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20201102

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ : संस्कृति एवं साहित्य - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ ने दी है भारतीय संस्कृति और परम्पराओं को विशेष पहचान – प्रो शर्मा 

अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश राज्यों की संस्कृति और साहित्य पर मंथन   

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें विशेषज्ञ वक्ताओं ने भाग लिया। यह संगोष्ठी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों की संस्कृति और साहित्य पर केंद्रित थी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संस्थाध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट वक्ता डॉ शैल चंद्रा, सिहावा नगरी, छत्तीसगढ़ थीं। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् डॉ शहाबुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख, पुणे, वरिष्ठ पत्रकार डॉ शंभू पवार,  राजस्थान,  डॉ आशीष नायक, रायपुर, वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, महासचिव डॉ प्रभु चौधरी एवं उपस्थित वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। यह आयोजन दोनों राज्यों के स्थापना दिवस के अवसर पर संपन्न हुआ।







कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश राज्य अपनी विशिष्ट संस्कृति और सभ्यता के लिए विदेशों तक जाने जाते हैं। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से इनकी विशेषताओं को प्रस्तुत किया।  




प्रमुख वक्ता लेखक एवं संस्कृतिविद प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश ने भारतीय संस्कृति और परम्पराओं को विशेष पहचान दी है। प्रागैतिहासिक काल से ये दोनों ही राज्य मानवीय सभ्यता की विलक्षण रंग स्थली रहे हैं। भीमबेटका जैसे धरोहर शैलाश्रय और अनेक पुरास्थलों से ये राज्य दुनिया भर के पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करते हैं।  नर्मदा, महानदी और अन्य पुण्य सलिला नदियों के तट पर सुदूर अतीत से विविधवर्णी सभ्यताओं का जन्म और विकास होता आ रहा है। ग्राम, वन और पर्वतों पर बसे अनेक लोक और जनजातीय समुदायों की अपनी विशिष्ट बोली, बानी,  गीत, नृत्य, नाट्य, लोक विश्वास आदि के कारण ये राज्य दुनिया भर में अनुपम बन गए हैं। छत्तीसगढ़ मां का लोक में प्रचलित रूप इस क्षेत्र के लोगों की परिश्रमशीलता के साथ प्रकृति एवं संस्कृति की आपसदारी को जीवन्त करता है। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की पुरा सम्पदा के अन्वेषण और संरक्षण के लिए व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है। उन्होंने अपने व्याख्यान में राजिम, सिरपुर, फिंगेश्वर, चंपारण आदि प्रमुख पर्यटन स्थलों की विशेषताओं को उद्घाटित किया। चंपारण महाप्रभु वल्लभाचार्य के प्राकट्य स्थल होने के कारण देश दुनिया में विख्यात है, जिन्होंने पुष्टिमार्ग का प्रवर्तन किया था।






डॉक्टर शैल चंद्रा, सिहावा नगरी, छत्तीसगढ़ ने कहा कि छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृतिक विरासत में समृद्व है। राज्य का सबसे  प्रसिद्ध नृत्य नाटक पंडवानी है, जो  महाकाव्य महाभारत का संगीतमय वर्णन है। छत्तीसगढ़ भगवान राम की कर्मभूमि है। इसे दक्षिण कोशल कहा जाता है। यहां ऐसे भी प्रमाण मिले हैं, जिनसे यह प्रतीत होता है कि श्री राम जी की माता छत्तीसगढ़ की थीं। बलौदाबाजार जिले में स्थित तुरतुरिया में  महर्षि वाल्मीकि का आश्रम है। ऐसा माना जाता है वह लव कुश की जन्म स्थली है प्राचीन कला, सभ्यता, संस्कृति, इतिहास और पुरातत्व की दृष्टि से छत्तीसगढ़ अत्यंत सम्पन्न है। यहां के जनमानस में अतिथि देवो भव की भावना रची बसी है। यहां के लोग शांत और भोले भाले हैं। तभी तो कहा जाता है, छतीसगढ़िया सबले बढ़िया। यहां के लोग छत्तीसगढ़ को महतारी का दर्जा देते हैं। 





डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने अपने व्याख्यान में कहा कि मध्य प्रदेश भारत का एक ऐसा राज्य है, जिसकी सीमाएं उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान इन पांच राज्यों से मिलती है। पर्यटन की दृष्टि से यह राज्य अपनी महत्ता रखता है। छत्तीसगढ़ भारत का ऐसा 26 वाँ राज्य है, जो पहले मध्यप्रदेश के अंतर्गत था। इस राज्य को  महतारी अर्थात मां का दर्जा दिया गया है। यह राज्य दक्षिण कोशल कहलाता था, जो छत्तीस गढ़ों अपने में समाहित रखने कारण छत्तीसगढ़ बन गया है। वैदिक और पौराणिक काल से विभिन्न संस्कृतियों का केंद्र छत्तीसगढ़ रहा है। इस राज्य ने शीघ्र गति से अपनी प्रगति साधी है।




वरिष्ठ पत्रकार डॉ शम्भू पंवार, पिड़ावा, राजस्थान ने कहा कि मध्य प्रदेश राज्य के हिस्से को अलग करके 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य का गठन किया गया था। छत्तीसगढ़ राज्य का इतिहास बहुत ही गौरवशाली है। छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृतिक विरासत में समृद्ध है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति पूरे भारत में अपना विशेष महत्व रखती है। यहां के लोक गीत व नृत्य बेमिसाल हैं।  छत्तीसगढ़ के लोक गीतों में पंडवानी, जसगीत, भरथरी, लोकगाथा, बांस गीत, करमा, ददरिया, डंडा, फाग आदि बहुत ही लोकप्रिय है। लयबद्ध लोक संगीत,नृत्य, नाटक को देख कर आनंद की अनुभूति होती है। छत्तीसगढ़ धान की उपज की दृष्टि से दुनिया का दूसरा प्रमुख राज्य है। यहां धान की 23 हजार किस्में हैं।  इतनी देश में किसी भी राज्य में नहीं है। दुनिया भर में केवल फिलीपींस ऐसा देश है,  जिसमें धान की 26 हजार किस्में है। छत्तीसगढ़ की धान की किस्में औषधीय गुणों से भरपूर है। कुछ किस्में खुशबू के लिए जानी जाती है, तो कुछ मधुमेह रोगियों के लिए लाभप्रद है।


डॉ आशीष नायक रायपुर ने राष्ट्र के विकास में छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की भूमिका पर प्रकाश डाला।




राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की छत्तीसगढ़ प्रदेश सचिव श्रीमती पूर्णिमा कौशिक ने छत्तीसगढ़ का राज्य गीत प्रस्तुत किया। इस गीत की पंक्तियां थीं, अरपा पैरी के धार, अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार।इन्द्राबती ह पखारय तोर पईयां, महूं पांवे परंव तोर भुँइया। जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया।

छत्तीसगढ़ राज्य गीत 

अरपा पइरी के धार महानदी हे अपार,
इन्द्राबती ह पखारय तोर पइँया।
महूँ पाँव परँव तोर भुइँया,
जय हो जय हो छत्तिसगढ़ मइया॥
सोहय बिन्दिया सही घाते डोंगरी, पहार
चन्दा सुरूज बने तोर नयना,
सोनहा धाने के संग, लुगरा के हरियर रंग
तोर बोली जइसे सुघर मइना।
अँचरा तोरे डोलावय पुरवइया।।

(महूँ पाँव परँव तोर भुइँया, जय हो जय हो छत्तिसगढ़ मइया।।)

रइगढ़ हाबय सुघर तोरे मँउरे मुकुट
सरगुजा (अऊ) बेलासपुर हे बहियाँ,
रइपुर कनिहा सही घाते सुग्घर फभय
दुरुग, बस्तर सोहय पयजनियाँ,
नाँदगाँवे नवा करधनियाँ

(महूँ पाँव परँव तोर भुइँया, जय हो जय हो छत्तिसगढ़ मइया।।)


संस्था एवं आयोजन की संकल्पना का परिचय संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने देते हुए छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के  विशेषताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने संस्था के उद्देश्य और भावी गतिविधियों पर भी प्रकाश डाला।



                              

डॉ सीमा निगम, रायपुर ने अतिथि के प्रति स्वागत उद्गार व्यक्त करते हुए छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं अर्पित की। 




