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20210131

महात्मा गांधी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण | Scientific view of Mahatma Gandhi | Shailendra Kumar Sharma

वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ आजीवन प्रयोग किए महात्मा गांधी ने

महात्मा गांधी और उनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर विशिष्ट व्याख्यान 

मौन श्रद्धांजलि, गांधी जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि और उनके प्रिय भजनों की प्रस्तुति

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में गांधी जी की पुण्यतिथि पर महात्मा गांधी और उनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर केंद्रित विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन 30 जनवरी को प्रातः काल महाराजा जीवाजीराव पुस्तकालय परिसर में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर पुस्तकालय प्रांगण में सामूहिक मौन धारण किया गया एवं गांधी जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की गई।  

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में आयोजित कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के पूर्व कुलपति प्रो आर सी वर्मा थे। अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने की। आयोजन के विशिष्ट अतिथि प्रभारी कुलसचिव डा डी के बग्गा थे। विषय प्रवर्तन कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने किया।




कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो आर सी वर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि गांधीजी ने आजीवन वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ प्रयोग किए। उनकी पुस्तकें हिंद स्वराज और आत्मकथा सत्य के प्रयोग यह सिद्ध करती हैं कि उनके विचार और समस्त प्रयोग वैज्ञानिक तर्क दृष्टि पर आधारित हैं। गांधी जी को कुछ लोगों ने विज्ञान और टेक्नोलॉजी विरोधी कहा, जो उचित नहीं है। गांधीजी चाहते थे कि विज्ञान के लाभ गांव-गांव तक पहुंचे। वे शस्त्रों की अंधी दौड़ के विरुद्ध थे। उन्होंने जे सी बोस, पी सी रे जैसे अनेक वैज्ञानिकों के साथ विज्ञान को जन जन तक पहुंचाने की योजना बनाई थी। गांधीजी चाहते थे कि वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए जीव हत्या न की जाए। वे विज्ञान के क्षेत्र में भौतिकवादी दृष्टिकोण के विरुद्ध थे। उनकी मान्यता है कि विज्ञान का उपयोग  धनोपार्जन के लिए न किया जाए।







अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि विज्ञान और अध्यात्म के बिना समाज का उद्धार संभव नहीं है। गांधी जी ने गीता को विशेष महत्व दिया था। उनकी दृष्टि में गीता सामाजिक वैमनस्य और अशांति से मुक्ति दिला सकती है। वर्तमान में प्रकृति और संस्कृति में असंतुलन से हम विकास के बजाय विनाश की ओर जा रहे हैं।  आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बहुत बड़ी चुनौती के रूप में आ रही है। ऐसे में महात्मा गांधी का चिंतन हमें नया प्रकाश देता है। टेक्नोलॉजी से कई प्रकार की जटिलताएं आज पैदा हो रही हैं। उनका ईमानदार प्रयोग आवश्यक है। विक्रम विश्वविद्यालय का इस वर्ष का ध्येय सूत्र नशा मुक्ति, स्वच्छता और पर्यावरण के प्रति समर्पण रहेगा। 



अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर पांडेय




प्रभारी कुलसचिव डॉ डी के बग्गा ने कहा कि गांधी जी ने जन समुदाय के मध्य कुष्ठ रोग एवं अन्य बीमारियों के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने का कार्य किया। उनका दुनिया के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के साथ संपर्क था।




