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20200909

विश्व इतिहास में भारतीय शिक्षा प्रणाली का योगदान अद्वितीय – प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

आत्म तत्व का साक्षात्कार भारतीय शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य 

भारतीय शिक्षा प्रणाली में शिक्षकों का योगदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी


प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा भारतीय शिक्षा प्रणाली में शिक्षकों का योगदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की मुख्य अतिथि शिक्षाविद डॉ. चेतना उपाध्याय, अजमेर थीं। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि ओस्लो, नॉर्वे के वरिष्ठ साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु  चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। 




प्रमुख वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा उज्जैन ने कहा कि विश्व इतिहास में भारतीय शिक्षा प्रणाली का अविस्मरणीय योगदान है। लौकिक जीवन की शिक्षा के साथ आत्म तत्व का साक्षात्कार भारतीय शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य रहा है। इस दिशा में वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग के अनेक शिक्षकों और चिंतकों ने अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है। भारतीय आश्रम व्यवस्था में जीवन के प्रथम चरण ब्रह्मचर्य में शिक्षा अर्जन के प्रति निष्ठापूर्ण समर्पण आवश्यक माना गया है। पुराख्यानों में संकेत मिलते हैं कि अनेक देवों ने इस धरती पर शिक्षक और शिष्य की भूमिका में आकर स्वयं को सार्थक माना है। ज्ञान साधना में पूर्व पक्ष और उत्तर पक्ष की पद्धति भारतीय शिक्षा प्रणाली को वैशिष्ट्य देती है। गुरुकुल पद्धति की शिक्षा में सामाजिक समरसता के दर्शन होते थे।




विशेष अतिथि श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि लॉकडाउन के दौर में शिक्षकों का दायित्व बहुत अधिक बढ़ गया है। विद्यार्थियों को पर्यावरण के साथ रिश्ता सिखाने के लिए शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान वृद्धि को दृष्टिगत रखते हुए पूर्व प्राथमिक शिक्षा के स्तर से ही इस दिशा में कार्य प्रारंभ होने चाहिए।




मुख्य अतिथि डॉ चेतना उपाध्याय, अजमेर ने कहा कि भारतीय चिंतन में शिक्षकों की भूमिका सर्वोपरि मानी गई है। शिक्षकों को सदैव स्वाध्याय करते रहना चाहिए। उन्हें नई तकनीक को भी जानना होगा। विद्यार्थियों के बीच ज्ञान की धार को पैना करने की चेष्टा सदैव शिक्षकों को करते रहना चाहिए। 




संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि विद्यार्थियों के लोक व्यवहार का आधार शिक्षक होता है। विद्यार्थी ब्रह्मांड की यात्रा कर सकता है, जिसका द्वार शिक्षक ही खोल सकते हैं। तथ्यात्मक ज्ञान देना ही शिक्षक का दायित्व नहीं है, वरन चुनौतियों से टकराने की दिशा देना  भी शिक्षकों का महत्वपूर्ण दायित्व है। मस्तिष्क की क्षुधा शिक्षक ही शांत कर सकते हैं।


डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने कहा कि भारतीय शिक्षा पद्धति के केंद्र में गुरुकुल प्रणाली रही है। गुरुकुल व्यावहारिक और आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार की शिक्षा के केंद्र थे। उसमें गुरु और शिष्य एक ही प्रकार के परिवेश और सुविधाओं में रहते थे। वर्तमान में शिक्षकों और विद्यार्थियों की दूरी बढ़ रही है, जो चिंताजनक है। नैतिक मूल्यों का ह्रास रोकने के लिए दोनों का मजबूत रिश्ता जरूरी है।



साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि शिक्षक सही अर्थों में राष्ट्र के निर्माता हैं। नई परिस्थितियों के बीच देश - दुनिया के मार्गदर्शन के लिए शिक्षकगण आगे आएं।


