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20170624

सिडनी - ऑस्ट्रेलिया में प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा साहित्य सिंधु सम्मान से अलंकृत

सिडनी में आयोजित हुआ अंतरराष्ट्रीय साहित्य समारोह और शोध संगोष्ठी


सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में आयोजित अंतरराष्ट्रीय साहित्य समारोह और शोध संगोष्ठी में समालोचक एवं विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा को साहित्य सिंधु सम्मान से अलंकृत किया गया। अंतरराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा वाइब सभागार, सिडनी में आयोजित इस समारोह में पहले दिन प्रो शर्मा को सम्मान - पत्र, प्रतीक चिह्न, सम्मान राशि,  शॉल, रुद्राक्ष एवं स्फटिक माला अर्पित कर प्रमुख अतिथि एम. एल. सी. डॉ जयपाल सिंह व्यस्त, डॉ प्राण जग्गी, अमेरिका,  पूर्व कुलपति डॉ रवींद्र कुमार वर्मा, डॉ विद्याबिन्दु सिंह, डॉ महेश दिवाकर  एवं डॉ देवकीनंदन शर्मा ने सम्मानित किया। यह सम्मान वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री हरिशंकर आदेश द्वारा स्थापित किया गया है।

 प्रो. शर्मा ने दिनांक 15-16 जून 2017 तक आयोजित अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह में ‘हिंदी का वैश्विक महत्त्व और संभावनाएं’ पर एकाग्र बीज वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि यह दौर हिंदी की वैश्विक महत्ता और स्वीकार्यता के साथ विविध क्षेत्रों में उसकी नई संभावनाओं के विस्तार का दौर है। विश्वभाषा के रूप में हिंदी की प्रतिष्ठा के लिए हिंदी प्रेमियों और निकायों से लेकर शासन-प्रशासन, शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों और हिंदीसेवियों के अविराम प्रयत्नों की दरकार है। विश्व स्तर पर हिन्दी के शिक्षण – प्रशिक्षण के लिए योजनाबद्ध प्रयत्न आवश्यक हैं। विदेशों में राजनयिक क्षेत्रों में हिन्दी के प्रयोग -  प्रसार के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंध दस्तावेजों के हिंदी में आदान - प्रदान की व्यवस्था अनिवार्य हो। इसी तरह डिजिटल संसार में विश्व की प्रमुख भाषाओं के बीच हिंदी की हिस्सेदारी उसके प्रयोक्ताओं के अनुपात में कम दिखाई दे रही है। इस लक्ष्य को अगले दशक के मध्य तक हासिल करना बेहद जरूरी है। व्यापार – व्यवसाय से लेकर विज्ञान-प्रौद्योगिकी सहित विविध ज्ञानानुशासनों के अध्ययन - अनुसन्धान में हिन्दी के प्रयोग में वृद्धि हो। हिंदी सूचना, मनोरंजन या सृजन की भाषा ही न रहे, वह ज्ञान, विज्ञान और विचार की संवाहिका बने, यह जरूरी है।




         इस अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में शासकीय माधव कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, उज्जैन की प्रो. राजश्री शर्मा 'उच्च शिक्षा संस्थानों में माध्यम भाषा की चुनौती और संभावनाएं' विषय पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। इस अवसर पर उन्हें अतिथियों द्वारा  साहित्यश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। आयोजन में किशोर कलाकार अंश शर्मा को अतिथियों ने सम्मानित कर आशीर्वाद दिया।
















इस अंतरराष्ट्रीय समारोह एवं शोध संगोष्ठी में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया सहित भारत के पन्द्रह से अधिक राज्यों के साहित्य मनीषी, शिक्षाविद् और संस्कृतिकर्मियों ने भाग लिया। इस अवसर पर काव्य एवं विचार गोष्ठियों का आयोजन भी किया गया।

