पेज

20210810

महाराष्ट्र के शिखर संत : ज्ञानेश्वर और तुकड़ो जी - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Top Saints of Maharashtra: Gyaneshwar and Tukado Ji - Prof. Shailendra Kumar Sharma |

मानवता के प्रसार की दृष्टि से अविस्मरणीय है संतों का संदेश – प्रो शर्मा 

महाराष्ट्र के शिखर संतों का ज्ञान एवं गुरु परंपरा पर राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी सम्पन्न  

प्रतिष्ठित राष्ट्रीय संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका विषय महाराष्ट्र के शिखर संतों का ज्ञान एवं गुरु परंपरा था। आभासी पटल पर मुख्य अतिथि श्री विलासराव देशमुख, मुंबई महाराष्ट्र थे। विशिष्ट वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा, प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री दिलीप चव्हाण, मुंबई, श्री बाला साहब तोरस्कर मुंबई, डॉ प्रभु चौधरी, डॉ सुरेखा मंत्री, यवतमाल थे। अध्यक्षता श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने की।




मुख्य अतिथि के रूप में श्री विलासराव देशमुख, मुंबई महाराष्ट्र ने कहा कि ज्ञानेश्वर जी अपनी स्वतंत्र बुद्धि और गुरु भक्ति के लिए जाने जाते हैं। संत ज्ञानेश्वर महाराष्ट्र के एक अनमोल रत्न हैं। श्रोताओं की प्रार्थना, मराठी भाषा के  अभिमान, गीता के स्तवन, श्री कृष्ण और अर्जुन का अकृत्रिम स्नेह इत्यादि विषयों ने ज्ञानेश्वर को विशेष बना दिया है। संत ज्ञानेश्वर महाराष्ट्र के सांस्कृतिक और परमार्थिक क्षेत्र के 'न भूतो न भविष्यति' जैसे बेजोड़ व्यक्तित्व  एवं अलौकिक चरित्र हैं।




विशिष्ट अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि महाराष्ट्र के सभी संतों का संदेश मानवता के प्रसार की दृष्टि से अविस्मरणीय है। संत तुकड़ो जी शांति, समन्वय और परस्पर प्रेम के उद्गायक थे। उन्होंने राष्ट्र भक्ति को ईश्वर भक्ति के समान महत्त्व दिया। वे हिंद के पुत्रों से अपने-अपने मत और पंथ छोड़कर भारत मत पर चलने का आह्वान करते हैं। भक्ति के साथ-साथ सामाजिक चेतना पर उन्होंने विशेष बल दिया। उनकी वाणी में अनेक जीवन मूल्य दिखाई देते हैं। वे सारे संसार को मोती की माला में पिरोने पर विश्वास रखते थे। उनके पास स्वानुभूत दृष्टि थी और उन्होंने अपने पूरे जीवन में हृदय की पवित्रता और किसी के लिए भी मन में द्वेषभाव न रखने का पाठ पढ़ाया।



अध्यक्षता कर रहीं श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि महाराष्ट्र संतों की भूमि है। अनेक संतों के विचार आज भी समाज में प्रासंगिक बने हुए हैं, उनमें से ज्ञानेश्वर और राष्ट्र संत तुकड़ो जी प्रमुख हैं। मनी नाही भाव म्हणे देवा मला पाव, अशान  देव काही भेटायचा नाही रे। देव काही बाजारचा भाजीपाला नाही रे। ऐसे आसान शब्दों में भक्ति सिखलायी। उन्होंने अंधश्रद्धा निर्मूलन का काम किया। ज्ञानेश्वर माऊली ने  ज्ञानेश्वरी लिखी। उन्होंने सरल शब्दो में भागवत धर्म समझाया। उन्होंने पसायदान भी लिखा।




विशिष्ट अतिथि श्री दिलीप चव्हाण, मुंबई, महाराष्ट्र ने कहा कि भारत के महाराष्ट्र को संतों की भूमि कहा जाता है। महाराष्ट्र की धरती पर कई महान संतों ने जन्म लिया, जिनमें एक थे संत ज्ञानेश्वर। वे संत होने के साथ-साथ एक महान कवि भी थे। महान संत ज्ञानेश्वर जी ने संपूर्ण महाराष्ट्र राज्य का भ्रमण कर लोगों को ज्ञान भक्ति से परिचय कराया एवं समता और समभाव का उपदेश दिया।  तेरहवीं सदी के महान संत होने के साथ-साथ वे महाराष्ट्र संस्कृति के प्रवर्तकों में से भी एक माने जाते थे।