श्री अशोक सिंह, मुम्बई ने कहा कि भारत गुरुओं को महत्व देने वाला देश रहा है। यहां गुरुओं को देव तुल्य माना गया है। 


संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। आयोजन में डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ भरत शेणेकर आदि ने भी विचार व्यक्त किए।  



संगोष्ठी में डॉ लता जोशी, मुंबई, मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ. सुरैया शेख, डॉ कामिनी बल्लाल, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉक्टर प्रवीण बाला, पटियाला, सुश्री आभा श्रीवास्तव, डॉ विनीता ओझा, डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ वी के मिश्रा, श्री सुंदर लाल जोशी, नागदा, बालासाहेब बछकर, मोहिनी कुटे, मीना खरात, समीर सैयद, डॉ श्वेता पंड्या, विजय शर्मा, मीनाक्षी चौहान आदि सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।


प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉक्टर रोहिणी डाबरे ने की।

कार्यक्रम का संचालन सविता नागरे, औरंगाबाद ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ अरुणा शुक्ला ने किया।




20200908

विद्यार्थियों में अंतर्दृष्टि विकसित करते हैं शिक्षक : प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका 

राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षक सम्मान से अलंकृत किए गए पाँच शिक्षक

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका विषय पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि शिक्षाविद डॉ. कौशल किशोर पांडे, इंदौर थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉ शंभू पंवार, झुंझुनू एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु  चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने की। 







इस अवसर पर श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में अविस्मरणीय योगदान के लिए प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन, डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख, पुणे, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, श्री अविनाश शर्मा, जयपुर एवं श्रीमती शैल चंद्रा, रायपुर को डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षक सम्मान से अलंकृत किया गया। 






मुख्य अतिथि डॉ कौशल किशोर पांडे ने कहा कि भारतीय चिंतन में विद्या को विशेष महत्त्व मिला है। विद्या और अविद्या में से हमें विद्या को महत्व देना होगा, जो हमें अमरता प्रदान करती है। नई तकनीकी और विज्ञान के बढ़ते प्रभुत्व के बीच शिक्षक और माता-पिता हमें उच्च चिंतन से जोड़ते हैं। 




कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि शिक्षक संस्कारों की पाठशाला में मानव चरित्र का निर्माण करते हैं। वे मात्र पाठ्यक्रम ही नहीं पढ़ाते हैं, मानव व्यक्तित्व को नया आकार देते हैं। 



संगोष्ठी के मुख्य वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन ने कहा कि भारतीय चिंतन में ज्ञान से प्रज्ञा और सत्य की खोज को सर्वोपरि महत्त्व मिला है। श्रेष्ठ शिक्षक वह है, जो विद्यार्थियों में अंतर्दृष्टि विकसित करता है। इसीलिए भारतीय संस्कृति और काव्य परम्परा में शिक्षक की अपार महिमा का वर्णन हुआ है। शिक्षक अनगढ़ शिष्य के व्यक्तित्व का रूपांतरण कर श्रेष्ठ नागरिक और राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 


विशिष्ट अतिथि डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि शिक्षक समाज एवं राष्ट्र के निर्माता हैं। वे प्रामाणिकता और तल्लीनता के साथ राष्ट्र की सेवा करते हैं। शिक्षक का आचरण विद्यार्थियों को संस्कार देता है। पश्चिम की सभ्यता मानव को मनुष्य बनाने के बजाय रोजगार की ओर उन्मुख कर रही है। भारत को विश्वगुरु बनाने में शिक्षकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। 


वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि आदर्श शिक्षक वह है जो विद्यार्थियों को सीमित दायरे से मुक्त करता है। 


संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। आयोजन में डॉ शैल चंद्रा, रायपुर, डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई आदि ने भी विचार व्यक्त किए।  