राष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ भरत शेणकर,  अहमदनगर, डॉ लता  जोशी, मुंबई, डॉ आशीष नायक, रायपुर, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ मुक्ता कौशिक, डॉ रिया तिवारी, डॉ सीमा निगम, श्री जितेंद्र रत्नाकर, रायपुर, डॉक्टर समीर सैयद, अहमदनगर, पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ हंसमुख, रायपुर, डॉ अमित शर्मा, ग्वालियर आदि सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे। 




संगोष्ठी के प्रारंभ में सरस्वती वंदना श्रीमती पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने की। संस्था का प्रतिवेदन डॉ रिया तिवारी, रायपुर ने प्रस्तुत किया।


अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का संचालन संस्था की महासचिव डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर ने किया। आभार प्रदर्शन संस्था कि डॉक्टर स्वाति श्रीवास्तव ने किया।


































20201025

प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा आलोचना भूषण सम्मान से अलंकृत

 

प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा आलोचना भूषण सम्मान से अलंकृत



प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष
हिंदी विभाग 
कुलानुशासक
विक्रम विश्वविद्यालय,
उज्जैन [म.प्र.] 456 010





















विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं प्रसिद्ध समालोचक प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा को आलोचना के क्षेत्र में किए गए अविस्मरणीय योगदान के लिए राष्ट्रभाषा स्वाभिमान न्यास [भारत] एवं यू॰ एस॰ एम॰ पत्रिका द्वारा अखिल भारतीय स्तर के आलोचना भूषण सम्मान से अलंकृत किया गया। उन्हें यह सम्मान संस्था द्वारा हिन्दी भवन , गाजियाबाद में आयोजित बीसवें अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अंतर्गत राष्ट्रस्तरीय नामित सम्मान अलंकरण समारोह में पूर्व केन्द्रीय मंत्री , भारत सरकार एवं राज्यपाल, तमिलनाडु और असम डॉ॰ भीष्मनारायण सिंह एवं पूर्व सांसद डॉ॰ रत्नाकर पांडे के कर-कमलों से अर्पित किया गया। इस सम्मान के अन्तर्गत उन्हें सम्मान-पत्र, स्मृति चिह्‌न, पुस्तकें एवं उत्तरीय अर्पित किए गए। इस महत्त्वपूर्ण समारोह में पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं शिक्षाविद डॉ॰ सरोजिनी महिषी, वरिष्ठ नृतत्वशास्त्री पद्मश्री डॉ॰ श्यामसिंह शशि, लोकसभा टी॰ वी॰ के वरिष्ठ अधिकारी डॉ॰ ज्ञानेन्द्र पांडे ,संस्था के संयोजक श्री उमाशंकर मिश्र आदि सहित पंद्रह से अधिक राज्यों के भारतीय भाषा प्रेमी एवं संस्कृतिकर्मी उपस्थित थे।

प्रो. शर्मा विगत ढाई दशकों से आलोचना, लोकसंस्कृति, रंगकर्म, राजभाषा हिन्दी एवं देवनागरी लिपि से जुड़े शोध एवं लेखन में निरंतर सक्रिय है। देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनके आठ सौ से अधिक समीक्षाएँ एवं आलेख प्रकाशित हुए हैं। 

उनके द्वारा लिखित एवं सम्पादित तीस से अधिक ग्रंथों में प्रमुख रूप से शामिल हैं-शब्द शक्ति संबंधी भारतीय और पाश्चात्य अवधारणा, देवनागरी विमर्श, हिन्दी भाषा संरचना, अवंती क्षेत्र और सिंहस्थ महापर्व, मालवा का लोकनाट्‌य माच एवं अन्य विधाएँ, मालवी भाषा और साहित्य, आचार्य नित्यानन्द शास्त्री और रामकथा कल्पलता, मालवसुत पं. सूर्यनारायण व्यास, हरियाले आँचल का हरकारा : हरीश निगम, मालव मनोहर आदि। 

प्रो. शर्मा को देशभर की अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। उन्हें प्राप्त सम्मानों में संतोष तिवारी समीक्षा सम्मान, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय सम्मान, अक्षरादित्य सम्मान, अखिल भारतीय राजभाषा सम्मान,शब्द साहित्य सम्मान, राष्ट्रभाषा सेवा सम्मान, राष्ट्रीय कबीर सम्मान, हिन्दी भाषा भूषण सम्मान आदि प्रमुख हैं।







शक्ति उपासना : प्रतीकार्थ और चिंतन - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