मुख्य वक्ता डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे महाराष्ट्र ने कहा कि संत ज्ञानेश्वर मुख्य संतों में से एक हैं। ज्ञानेश्वरी गीता पर आधारित है। ज्ञानेश्वर ने केवल 15 वर्ष की उम्र में ही गीता पर मराठी में ज्ञानेश्वरी नामक भाष्य की रचना करके जनता की भाषा में ज्ञान की झोली खोल दी। उन्होंने गीता को समाज के सामने रखा। संत ज्ञानेश्वर जी ने अपने ज्ञान तत्व को समझाया है। शांत रस की प्रधानता है साथ ही ज्ञानेश्वरी में कर्म के महत्त्व को बताया है।


विशिष्ट वक्ता डॉ सुरेखा मंत्री, महाराष्ट्र ने कहा कि संत ज्ञानेश्वर जी के प्रचंड साहित्य में कहीं भी, किसी के विरुद्ध परिवाद नहीं है। क्रोध, रोष, ईर्ष्या, मत्सर का कहीं लेश मात्र भी नहीं है। समग्र ज्ञानेश्वरी क्षमाशीलता का विराट प्रवचन है।


विशिष्ट अतिथि श्री बालासाहेब तोरस्कर, महाराष्ट्र में कहा कि संत परंपरा में गुरु परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। संत तुकड़ोजी समाज के प्रति आस्था रखते थे। भारत के प्रति उनका अगाध प्रेम था, देश के प्रति प्रेम भावना था। तुकड़ोजी ने सामूहिक प्रार्थना पर बल दिया। संपूर्ण विश्व में उनकी प्रार्थना पद्धति अतुलनीय थी।


गोष्ठी का प्रारंभ डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ के सरस्वती वंदना हे शारदे मां हे शारदे मां से हुआ। स्वागत उद्बोधन राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष डॉ. भरत शेणकर  ने दिया। प्रस्ताविक भाषण में राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के  महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने लिए कहा कि संत तुकड़ोजी महाराज के कार्य और उनकी ख्याति दूर-दूर तक है। महात्मा गांधी द्वारा सेवाग्राम आश्रम में उन्हें निमंत्रित किया गया, जहां वे लगभग एक महीने रहे। उसके बाद तुकडो़जी ने सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यक्रमों द्वारा समाज में जनजागृति का काम प्रारंभ कर दिया।  महासचिव डॉ प्रभु चौधरी के जन्म दिवस पर काव्य गोष्ठी आयोजन के प्रतिभागियों में प्रथम कुमुद शर्मा गुवाहाटी, द्वितीय सुनीता गर्ग पंचकूला, तृतीय भुनेश्वरी साहू छत्तीसगढ़ को सम्मान पत्र वितरित किया गया।

इस आभासी गोष्ठी में अनेक शिक्षाविद विद्वत जन उपस्थित थे। आभार डॉ अरुणा दुबे, महाराष्ट्र ने व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन प्राध्यापिका रोहिणी डावरे, अकोले महाराष्ट्र ने किया।





20210626

सन्त कबीर : सामाजिक सरोकार और मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Sant Kabir: Perspective of Social Concerns and Values - Prof. Shailendra Kumar Sharma

मनुष्य के तन में ही ईश्वर का मंदिर दिखाने की चेष्टा की कबीर ने


सन्त कबीर : सामाजिक सरोकार और मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में पर राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी आयोजित 


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी सन्त कबीर : सामाजिक सरोकार और मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ बी आर अम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ के कुलाधिपति डॉ प्रकाश बरतूनिया थे। विशिष्ट वक्ता डॉ सुरेश पटेल, इंदौर, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, डॉ संजीव निगम, मुंबई, हिंदी परिवार के अध्यक्ष श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर एवं महासचिव डॉ प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। आयोजन में विगत एक वर्ष में वेब पटल पर सौ से अधिक संगोष्ठियों के आयोजन के लिए संयोजक एवं समन्वयक डॉ प्रभु चौधरी को शतकीय संगोष्ठी सम्मान पत्र एवं स्मृति चिन्ह अर्पित कर उन्हें सम्मानित किया गया। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन श्रीमती पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने किया। 





 