विषय प्रवर्तन करते हुए कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि गांधी जी ने विज्ञान और टेक्नोलॉजी के साथ नैतिकता एवं पर्यावरणीय दृष्टिकोण को आवश्यक माना। विज्ञान के क्षेत्र की मानक पत्रिका नेचर ने महात्मा गांधी के 150 वें जयंती वर्ष पर महात्मा गांधी एंड सस्टेनेबल साइंस शीर्षक संपादकीय प्रकाशित किया, जिसमें विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में गांधी जी द्वारा किए गए नवाचारी प्रयत्नों का उल्लेख किया गया है। अल्बर्ट आइंस्टाइन पर गांधीजी का गहरा प्रभाव था। गांधीजी प्रकृति और मानव समुदाय पर उद्योगों और अंध भौतिकता से पड़ने वाले दुष्प्रभावों को लेकर चिंतित थे, जो आज अधिक प्रासंगिक हो गया है। परमाण्विक विभीषिका के दौर में उन्होंने मनुष्य और प्रकृति के मध्य आपसदारी की राह पर लौटने की जरूरत बताई।





आयोजन में पूर्व कुलपति बालकृष्ण  शर्मा, पूर्व कुलपति प्रो पी के वर्मा आदि सहित प्रबुद्ध जनों, शिक्षकों और विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।

अतिथि स्वागत प्रो एच पी सिंह, गांधी अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, अधिष्ठाता, विद्यार्थी कल्याण डॉ आर के अहिरवार, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो अचला शर्मा, प्रो गीता नायक, डॉ सोनल सिंह, डॉ ज्योति उपाध्याय, डॉ एस के मिश्रा, डॉ डी डी बेदिया, डॉ धर्मेंद्र मेहता, डॉ संदीप तिवारी, डॉ एस के जैन, डॉ कनिया मेड़ा, डॉ चित्रलेखा कड़ेल, डॉ प्रीति पांडेय, कौशिक बोस,  श्री कमल जोशी, श्री योगेश शर्मा, श्री जसवंतसिंह आंजना, श्री लक्ष्मीनारायण संगत आदि ने किया। 




इस अवसर पर पूर्व कुलपति प्रो आर सी वर्मा को अतिथियों द्वारा शॉल एवं पुस्तक अर्पित कर उनका सारस्वत सम्मान किया गया।




विक्रम विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार से सहायता प्राप्त संस्था जाग्रति नशामुक्ति केंद्र द्वारा नशा विरोधी प्रदर्शनी लगाई गई। प्रदर्शनी का संयोजन श्री चिंतामणि गेहलोत, विनोद कुमार दवे, श्री राजेश ठाकुर एवं श्री देवीलाल मालवीय ने किया। सामाजिक न्याय विभाग के अंतर्गत कलापथक के कलाकारों द्वारा महात्मा गांधी के प्रिय भजन वैष्णव जन तो तेणे कहिए एवं रघुपति राघव राजाराम और नशा विरोधी गीत की प्रस्तुति की गई। दल के कलाकारों में शैलेंद्र भट्ट, सुश्री अर्चना मिश्रा, सुरेश कुमार, नरेंद्रसिंह कुशवाह, राजेश जूनवाल, सुनील फरण, अनिल धवन, आनंद मिश्रा आदि शामिल थे। कार्यक्रम में कुलपति प्रो पांडेय ने उपस्थित जनों को नशा निषेध की शपथ दिलाई। 


आयोजन का संचालन हिंदी विभाग के डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन छात्र कल्याण विभाग के अधिष्ठाता डॉ आर के अहिरवार ने किया।







महात्मा गांधी पुण्यतिथि


20210105

आलोचक आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी : बहुआयामी अवदान - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Critic Acharya Ramamurthy Tripathi: Multidimensional Contribution : Prof. Shailendra Kumar Sharma

भारतीय साहित्य और काव्यशास्त्र के अद्वितीय मनीषी थे आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी 

आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी जयंती महोत्सव एवं उनके बहुआयामी अवदान पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी

डॉ पन्नालाल आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी सम्मान से अलंकृत 

