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20210618

लोक देवता देवनारायण जी : संस्कृति और पर्यावरण को योगदान - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Lok Dewata Devnarayan ji: Contribution to Culture and Environment Prof. Shailendra Kumar Sharma

प्राणी जगत के मूल आधारों पर कार्य किया लोक देवता देवनारायण जी ने - प्रो शर्मा


अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ लोक देवता देवनारायण जी : संस्कृति और पर्यावरण को योगदान पर मंथन 


प्रतिष्ठित संस्था देव चेतना परिषद, उज्जैन द्वारा  लोक देवता देवनारायण जी : संस्कृति और पर्यावरण को योगदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि पूर्व कैबिनेट मंत्री, राजस्थान श्री कालूलाल गुर्जर, भीलवाड़ा थे। मुख्य अतिथि  विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन में विशिष्ट अतिथि नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली, वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, संस्था के अध्यक्ष डॉ प्रभु चौधरी, डॉ राकेश छोकर आदि ने विषय के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी की अध्यक्षता अखण्ड भारत गुर्जर महासभा, जयपुर के अध्यक्ष श्री देवनारायण गुर्जर ने की। सूत्र संयोजन डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर ने किया। अखण्ड भारत गुर्जर महासभा की साहित्यिक संस्था देव चेतना परिषद द्वारा संगोष्ठी के बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें अनेक निर्णय लिए गए।




संगोष्ठी में पूर्व कैबिनेट मंत्री श्री कालू लाल गुर्जर, भीलवाड़ा ने कहा कि देव नारायण जी ने प्राकृतिक संपदा के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने नीम के वृक्ष को विशेष मान दिया, जो पर्यावरण को शुद्ध रखने के साथ-साथ औषधि के रूप में उपयोग में आता है। उनके परिवार के पास 9 लाख 80 हजार गायें मौजूद थीं। उस दौर में उन्होंने प्रकृति के संरक्षण पर बल दिया। उनके मंदिरों के आसपास पर्याप्त आकार में जंगल छोड़े जाते हैं। देवनारायण जी के  पर्यावरण विचार को जन जन तक पहुंचाने के प्रयास होने चाहिए।



संगोष्ठी में व्याख्यान देते हुए  विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के  कला संकायाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि सदियों से  देवनारायण जी जाग्रत देव के रूप में पश्चिम एवं मध्य भारत के लोक आस्था के केंद्र बने हुए हैं। उन्हें विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाता है। उन्होंने प्राणी जगत के मूल आधारों पर कार्य किया।  वन संपदा, पशुधन, जल स्रोतों और चरागाहों के रक्षक और पोषक के रूप में उनका योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने सिद्ध किया कि अन्न धन और पशुधन ही वास्तविक धन है, जिसकी रक्षा के लिए देवनारायण जी का त्याग, तपस्या और उत्सर्ग आज भी रोमांचित करता है। उनके जीवन चरित्र पर आधारित अनेक लोक गाथाएं जातीय स्मृतियों और जीवन मूल्यों को प्रतिबिंबित करती हैं। उनकी गाथाएँ भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक भूगोल, इतिहास और जातीय स्मृतियों की जीवंत दस्तावेज हैं। उन्होंने नए प्रकार की सामाजिक संरचना और समतामूलक संस्कृति की आधारशिला रखी। कर्मकांड और बाह्याडंबर का उन्होंने प्रतिरोध किया। समाज के विभिन्न वर्गों को जोड़ते हुए उन्होंने परस्पर प्रेम, भाईचारे और समरसता का संदेश दिया, जो वर्तमान में अत्यंत प्रासंगिक सिद्ध हो रहा है। 