मुख्य अतिथि डॉ प्रकाश बरतूनिया, लखनऊ ने कहा कि संत कबीर भारत भूमि की ऋषि – मुनि, साधु - संतों की लंबी परंपरा के अंग हैं। उन्होंने भक्ति के लोकव्यापीकरण का महत्वपूर्ण कार्य किया। वे अपने वाणी के माध्यम से लोगों के दिलों तक पहुंचे। उन्होंने प्रेम का संदेश समाज को दिया है। वे श्रम के साथ ईश्वर के स्मरण पर बल देते हैं। समस्त मानव समुदाय आडंबर में न पड़े, इसका आह्वान कबीर की वाणी करती है। उनके गुरु स्वामी रामानंद से सभी वर्गों और समुदायों के लोग जुड़े थे।




विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि कबीर ने भारतीय समाज को जाति, वर्ग और धर्म की सीमाओं से ऊपर उठाने का प्रयत्न किया। वे तमाम प्रकार के सामाजिक और पन्थगत अलगाव से टकराते हैं। शास्त्र में लिखे हुए शब्द जब स्वयं परब्रह्म बन कर बैठ जाते हैं, तब कबीर उसका प्रतिरोध करते हैं। उन्होंने मनुष्य के तन में ही ईश्वर का मंदिर दिखाने की चेष्टा की, जिसकी शोभा अनूठी है। उनकी आत्मा भारतीय संविधान में रची बसी हुई है, जो समानता, न्याय और लोकतंत्र को आधार में लिए हुए है। कबीर ने अपने अहम् का विसर्जन व्यापक सत्ता में कर दिया था। वे बाजार में निष्पक्ष रूप में खड़े हुए थे। उनके लिए न कोई शासक है और न शासित। सही अर्थों में कबीर आत्मा का विशुद्ध रूप हैं। उन्होंने भक्ति के मर्म को सर्वसामान्य तक पहुंचाया। 




विशिष्ट अतिथि कबीर पंथी प्राध्यापक डॉ सुरेश पटेल, इंदौर ने कहा कि कबीर ने अनेक प्रकार की चुनौतियां का सामना किया। उन्होंने देखा कि हवा और जल किसी के साथ भेदभाव नहीं करते तो मनुष्य भेदभाव क्यों करता है। उन्होंने करघा चलाते हुए लोगों को ज्ञान दिया। समाज के ताने-बाने को जोड़ने की जरूरत उन्होंने महसूस की। कबीर की शक्ति लोक की शक्ति है। वे सदैव लोकाश्रय में रहे। आजीवन उन्होंने मनुष्य से मनुष्य को जोड़ने की चेष्टा की। कबीर ने श्रम को कभी हीन दृष्टि से नहीं देखा।




डॉ संजीव निगम, मुंबई ने कहा कि कबीर ने जो भी देखा उसे अपनी वाणी के माध्यम से प्रस्तुत किया। कबीर ने संकेत दिया है कि लोग शिक्षित तो हो जाते हैं, लेकिन ज्ञानी नहीं बन पाते हैं। उनकी वाणी लोगों के कण्ठों में बस गई है। कई पीढ़ियां निकल गईं, किंतु कबीर की वाणी जीवित है। सामान्य जन से लेकर विशिष्ट जन तक सब कबीर को गा रहे हैं और उन्हें अपने जीवन में उतार रहे हैं। कबीर का लेखन शाश्वत लेखन है, जो आज भी प्रासंगिक है।





श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि कबीर ने संपूर्ण समाज को एकता के सूत्र में बांधने के लिए ताना-बाना बुना था। लोक समुदाय के बीच उनसे अधिक प्रभाव डालने वाला कोई दूसरा कवि नहीं हुआ। उनकी वाणी में अनमोल विचार संचित हैं।


अध्यक्षीय उद्बोधन में प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि संत कबीर क्रांतिकारी कवि थे। उन्होंने पाखंड के विरुद्ध स्वर उठाया। वे व्यष्टि नहीं, समष्टिवादी थे। उन्होंने सर्वधर्म सद्भाव को जीवन में चरितार्थ किया। अपनी वाणी के माध्यम से कबीर ने दया, करुणा और प्रेम की प्रतिष्ठा की। सत्य को बड़े साहस के साथ स्थापित करने का कार्य उन्होंने किया। वे सच्चे मानवतावादी थे। वे मानव मात्र की पीड़ा का शमन करना चाहते थे।