क्लैसिकी शोध संस्थान एवं हिंदी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के संयुक्त तत्वावधान में प्रख्यात आलोचक और विद्वान आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी की 92 वीं जयंती के अवसर पर सारस्वत महोत्सव एवं राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि मध्यप्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक डॉ पन्नालाल थे। कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि पूर्व संभागायुक्त एवं पूर्व कुलपति डॉ मोहन गुप्त थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने की। कार्यक्रम में श्रीधाम आश्रम के महंत श्री श्यामदास जी का सान्निध्य रहा।  विशिष्ट अतिथि प्रो गीता नायक, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, श्री जियालाल शर्मा एवं डॉ देवेंद्र जोशी थे। कार्यक्रम में डॉ पन्नालाल जी को उनके विशिष्ट योगदान के लिए आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी सम्मान से अलंकृत किया गया। 






प्रमुख अतिथि पूर्व पुलिस महानिदेशक डॉ पन्नालाल ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी भारतीय साहित्य और काव्यशास्त्र के अद्वितीय मनीषी थे। उन्हें हम किसी भाषा के दायरे में नहीं बांध सकते। उनकी आलोचना के केंद्र में काव्यगत चारुता की चर्चा आती है। इसके साथ ही वे रस और साधारणीकरण की चर्चा किया करते थे।  वे रसवादी आचार्य हैं। रचना से यदि आनंद मिलता है, वह सर्वोपरि होती है।







सारस्वत अतिथि डॉ मोहन गुप्त ने कहा कि आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी,  आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल और आचार्य नंददुलारे वाजपेयी की परंपरा को नई दिशा देने वाले साहित्य मनीषी और आलोचक हैं। उन्होंने प्राचीन से लेकर नवीन साहित्य सर्जना पर समीक्षा कार्य किया। उनके साहित्य सिद्धांतों और मीमांसा को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए व्यापक प्रयास किए जाने चाहिए। 





कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए लेखक एवं आलोचक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि आचार्य त्रिपाठी पिछली सदी के अपने ढंग के अनन्य आलोचक हैं। उनकी आलोचना दृष्टि भारतीय चिंतन धारा की ठोस आधार भूमि पर टिकी हुई है। ऐसे समय में जब पश्चिमी चिंतन से आक्रांत सर्जक और आलोचक आत्महीनता की स्थिति में आ गए थे, आचार्य त्रिपाठी ने अपनी जड़ों में अंतर्निहित काव्य दृष्टि की संभावनाओं को नए सिरे से उजागर किया। रस और ध्वनि जैसे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों को सतही तौर पर लेने वाले आलोचकों की अधूरी समझ और सीमाओं का उन्होंने पूरी दृढ़ता से प्रतिरोध किया। काव्य के रसात्मक प्रतिमान को वे सर्वोपरि महत्व देते हैं। भारतीय काव्यशास्त्र के सिद्धांतों की पुनराख्या के साथ पश्चिम से आगत अनेक काव्य सिद्धांतों की सीमाओं को लेकर वे निरन्तर सजग करते हैं। उन्होंने आगम या तंत्र के आलोक में भारतीय साहित्य और काव्य चिंतन परम्परा के वैशिष्ट्य को प्रतिपादित किया, वहीं नई रचनाधर्मिता का तलस्पर्शी मूल्यांकन किया। 







विशिष्ट वक्ता डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी की आलोचना दृष्टि और आलोचना भाषा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आचार्य त्रिपाठी ने अपने काव्यशास्त्रीय लेखन में भारतीय काव्य चिंतन की सभी मान्यताओं और सिद्धांतों को प्रामाणिक और अविकल रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने एक ही संप्रदाय के आचार्यों के मध्य परस्पर विचार भेद को भी प्रकट करने में संकोच नहीं किया। भारतीय काव्य विमर्श के सातत्य को उन्होंने रीतिकालीन कवि आचार्यों और आधुनिक हिंदी आलोचकों तक दिखाने का अत्यंत कठिन कार्य उन्होंने किया है। रीतिकालीन आचार्यों की मौलिकता और उनके काव्यशास्त्रीय योगदान की अत्यंत तार्किक मीमांसा त्रिपाठी जी ने की है। उनका संपूर्ण कृतित्व मूल्यवान और अर्थवत्ता लिए हुए हैं, जिसके माध्यम से समकालीन रचना और आलोचना दोनों का मार्ग आलोकित हो सकता है।