अध्यक्षता करते हुए अखण्ड भारत गुर्जर महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष  डॉ देवनारायण गुर्जर, जयपुर ने कहा कि देवनारायण जी प्रत्यक्ष रूप में विष्णु का अवतार थे। उनके चरित्र और लीलाओं के संदर्भ में सांस्कृतिक योगदान को जानना आवश्यक है। उनकी शिक्षाओं का क्षेत्र व्यापक है। गुर्जर संस्कृति की पहचान है, स्वाभिमान के साथ जीना और अन्य वर्ग के लोगों को भी स्वाभिमान से जोड़ना। देवनारायण जी ने शोषित एवं वंचित वर्ग को सम्मान दिलवाया। उन्होंने आयुर्वेद को महत्व दिया। वर्तमान सांस्कृतिक संक्रमण और पर्यावरणीय संकट के दौर में देवनारायण जी के संदेश की प्रासंगिकता है। देवनारायण जी ने ईटों के रूप में पूजे जाने और पूजा में नीम के पत्तों के प्रयोग पर बल दिया। प्रकृति के साथ जुड़ाव का इस प्रकार का कोई दूसरा उदाहरण देखने को नहीं मिलता है। उन्होंने अत्याचारियों के अन्याय से मुक्त होने के लिए वंचित और पिछड़े वर्ग के लोगों को सम्मान दिलाया। 




विशिष्ट अतिथि डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली में कहा कि प्राचीन युग से भारत में पर्यावरण को संस्कृति और धर्म के साथ महत्वपूर्ण स्थान मिला है। देवनारायण जी ने समाज में संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। उस दौर में अत्यंत सीमित आर्थिक संसाधन थे, फिर भी अंतःप्रज्ञा के माध्यम से समाज सुधार का कार्य किया गया। विकास के नाम पर आज जंगल काटे जा रहे हैं। कृषि भूमि और चरागाह संकट में हैं। ऐसे में देवनारायण जी द्वारा दिए गए संदेशों को चरितार्थ करने की आवश्यकता है। देवनारायण जी पर केंद्रित साहित्य को नई पीढ़ी के सम्मुख लाने के प्रयास किए जाएं।


वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ऑस्लो, नॉर्वे ने कहा कि श्री देवनारायण जी से संबंधित साहित्य और इतिहास को व्यापक फलक पर प्रसारित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वे देवनारायण जी के जीवन प्रसंगों से जुड़े साहित्यिक अंशों का अनुवाद नार्वेजीयन भाषा में करेंगे।




अतिथि परिचय संस्था के अध्यक्ष डॉक्टर प्रभु चौधरी ने विषय की प्रस्तावना प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि संस्था द्वारा देवनारायण जी के आदर्शों के अनुरूप साहित्य एवं समाजसेवा के क्षेत्र में कार्य किया जा रहा है। 


डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कहा कि देवनारायण जी ने केवल किसी क्षेत्र विशेष ही नहीं, वरन संपूर्ण पृथ्वी लोक के संरक्षण का संदेश दिया। उन्होंने सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में सुप्त अवस्था से लोगों को जगाया और मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा की। वे मानते हैं कि सभी के संरक्षण से सृष्टि का संरक्षण संभव है।


इस अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में देवनारायण पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन, जन्मोत्सव पर समाज के साहित्यकारों और  समाजसेवियों के सम्मान  समारोह, संगठन की स्मारिका प्रकाशन आदि के निर्णय लिये गए।




संगोष्ठी के प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ संगीता पाल, कच्छ, गुजरात ने की। गणेश वंदना मोक्षा लोहारिया ने की। स्वागत भाषण श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर ने प्रस्तुत किया। 


आयोजन में  श्री टीकमचंद अनजाना, पुखराज गुर्जर, डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली, श्री छीतरलाल कंसाना, विक्रमसिंह चौधरी, डॉ पूर्णिमा कौशिक, श्रीकांत पाल, डॉक्टर संजीव कुमारी, हिसार, पुखराज गुर्जर, श्री मोहनलाल वर्मा आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।


संगोष्ठी का संचालन डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली ने किया।