संगोष्ठी की प्रस्तावना श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने प्रस्तुत की।  सरस्वती वंदना डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने की। संस्था परिचय डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने प्रस्तुत किया। अतिथि परिचय भुनेश्वरी जायसवाल, भिलाई ने दिया। कार्यक्रम की पीठिका एवं स्वागत भाषण डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत किया।




आयोजन में डॉ ममता झा, मुंबई, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मनीषा सिंह, मुंबई, डॉ दिग्विजय शर्मा, आगरा, दिव्या पांडे, डॉ रेखा भालेराव, उज्जैन, उर्वशी उपाध्याय प्रेरणा, प्रयागराज, शीतल वाही, भुवनेश्वरी जायसवाल, भिलाई आदि सहित अनेक साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।


संगोष्ठी का संचालन श्रीमती पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने किया। आभार प्रदर्शन उर्वशी उपाध्याय प्रेरणा, प्रयागराज ने किया।











































कबीर जयंती


20210622

योग दर्शन : वैश्विक सभ्यता और संस्कृति को योगदान -प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Yoga Philosophy: Contribution to Civilization and Culture - Prof. Shailendra Kumar Sharma

संयम, संयोग और समाधि की त्रिवेणी है योग – प्रो. शर्मा 

योग दर्शन : वैश्विक सभ्यता और संस्कृति को अवदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में जुड़े चार देशों के योग विशेषज्ञ 


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा निशा जोशी योग अकादमी, इंदौर एवं शिवाज योग एंड नेचरोपैथी संस्थान, जयपुर के सहयोग से  अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें 4 देशों के योग विशेषज्ञ जुड़े। संगोष्ठी योग दर्शन : वैश्विक सभ्यता और संस्कृति को अवदान पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन की विशिष्ट अतिथि योगाचार्य डॉ निशा जोशी, इंदौर, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, श्री चंद्रप्रकाश सुखवाल, न्यूयॉर्क, कंवलदीप कौर, सिंगापुर, मीनाक्षी देशमुख, दुबई, टीना सुखवाल, न्यूयॉर्क, डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉ एकता डंग, डॉ सुनीता गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई एवं महासचिव डॉ प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता हिंदी परिवार के अध्यक्ष श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन श्रीमती पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने किया। इस अवसर पर योगाचार्य डॉ निशा जोशी और डॉ शिवा लोहारिया को योग के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया गया। 





मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि योग संयम, संयोग और समाधि की त्रिवेणी है। योग दर्शन विश्व सभ्यता को भारत की अनुपम देन है। यह हमें सत, चित और आनंद की अनुभूति तक ले जाता है। योग मनुष्य जीवन में समता का भाव लाता है। इससे हम स्थितप्रज्ञ होने की दिशा में आगे बढ़ते हैं और स्व के शुद्ध रूप में अवस्थित हो सकते हैं। सुख – दुख, लाभ – हानि, शत्रु - मित्र के द्वंद्व को समान भाव से लेने की शिक्षा इससे मिलती है। अष्टांग योग के साधकों को बहिरंग के साथ अंतरंग साधना की ओर भी प्रवृत्त होना चाहिए। यह ईश्वर से मनुष्य को जोड़ने का कार्य करता है। जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति इससे सम्भव है।



योगाचार्य डॉ निशा जोशी, इंदौर ने कहा कि योग के माध्यम से हम स्वयं को जान सकते हैं। यह शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत उपयोगी है। योग वर्तमान में संपूर्ण पैथी बन गया है। इसके माध्यम से परहित के बारे में सोचने की दिशा मिलती है।



न्यूयॉर्क के श्री चंद्रप्रकाश सुखवाल ने कहा कि योग एक विज्ञान है। योग से हमारा जीवन सरल और शांत हो जाता है। यह शरीर का कवच है, जिससे शरीर स्वस्थ और मन शांत होता है। अमेरिका में योग के अनेक केंद्र हैं, जिनमें बड़ी संख्या में लोग लाभान्वित हो रहे हैं। इससे विश्व में शांति की स्थापना हो सकती है। योग करने से जीवन बदल जाता है और घर मंदिर बन जाता है।


डॉ प्रभु चौधरी ने कहा कि योग अध्यात्म के लिए महत्वपूर्ण मार्ग है। भारत अनादि काल से विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित था। वह अब पुनः विश्व गुरु बनेगा। योग संसार के लोगों को जोड़ने का सशक्त माध्यम बन गया है।


अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि योग दर्शन में सर्व मंगल की कामना अंतर्निहित है। योग जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाता है। वसुधैव कुटुंबकम् की भावना को योग के माध्यम से सहज ही साकार किया जा सकता है।




डॉ. शिवा लोहारिया, जयपुर ने कहा कि योग का प्रमुख उद्देश्य है हम निरंतर आनंदमय बने रहें। इससे स्वास्थ्य लाभ तो होता ही है, वातावरण प्रेममय और शुद्ध हो जाता है।



टीना सुखवाल, न्यूयॉर्क ने कहा कि दुनिया के अनेक देशों में लोगों ने योग से लाभ प्राप्त किए हैं। अमेरिका के अनेक शहरों में योग केंद्र खुले हुए हैं। योग जीवन में एकाग्रता और रचनात्मकता लाता है। एक अनुशासन है। यह कोरोना काल में चिंता और अवसाद  से मुक्त होने का महत्वपूर्ण माध्यम सिद्ध रहा है।


कार्यक्रम में डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे,ने कहा कि योग सम्पूर्ण जीवन के लिए उपादेय है। यह  मन को स्थिर करने में योगदान देता है। यह हमारे जीवन में सार्थकता लाता है।


श्रीमती मीनाक्षी देशमुख, दुबई ने कहा कि मन को शांत एवं प्रसन्नचित रखने का कार्य योग के माध्यम से संभव होता है। यह देश विदेश के सभी को जोड़ रहा है। योग शास्त्रोक्त विधि से हो, यह योगा न बन जाए, इस बात पर हमें ध्यान देना होगा। 


डॉ सुनीता गर्ग, पंचकूला, हरियाणा ने कहा कि योग ईश्वर का वरदान है। शरीर और मन को नियंत्रित करने के साथ योग हमारी दिनचर्या को व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण सिद्ध होता है। प्राणायाम के माध्यम से उर्जा उत्पन्न होती है। वात रोग एवं अन्य व्याधियों से मुक्ति के लिए योग उपयोगी है।


श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि योग के माध्यम से अनेक प्रकार के रोगों का इलाज संभव है। योग को समुचित ढंग से करने पर ही उसका लाभ प्राप्त किया जा सकता है। 





कार्यक्रम में संस्थाओं द्वारा आयोजित सात दिवसीय योग शिविर में प्रशिक्षण देने वाले योग शिक्षकों - सिद्धार्थ शाह, इंदौर, डॉ सुनीता गर्ग, पंचकूला, पूजा शर्मा, इंदौर, दीपाली वर्मा, इंदौर, कृष्णा भोजावत, इंदौर, वरुण आहूजा, इंदौर एवं एकता डंग, अंबाला को सम्मान पत्र अर्पित कर उन्हें सम्मानित किया गया।


कँवलदीप कौर एवं अन्य सहभागियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए। 




सरस्वती वंदना भुवनेश्वरी जायसवाल, भिलाई ने की। स्वागत भाषण डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने प्रस्तुत किया। आयोजन की प्रस्तावना डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने प्रस्तुत की।


आयोजन में श्रीमती चंद्रा सुखवाल, न्यूयॉर्क, प्रो विमल चन्द्र जैन, डॉ ममता झा, मुंबई, मीनू लाकरा, अमिता, संगीता शर्मा, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, बालासाहेब तोरस्कर, मनीषा सिंह, मुंबई, मनीषा ठाकुर, शीतल वाही, भुवनेश्वरी जायसवाल, भिलाई आदि सहित अनेक साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।


संगोष्ठी का संचालन श्रीमती पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई ने किया।







 



अंतरराष्ट्रीय योग दिवस


20210621

भारतीय साहित्य और संस्कृति में नदियों की महिमा और संरक्षण के उपाय - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Glory and Conservation Measures of Rivers in Indian Literature and Culture - Prof. Shailendra Kumar Sharma

भारतीय जनमानस गंगा का रूप देखता है नदियों और जल स्रोतों में – प्रो. शर्मा 

भारतीय साहित्य और संस्कृति में नदियों की महिमा और संरक्षण के उपाय पर अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ मंथन  


