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20200727

अपने समय से संवाद कराती हैं सुपेकर की कविताएँ - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

सुपेकर की कविताओं से गुजरना अपने समय से संवाद - प्रो.  शैलेन्द्रकुमार शर्मा
काव्य संग्रह नक्कारखाने की उम्मीदें का ऑनलाइन विमोचन 

आधा दर्जन से ज्यादा पुस्तकों के रचयिता श्री सन्तोष सुपेकर की कविताओं से गुजरना, अपने समय से संवाद करने जैसा है। उनकी कविताएं विसंगतियों का खुलासा करने के साथ साथ कहीं सीधे, तो कहीं संकेतों के माध्यम से सन्देश देतीं हैं। इन कविताओं मे लक्षित में अलक्षित रह गए सन्दर्भ नए सन्दर्भों के साथ सामने आते हैं, जो पाठक को सोचने के लिए विवश करते हैं।

उक्त समीक्षकीय वक्तव्य विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक  ख्यात समालोचक, प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा द्वारा सन्तोष सुपेकर के तीसरे काव्य संग्रह नक्कारखाने की उम्मीदें के ऑन लाइन विमोचन अवसर पर दिया गया। 




क्षितिज संस्था, इंदौर के फेसबुक वॉल पर आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ लघुकथाकार श्री सतीश राठी ने की। उन्होंने कहा कि सुपेकर की कविताएं पूर्वाग्रहविहीन कविताएं हैं। वे आसपास के वातावरण से अपनी रचनाओं के लिए सूत्रबिन्दु निकाल लेते हैं। ऐसे कठिन वक्त में लेखन करना नक्कारखाने में अपनी उम्मीदों को बुलंद करने जैसा है। सुपेकर की कविताओं में एक आग है जो व्यवस्था पर सीधे सीधे चोट करने में सक्षम है। 




इस अवसर पर कवि श्री सन्तोष सुपेकर ने अपनी काव्य चेतना में जीवन और जगत के प्रति दृष्टिकोण को संग्रह की दो प्रतिनिधि कविताओं का पाठ कर व्यक्त किया। 

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ समालोचक डॉक्टर पुरुषोत्तम दुबे ने  कहा कि सन्तोष सुपेकर की कविताओं में लघुकथाओं का आचरण देखने को मिलता है। उन्होंने वैचारिक अनुभूति के घनत्व के माध्यम से अपने भोगे हुए समय को लिखा है। 

विशेष अतिथि वरिष्ठ कवि श्री ब्रजेश कानूनगो ने  शुभकामनाएं देते हुए कहा कि सुपेकर की कविताओं में समकालीन कविता की बजाए गद्य के औजारों का प्रयोग ज्यादा देखने को मिलता है। पुस्तक चर्चा करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्री दीपक गिरकर ने सुपेकर को एक संवेदनशील कवि बताया। उन्होंने कहा कि सुपेकर की रचनाओं में आम आदमी की पीड़ा, निराशा, घुटन सार्थक रूप से अभिव्यक्त हुए हैं। इन रचनाओं में वह रवानी, वह भाव है जो दिल को छू लेता है। 

वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर वसुधा गाडगिल ने कहा कि इस संग्रह में  श्री सुपेकर की व्यंजना व संवेदना पाठकों को झंकृत कर देने में सफल हुई है। वरिष्ठ साहित्यकार श्री राममूरत 'राही' ने बधाई देते हुए कहा कि 'नक्कारखाने की उम्मीदें' में एक से बढ़कर एक कविताएं हैं, जो वर्तमान परिदृश्य में एक कवि हृदय का सहज, सरल उदगार है।

कार्यक्रम का सफल संयोजन एवं संचालन वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती  अंतरा करवड़े ने किया और अंत मे आभार वरिष्ठ लेखक श्री दिलीप जैन ने माना।
Book Review | Nakkarkhane ki Ummiden| Santosh Supekar |   Shailendrakumar Sharma| पुस्तक समीक्षा | नक्कारखाने की उम्मीदें | सन्तोष सुपेकर की काव्य कृति |  शैलेंद्रकुमार शर्मा 
समीक्षा के लिए यूट्यूब लिंक : 

https://youtu.be/INlNQFzMQ7o


डॉक्टर संजय नागर
सचिव
सरल काव्यांजलि,उज्जैन
मोबाइल 982763771

20200725

प्रेमचंद और हमारे समय के सवाल : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Premchand & Questions of our time - Prof. Shailendra Kumar Sharma