लोक देवता देवनारायण जी

20210615

हिंदी सिनेमा और स्त्री विमर्श - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Hindi Cinema and Women Discourse - Prof. Shailendra Kumar Sharma

सामाजिक रूढ़ियों और जड़ताओं से मुक्त हो रही हैं हिंदी सिनेमा की नायिकाएँ - प्रो शर्मा

अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ हिंदी सिनेमा और स्त्री विमर्श पर मंथन 


हिंदी सिनेमा और स्त्री विमर्श पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन मंगलवार को क्रैडेंट टीवी  एवं राजकीय स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय चौंमू, जयपुर के संयुक्त तत्त्वावधान में  किया गया। संगोष्ठी के विशेषज्ञ वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन में मास्को, रूस से डॉ इंद्रजीत सिंह, गांधीनगर, गुजरात से प्रोफेसर संजीव दुबे एवं जयपुर से प्रोफेसर संजीव भानावत ने विषय के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।





संगोष्ठी में व्याख्यान देते हुए  विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के  कला संकायाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा  कि हिंदी फिल्में नारी सशक्तीकरण की अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण माध्यम सिद्ध हो रही हैं।  फिल्मों में नायिका की विशिष्ट भूमिका यह तय करती है कि सिनेमा हमेशा महिलाओं का हितैषी रहा है। नवजागरण कालीन मूल्यों को शुरुआती दौर के सिनेकारों ने बड़ी शिद्दत से उभारा। मदर इंडिया, सुजाता, बंदिनी जैसी फिल्मों ने नारी की समर्थ भूमिका को रेखांकित किया। नारीवाद और  उदारीकरण के माहौल में हिंदी सिनेमा की नायिकाएँ सामाजिक रूढ़ियों और जड़ताओं से मुक्त होती दिखाई दे रही हैं। पिंक, क्वीन, नो वन किल्ड जेसिका, मैरीकाम, इंग्लिश विंग्लिश, गुलाब गैंग, फैशन जैसी फिल्मों के जरिए नए दौर का सिनेमा नारी अस्मिता से जुड़े मुद्दों को लेकर महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहा है। फिल्मकारों ने नारी संवेदनाओं को गहराई से समझा है और समाज के सामने प्रस्तुत किया है। सामाजिक सरोकारों के साथ हिन्दी सिनेमा के रिश्ते निरन्तर प्रश्नांकित होते रहे हैं, लेकिन अनेक पुरुष सिनेकारों के साथ स्त्री निर्देशिकाओं ने इस स्थिति को बदला है। 



राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के जनसंचार विभाग के पूर्व अध्यक्ष एवं जाने-माने मीडिया विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर संजीव भाणावत ने रंगमंच और थिएटर के शुरुआती दौर का जिक्र करते हुए  स्त्री विमर्श की शुरुआत फिल्मों में कहीं बेहतर ढंग से मानते हैं। उनका कहना था कि फिल्में नई संभावनाओं को जन्म देती हैं, नए विचारों को जन्म देती हैं। स्त्री संघर्ष, आकांक्षा, अस्तित्वबोध फिल्मों में बखूबी देखा जा सकता है।

 


केंद्रीय विश्वविद्यालय, गांधीनगर, गुजरात से उपस्थित प्रोफेसर संजीव दुबे ने चर्चा की शुरुआत हिंदी की पहली सवाक फ़िल्म आलमआरा से करते हुए कहा कि एक दौर में कई फिल्मों के शीर्षक स्त्री के नाम पर होते थे। हंटरवाली से शुरू हुआ यह विमर्श क्वीन, पिंक,  थप्पड़ तक आता है। उनका कहना था कि  फिल्मों का यह वातावरण न केवल स्त्री चरित्र को उठाता है अपितु नारी स्वतंत्रता व सशक्तीकरण की भूमिका भी तय करता है।