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी भारतीय साहित्य और संस्कृति में नदियों की महिमा और संरक्षण के उपाय पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन के विशिष्ट अतिथि हिंदी परिवार के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, प्रो विमल चन्द्र जैन, इंदौर, प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ गरिमा गर्ग, पंचकूला एवं महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन श्रीमती लता जोशी, मुंबई ने किया। 




मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि नदी जल संरक्षण का प्रथम उदाहरण गंगा नदी के अवतरण प्रसंग में शिव जी द्वारा अपनी जटा में गंगा को धारण करने के रूप में मिलता है। अनादि काल से भारतीय संस्कृति के विकास में गंगा की भूमिका रही है। भारतीय संस्कृति और जनमानस सभी नदियों और जल स्रोतों में गंगा का रूप देखता है। जितना भी निर्मल जल है, वह पवित्र करने वाला है और वह सब गंगा के समान है। नदियों को सदानीरा तभी रखा जा सकता है, जब हम उनका मूल परिवेश लौटाएंगे। नदियों के तट को वनों से आच्छादित किया जाए। पारिस्थितिक तंत्र को लौटाने से ही नदियों का समुचित संरक्षण और संवर्धन हो सकता है। नई बस्तियों की बसाहट नदी तट से दूर की जानी चाहिए। नदियों के गहरीकरण और चौड़ीकरण के साथ तटों की मिट्टी के कटाव को रोकने की मुहिम चलानी होगी। नदियों में अलग अलग रोगों को नष्ट करने की क्षमता है, जिनके लिए व्यापक चेतना जाग्रत करने की जरूरत है।




विशिष्ट अतिथि साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि नदी घाटी सभ्यता से मनुष्य का गहरा नाता है। नदियां हमारी संस्कृति और आस्था की प्रतीक हैं। रामचरितमानस में श्रीराम द्वारा गंगा में स्नान का वर्णन किया गया है। सीता को गंगा मैया आशीष देती हैं। नदियों के जल को प्रदूषित कर हम बहुत बड़ा अपराध कर रहे हैं। नदियों को पुनर्जीवन देने के लिए व्यापक प्रयास जरूरी हैं।




अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि नदियों को मनुष्यों के द्वारा दूषित किया जा रहा है। गंगा एवं अन्य नदियों की पवित्रता को सुरक्षित रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। गायत्री को वेदों की जननी माना गया है। उनकी आराधना से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।




प्रवासी साहित्यकार सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि हम नदियों को माता मानने के बावजूद उन्हें प्रदूषित करते हैं। इसके लिए लोगों की मानसिकता में बदलाव आवश्यक है। नार्वे में दो बड़ी नदियाँ हैं, जिन्हें स्वच्छता का प्रतीक माना जाता है। भारत में नदियों को बचाना है तो बोतल बंद पानी की बिक्री बंद करना होगा, जिससे लोग जल के शुद्धीकरण की महिमा जान सकेंगे।


प्रो विमल चंद्र जैन, इंदौर ने कहा कि गंगा, यमुना जैसी नदियों के दर्शन मात्र से हमें स्वर्गीय आनंद प्राप्त होता है। साहित्य में गंगा का व्यापक वर्णन किया गया है। नर्मदा, शिप्रा जैसी महान नदियों के साथ हमारा सम्मान का भाव जुड़ा हुआ है।


श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि नदियां हजारों लोगों के जीवन में भूख और प्यास मिटाने का कार्य करती हैं। भारत को नदियों की देन अनुपम है। इस देश की प्राचीन संस्कृतियाँ नदी तट पर विकसित हुई हैं। कारखानों और आवासीय इलाकों का प्रदूषित जल नदियों में जाने से रोकना होगा।



डॉ प्रभु चौधरी ने कहा कि गंगाजल सभी को पावन करने वाला है। उसकी महिमा अपार है। लोक संस्कृति में गंगा उद्यापन की परंपरा रही है। गंगा शुद्धीकरण के लिए व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं। दशकों पहले श्रीराम शर्मा आचार्य ने गायत्री परिवार और शांतिकुंज की स्थापना की थी, जिसका व्यापक प्रभाव हुआ। मेरे पिताश्री माधवलाल  चौधरी अनुशासित और समय पालन में कटिबद्ध थे।



डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा ने कहा कि नीर, नदी और नारी तीनों को समाज के लिए पोषक माना गया है। नदी के समीप बड़ी तादाद में वृक्षारोपण किया जाना चाहिए, जिससे मिट्टी का कटाव नहीं होगा। कार्यक्रम में डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई ने भी अपने विचार व्यक्त किए।