संगोष्ठी में डॉ लता जोशी, मुंबई, मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, डॉ रोहिणी डाबर, अहमदनगर, डॉ भरत शेणकर, डॉक्टर प्रवीण बाला, पटियाला, सुश्री आभा श्रीवास्तव, डॉ विनीता ओझा, डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ वी के मिश्रा आदि सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।






प्रारंभ में सरस्वती वंदना जय भारती चंद्राकर, रायपुर ने की। कार्यक्रम का संचालन रागिनी शर्मा, पटियाला, पंजाब ने किया। आभार प्रदर्शन श्री अनिल ओझा ने किया।









20200905

सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में शिक्षकों की भूमिका - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित शिक्षा में शिक्षकों का दायित्व बहुत  गहरा 

सूचना क्रांति के दौर में शिक्षक की भूमिका पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा सूचना क्रांति के दौर में शिक्षक की भूमिका विषय पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर, डॉ. रचना पांडेय, रायपुर, डॉ कविता रायजादा, आगरा एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु  चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय विश्वविद्यालय, भटिंडा, पंजाब के डॉ राजिंदर कुमार सेन ने की।




संगोष्ठी के मुख्य अतिथि लेखक एवं आलोचक प्रोफ़ेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी व्यापक रूप से सूचना और ज्ञान के विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। शिक्षकों और विद्यार्थियों को इस दौर में सूचना के संचालन में उपयोगी सभी पद्धतियों, विधियों और उपकरणों से जुड़ना होगा। प्रौद्योगिकी पर आधारित शिक्षा में शिक्षकों का दायित्व बहुत  अधिक बढ़ गया है। एक ओर उन्हें विद्यार्थियों को योजनाबद्ध ढंग से इलेक्ट्रॉनिक पाठ्य सामग्री को उपलब्ध कराना है। इसके साथ ही शिक्षक और विद्यार्थी के मध्य बेहतर मानवीय संबंधों का निर्माण भी करना है, जो विद्यार्थियों को आंतरिक रूप से मजबूत कर सके। ज्ञान एवं विवेक आधारित समाज के निर्माण के लिए शिक्षक अपने विद्यार्थियों को सूचना - संचार क्रांति का अर्थपूर्ण और समुचित प्रयोग करना सिखाएँ। सूचना क्रांति के दौर में शिक्षकों की मार्गदर्शक और उत्प्रेरक के रूप में भूमिका बढ़ती जा रही है। विद्यार्थीगण इंटरनेट पर उपलब्ध अपार सामग्री का विवेकपूर्ण इस्तेमाल करें, इसके लिए शिक्षकों को उन्हें सचेत करना होगा। नए दौर में शिक्षक अपने विद्यार्थियों को तथ्यों, विचारों और धारणाओं के तर्कसंगत एवं प्रायोगिक परिणामों से जोड़ने के लिए निरन्तर प्रयास करें। ज्ञान के स्रोत निरंतर बदल रहे हैं, ऐसे में शिक्षकों को शिक्षण प्रक्रिया में सार्थक परिवर्तन लाना होगा। 






डॉ. राजिंदर कुमार सेन, भटिंडा, पंजाब ने कहा कि भारतीय परंपरा में गुरु और शिक्षक को पर्याय माना गया है। शिक्षक हमारे शरीर, मस्तिष्क और आत्मा तीनों को प्रभावित करता है। वह विद्यार्थियों के चारित्रिक, भावात्मक और बौद्धिक उन्नयन के लिए योगदान देता है। शिक्षक नई शिक्षा नीति 2020 के प्रावधानों का अनुसरण करते हुए स्वयं को नई टेक्नोलॉजी से जोड़ें। साथ ही छात्रों में मूल्यों के प्रसार के लिए प्रयास करें। 





विशिष्ट अतिथि डॉ शहाबुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि केवल जीविका के निर्वाह के लिए शिक्षक कर्म को अंगीकार करना उचित नहीं है। यह बहुत बड़े दायित्व का कार्य है।


