प्रो शर्मा की इस उपलब्धि पर अनेक शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी और साहित्यकारों ने हर्ष व्यक्त कर प्रो शर्मा को बधाई दी।  विगत तीन दशकों से समीक्षा एवं अनुसंधानपरक लेखन में निरंतर सक्रिय प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। उन्होंने शब्दशक्ति सम्बन्धी भारतीय और पाश्चात्य अवधारणा तथा हिन्दी काव्यशास्त्र, देवनागरी विमर्श, मालवा का लोकनाट्‌य माच और अन्य विधाएं, हिन्दी भाषा संरचना, मालवी भाषा और साहित्य, अवन्ती क्षेत्र और सिंहस्थ महापर्व आदि सहित तीस से अधिक पुस्तकों का लेखन एवं सम्पादन किया है। शोध पत्रिकाओं और ग्रन्थों में उनके 250 से अधिक शोध एवं समीक्षा निबंधों तथा 750 से अधिक कला एवं रंगकर्म समीक्षाओं का प्रकाशन हुआ है। आपने भाषा, साहित्य और लोक संस्कृति से जुड़ी अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर की अनेक संगोष्ठी और कार्यशालाओं का समन्वय किया है।

(प्रस्तुति: डॉ अनिल जूनवाल)







20170507

सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' से आत्मीय संलाप

नॉर्वे में निवासरत रचनाकर श्री सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' का उज्जैन आगमन यादगार रहता है। उज्जैन प्रवास पर उनकी टिप्पणी और लिंक के लिये आत्मीय धन्यवाद।

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

वे लिखते हैं-
विश्व हिंदी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र  
बहुत से लोग मध्यप्रदेश, भारत की प्राचीन नगरी  उज्जैन को महाकाल मंदिर कालिदास की कर्मस्थली के रूप में जानते हैं।वहां विक्रम विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग, लोककला संग्रहालय के अतिरिक्त विश्व हिंदी संग्रहालय की परिकल्पना और उसको निरंतर विकास के आयाम देने में रत साहित्यकार बन्धु प्रो.  शैलेन्द्रकुमार शर्मा के साथ मुझे सबसे पहले दिसंबर 2013 में और उसके बाद कई बार देखने का अवसर मिला है। आशा है जहां आगे चलकर हिंदी का वैश्विक केंद्र स्थापित होगा - शरद आलोक
डॉ शुक्ल का ब्लॉग लिंक और परिचय देखें:

http://sureshshukla.blogspot.in/2013/03/blog-post_13.html

Suresh Chandra Shukla


I am an Indian born Hindi poet,writer and Film director setteled in Oslo,Norway.I am member of following institutions : 1. Norwegian journlist union. 2. Norwegian Film Association 3. Norwegian writer center 4. Editor of cultural magazines SPEIL and VAISHVIKA and www.speil.no I writes regularly in Hindi and Norwegian both languages.I am the author of the many books in Hindi and Norwegian literature like: POETRY IN HINDI: ---------------- * Vedna * Rajni * Nange paanvon ka sukh * Deep jo bujhte nahi * Sambhavnao ki talash * Ekta ke swar * Neer mein phanse pank.... POETRY IN NORWEGIAN: -------------------- * Fremede fugler * Mellom linjene COLLECTION OF SHORT STORIES: ---------------------------- * Ardhratri Ka Suraj * Prawasi Kahaniyan TRANSLATION FROM NORWEGIAN/DANISH TO HINDI: ------------------------------------ * Norway ki lokkathayen * Hans Kristian Anderson ki kathayen I can be reached through following addresses : sshukla@online.no speil.nett@gmail.com
























भारतीय किसान के अविराम संघर्ष की जीवन्त निष्पत्ति : कालीचाट - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

भारतीय किसान के अविराम संघर्ष की जीवन्त निष्पत्ति

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

'डग डग रोटी पग पग नीर' की धरती के रूप में जगविख्यात  रहे मालवा के एक किसान के जीवन संघर्ष के बहाने भारतीय परिदृश्य में कृषकों की त्रासद गाथा के नाम रही फिल्म कालीचाट। सुलेखक और समाजकर्मी डॉ सुनील चतुर्वेदी के इसी शीर्षक उपन्यास पर आधारित फिल्म का निर्देशन प्रतिभावान सिनेकार सुधांशु शर्मा ने किया है। प्रवाहमयी मालवी - हिंदी में रची पटकथा और संवाद योजना सोनल शर्मा की है। 