मास्को, रूस  से जुड़े जाने-माने फिल्म एवं गीत विश्लेषक डॉ इंद्रजीत सिंह ने विशेष रुप से गाइड और रजनीगंधा फिल्म की स्त्री विषयक बातों को उठाया। उन्होंने राज कपूर की फिल्मों और गीतों  के परिवेश पर दृष्टि डालते हुए रूस और भारतीय फिल्मों के अंतः सम्बन्धों को स्पष्ट किया। 




प्रारम्भ में प्राचार्य डॉ कविता गौतम ने सभी वक्ताओं का आभार व्यक्त करते हुए स्वागत किया। इस ऑनलाइन आयोजन में देश दुनिया के सैकड़ों दर्शक जुड़े। 




कार्यक्रम की संयोजिका डॉ प्रणु शुक्ला ने संगोष्ठी का संचालन किया। कॉलेज के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ राजेंद्र कुमार ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।


सामाजिक रूढ़ियों और जड़ताओं से मुक्त हो रही हैं हिंदी सिनेमा की नायिकाएँ - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | क्रेडेंट टीवी और राजकीय महाविद्यालय, चौमूं, जयपुर की अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ हिंदी सिनेमा और स्त्री विमर्श पर मंथन

https://youtu.be/R4PaOVmdoGE

यूट्यूब चैनल :

https://youtu.be/R4PaOVmdoGE






20210614

स्वातंत्र्य योद्धा महाराणा प्रताप और उनका योगदान - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Freedom Warrior Maharana Pratap and His Contribution - Prof. Shailendra Kumar Sharma

पूरी दुनिया में पराक्रम और वीरता की अनूठी मिसाल हैं महाराणा प्रताप – प्रो. शर्मा 


अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ स्वातंत्र्य वीर महाराणा प्रताप और उनका योगदान पर मंथन एवं उद्घोष कवि सम्मेलन 


सृजनधर्मियों की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलन उद्घोष का आयोजन किया गया।  संगोष्ठी स्वातंत्र्य वीर महाराणा प्रताप और उनका योगदान पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन की विशिष्ट अतिथि प्रवासी साहित्यकार डॉ अंजना संधीर, यूएसए, प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता साहित्यकार श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने किया। अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन उद्घोष में देश दुनिया के अनेक रचनाकारों ने महाराणा प्रताप पर केंद्रित कविताएं सुनाईं।




मुख्य अतिथि श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि राणा प्रताप का नाम सुनकर रोम-रोम पुलकित हो जाता है। वे त्याग और बलिदान की प्रत्यक्ष मूर्ति थे। उनकी कथाओं से नई पीढ़ी में वीरता, राष्ट्रभक्ति और पराक्रम की प्रेरणा मिलती है। उन्होंने अपनी कविता सुनाई, जिसकी पंक्ति थी, आंखों में आंखें डाल कर, त्याग में अग्नि की वे मिसाल हैं।




विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने व्याख्यान देते हुए कहा कि पूरी दुनिया में महाराणा प्रताप पराक्रम और वीरता की अनूठी मिसाल हैं। वे राष्ट्रीय चेतना के उन्नायक थे। स्वतंत्रता प्रेमी और स्वाभिमानी राणा प्रताप ने केवल मेवाड़ के लिए अकबर के विरुद्ध युद्ध नहीं छेड़ा, वरन सम्पूर्ण देशवासियों में स्वाभिमान और देशानुराग का भाव जगाने का कार्य किया। वे स्वदेशाभिमान और स्वतंत्रता के लिए तमाम सुख सुविधाओं को त्यागकर आजीवन संघर्षरत रहे। उन्होंने कभी अपमानजनक सन्धि, समझौते या पलायन का मार्ग नहीं चुना। नारी सम्मान और सामाजिक समरसता के लिए उन्होंने आजीवन कार्य किया। बड़ी संख्या में भील और गाडोलिया लुहार उनके संघर्ष के साथी थे। हल्दीघाटी की व्यूह रचना उनके सैन्य कौशल और साहस का साक्ष्य देती है। उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक मुकाबला करते रहे। अकबर की विशाल सेना उन्हें छू भी नहीं पाई। उनकी प्रतिज्ञा थी जब तक मैं शत्रुओं से अपनी पावन मातृभूमि को मुक्त नहीं करा लेता, तब तक न तो मैं महलों में रहूंगा ना शैया पर सोऊंगा और न सोने, चांदी अथवा किसी धातु के पात्र में भोजन करूंगा। उनका अश्व चेतक, तलवार और भाले को भी शक्ति और शौर्य का पर्याय माना जाता है।  