मुख्य वक्ता श्री मोहन लाल वर्मा, जयपुर ने कहा कि विद्या और ज्ञान में पर्याप्त अंतर है। शिक्षक का कार्य केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं, वरन विद्यार्थियों के मध्य विद्या का प्रसार भी है, जो उन्हें सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त करती है।  



















विशिष्ट अतिथि डॉ. कविता रायजादा, आगरा ने पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा में शिक्षकों की जिम्मेदारी बढ़ गई है। विद्यार्थियों के साथ उनके माता - पिता भी इस प्रकार के शिक्षण से जुड़ रहे हैं।


संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। संगोष्ठी में श्री दर्शन सिंह रावत, उदयपुर, डॉ लता जोशी, मुंबई, मुक्ता कौशिक, रायपुर, ब्रजबाला शर्मा, प्रभा बैरागी, उज्जैन, मंजू भारती, निर्मल कौर, धीरज कुमार, पंजाब सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।












कार्यक्रम का संचालन पंजाब प्रांतीय इकाई की महासचिव डॉक्टर प्रवीण बाला, पटियाला, पंजाब ने किया। प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ डिंपल शर्मा ने की। आभार प्रदर्शन डॉ रश्मि रानी ने किया।


20200903

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - पुस्तक समीक्षा

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - एक दस्तावेजी ग्रन्थ 

समीक्षक - डाॅ देवेन्द्र जोशी

वक्त गुजर जाता है बातें याद रह जाती हैं। साहित्य को समाज का दर्पण इसलिए कहा जाता है कि समय गुजरने के बाद भी वह तत्कालीन समय की स्मृतियों की सुरभि से समाज को महकाता रहता है। अपनी रचनात्मक सुरभि से समाज को इसी तरह का महकाने का एक उल्लेखनीय कार्य विक्रम विश्वविद्यालय ने  हाल ही में कर दिखाया है। वह है प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा के संपादन में महात्मा गांधी : विचार और नवाचार ग्रंथ का प्रकाशन। 




यह पुस्तक महात्मा गांधी के 150 वें  जयंती वर्ष में गांधी जी पर एकाग्र विचारों के साथ विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित विविध नवाचार और गतिविधियों पर केंद्रित है, जो विगत दिनों प्रकाशित हो कर आई है। गांधी डेढ़ शती वर्ष की उपलब्धियों को बहुत सुंदर रूप से इसमें संजोया गया है। इसे एक दस्तावेजी ग्रंथ की संज्ञा देना अधिक उपयुक्त होगा। इस ग्रंथ  में गांधी जी के विचारों को शोध आलेखों और राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों के निष्कर्षों के साथ जिस तरह सुसंपादित किया गया है, वह अपने आप में गांधी पर केन्द्रित 21 वीं सदी का एक ऐसा शब्द गुच्छ बन पडा है, जो रचनात्मक सुरभि से समाज को दिग्दिगंत तक महकाता रहेगा। इसके लिए समूचे आयोजन के परिकल्पनाकार कुलपति  प्रो. बालकृष्ण शर्मा और उस संकल्पना को साकार करने वाले ग्रंथ संपादक, कुलानुशासक एवं गांधी अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा बधाई और साधुवाद के पात्र हैं।  प्रो शर्मा ने बडे मनोयोग से गांधी डेढ शती मनाने की न सिर्फ बृहद् रूपरेखा तैयार की, अपितु  उसे कारगर ढंग से क्रियान्वित भी किया। यही नहीं,  पूरे वर्ष तक चले इस रचनात्मक महायज्ञ का इस महाग्रंथ रूपी पूर्णाहुति के साथ उतना ही गरिमामय  समाहार भी किया।    

इस ग्रंथ का सबसे समृद्ध पक्ष प्रो बालकृष्ण शर्मा, डाॅ  मुक्ता, डाॅ राकेश पाण्डेय और प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा के महत्त्वपूर्ण आलेख हैं। ये आलेख समूची आयोजना और इस ग्रंथ की पीठिका की तरह हैं, जिस पर यह भव्य इमारत खडी की गई है। 