कथा सम्राट प्रेमचंद और हमारे समय के सवाल : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा |विशेष व्याख्यान | 
Special Lecture on Premchand aur Hamare Samay ke Sawal | Prof. Shailendra Kumar Sharma


गांधी और अंबेडकर की तरह आज प्रेमचंद भी जरूरी - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

प्रेमचंद जयंती के अवसर पर पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित प्रेमचंद जयंती उत्सव 2020 के अंतर्गत आनलाइन विशेष व्याख्यान शृंखला का आयोजन किया जा रहा है। इसी व्याख्यान शृंखला के अंतर्गत विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा शामिल हुए। उन्होंने 'प्रेमचंद और हमारे समय के सवाल' विषय पर अपने व्याख्यान दिया। 




प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि प्रेमचंद ने अपने समय में जो सवाल महिला, दलित एवं शोषित वर्ग की ओर से खड़े किए वह आज भी ज्यों के त्यों ही बने हुए हैं। उन्होंने बताया कि जो छलांग प्रेमचंद के लेखन द्वारा हिंदी कहानियों और उपन्यासों ने विश्व स्तर पर लगाई हैं वह यदि प्रेमचंद नहीं हुए होते तो कई दशक तक हम नहीं लगा पाते और प्रेमचंद ने बड़ी सहजता से ही यह कर दिया।

प्रेमचंद के समक्ष उस समय की चुनौती पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि प्रेमचंद को जहां अंदर रूढ़िग्रस्त समाज पर चोट पहुंचानी थी तो साथ ही साथ बाहर अंग्रेजी हुकूमत पर भी प्रहार करना था और प्रेमचंद इस चुनौती को स्वीकारते हुए अपने लेखन में पूरी तरह सफल भी हुए। प्रेमचंद के साहित्य के कालजयी होने के संदर्भ में उन्होंने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमता (Artificial Intelligence) के इस युग में धन केंद्रित सभ्यता मनुष्य को भौतिक पदार्थ बना रही है, जिसे प्रेमचंद ने उस समय ही देखते हुए जो सवाल खड़े किए वह आज भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं। 

प्रो शर्मा ने विशेष तौर पर बताया कि प्रेमचंद ने अपने साहित्य में न केवल स्वराज बल्कि सुराज की मांग की तथा प्रेमचंद की दृष्टि में चेहरे बदल जाने से व्यवस्था नहीं बदलती, जबकि सबसे अधिक महत्व ही व्यवस्था में बदलाव का होता है। उन्होंने प्रेमचंद को बुद्ध, महावीर, गांधी, अंबेडकर, कबीर तथा तुलसीदास जैसे महान विचारकों के समकक्ष रखते हुए कहा कि प्रेमचंद आज भी समाज में उतने ही महत्वपूर्ण हैं। 

इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से पचहत्तर से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया जिनमें चेन्नई, गुवाहाटी, समस्तीपुर, चंदौली, दिल्ली और विभाग के शोधार्थी एवं विद्यार्थी शामिल रहे। 

विभागाध्यक्ष डॉ. गुरमीत सिंह ने बताया कि हिंदी विभाग हर वर्ष प्रेमचंद जयंती उत्सव का आयोजन करता रहा है। इस वर्ष महामारी के कारण यह उत्सव ऑनलाइन माध्यम से आयोजित किया जा रहा है जिसमें एक पखवाड़े तक अनेक कार्यक्रमों को आयोजित किया जा रहा है। इसकी शुरुआत विशेष व्याख्यान शृंखला की पहली कड़ी के रूप में डॉ. हरीश नवल के व्याख्यान के साथ हुई थी। 





इसके अतिरिक्त 21 जुलाई को प्रेमचंद की कहानियों पर आधारित कहानी वाचन शृंखला की भी शुरुआत की गई जिसमें अब तक चार कहानियां विभाग के फेसबुक पेज से प्रसारित की जा चुकी हैं तथा इस शृंखला को लेकर भी देशभर से खासा उत्साह देखने को मिला। कार्यक्रम में प्रो. नीरजा सूद, प्रो. नीरज जैन, प्रो. सत्यपाल सहगल, प्रो. पंकज श्रीवास्तव एवं डॉ. राजेश जायसवाल आदि अनेक शिक्षक भी शामिल रहे।