खेत को सींचने के लिए जल की तलाश में कथा नायक सीताराम अभेद्य चट्टान 'कालीचाट' से ही नहीं टकराता है,  संवेदनहीन व्यवस्था और स्वार्थ पर टिकी सामाजिक संरचना से भी तकलीफदेह टकराहट का शिकार होता है। आसपास जमे शोषण तंत्र के कई चिह्ने - अनचिह्ने चेहरे बदलते रहते हैं, लेकिन सीताराम जैसे किसान वही हैं जोअन्नदाता होकर भी सदियों से आंतर-बाह्य पीड़ा और दंश को झेल रहे हैं। सिंचित भूमि और सुखी जीवन का ख़्वाब देखते-देखते सीताराम का सब कुछ छिनता जाता है। असमाप्त शोषण, उत्पीड़न और हताशा से अभिशप्त हो वह आत्मघात को विवश होता है। कृषि तंत्र पर टिकी भारतीय अर्थ व्यवस्था को खोखला करते लोगों के बीच पहले भूमि से बेदखल और फिर आत्महंता बनता किसान फ़िल्म को अंदर तक हिला देने वाला अनुभव बना देता है।



कालीचाट की प्रमुख भूमिकाओं में प्रकाश देशमुख, वीरेंद्र नथानीयल, दुर्गेश बाली, भूषण जैन आदि ने अपनी रंगमंचीय दक्षता को बड़ी शिद्दत से विस्तार दिया है। गीतिका श्याम, समर्थ शांडिल्य, किशोर यादव भी अपनी भूमिकाओं में खरे उतरे। मालवा की कबीर पंथी गायन परम्परा से जुड़े गीत-संगीत ने परिवेश को जीवंत बनाने से आगे जाकर स्थितियों पर टिप्पणी भी की। मालवा की लोक धुनों से अनुरंजित संगीत संजीव कोहली और गायन स्वर कालूराम बामनिया कोई कम असरकारक नहीं है। मालवा के मनोरम लोक जीवन के कई बिम्ब निर्देशकीय कौशल का साक्ष्य दे गए।

प्रबुद्धजनों के लिए विशेष तौर पर रखे गए फ़िल्म प्रदर्शन के बाद इन सभी के साथ संवाद का मौका स्मरणीय रहा। फ़िल्म प्रदर्शन के साथ पुस्तक प्रदर्शनी और संवाद के सहभागी बने थे बन्धुवर मनीष वैद्य, राजेश सक्सेना, बहादुर पटेल  और कई सृजनधर्मी। कालीचाट जैसे श्रेष्ठ उपन्यास के प्रकाशन के लिए Antika Prakashan  के प्रमुख और सुलेखक गौरीनाथ Gouri Nath को बधाई।




राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरस्कारों से अलंकृत इस फ़िल्म का ट्रेलर देखने के लिए लिंक पर जाएं:




फ़िल्म को अब तक मिले अवार्ड्स के लिए लिंक:









20170506

बैंकाक (थाईलैण्ड) में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हिन्दी सेवा सम्मान से अंलकृत हुए प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा

बैंकाक (थाईलैण्ड) में विश्व हिन्दी मंच एवं सिल्पकार्न विश्वविद्यालय, बैंकाक के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेस में मुझे हिन्दी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में किये गये विनम्र प्रयासों के लिए विश्व हिन्दी सेवा सम्मान से अंलकृत किया गया।बैंकाक (थाईलैण्ड) का यह प्रवास कई अर्थों में एक यादगार अनुभव रहा। आयोजन की रपट , फोटोग्राफ्स और कांफ्रेस के दौरान अर्धागिनी प्रो. राजश्री शर्मा एवं सुपुत्र अंश शर्मा  के साथ संस्कृत स्टडी सेंटर,सिल्पकार्न विश्वविद्यालय, बैंकाक के बाहर स्थापित गणेश मंडप के सम्मुख यादगार छायाचित्र यहाँ प्रस्तुत हैं । 