प्रो गीता नायक ने आचार्य त्रिपाठी से जुड़े हुए अनेक संस्मरण सुनाए।




डॉ देवेन्द्र जोशी ने कहा कि डॉ त्रिपाठी ने शास्त्र और साहित्य परंपरा के विविध विषयों पर कलम चलाई है। उनके समग्र चिंतन को पढ़ते हुए गूढ़ गंभीर चिंतक और सिद्धांतवादी की छवि उभरती है। लेकिन जब समूचे चिंतन की गहराई में उतरा जाता है तो उनका लेखन समाजोपयोगी होकर साहित्य और समाज का पथप्रदर्शक बन कर हमारे सामने आता है। कवि, आलोचक, शोधकर्ताओं और तंत्र उपासकों ने आचार्य त्रिपाठी के समूचे चिंतन को पढ़ा होता तो वे उस भटकाव से बच जाते जो आज के युग की बड़ी समस्या है। तंत्रशास्त्र हो अथवा आलोचनाशास्त्र, वे खामियों पर टिप्पणी ही नहीं करते हैं, उनका समाधान भी प्रस्तुत करते हैं। उनके समूचे चिंतन का आधार समाज और साहित्य में नैतिक मूल्यों की स्थापना कर मूल्य आधारित समाज की स्थापना करना रहा है। उन्होंने सुझाव दिया कि डॉ त्रिपाठी पर केंद्रित कार्यक्रम का विस्तार हो। उनके लेखन कर्म पर शिक्षण और शोध के स्तर पर सार्थक विमर्श हो।


डॉ पन्नालाल जी को उनके विशिष्ट योगदान के लिए अतिथियों द्वारा अंग वस्त्र, श्रीफल एवं प्रशस्ति पत्र अर्पित करते हुए आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी सम्मान से अलंकृत किया गया। अभिनंदन पत्र का वाचन वरिष्ठ गीतकार श्री सूरज उज्जैनी ने किया।






अतिथियों का स्वागत वरिष्ठ समाजसेवी श्री तुलसी मनवानी, सूरज उज्जैनी, अमिताभ त्रिपाठी, पद्मनाभ त्रिपाठी, अनिल पांचाल सेवक, डॉ राजेश रावल सुशील आदि ने किया। प्रारंभ में अतिथियों द्वारा आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। 

अतिथि साहित्यकारों का सम्मान श्री धाम आश्रम की ओर से स्वामी महंत श्री श्यामदास जी महाराज ने किया। सरस्वती वंदना डॉ राजेश रावल सुशील ने की।




समारोह में श्री अक्षय कुमार चवरे, डॉ इसरार मोहम्मद खान, गौरीशंकर उपाध्याय, अनिल पांचाल, डॉ संदीप पांडेय, अभिजीत दुबे,  रामचंद्र जी पांचाल, ओम प्रकाश कुमायू, किशोर अलबेला, श्रीमती अनीता सोहनी, राधे दीदी, श्रीमती शीला तोमर आदि सहित अनेक साहित्यकार, संस्कृति कर्मी और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।


संगोष्ठी का संचालन पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर हरिमोहन बुधौलिया ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ सदानंद त्रिपाठी ने किया।

20201110

पंजाब की संत परंपरा और उसका प्रदेय - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

विश्व बंधुत्व और आत्म त्याग का संदेश दिया है पंजाब के संतों ने – प्रो शर्मा 

अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ पंजाब की संत परंपरा और उसके प्रदेय पर मंथन   

गुरु नानक देव जी की वाणी के चुनिंदा अंशों का नॉर्वेजियन भाषा में अनुवाद प्रस्तुत किया श्री शुक्ल ने