डॉ अंजना संधीर, यूएसए ने हल्दीघाटी पुकारती है और महाराणा प्रताप पर केंद्रित कविताएं सुनाईं। उनकी काव्य पंक्ति थी, पवन वेग से उड़ता था जिसका घोड़ा, इतिहास में छपा हुआ नाम बहुत थोड़ा। 




विशिष्ट अतिथि प्राचार्य डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि विगत अनेक शताब्दियों के शासकों के मध्य राणा प्रताप का स्थान अद्वितीय है। उन्होंने हल्दीघाटी युद्ध में हार नहीं मानी और निरंतर आजादी के लिए संघर्ष करते रहे। उन्होंने मुगलों द्वारा भेजे गए संधि के प्रस्तावों को ठुकरा दिया। उनका व्यक्तित्व शौर्य, धैर्य और पराक्रम की अनूठी मिसाल है।



अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि राणा प्रताप महान स्वाभिमानी और वीर शिरोमणि थे। उनका योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने देशभक्तों पर केंद्रित अपनी कविता सुनाई, जिसकी पंक्तियाँ थी, रणबांकुरे भारत के रणबांकुरे, शत शत तुम्हें नमन। तुम्हारी बस  यही तमन्ना, तिरंगा चूमता रहे गगन।




संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए संस्था के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने कहा कि राणा प्रताप ने अपने देश और संस्कृति के लिए प्राण को न्यौछावर किया। उद्घोष के माध्यम से संस्था का उद्देश्य है कि देश को लेकर हम क्या कर सकते हैं, इस बात का संकल्प लें। मां पन्नाधाय के महान उत्सर्ग को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।


साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि महाराणा प्रताप का स्मरण आते ही मन में जोश उमड़ता है। उन्होंने अपनी काव्य पंक्ति सुनाईं, हारा नहीं कभी जो रण में वही तो राणा प्रताप है। उन्होंने कहा कि देश के शिक्षण संस्थानों में पाठ्यक्रमों के माध्यम से राणा प्रताप, शिवाजी जैसे महान सेनानियों पर केंद्रित सामग्री जोड़ी जानी चाहिए, जिनसे देशभक्ति की प्रेरणा मिलती है।



श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना, जयपुर ने कहा कि राणा प्रताप त्याग और पराक्रम की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने महाराणा प्रताप पर केंद्रित कविता सुनाई। जिसकी पंक्ति थी, वीर शिरोमणि अमर सपूत महाराणा प्रताप कहलाता था। प्रियंका सोनी, प्रयागराज ने मुक्तक प्रस्तुत किए। उनकी काव्य पंक्तियां थीं, हर दिल अजीज ही नहीं, अरमान बन गए। आप महाराणा राष्ट्र की पहचान बन गए।


डॉ शैल चंद्रा, धमतरी ने राणा प्रताप पर केंद्रित कविता सुनाई, जिसकी पंक्तियां थीं, हे महान राणा प्रताप तुम्हारा प्रताप प्रबल है तुम्हें शत-शत नमन है। हे भारत के वीरो तुम्हें शत-शत नमन, तुमने ही बचाया है देश का अमन।