गांधी विचार के विविध पक्षों को लेकर जीवन सिंह ठाकुर, डाॅ मंजु तिवारी, डाॅ  पूरन सहगल, डाॅ  विनय कुमार पाठक, डाॅ पुष्पेन्द्र दुबे, डाॅ जगदीश चन्द्र शर्मा, डाॅ  जवाहर कर्नावट, डाॅ  प्रतिष्ठा शर्मा, डाॅ दिग्विजय शर्मा आदि ने अपने आलेखों से इस दस्तावेजी पुस्तक को यादगार बनाने में कोई कसर बाकी नहीं  छोड़ी है। 

उल्लेखनीय शोधपरक आलेखों के रूप में अर्चना त्रिवेदी एवं डाॅ  पुष्पेन्द्र  दुबे, ॠषिराज उपाध्याय, डाॅ  श्वेता पण्ड्या आदि के आलेखों की चर्चा की जा सकती है। विक्रम विश्वविद्यालय की गांधी 150 वीं जन्म-शती समारोह समिति के तत्त्वावधान में हिन्दी अध्ययनशाला, गांधी अध्ययन केंद्र सहित विभिन्न विभागों में आयोजित  राष्ट्रीय संगोष्ठियों, व्याख्यानों, परिसंवादों की खासियत यह रही कि इन्हें विश्वविद्यालय के अकादमिक परिसर तक सीमित न रखते हुए नगर और देश - प्रदेश के चिन्तनशील सर्जक, कवि और साहित्यकारों से भी जोडा गया। इसकी बानगी गांधी जीवन दर्शन पर बहुभाषी कवि गोष्ठी और भजनांजलि के रूप में देखने को मिली। इस सरस सुमधुर आयोजन में  सुनाई गई रचनाओं में से डाॅ देवेन्द्र जोशी की याद आएंगे गांधी, रफीक नागौरी की बापू और शिशिर उपाध्याय की गांधी बाबा पाछा आओ रचनाएँ इस ग्रंथ में शामिल की गई  हैं। 

इसी क्रम में वर्ष भर चली गांधी चिंतन से जुड़े  नवाचारों और रचनात्मक गतिविधियों के वृत्तांत को बहुरंगी चित्रों के साथ पुस्तक में सहेजा गया है। इस समूची आयोजना के बारे में जानकारी देते हुए संपादक प्रो शैलेन्द्र कुमार  शर्मा ने अपने संपादकीय में लिखा है कि समूचे आयोजन में  कला, साहित्य एवं भाषाओं, समाज विज्ञानों एवं विविध भौतिक एवं जीव विज्ञानों के शिक्षकों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों की सहभागिता सुनिश्चित की गई। इस दिशा में राष्ट्रीय  सेवा योजना और राष्ट्रीय कैडेट कोर के युवाओं की गतिशील हिस्सेदारी ने भी उल्लेखनीय योगदान  दिया। पूरे वर्ष के दौरान गांधी चिन्तन के विविध पहलुओं से जुडी संगोष्ठियों, व्याख्यानों कार्यशालाओं, साहित्य  एवं  संस्कृति कर्म, सामुदायिक एवं युवा गतिविधियों और बहुविध नवाचारों की अविराम शृंखला जारी रही। ..... दुनिया के किसी विश्वविद्यालय या संस्था ने इतनी बडी संख्या में लोगों की सक्रिय भागीदारी  के साथ विविधायामी और नवाचारी गतिविधियां  संयोजित नहीं की हैं, जितनी विक्रम विश्वविद्यालय में  संभव हुई हैं। ..... गांधी जी के 150 वें जयंती वर्ष में विक्रम विश्वविद्यालय के गांधी अध्ययन  केन्द्र  के ग्रंथालय और वाचनालय को आम जनता के लिए के लिए खोल दिया गया है। जहां संपूर्ण गांधी वाङ्मय, संदर्भ सामग्री और पत्र - पत्रिकाएँ बडी संख्या में उपलब्ध हैं। मध्यप्रदेश शासन, उच्च शिक्षा विभाग के सौजन्य से राजनीति विज्ञान अध्ययनशाला में गांधी  चेयर की स्थापना की गई  है। .... विभिन्न भाषाओं के कवियों की गांधी जी के प्रति भावांजलियों और महात्मा गांधी के युगांतरकारी कार्यों और प्रभाव को प्रत्यक्ष करते दुर्लभ फोटोग्राफ्स भी इस ग्रंथ  में  संजोये गये हैं।