सरस्वती वंदना कवि श्री राम शर्मा परिंदा, मनावर ने की। स्वागत भाषण डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने प्रस्तुत किया। आयोजन की प्रस्तावना डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने प्रस्तुत की।


आयोजन में डॉ देवनारायण गुर्जर, जयपुर, डॉ उर्वशी उपाध्याय, प्रयागराज, रिया तिवारी, डॉ सुनीता चौहान मुंबई, डॉ विमल चंद्र जैन, इंदौर, पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, बजरंग गर्ग, बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई, डॉ ममता झा, मुंबई, शीतल वाही, श्री राम शर्मा परिंदा, मनावर, डॉ शैल चंद्रा, धमतरी, भुवनेश्वरी जायसवाल, भिलाई आदि सहित अनेक साहित्यकार, शिक्षाविद, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।




संगोष्ठी का संचालन श्रीमती लता जोशी मुंबई ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ प्रभु चौधरी, उज्जैन ने किया।

















20210619

महारानी लक्ष्मीबाई और अन्य वीरांगनाएँ : इतिहास एवं संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Maharani Laxmibai and other Brave Women: in the Vontext of History and Culture - Prof. Shailendra Kumar Sharma

विश्व सभ्यता को देशभक्ति का महान संदेश दिया है महारानी लक्ष्मीबाई ने – प्रो. शर्मा 


अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ भारत की वीरांगनाएँ : इतिहास एवं संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर मंथन  


सृजनधर्मियों की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया।  संगोष्ठी भारत की वीरांगनाएँ : इतिहास एवं संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन के विशिष्ट अतिथि प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, साहित्यकार डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई, साहित्यकार श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता, डॉक्टर संगीता इंगले, पुणे, प्रतिभा मगर, पुणे, डॉ भरत शेणकर, अहमदनगर एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने किया। 







मुख्य अतिथि साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि महारानी लक्ष्मीबाई ने स्त्रियों के आत्म स्वाभिमान की रक्षा के लिए अद्वितीय प्रयास किया, जिससे प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। प्रत्येक भारतवासी को देश की आजादी के लिए मर मिटने वाले वीरों के स्मृति स्थलों पर जाकर मत्था टेकने जाना चाहिए। लक्ष्मीबाई को याद करना देश और नारी की अस्मिता के साथ जुड़ना है। वे स्त्रियों को देश की आजादी के साथ पारस्परिक एकता का संदेश देकर गई हैं। 




विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने व्याख्यान देते हुए कहा कि भारत की स्वतंत्रता, स्वदेश के प्रति अनुराग और स्वाभिमान को जगाने के लिए अनेक वीरांगनाओं ने बलिपथ को चुना था, उनमें महारानी लक्ष्मीबाई की शहादत अद्वितीय हैं।  लक्ष्मीबाई ने संपूर्ण विश्व सभ्यता को देशभक्ति की सर्वोपरिता का महान संदेश दिया है। उन्होंने भारतवासियों की सुप्त चेतना को जाग्रत करने का काम किया था। देश की आजादी की पुकार उनके अंतर्मन की आवाज थी। उन्होंने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी, किंतु उनके द्वारा जाग्रत की गई चिंगारी बुझी नहीं। वह नए दौर में राष्ट्र भक्तों के हाथों में ज्वाला बन कर भड़की। उन्होंने वीर शिवाजी की शौर्य गाथाओं से प्रेरणा ली थी और नए दौर में अपने महान कार्यों से सिद्ध कर दिखाया। अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करते हुए उन्होंने घोड़े की रस्सी अपने दाँतों से दबाई हुई थीं। वे रणचण्डी के रूप में दोनों हाथों से तलवार चलाते हुए एक साथ दोनों तरफ़ वार कर रही थीं। उनके अपूर्व शौर्य और वीरता की गाथा को सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी कविता में बहुत मार्मिक ढंग से उतारा है।




कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि भारत की आजादी का इतिहास महान वीरांगनाओं के बिना अधूरा है। उन्होंने रूढ़ पुरुषवादी धारणाओं को ध्वस्त किया। देश के लिए प्राणार्पण करने वाली महारानी लक्ष्मीबाई द्वारा गठित सैनिक दल में स्त्रियां बड़ी संख्या में थीं, जिसे उन्होंने दुर्गा दल नाम दिया था। उन्होंने अंग्रेजों को अपनी दृढ़ता और विद्रोही चेतना का लोहा मनवाया।