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश दुनिया के अनेक विशेषज्ञ वक्ताओं ने भाग लिया। यह संगोष्ठी पंजाब की संत परंपरा और उसके प्रदेय पर केंद्रित थी। कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि प्रवासी साहित्यकार और अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रो विनोद तनेजा, अमृतसर एवं शिक्षाविद श्री ब्रजकिशोर शर्मा थे। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ ब्रह्मदेव शर्मा, लुधियाना डॉ राजेंद्र साहिल, श्रीमती पूनम सपरा, लुधियाना, महासचिव डॉ प्रभु चौधरी एवं उपस्थित वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल ने की।





प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि सिख धर्म सेवा व्रत और परस्पर सहयोग को महत्त्व देता है। उन्होंने गुरु नानक देव जी की वाणी से चुनिंदा अंशों का नॉर्वेजियन भाषा में अनुवाद प्रस्तुत किया।






कार्यक्रम के मुख्य वक्ता लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि पंजाब की संत परंपरा ने भारतीय संस्कृति के विकास में अविस्मरणीय योगदान दिया है। पंजाब के महान संतों ने विश्व बंधुत्व और आत्म त्याग का संदेश दिया है, जो आज अधिक प्रासंगिक हो गया है। गुरु नानक देव जी और उनकी परंपरा के गुरुओं ने सदियों से सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्र में व्याप्त अंधकार को निस्तेज कर प्रकाश फैलाया था। गुरु नानक देव जी की विश्व दृष्टि अत्यंत व्यापक और स्वानुभूति पर आधारित है। उन्होंने भारतीय भक्ति परम्परा का नवसंस्कार किया। वे परमात्मा से प्रेम भक्ति के अनुग्रह के अभिलाषी हैं। उनकी वाणी में सृष्टि की विराट आरती का दृश्य देखते ही बनता है। गुरु ग्रंथ साहिब में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की त्रिवेणी है। उसका सन्देश है कि भक्तिहीन मनुष्य का जीवन निरर्थक है। गुरु ग्रंथ साहिब सत्संग और सदाचारी जीवन का अक्षय प्रेरणा स्रोत है। पंजाब के संतों ने श्रमशीलता के साथ  प्राणी मात्र के प्रति अनुराग, समरसता और सद्व्यवहार का संदेश दिया। 




डॉ. प्रवीण बाला, पटियाला ने दशम गुरु दशम ग्रंथ के अंतर्गत चंडी चरित्र के सबद देह शिवा बर मोहे इहै से कार्यक्रम की शुरुआत की।



नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि पंजाब के संतों का संदेश अत्यंत प्रासंगिक है। प्रभु को वही प्राप्त कर सकता है, जो प्रेम करता है। सभी मतों को समाहित करने का कार्य गुरु ग्रंथ साहिब करता है। सन्तों ने जीवनानुभवों के आधार पर जो दिया है वह प्रेरणादायी है। पंजाब के सन्तों ने समग्र मानवता के कल्याण के लिए शिक्षा दी।



प्रारंभ में संगोष्ठी की संकल्पना, स्वागत भाषण एवं संस्था का प्रतिवेदन राष्ट्रीय महासचिव श्री प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत किया।  






संस्था के अध्यक्ष श्री बृजकिशोर शर्मा, उज्जैन ने कहा कि सांस्कृतिक चेतना के प्रसार में पंजाब की संत परंपरा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। गुरुओं ने वैराग्य के साथ  आक्रांताओं से मुकाबला करने की प्रेरणा दी। जीवन के पुरुषार्थों के सम्यक् निर्वाह की प्रेरणा गुरु ग्रंथ साहिब से मिलती है।