डॉ रश्मि चौबे गाजियाबाद में शहीदों पर केंद्रित कविताएँ सुनाईं। उनकी पंक्ति थी, आज फिर याद शहीदों की आई है, जिनके दम पर वसुंधरा मुस्काई है। उनके मन में हिंदुस्तान है वही हमारे गौरव का गान है।


भुवनेश्वरी जायसवाल, भिलाई ने अपनी कविता महाराणा प्रताप सुनाई। उसकी पंक्तियां थीं, तज दें खुशियाँ कर्तव्य मार्ग में वीर ऐसे चाहिए, सुख स्वप्नों में डूबे तरुणों में रणवीर ऐसे चाहिए। प्राणों की आहुति दे दे, मस्तक दुष्ट का विदीर्ण करे, शत्रु का साहस भी हर ले अब तीर ऐसे चाहिए। चेतक सवार महाराणा से महावीर ऐसे चाहिए, देशप्रेम हेतु हर प्रेम निछावर युवा गंभीर ऐसे चाहिए।


डॉक्टर ममता झा, मुंबई ने पुनरावर्तन शीर्षक अपनी कविता सुनाई। उसकी पंक्तियां थीं, यह बाहर से भीतर जाने का योग है, प्रकृति का दिया ये कैसा संजोग है। परावलंबी से स्वावलंबी बनने का दौर है, वस्तु नहीं ,इंसान के मोल को समझने का दौर है। सब कुछ धारा रह जाएगा, आत्मसात करने का दौर है।


डॉ अपर्णा जोशी, इंदौर ने महाराणा प्रताप पर केंद्रित कविता सुनाई, जिसकी पंक्ति थी धन्य धरा वह वीर प्रसूता अद्भुत शोणित माटी है।


डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर की काव्य पंक्तियां थीं, नन्ना सा फूल हूं मेरे जीवन की यही परिभाषा। वीरों की गाथा बन जाऊं उनकी वेदी पर गिर जाऊँ।


श्रीमती अनीता मंदिलवार, छत्तीसगढ़ ने आल्हा छंद में राणा प्रताप पर केंद्रित कविता सुनाई।


नीतू पांचाल, नई दिल्ली की कविता थी क्या वह हमें भी याद हैं।


डॉक्टर मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर की राष्ट्रभक्ति पर केंद्रित कविता की पंक्ति थी, संघर्ष के मार्ग पर जो वीर चलता है, वही इस संसार पर राज करता है। 


आयोजन में अल्पा मेहता, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, नीतू पांचाल, नई दिल्ली आदि ने भी राणा प्रताप के पराक्रम और वीर रस प्रधान कविताएं सुनाईं।


संगोष्ठी के प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने की। स्वागत भाषण एवं स्वागत गीत डॉ रूली सिंह, मुंबई ने प्रस्तुत किया। 


आयोजन में डॉ शैल चंद्रा, धमतरी, श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना, जयपुर, रूली सिंह, मुंबई, अनीता मंदिलवार, पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, राजकुमार यादव, मुंबई, प्रियंका सोनी, प्रयागराज, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, प्रतिभा मगर, पुणे, डॉ चेतना उपाध्याय, अजमेर, भुवनेश्वरी जायसवाल, भिलाई, योगेश द्विवेदी, रीवा, मंजू साहू, श्रीमती गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ सुनीता गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, अर्पणा जोशी, इंदौर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।


संगोष्ठी एवं कवि सम्मेलन का संचालन डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई ने किया।

























राणा प्रताप जयंती

20210611

सम्प्रेषण कौशल : प्रमुख आयाम और महत्ता - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Communication Skills: Key Dimensions and Importance - Prof. Shailendra Kumar Sharma

जीवन के सभी क्षेत्रों में जरूरी है सम्प्रेषण कौशल – प्रो. शर्मा 


अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ सम्प्रेषण कौशल : प्रमुख आयाम और महत्ता पर मंथन एवं श्रेष्ठ संचालन सम्मान अलंकरण 