सृष्टि का कोई भी कण अछूता नहीं है शक्ति से – प्रो शर्मा 

अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ शक्ति आराधना के प्रतीकार्थ और चिंतन पर गहन मंथन   


प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश - दुनिया के विद्वान वक्ताओं ने भाग लिया। यह संगोष्ठी शक्ति उपासना : प्रतीकार्थ और चिंतन पर केंद्रित थी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् डॉ जी डी अग्रवाल, इंदौर, प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री शरद चन्द्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, डॉ अनिता मांदिलवार, डॉ अशोक सिंह, मुंबई, शिवा लोहारिया, जयपुर एवं महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ भरत शेणकर, अहमदनगर ने की।




लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय चिंतन परंपरा और लोक व्यवहार में शक्ति के विषय में अत्यंत महत्वपूर्ण विचार उपलब्ध हैं। शक्ति से सृष्टि का कोई भी कण अछूता नहीं है। कारण वस्तु में कार्य के उत्पादन में उपयोगी अपृथक् धर्म विशेष होता है, उसे शक्ति के रूप में मान्यता मिली है। शक्ति आराधना के विशिष्ट दार्शनिक आधार हैं। अधिकांश भारतीय दर्शनों में  सृष्टि के मूल तत्त्वों के बीच शक्ति की स्वतंत्र सत्ता स्वीकार की गई है। कार्यों की अनंतता के कारण शक्ति की भी अनंतता मानी गई है। शाक्त दर्शन और लोक मान्यता के अनुसार शक्ति सर्वव्यापक और सर्वोपरि है। मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति बिना शक्ति की कृपा से संभव नहीं है। भारत में सदियों से नगर, ग्राम, दुर्ग, वन, पर्वत, द्वार आदि सभी प्रमुख स्थानों पर देवी उपासना के साक्ष्य मिलते हैं। वस्तुतः शक्ति एक ही है, किंतु उपासकों के दृष्टि भेद से शक्ति के नाम और रूपों में भेद पाया जाता है। 





मुख्य अतिथि श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि भारतीय संस्कृति में नारी का सम्मान उसके विशिष्ट गुण और संस्कारों के कारण होता आ रहा है। मातृ शक्ति के त्याग, तपस्या और साधना से ही यह संपूर्ण सृष्टि संचालित है। शक्ति आराधना का विशिष्ट आध्यात्मिक महत्त्व है।




विशिष्ट अतिथि डॉ प्रभु चौधरी ने कहा कि नवरात्रि शक्ति आराधना का अद्वितीय पर्व है। शक्ति साधना के अनेक आयाम हैं, जिनमें व्रत, उपवास, अनुष्ठान, यज्ञ आदि का विशेष महत्व है। गायत्री आदि वैदिक मंत्रों के जाप से इष्ट फल की सिद्धि होती है।




अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉक्टर भरत शेणकर, अहमदनगर ने कहा कि शक्ति आराधना की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। इसमें परिवेश और  युगानुकूल परिवर्तन होता रहा है।




विशिष्ट अतिथि प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, डॉ अशोक सिंह, मुंबई, डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ अनिता मांदिलवार एवं डॉ सुनीता चौहान, मुंबई ने देवी आख्यान और उपासना से जुड़े विभिन्न प्रसंगों और उनके मर्म की चर्चा की।


विशिष्ट अतिथि डॉ जी डी अग्रवाल, इंदौर ने मधुर स्वर में आई रे आई दुर्गा महारानी शेर पर होकर सवार गीत की प्रस्तुति की।



अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ आशीष नायक, रायपुर डॉक्टर समीर सैयद, अहमदनगर, डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई,  डॉक्टर कामिनी बल्लाल,  रश्मि चौबे, आगरा, पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ लता जोशी, मुंबई, डॉ श्वेता पंड्या आदि सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे। 




प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ रश्मि चौबे ने की। संस्था का परिचय एवं प्रतिवेदन डॉ लता जोशी, मुंबई ने प्रस्तुत किया।  


आयोजन की संकल्पना एवं स्वागत भाषण डॉ प्रभु चौधरी की ने दिया।


राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का संचालन डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने किया। आभार प्रदर्शन संस्था के शिक्षाविद डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने किया। 











संयुक्त राष्ट्र दिवस और वसुधैव कुटुम्बकम् - प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