विशिष्ट अतिथि श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ऑस्लो, नॉर्वे ने कहा कि लक्ष्मीबाई के चरित्र को सुनकर हृदय में जोश उत्पन्न हो जाता है। उन्होंने जो मार्ग दिखाया है, आज उसके अनुरूप चलने की आवश्यकता है। स्त्रियों को सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में अवसर मिलने चाहिए। वे राष्ट्रीय चेतना जगाकर गई हैं। उन्हें सदैव याद किया जाएगा।




डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता ने कहा कि वीरांगनाओं को याद कर अतीत की प्राणधारा पुनर्जीवित हो जाती है। लक्ष्मीबाई के कार्यों को देश के जन-जन के हृदय में उतारने की आवश्यकता है, तभी हमारा राष्ट्र सुरक्षित रह सकेगा।

राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि महारानी लक्ष्मीबाई ने अपूर्व पराक्रम का परिचय दिया था। उनकी परंपरा इतिहास के पृष्ठों में ही समाप्त नहीं हुई। वे आज भी राष्ट्रप्रेम का प्रतीक बनकर हमारे मध्य जीवित हैं।



डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई ने कहा कि लक्ष्मीबाई भारतीय वसुंधरा को गौरव प्रदान करने वाली महान वीरांगना थीं। वे अपने महान उद्देश्य के प्रति सचेत, निष्ठावान और कर्तव्यपरायण रहीं। उनका पराक्रम सदैव अविस्मरणीय रहेगा।




डॉ प्रतिभा मगर, पुणे ने कहा कि वीरांगनाओं के मध्य जीजामाता या जिजाऊ का अविस्मरणीय योगदान रहा है। वे बालपन से ही शूरवीर और कुशाग्र बुद्धिमती थीं। ममता और न्याय की वे साक्षात देवी थीं। उन्होंने शिवाजी जैसे तेजस्वी पुत्र को संस्कार देकर भारत भूमि के लिए एक नए युग का सूत्रपात किया।


डॉ सविता इंगले, पुणे ने कहा कि भारत भूमि ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए मर मिटने वाले अनेक अमर वीरों को जन्म दिया है। लक्ष्मीबाई ने कोमल हृदय की मनु से शौर्यवान महारानी तक लंबी यात्रा तय की। उन्होंने महिलाओं के लिए व्यायामशाला बनाई थी, जहां युद्ध कौशल सिखाया जाता था। वे भारत की सभ्यता और संस्कृति के लिए समर्पित थीं। लक्ष्मीबाई महिला सशक्तीकरण का श्रेष्ठ उदाहरण हैं।


डॉ भरत शेणकर, अहमदनगर ने कहा कि एक वीरांगना के रूप में लक्ष्मीबाई का योगदान सर्वोपरि रहा है। वे अंग्रेजों के विरुद्ध निरंतर संघर्ष करती रहीं। वे शौर्य की पराकाष्ठा थीं। उनकी राष्ट्रभक्ति को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

आयोजन में अल्पा मेहता, भुवनेश्वरी जायसवाल, कृष्णा श्रीवास्तव ने महारानी लक्ष्मीबाई के पराक्रम पर केंद्रित कविताएं सुनाईं।



प्रारंभ में संगोष्ठी की प्रस्तावना संस्था के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।

सरस्वती वंदना पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने की। स्वागत भाषण एवं अतिथि परिचय डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने प्रस्तुत किया। 


आयोजन में डॉ विमल चंद्र जैन, इंदौर, डॉ रीना सुरड़कर, डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता, डॉ सुषमा कोंडे, पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, प्रतिभा मगर, पुणे, भुवनेश्वरी जायसवाल, श्रीमती गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद आदि सहित अनेक साहित्यकार, शिक्षाविद, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।


संगोष्ठी का संचालन डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने किया।






Featured Post | विशिष्ट पोस्ट

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : वैचारिक प्रवाह से जोड़ती सार्थक पुस्तक | Mahatma Gandhi : Vichar aur Navachar - Prof. Shailendra Kumar Sharma

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : पुस्तक समीक्षा   - अरविंद श्रीधर भारत के दो चरित्र ऐसे हैं जिनके बारे में  सबसे...

हिंदी विश्व की लोकप्रिय पोस्ट