इस अवसर पर डा. अनिल जूनवाल की रपट देखिये   -  

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं समालोचक प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा को बैंकाक (थाईलैण्ड) में विश्व हिन्दी मंच एवं सिल्पकार्न विश्वविद्यालय, बैंकाक के संयुक्त तत्वावधान में 17-21 अक्टूबर 2013 तक आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेस में विश्व हिन्दी सेवा सम्मान से अंलकृत किया गया। उन्हें यह सम्मान सिल्पकार्न विश्वविद्यालय के सभागार में आयोजित समारोह में थाईलैण्ड के प्रख्यात विद्वान प्रो. चिरापद प्रपंडविद्या, संस्कृत स्टडी सेंटर के निदेषक डा. सम्यंग ल्युमसाइ एवं हिन्दी के प्रो. बमरूंग काम-एक के कर-कमलों से अर्पित किया गया। इस सम्मान के अंतर्गत उन्हें सम्मान-पत्र एवं ग्रंथ अर्पित किये गये। प्रो. शर्मा साहित्य और विश्व शांति पर केंद्रित इस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि थे। उन्होंने वैश्विक साहित्य और विश्व शांतिपर केंद्रित शोध पत्र प्रस्तुत किया। उनकी धर्मपत्नी एवं माधव कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, उज्जैन की प्रो. श्रीमती राजश्री शर्मा ने इस सम्मेलन में लिटरेचर, कल्चर एण्ड ग्लोबल हार्मोनीपर विषय पर अपना  शोध पत्र प्रस्तुत किया।

प्रो. शर्मा को यह सम्मान विगत ढाई दशकों से हिन्दी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में किये गये उल्लेखनीय लेखन एवं कार्यों के लिए अर्पित किया गया। इस सम्मेलन में भारत, मारीशस एवं थाईलैण्ड के सौ से अधिक विद्वान, संस्कृतिकर्मी एवं साहित्यकार उपस्थित थे।
 
प्रो.  शर्मा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के विश्व हिन्दी सेवा सम्मान से अंलकृत किए जाने पर विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति प्रो. आर.सी.वर्मापूर्व कुलपति प्रो. रामराजेश मिश्र, प्रो. टी.आर. थापक, प्रो. नागेश्वर रावकुलसचिव डा. बी.एल. बुनकर, इतिहासविद् डा. श्यामसुंदर निगम, साहित्यकार श्री बालकवि बैरागी, म.प्र. लेखक संघ के अध्यक्ष प्रो. हरीश प्रधान, नवसंवत नवविचार के अध्यक्ष डा. योगेश शर्मा, मित्रभारत के सचिव डा. दिनेश जैन, डा. भगवतीलाल राजपुरोहित, डा. शिव चौरसिया, डा. प्रमोद त्रिवेदी, डा. राकेश ढण्ड़, डा. जगदीशचंद्र शर्मा, प्रभुलाल चौधरी, अशोक वक्त, डा. अरूण वर्मा, डा. जफर महमूद, प्रो. बी.एल. आच्छा, डा. देवेन्द्र जोशी, डा. तेजसिंह गौड़, डा. सुरेन्द्र शक्तावत, श्री नरेन्द्र श्रीवास्तव नवनीत, श्रीराम दवे, श्री राधेश्याम पाठक उत्तम, श्री रामसिंह यादव, श्री ललित शर्मा, डा. राजेश रावल सुशील, डा. अजय शर्मा, संदीप सृजन, संतोष सुपेकर, डा. प्रभाकर शर्मा, राजेन्द्र देवधरे दर्पण, राजेन्द्र नागर निरंतर, अक्षय अमेरिया, डा. मुकेश व्यास, श्री श्याम निर्मल, युगल बैरागी आदि सहित अनेक शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी और साहित्यकारों ने हर्ष व्यक्त कर उन्हें बधाई दी। 

प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हिन्दी सेवा सम्मान से अंलकृत होने की खबर कई अखबारों और बेव पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं । प्रमुख लिंक हैं- http://news.apnimaati.com/2013/10/blog-post_3516.html अपनी माटी http://www.palpalindia.com/2013/10/23/Ujjain-Proctor-critic-Prof-Vikram-University-Shailendra-Kumar-Sharma-news-hindi-india-26800.htmlhttp://navsahitykar.blogspot.in/2013/10/blog-post_24.html