वसुधैव कुटुंबकम् की उदात्त भावभूमि के अनुरूप है संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 

संयुक्त राष्ट्र दिवस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलन 

भारत नॉर्वेजियन सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम, द्विभाषी पत्रिका स्पाइल दर्पण एवं वैश्विका द्वारा संयुक्त राष्ट्र दिवस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। आयोजन के प्रमुख अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार एवं विद्वान डॉ मोहनकांत गौतम, नीदरलैंड, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा और केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली के सहायक निदेशक डॉक्टर दीपक पांडे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार और संस्था के अध्यक्ष श्री सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने की। इस मौके पर नॉर्वेजीय लेखिका सिगरीड मैरी ने विश्व बंधुत्व को समर्पित सुमधुर गीत की प्रस्तुति की।









कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए नीदरलैंड के वरिष्ठ साहित्यकार एवं नृतत्वशास्त्री श्री मोहनकांत गौतम ने कहा कि दुनिया आज कई समस्याओं से जूझ रही है। उनसे मुक्त होने के लिए व्यापक प्रयास जारी हैं। भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थायी सदस्यता मिले, इसके लिए गम्भीर प्रयासों की आवश्यकता है। 



मुख्य वक्ता लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की स्थापना वसुधैव कुटुंबकम् की उदात्त भावभूमि के अनुरूप है। दुनिया में एकजुटता और भाईचारा बेहद मायने रखता है। संयुक्त राष्ट्र दिवस इस बात की ओर याद दिलाता है। कोविड 19 के दौरान यूएन ने इस पर विशेष ध्यान दिया है कि जलवायु परिवर्तन के खतरों से पूरी दुनिया को सचेत होना होगा। साथ ही आर्थिक असमानता से मुक्ति की राह खोजनी  होगी। इस दौर में बाल स्वास्थ्य और शिक्षा के मुद्दों पर भी व्यापक पैमाने पर प्रयास जरूरी हैं। युद्ध मुक्त दुनिया के निर्माण, मानव अधिकारों के संरक्षण, लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने, अंतरराष्ट्रीय कानूनी प्रक्रिया के पालन के साथ सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा किए गए प्रयत्न अविस्मरणीय हैं। प्रो शर्मा ने वरिष्ठ कवि श्री शरद आलोक के संग्रह लॉकडाउन से संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों के अनुरूप चुनिन्दा काव्य पँक्तियाँ सुनाईं। 





अध्यक्षीय उद्बोधन वरिष्ठ साहित्यकार एवं मीडिया विशेषज्ञ श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र दिवस अहिंसा, विश्व शांति, मानव अधिकार और स्वास्थ्य के प्रादर्शों को लेकर महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहा है। इसमें सभी देशों और विचारधाराओं के लोग हिस्सेदार बनें। अंतरराष्ट्रीय संकटों से मुक्ति और अक्षय विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।




डॉ. दीपक पाण्डेय, नई दिल्ली ने अपने वक्तव्य में कहा कि संयुक्त राष्ट्र बेहद मजबूत संगठन है, जिसमें दुनिया के लगभग 200 देशों से जुड़े हुए हैं। भारत प्रारंभ से ही संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सदैव योगदान देता रहा है। विश्व शांति की स्थापना के लिए प्रारम्भ से ही भारत सहयोग देता आ रहा है। 





कवि सम्मेलन में मनुमुक्त मानव मेमोरियल ट्रस्ट के संस्थापक डॉ रामनिवास मानव, नारनौल, इलाश्री जायसवाल, नोएडा, प्रो नजीब बेगम, चेन्नई, जया वर्मा, लन्दन, डॉ विक्रम सिंह, विनोद कालरा, ऋचा पांडेय, लखनऊ आदि ने अपनी कविताओं से विश्व शांति और समानता का संदेश दिया।



कार्यक्रम की शुरुआत में डॉ सत्येन्द्र कुमार सेठी ने आयोजन की संकल्पना एवं स्वागत भाषण दिया। 


प्रारंभ में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस से मंगलाचरण श्री  सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद आलोक ने प्रस्तुत किया।


डॉ सत्येन्द्र कुमार सेठी ने संगोष्ठी का संचालन किया। आभार प्रदर्शन श्री सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद आलोक ने किया।
















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