। हमारे जल स्रोतों, प्राकृतिक वास स्थानों, बहुविध व्रत, पर्व, उत्सवों और लोक देवताओं के प्रति आस्था में प्रकृति के प्रति अनुराग सहस्राब्दियों से छलकता रहा है। प्रकृति पर्व हरियाली अमावस्या का हमारी परंपरा में विलक्षण स्थान है। सुदूर अतीत से चले आ रहे पर्यावरण चिंतन, वैज्ञानिक सोच, जातीय चेतना और वैश्विक दृष्टिकोण का संपुंजन हरियाली अमावस्या और इसी प्रकार के अन्य पर्वोत्सवों में दिखाई देता है। यह पर्व चराचर जगत के साथ मनुष्य के रिश्तों को व्यापक विश्व बोध के साथ जानने और क्रियान्वित करने का अवसर देता है। यह पर्व वन्य संस्कृति, गिरि संस्कृति, पशुपालन संस्कृति और कृषि संस्कृति के सातत्य और परस्परावलम्बन का पर्व है।


संगोष्ठी को संबोधित करते हुए श्रीमती रमा शर्मा, जापान ने कहा कि भारत में पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से अनेक उपाय किए जाते हैं। जहां घने वृक्ष होते हैं, उन स्थानों पर लोक आस्था के प्रतीक के रूप में देवालय बनवा दिए जाते हैं। हमारे यहां पीपल में देवताओं का वास माना गया है। 

डॉ कपिल कुमार, बेल्जियम ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय चिंतन में प्रकृति के प्रति गहरी आस्था का भाव रहा है। गुलामी के दौर में हम पर्यावरण विध्वंस में लग गए, जिसके गम्भीर दुष्परिणाम आज झेल रहे हैं। नस्लों को बचाने के लिए पर्यावरण का संरक्षण करना होगा। पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए सजगता लानी होगी। 


अध्यक्षीय उद्बोधन में शिक्षाविद् श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि वर्तमान युग व्यापक पर्यावरणीय चिंताओं का युग है। इस दौर में पर्यावरण संरक्षण  के लिए साहित्यकारों, शिक्षकों और कलाकारों को समाज में संचेतना जगाने के लिए तत्पर होना होगा।



डॉ. कामराज सिंधु, कुरुक्षेत्र ने कहा कि वर्तमान युग में जल, भूमि, वनों का दोहन अनेक समस्याएं पैदा कर रहा है। इनसे पशु - पक्षियों, कीट - पतंगों का नाश हो रहा है। हमें शहरीकरण और अनियोजित विकास पर अंकुश लगाना होगा। 


प्रारंभ में श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कार्यक्रम की संकल्पना एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।   

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए संस्था के महासचिव  डॉ प्रभु चौधरी ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सभी क्षेत्रों में सजगता जरूरी है। वर्षा काल में संस्था द्वारा स्थान - स्थान पर औषधीय और पर्यावरणीय महत्त्व के पौधे लगाए जाएंगे। 


आयोजन में श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, स्वर्णा जाधव, मुंबई ने पर्यावरणीय चिंताओं से जुड़ी कविताएं प्रस्तुत कीं।








इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ सुरेश चंद्र शुक्ल, ऑस्लो, नॉर्वे, डॉ विनोद तनेजा, अमृतसर, श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर, डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे,  शम्भू पँवार, जयपुर, डॉ कविता रायजादा, आगरा, तूलिका सेठ, गाजियाबाद, जी डी अग्रवाल, इंदौर आदि सहित देश के विभिन्न राज्यों के विद्वानों और प्रतिभागियों ने भाग लिया।

संगोष्ठी की सूत्रधार डॉ संजीव कुमारी गुर्जर, हिसार थीं। आभार प्रदर्शन श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने किया। 









कार्यक्रम में डॉ.  उर्वशी उपाध्याय, प्रयाग, डॉ. शैल चन्द्रा, रायपुर, डॉ हेमलता साहू, अम्बिकापुर, डॉ. दर्शनसिंह रावत उदयपुर, डॉ कृष्णा श्रीवास्तव, मुंबई, श्रीमती प्रभा बैरागी, उज्जैन, श्री सुन्दरलाल जोशी ‘सूरज‘ नागदा, हेमलता शर्मा, आगर, श्रीमती रागिनी शर्मा, राऊ, डॉ. संगीता पाल, कच्छ,  डॉ. सरिता शुक्ला, लखनऊ, विनीता ओझा, रतलाम, पायल परदेशी, महू, जयंत जोशी धार, अनुराधा गुर्जर, दिल्ली, राम शर्मा परिंदा, मनावर, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ प्रवीण जोशी, डॉ श्वेता पंड्या, कमल भूरिया,  प्रवीण बाला, लता प्रसार, पटना, मधु वर्मा, श्रीमती दिव्या मेहरा, कोटा, श्रीमती तरुणा पुंडीर, दिल्ली, डॉ. शिवा लोहारिया, जयपुर, सुश्री खुशबु सिंह, रायपुर आदि सहित देश के विभिन्न राज्यों के साहित्यकार, प्रतिभागी और शोधकर्ता उपस्थित रहे। 

डॉ. प्रभु चौधरी
महासचिव
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना
मो. 9893072718

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