इस पखवाड़े में विशेष व्याख्यान शृंखला के अलावा लघुकथा लेखन प्रतियोगिता भी करवाई गई जिसमें प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथि तक देश के तमाम हिस्सों से विद्यार्थियों ने 50 से अधिक लघुकथाएं भेजी हैं। 












पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के हिंदी विभाग का वेब आयोजन |कार्यक्रम की वीडियो विभाग के फेसबुक पेज पर उपलब्ध है। वहां से सुन सकते हैं :

फेसबुक लिंक पर जाएँ : 












20200720

कबीर दर्शन एवं शिक्षक शिक्षा - प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

कबीर दर्शन एवं शिक्षक शिक्षा | प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा | Kabir Darshan evam Shikshak Shiksha | Prof. Shailendra Kumar Sharma
अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में व्याख्यान



कबीर दर्शन एवं शिक्षक शिक्षा

 प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

शिक्षा व्यक्तित्व का समग्र रूपांतरण करती है। शिक्षक की रूपान्तरकारी भूमिका कबीर चिंतन में है। शिक्षा का सम्बन्ध केवल साक्षर बनाने से नहीं, बल्कि व्यक्ति को सर्वांगीण, आत्मनिर्भर, भावनात्मक एवं प्रज्ञाशील बनाने से है। कबीर इसी अर्थ में कोरे आखर ज्ञान के विरुद्ध हैं। 

शिक्षा का दायित्य है जीवन से जुड़े पहलुओं पर सवाल खड़े करना, तार्किक बनाना और जबाब तलाशना,  कबीर का दर्शन यह करता है। 

शिक्षक की जिम्मेदारी है कि वह सही - गलत का निर्णय लेने की क्षमता विकसित करे, कबीर लगातार यह करते हैं। आलोचक समाज और रचनात्मक समाज शिक्षा के जरिए बनता है, कबीर इस दिशा में निरन्तर गतिशील बने रहे। समतामूलक समाज का निर्माण शिक्षक शिक्षा और लोक शिक्षा दोनों का आदर्श है, कबीर अपनी वाणी के माध्यम से चिंतन के इसी स्तर पर ले जाते हैं। इसी तरह चारित्रिक विकास में शिक्षा की भूमिका देखना हो तो कबीर के दर्शन में देखी जा सकती है।


व्याख्यान के लिए यूट्यूब लिंक पर जाएं
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पर्यावरण संरक्षण : भारतीय चिंतन और हरियाली अमावस्या - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

भारतीय चिंतन परम्परा में प्रकृति, भगवान के समतुल्य - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

हरियाली अमावस्या पर्व पर राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी 

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा हरियाली अमावस्या पर्व पर अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश - दुनिया के अनेक विद्वानों, शोधकर्ताओं और प्रतिभागियों ने भाग लिया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ सुधांशु शुक्ला, पौलेंड, श्रीमती रमा शर्मा, जापान, डॉ कपिल कुमार, बेल्जियम थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं साहित्यकार प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने की। संगोष्ठी को डॉ कामराज सिंधु, कुरुक्षेत्र, श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने संबोधित किया। यह अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी पर्यावरण संरक्षण : भारतीय चिंतन और हरियाली अमावस्या पर एकाग्र थी।

संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ सुधांशु शुक्ला, पौलेंड ने कहा कि संपूर्ण विश्व आज पर्यावरण को लेकर चिंतित है। भारत अनादि काल से नदियों, पर्वतों, पेड़ और पौधों को लेकर आस्था भाव रखता आ रहा है। भारतीय चिंतन में प्रकृति को भगवान के समतुल्य महत्त्व मिला है, जो हमें सब कुछ देती है। 