डॉ ब्रह्मदेव शर्मा, लुधियाना ने अपने उद्बोधन में कहा कि कुछ लोग ऐसा कार्य कर जाते हैं, सदियों तक याद किए जाते हैं। गुरु तेग बहादुर जी का योगदान इसी प्रकार का है। भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए सिख गुरुओं ने अविस्मरणीय योगदान दिया। गुरु तेग बहादुर जैसे संतों ने परोपकार के लिए जन्म लिया था।  उनमें वैराग्य का भाव बाल्यकाल से ही उत्पन्न हो गया था। सांसारिकता के स्थान पर उन्होंने भक्ति पर बल दिया। उन्होंने संसार रूपी मृगतृष्णा से मुक्त होने का आह्वान किया। अनासक्त कर्म योग का आजीवन निर्वाह उन्होंने किया।




विशिष्ट अतिथि डॉ राजेंद्र साहिल, लुधियाना ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि सिख परंपरा के सभी गुरुओं का अविस्मरणीय योगदान रहा है। गुरु नानक देव जी ने संवाद की महत्वपूर्ण परंपरा की शुरुआत की। गुरु अमर दास जी ने लंगर की परंपरा को व्यवस्थित स्वरूप दिया। कृषि के साथ ही व्यवसाय को महत्व देते हुए गुरु रामदास जी ने नगरीकरण की शुरुआत की।








मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ विनोद तनेजा, अमृतसर ने कहा कि पंजाब की संत परंपरा अत्यंत समृद्ध रही है। सिख पंथ ने कथनी से अधिक करनी पर बल दिया। गुरु गोविंद सिंह जी गुरुओं के शब्द के मर्म को जानने का आह्वान करते हैं। सन्त नामदेव से लेकर गुरु तेग बहादुर तक का तीन सौ वर्षों का चिंतन गुरु ग्रंथ साहिब में समाहित है। गुरु गोविंद सिंह जी निस्वार्थ भाव से कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। उनकी वाणी कालजयी है। उन्होंने आदि ग्रंथ को गुरु ग्रंथ का उच्च स्थान दिलाया।


डॉ प्रवीण बाला, पटियाला ने गुरु नानक देव जी के अवदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गुरु नानक देव जी को आदि गुरु के रूप में सम्मान दिया जाता है। उन्होंने गृहस्थ जीवन में रहते हुए सांसारिकता से ऊपर उठने का संदेश दिया। उन्होंने जात - पात और आडंबर से मुक्त समाज की कल्पना की। मार्ग से भटके हुए मनुष्यों को सार्थक दिशा उन्होंने दी। 





श्रीमती पूनम सप्रा, लुधियाना ने गुरु अमर दास जी की वाणी के योगदान पर प्रकाश डाला। वे महान रहस्यवादी, कवि और समाज सुधारक थे। उन्होंने स्त्री पुरुष समानता पर बल दिया। सामाजिक बुराइयों और पाखंड को दूर करने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण प्रयास किए। उन्होंने न केवल दूसरों को सेवा करने का उपदेश दिया,  वरन स्वयं आजीवन सेवाव्रत का निर्वाह किया।



सरस्वती वंदना पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने की। अतिथि परिचय डॉ प्रवीण बाला, पटियाला ने दिया।





कार्यक्रम में सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉक्टर समीर सैयद, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर पूनम सप्रा, लुधियाना, पंजाब, राव कुलदीप सिंह, भोपाल, डॉ संगीता पाल, कच्छ, डॉ विनोद, डॉक्टर पूनम गुप्ता, पंजाब, डॉ रश्मि चौबे, आगरा, डॉ विभा कुमारिया शर्मा, मंजू रुस्तगी, चेन्नई, पोपटराव अवाटे, डॉ राजकुमार मलिक, पंजाब, डॉ श्वेता पंड्या, उज्जैन, डॉ अतुला भास्कर आदि सहित अनेक प्रतिभागी उपस्थित थे। 




कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर मुक्ता कौशिक रायपुर में किया। आभार प्रदर्शन डॉ विनोद बिश्नोई, पंजाब ने किया।



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