इस बहुरंगी पुस्तक का चित्ताकर्षक आवरण अक्षय आमेरिया ने तैयार किया है तथा प्रकाशन यूजीसी की 12 वीं पंचवर्षीय योजना के अनुदान से किया गया है। सरकारी अनुदान से हुए अनेक कार्यों को देखा गया है, लेकिन जितने मनोयोग से विक्रम विश्वविद्यालय ने इस पुस्तकीय दायित्व को अंजाम  दिया है, वह अपने आप में अद्वितीय है। कुल मिलाकर  गांधी डेढ सौ वे जयंती वर्ष में विक्रम विश्वविद्यालय ने गांधी स्मरण के जो कीर्तिमान कायम किए हैं, वे देश दुनिया के अन्य विश्वविद्यालयों और संस्थानों के लिए किसी मील के पत्थर से कम नहीं है। 


डाॅ देवेन्द्र  जोशी 

85, महेशनगर 

अंकपात मार्ग 

उज्जैन 

(मध्यप्रदेश) - 456006


पुस्तक का नाम : गांधी विचार और नवाचार 

संपादक :  प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा 

प्रकाशक : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

प्रकाशन वर्ष : 2020

20200901

नई शिक्षा नीति 2020 : सरोकार और संभावनाएँ - प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

इक्कीसवीं सदी की जरूरतों के अनुरूप है नई शिक्षा नीति 2020

नई शिक्षा नीति 2020 : सरोकार और संभावनाएँ विषय पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी 

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी नई शिक्षा नीति 2020 : सरोकार और संभावनाएं विषय पर अभिकेंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि ओस्लो, नॉर्वे के वरिष्ठ साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् श्री भरत व्यास, डॉ रीता सिंह, हिमाचल प्रदेश एवं श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई थीं। अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने की। संगोष्ठी की रूपरेखा संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।





इस अवसर पर संबोधित करते हुए श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि भारत की नई शिक्षा नीति 2020 की अवधारणा अत्यंत सार्थक है। इसके क्रियान्वयन में माता-पिता और स्थानीय लोगों को जोड़ा जाना चाहिए। तीन वर्ष के बच्चों को पूर्व बेसिक शिक्षा में सम्मिलित करने की सरकारी तैयारी एक सी और सभी के लिए जरूरी और संभव हो। कोई भी बच्चा स्कूल जाने से वंचित न हो, इसकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। जरूरी है कि इसमें सभी समुदायों, स्वयंसेवी एवं शैक्षिक संस्थानों को जोड़ा जाए। तभी सरकार अपना लक्ष्य जल्द प्राप्त कर लेगी। इसके साथ ही आधारभूत ढांचा बेहतर किया जाना चाहिए। 