मुख्य वक्ता प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि प्रकृति के साथ आत्मीय रिश्ता, लगाव और पूजा भाव भारतीय संस्कृति और परंपरा का महत्त्वपूर्ण अंग है। हमारे जल स्रोतों, प्राकृतिक वास स्थानों, बहुविध व्रत, पर्व, उत्सवों और लोक देवताओं के प्रति आस्था में प्रकृति के प्रति अनुराग सहस्राब्दियों से छलकता रहा है। प्रकृति पर्व हरियाली अमावस्या का हमारी परंपरा में विलक्षण स्थान है। सुदूर अतीत से चले आ रहे पर्यावरण चिंतन, वैज्ञानिक सोच, जातीय चेतना और वैश्विक दृष्टिकोण का संपुंजन हरियाली अमावस्या और इसी प्रकार के अन्य पर्वोत्सवों में दिखाई देता है। यह पर्व चराचर जगत के साथ मनुष्य के रिश्तों को व्यापक विश्व बोध के साथ जानने और क्रियान्वित करने का अवसर देता है। यह पर्व वन्य संस्कृति, गिरि संस्कृति, पशुपालन संस्कृति और कृषि संस्कृति के सातत्य और परस्परावलम्बन का पर्व है।


संगोष्ठी को संबोधित करते हुए श्रीमती रमा शर्मा, जापान ने कहा कि भारत में पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से अनेक उपाय किए जाते हैं। जहां घने वृक्ष होते हैं, उन स्थानों पर लोक आस्था के प्रतीक के रूप में देवालय बनवा दिए जाते हैं। हमारे यहां पीपल में देवताओं का वास माना गया है। 

डॉ कपिल कुमार, बेल्जियम ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय चिंतन में प्रकृति के प्रति गहरी आस्था का भाव रहा है। गुलामी के दौर में हम पर्यावरण विध्वंस में लग गए, जिसके गम्भीर दुष्परिणाम आज झेल रहे हैं। नस्लों को बचाने के लिए पर्यावरण का संरक्षण करना होगा। पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए सजगता लानी होगी। 


अध्यक्षीय उद्बोधन में शिक्षाविद् श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि वर्तमान युग व्यापक पर्यावरणीय चिंताओं का युग है। इस दौर में पर्यावरण संरक्षण  के लिए साहित्यकारों, शिक्षकों और कलाकारों को समाज में संचेतना जगाने के लिए तत्पर होना होगा।



डॉ. कामराज सिंधु, कुरुक्षेत्र ने कहा कि वर्तमान युग में जल, भूमि, वनों का दोहन अनेक समस्याएं पैदा कर रहा है। इनसे पशु - पक्षियों, कीट - पतंगों का नाश हो रहा है। हमें शहरीकरण और अनियोजित विकास पर अंकुश लगाना होगा। 


प्रारंभ में श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कार्यक्रम की संकल्पना एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डाला।   

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए संस्था के महासचिव  डॉ प्रभु चौधरी ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सभी क्षेत्रों में सजगता जरूरी है। वर्षा काल में संस्था द्वारा स्थान - स्थान पर औषधीय और पर्यावरणीय महत्त्व के पौधे लगाए जाएंगे। 


आयोजन में श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, स्वर्णा जाधव, मुंबई ने पर्यावरणीय चिंताओं से जुड़ी कविताएं प्रस्तुत कीं।








इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ सुरेश चंद्र शुक्ल, ऑस्लो, नॉर्वे, डॉ विनोद तनेजा, अमृतसर, श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर, डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे,  शम्भू पँवार, जयपुर, डॉ कविता रायजादा, आगरा, तूलिका सेठ, गाजियाबाद, जी डी अग्रवाल, इंदौर आदि सहित देश के विभिन्न राज्यों के विद्वानों और प्रतिभागियों ने भाग लिया।

संगोष्ठी की सूत्रधार डॉ संजीव कुमारी गुर्जर, हिसार थीं। आभार प्रदर्शन श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने किया। 