 





  

20170505

मालव सुत पं सूर्यनारायण व्यास

मालव सुत पं सूर्यनारायण व्यास

पुण्यश्लोक पं सूर्यनारायण व्यास ( 2 मार्च 1902 ई. - 22 जून 1976 ई.) के जन्मशताब्दी वर्ष पर हम लोगों के सम्पादन में प्रकाशित इस पुस्तक में उनके विविधायामी अवदान पर महत्त्वपूर्ण सामग्री के संचयन का सुअवसर मिला था। वे एक साथ कई रूपों - प्राच्यविद्या विद्, साहित्य मनीषी, इतिहासकार, सर्जक, पत्रकार, ज्योतिर्विद् और राष्ट्रीय आंदोलन के अनन्य स्तम्भ के रूप में सक्रिय रहे। महाकालेश्वर के समीपस्थ उनका निवास भारती भवन क्रांतिकारियों से लेकर संस्कृतिकर्मियों की गतिविधियों का केंद्र रहा। उनकी जन्मशती पर विविध प्रकल्पों के माध्यम से प्रसिद्ध लेखक और मीडिया विशेषज्ञ पं राजशेखर व्यास ने पितृ ऋण से अधिक राष्ट्र ऋण चुकाने का कार्य किया था।  पद्मभूषण पं व्यास जी की पावन स्मृति को नमन।    
   
 पुस्तक: मालव सुत पं सूर्यनारायण व्यास

सम्पादक: श्री हरीश निगम (मालवी के सुविख्यात कवि)
              डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा
               डॉ. हरीश प्रधान

प्रकाशक: लोक मानस अकादेमी एवम् साँझी पत्रिका

इसी पुस्तक से प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा के आलेख के अंश

यद्यपि भारत में पत्रकारिता का आगमन पश्चिम की देन है, किंतु शीघ्र ही यह सैकड़ों वर्षों की निद्रा में सोये भारत की जाग्रति का माध्यम सिद्ध हुई। विश्वजनीन सूचना-संचार के इस विलक्षण माध्यम ने पिछली दो शताब्दियों में अद्भुत प्रगति की है। वहीं भारतीय परिदृश्य में देखें, तो हमारी जातीय चेतना के अभ्युदय, आधुनिक विश्व के साथ हमकदमी, स्वातंत्र्य की उपलब्धि और राजनैतिक-सामाजिक चेतना के प्रसार में हिन्दी पत्रकारिता की अहम भूमिका रही है। पत्रकारिता और साहित्य की परस्परावलंबी भूमिका और दोनों की समाज के प्रतिबिम्ब के रूप में स्वीकार्यता आधुनिक भारत का अभिलक्षण बन कर उभरी है, तो उसके पीछे जो स्पष्ट कारण नज़र आता है, वह है महनीय व्यक्तित्वों की साहित्य एवं पत्रकारिता के बीच स्वाभाविक चहलकदमी। ऐसे साहित्यिकों की सुदीर्घ परम्परा में विविधायामी कृतित्व के पर्याय पद्मभूषण पं. सूर्यनारायण व्यास (1902-1976 ई.) का नाम अविस्मरणीय है, जिन्होंने देश के हृदय अंचल ‘मालवा’ की पुरातन और गौरवमयी नगरी उज्जैन से ‘विक्रम’ मासिक के सम्पादन-प्रकाशन के माध्यम से पत्रकारिता की ऊर्जा को समर्थ ढंग से रेखांकित किया। उनकी पत्रकारिता की उपलब्धि अपने नगर, अंचल और राष्ट्र के पुनर्जागरण और सांस्कृतिक अभ्युदय से लेकर हिन्दी पत्रकारिता को नए तेवर, नई भाषा और नए औजारों से लैस करने में दिखाई देती है, जहाँ पहुँचकर राजनीति, साहित्य, संस्कृति और पत्रकारिता के बीच की भेदक रेखाएँ समाप्त हो गईं। लगभग छह दशक पहले मालवा की हिन्दी पत्रकारिता के खास स्वभाव को गढ़ने से लेकर राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में आज उसकी अलग पहचान को निर्धारित करवाने में पं. व्यासजी और उनके ‘विक्रम’ की विशिष्ट भूमिका रही है।