प्रमुख वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि शिक्षा एक अविराम प्रक्रिया है, उसे समय, जरूरत और क्षेत्र के अनुरूप अद्यतन होते रहना चाहिए। नई शिक्षा नीति व्यापक परिवर्तन के साथ हमकदमी कर रही है। यह नीति  इक्कीसवीं सदी की  आवश्यकताओं के अनुरूप है। विद्यार्थी तेजी से परिवर्तनशील स्थितियों के मध्य सीखें ही नहीं, सतत सीखते रहने की कला को भी जानें, नई शिक्षा नीति में इस बात पर विशेष बल दिया गया है। इसके माध्यम से विद्यार्थियों में चरित्र निर्माण, तार्किकता और व्यावसायिक कौशल के साथ अंतरानुशासनिक क्षमता का विकास होगा। यह जरूरी है कि शिक्षण प्रणाली शिक्षार्थी केंद्रित हो। साथ ही उसमें लचीलापन हो तथा समग्रता और समन्वित रूप से देखने - समझने में सक्षम बनाने वाली हो। नई शिक्षा नीति में इन बातों का ध्यान रखा गया है। नई शिक्षा नीति स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक आवश्यकताओं को दृष्टि में रखकर बनाई गई है। इसका सफल क्रियान्वयन शिक्षा से जुड़े हुए सभी पक्षों का दायित्व है।






विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् श्री भरत व्यास ने कहा कि विद्या वह है, जो बंधनों से मुक्त कर सके। वर्तमान में स्मृति आधारित शिक्षा पद्धति अस्तित्व में है। नई शिक्षा नीति इसमें परिवर्तन लाने के लिए महत्त्वपूर्ण उपाय कर रही है, जहां क्रिया आधारित शिक्षण पर बल दिया गया है। हमारी ज्ञान परंपरा अत्यंत समृद्ध रही है। मौलिक चिंतन के लिए जरूरी है कि मातृभाषा के माध्यम से ज्ञान प्राप्त हो। इसके साथ ही शिक्षा में भारतीयता का तत्त्व हो और व्यावसायिक कौशल का भी विकास हो। इन सभी दृष्टियों से नई शिक्षा नीति में विशेष प्रावधान किए गए हैं।






अध्यक्षीय उद्बोधन में शिक्षाविद् श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति में कक्षाओं और पाठ्यक्रम की सरंचना में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए हैं। इसमें कौशल विकास को पर्याप्त महत्त्व मिला है। शैक्षिक संस्थाओं की फीस सरकार द्वारा नियंत्रित होगी। शिक्षा एक बड़ी संघटना है। हमारे जीडीपी का छह प्रतिशत व्यय शिक्षा के लिए किया जाएगा, जिससे शैक्षिक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण सुधार होंगे। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नामकरण शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है, जो स्वागत योग्य है।






विशिष्ट अतिथि डॉ रीता सिंह, हिमाचल प्रदेश ने कहा कि नई शिक्षा नीति में कौशल विकास पर बल दिया गया है। यह नीति व्यावहारिक दृष्टिकोण के साथ आई है। इसमें मातृभाषा के महत्त्व को स्वीकार किया गया है।




प्रारंभ में संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए डॉ. प्रभु चौधरी ने कहा कि ब्रिटिश शासकों ने गुरुकुल पद्धति की शिक्षा पर प्रहार किया था, जिससे हमारा मौलिक चिंतन नष्ट होने लगा था। नई शिक्षा नीति भारतीय चिंतन को केंद्र में रखकर तैयार की गई है।






संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि  श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुम्बई एवं डॉ लता जोशी, मुम्बई ने भी संबोधित किया। आयोजन में डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर, डॉ कौशल किशोर पांडेय, इंदौर, डॉ मुक्ता कौशिक, डॉ रश्मि चौबे, श्रीमती शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ शैल चंद्रा, रायपुर, डॉ भरत शेनेकर, पुणे, डॉ. रोहिणी डकारे, अहमदनगर, ममता झा, मुम्बई, श्री दिनेश परमार, पुष्पा गरोठिया, डॉ अशोक सिंह, डॉ श्वेता पंड्या, कमल भूरिया, विजय शर्मा आदि सहित देश के विभिन्न भागों के प्रतिभागी उपस्थित थे।















संगोष्ठी का संचालन रागिनी शर्मा, इंदौर ने किया। आभार साहित्यकार डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर ने माना।


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