कार्यक्रम में डॉ.  उर्वशी उपाध्याय, प्रयाग, डॉ. शैल चन्द्रा, रायपुर, डॉ हेमलता साहू, अम्बिकापुर, डॉ. दर्शनसिंह रावत उदयपुर, डॉ कृष्णा श्रीवास्तव, मुंबई, श्रीमती प्रभा बैरागी, उज्जैन, श्री सुन्दरलाल जोशी ‘सूरज‘ नागदा, हेमलता शर्मा, आगर, श्रीमती रागिनी शर्मा, राऊ, डॉ. संगीता पाल, कच्छ,  डॉ. सरिता शुक्ला, लखनऊ, विनीता ओझा, रतलाम, पायल परदेशी, महू, जयंत जोशी धार, अनुराधा गुर्जर, दिल्ली, राम शर्मा परिंदा, मनावर, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ प्रवीण जोशी, डॉ श्वेता पंड्या, कमल भूरिया,  प्रवीण बाला, लता प्रसार, पटना, मधु वर्मा, श्रीमती दिव्या मेहरा, कोटा, श्रीमती तरुणा पुंडीर, दिल्ली, डॉ. शिवा लोहारिया, जयपुर, सुश्री खुशबु सिंह, रायपुर आदि सहित देश के विभिन्न राज्यों के साहित्यकार, प्रतिभागी और शोधकर्ता उपस्थित रहे। 

डॉ. प्रभु चौधरी
महासचिव
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना
मो. 9893072718

20200711

पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर | संवाद |प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | दिलीप जोशी | केशव राय | Padmashree Dr V S Wakankar | Sansthan |Dilip Joshi |Shailendra Kumar Sh...





पद्मश्री डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर : पुरातिहासविद्, लिपिशास्त्री और अन्वेषक | संवाद : दिलीप जोशी | प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा | केशव राय 
Padmashri Vishnu Shridhar Wakankar : The Great Archeologist, Historian & Paleographist | Conversation with Dilip Joshi & Prof. Shailendra Kumar Sharma by Shri Keshav Rai
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पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर : पुरातिहास के विलक्षण अन्वेषक
- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 
पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर (उपाख्य : हरिभाऊ वाकणकर ; 4 मई 1919 – 3 अप्रैल 1988) किंवदंती पुरुष हैं। उन्होंने मालवा सहित भारत के पुरातत्त्व और इतिहास के अनेक अनछुए पहलुओं को उद्घाटित किया। 23 मार्च को उन्होंने भोपाल के समीप भीमबेटका के प्रागैतिहासिक शैलाश्रयों और चित्र शृंखला की खोज के साथ ही उनका गहन विश्लेषण किया। उनके द्वारा किए गए इस ऐतिहासिक कार्य के कारण आज भीमबेटका विश्व धरोहर के रूप में सुस्थापित है। अनुमान है कि यह चित्र शृंखला 175000 वर्ष पुरातन है। इन चित्रों का परीक्षण कार्बन-डेटिंग पद्धति से किया गया है, इसी के परिणामस्वरूप इन चित्रों के काल-खंड का ज्ञान होता है। इससे यह भी सिद्ध हुआ कि उस समय रायसेन जिले में स्थित भीम बैठका गुफाओं में मनुष्य रहता था और वे लोग चित्र, नृत्य, अभिनय आदि कलाओं के माध्यम से आत्माभिव्यक्ति करते थे। वैदिक सरस्वती नदी के साथ कायथा, दंगवाड़ा, मनोटी, इन्दरगढ़,  रूणिजा, नागदा आदि जैसे अनेक प्रागैतिहासिक स्थलों के अन्वेषण सहित भारतीय पुरातिहास की दिशा में उनके द्वारा किए गए कार्य मील का पत्थर सिद्ध हो गए हैं। उनके विलक्षण अवदान के लिए सन 1975 ई. में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था।

वाकणकर जी द्वारा अन्वेषित भीमबेटका में  600 शैलाश्रय हैं, जिनमें 275 शैलाश्रय चित्रों द्वारा सज्जित हैं। पूर्व पाषाण काल से मध्य ऐतिहासिक काल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का महत्त्वपूर्ण केंद्र रहा। यह बहुमूल्य धरोहर अब पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। यहाँ के शैल चित्रों के विषय सामूहिक नृत्य,  मानवाकृतियाँ, शिकार, पशु-पक्षी, युद्ध और प्राचीन मानव जीवन के दैनन्दिन क्रियाकलापों से जुड़े हैं। चित्रों में प्रयोग किये गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ, लाल और सफेद हैं और कहीं-कहीं पीला और हरा रंग भी प्रयोग हुआ है। भीमबेटका की विलक्षण शैलाश्रय शृंखला डॉ वाकणकर जी की अन्वेषण दृष्टि से दुनिया की निगाह में आई। 

- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
Shailendrakumar Sharma

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