सुपेकर की कविताओं से गुजरना अपने समय से संवाद - प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा
काव्य संग्रह नक्कारखाने की उम्मीदें का ऑनलाइन विमोचन
आधा दर्जन से ज्यादा पुस्तकों के रचयिता श्री सन्तोष सुपेकर की कविताओं से गुजरना, अपने समय से संवाद करने जैसा है। उनकी कविताएं विसंगतियों का खुलासा करने के साथ साथ कहीं सीधे, तो कहीं संकेतों के माध्यम से सन्देश देतीं हैं। इन कविताओं मे लक्षित में अलक्षित रह गए सन्दर्भ नए सन्दर्भों के साथ सामने आते हैं, जो पाठक को सोचने के लिए विवश करते हैं।
उक्त समीक्षकीय वक्तव्य विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक ख्यात समालोचक, प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा द्वारा सन्तोष सुपेकर के तीसरे काव्य संग्रह नक्कारखाने की उम्मीदें के ऑन लाइन विमोचन अवसर पर दिया गया।
क्षितिज संस्था, इंदौर के फेसबुक वॉल पर आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ लघुकथाकार श्री सतीश राठी ने की। उन्होंने कहा कि सुपेकर की कविताएं पूर्वाग्रहविहीन कविताएं हैं। वे आसपास के वातावरण से अपनी रचनाओं के लिए सूत्रबिन्दु निकाल लेते हैं। ऐसे कठिन वक्त में लेखन करना नक्कारखाने में अपनी उम्मीदों को बुलंद करने जैसा है। सुपेकर की कविताओं में एक आग है जो व्यवस्था पर सीधे सीधे चोट करने में सक्षम है।
इस अवसर पर कवि श्री सन्तोष सुपेकर ने अपनी काव्य चेतना में जीवन और जगत के प्रति दृष्टिकोण को संग्रह की दो प्रतिनिधि कविताओं का पाठ कर व्यक्त किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ समालोचक डॉक्टर पुरुषोत्तम दुबे ने कहा कि सन्तोष सुपेकर की कविताओं में लघुकथाओं का आचरण देखने को मिलता है। उन्होंने वैचारिक अनुभूति के घनत्व के माध्यम से अपने भोगे हुए समय को लिखा है।
विशेष अतिथि वरिष्ठ कवि श्री ब्रजेश कानूनगो ने शुभकामनाएं देते हुए कहा कि सुपेकर की कविताओं में समकालीन कविता की बजाए गद्य के औजारों का प्रयोग ज्यादा देखने को मिलता है। पुस्तक चर्चा करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्री दीपक गिरकर ने सुपेकर को एक संवेदनशील कवि बताया। उन्होंने कहा कि सुपेकर की रचनाओं में आम आदमी की पीड़ा, निराशा, घुटन सार्थक रूप से अभिव्यक्त हुए हैं। इन रचनाओं में वह रवानी, वह भाव है जो दिल को छू लेता है।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर वसुधा गाडगिल ने कहा कि इस संग्रह में श्री सुपेकर की व्यंजना व संवेदना पाठकों को झंकृत कर देने में सफल हुई है। वरिष्ठ साहित्यकार श्री राममूरत 'राही' ने बधाई देते हुए कहा कि 'नक्कारखाने की उम्मीदें' में एक से बढ़कर एक कविताएं हैं, जो वर्तमान परिदृश्य में एक कवि हृदय का सहज, सरल उदगार है।
कार्यक्रम का सफल संयोजन एवं संचालन वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती अंतरा करवड़े ने किया और अंत मे आभार वरिष्ठ लेखक श्री दिलीप जैन ने माना।
Book Review | Nakkarkhane ki Ummiden| Santosh Supekar | Shailendrakumar Sharma| पुस्तक समीक्षा | नक्कारखाने की उम्मीदें | सन्तोष सुपेकर की काव्य कृति | शैलेंद्रकुमार शर्मा
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डॉक्टर संजय नागर
सचिव
सरल काव्यांजलि,उज्जैन
मोबाइल 982763771