मालवा का वसीयतनामा: पद्मभूषण पं सूर्यनारायण व्यास के हास्य व्यंग्य लेखन पर केंद्रित रेडियो रूपक 

पद्मभूषण पं सूर्यनारायण व्यास के हास्य - व्यंग्य लेखन पर केंद्रित रूपक ‘मालवा का वसीयतनामा’ का प्रसारण आकाशवाणी, दिल्ली से राष्ट्रीय साहित्यिक पत्रिका ‘साहित्य भारती’ में 7 मार्च, बुधवार को रात्रि 10 बजे होगा। इसे देश के सभी आकाशवाणी केंद्रों पर सुना जा सकेगा। इस रेडियो फ़ीचर का लेखन समालोचक एवं विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने किया है। रूपक में पं व्यास के हास्य - व्यंग्य लेखन के क्षेत्र में योगदान के साथ उन पर केंद्रित वरिष्ठ साहित्यकारों के विचार एवं साक्षात्कार भी समाहित किए गए हैं। वसीयतनामा पं व्यास जी का बहुचर्चित व्यंग्य संग्रह है, जिसका संपादन उनके सुपुत्र और दूरदर्शन एवं ऑल इंडिया रेडियो के अतिरिक्त महानिदेशक पं राजशेखर व्यास, नई दिल्ली ने किया है। रूपक में देश के प्रख्यात कवि एवं पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी के पं व्यास के व्यंग्य लेखन पर केंद्रित विचारों का समावेश किया गया है। वरिष्ठ व्यंग्यकार प्रो शिव शर्मा, डॉ. पिलकेन्द्र अरोरा, श्री मुकेश जोशी के साक्षात्कार भी इस रूपक शामिल किए गए हैं। रूपक के प्रस्तुतकर्ता श्री जयंत पटेल एवं सुधा शर्मा हैं। 
उल्लेखनीय है कि उज्जैन स्थित सिंहपुरी में 2 मार्च 1902 को जन्मे व्यास जी विविधमुखी प्रतिभा के धनी थे। पंडित सूर्यनारायण व्यास का नाम लेते ही एक साथ कई रूप उभर आते हैं- साहित्यकार, पुराविद, इतिहासकार, क्रांतिकारी, व्यंग्यकार, संस्मरणकार, सम्पादक, पत्रकार, ज्योतिष और खगोल के उत्कृष्ट विद्वान। इन सभी रूपों में उनकी विशिष्ट पहचान रही है। उन्होंने 1919 में व्यंग्य लेखन की शुरुआत की। पं व्यास जी के व्यंग्य लेखन में मालवा धड़कता है। उनका पहला व्यंग्य–संग्रह व्यासाचार्य के नाम से ‘तू-तू मैं-मैं’ पुस्तक भवन, काशी से 1935 में प्रकाशित हुआ था। इसी विषय पर लगभग साठ साल बाद ‘तू—तू मैं-मैं’ धारावाहिक सेटेलाइट चैनल पर प्रसारित हुआ। यह संग्रह व्यास जी के जन्म शताब्दी वर्ष में 2001 में उनके सुपुत्र राजशेखर व्यास के संपादन में पुनः प्रकाशित हुआ। पं व्यास जी का दूसरा महत्त्वपूर्ण व्यंग्य संग्रह ‘वसीयतनामा’ भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुआ। यह संग्रह उनके सुपुत्र राजशेखर व्यास द्वारा संपादित है, जिसमें उन्होंने विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में बिखरी व्यास जी की व्यंग्य रचनाओं का श्रमसाध्य संकलन किया। 

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा Shailendrakumar Sharma 

पद्मभूषण पं सूर्यनारायण व्यास पर एकाग्र रूपक यूट्यूब पर देखा जा सकता है: प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा






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