सृजनधर्मियों की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी एवं श्रेष्ठ संचालन अलंकरण समारोह का आयोजन किया गया।  संगोष्ठी सम्प्रेषण कौशल : प्रमुख आयाम और महत्ता पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष एवं साहित्यकार डॉ विनय कुमार पाठक, बिलासपुर थे। विशिष्ट वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन की विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार डॉ मीरासिंह, यूएसए, नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल, प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। अध्यक्षता साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ मनीषा सिंह, मुंबई ने किया। कार्यक्रम में श्रेष्ठ संचालनकर्ताओं को सम्मानित किया गया।





मुख्य अतिथि साहित्यकार डॉ विनय कुमार पाठक, बिलासपुर ने कहा कि सभा, संगोष्ठी आदि में संचालक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उसे हाशिए पर डालना उचित नहीं है। कोई बड़ा ज्ञानी हो, किंतु उसमें  सम्प्रेषणीयता न हो तो गतिरोध उत्पन्न हो जाता है। संप्रेषण में अति नाटकीयता से भी बचना चाहिए। आजादी के आंदोलन में कई बड़े नेताओं ने हिंदी को अपनी सम्प्रेषणीयता का माध्यम बनाया था, उसका प्रभाव भी पड़ा।


विशिष्ट अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि सूचना, भाव और विचारों के आदान प्रदान के लिए श्रेष्ठ सम्प्रेषण क्षमता की जरूरत होती है। जीवन के सभी क्षेत्रों में सम्प्रेषण कौशल आवश्यक है। शिक्षा, सृजन, व्यवसाय, राजनीति, प्रशासन, समाजकर्म - सभी के लिए यह मेरुदंड के समान है। यह एक गतिशील, द्विपक्षीय और उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है, जिसे निरन्तर अभ्यास से साधा जा सकता है। संप्रेषणकर्ता को श्रोताओं की रुचि और पृष्ठभूमि की भिन्नता को जानना - समझना चाहिए, अन्यथा सम्प्रेषण में अवरोध उत्पन्न हो जाएगा। प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण के लिए स्वयं की स्पष्ट अभिव्यक्ति के साथ अपने लक्ष्यों और जरूरतों को लेकर सजगता जरूरी है। बगैर किसी टकराहट के विचारों का विनिमय अच्छे सम्प्रेषण का गुण है। सम्प्रेषण के दौरान दोनों पक्षों की योग्यता समान होने पर यह प्रक्रिया आसान हो जाती है। 


मुख्य वक्ता डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि सामाजिक जीवन में संभाषण कला की आवश्यकता होती है। सामान्य वार्तालाप में भी इसका महत्व है। अच्छे संभाषण के लिए रोचकता और सरसता होना आवश्यक है। संदेशों के आदान प्रदान के दौरान निरंतर क्रिया प्रतिक्रिया होती है। संभाषण कर्ता को गुण और दोषों की पहचान होनी चाहिए। सम्भाषण एक प्रकार की शक्ति है। इसमें श्रेष्ठता को अपनाना जरूरी है। श्रेष्ठ संचालन के लिए विशिष्ट गुणों को व्यवहार में लाना आवश्यक है। व्यक्तित्व, भाषा, आवाज आदि के आधार पर संचालन कार्य बेहतर हो सकता है।




प्रवासी साहित्यकार डॉ मीरा सिंह, यूएसए ने कहा कि संप्रेषण एक महत्वपूर्ण कला है, जो प्रयासों से निरंतर निखार पर आती है। वाणी के माध्यम से दूसरों तक अपने विचारों को पहुंचाने के लिए सजगता आवश्यक है। सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में संप्रेषण कौशल बेहद जरूरी है। वर्तमान दौर में शिक्षक का दायित्व बहुत बढ़ गया है।



विशिष्ट अतिथि डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने कहा कि संभाषण एक विशिष्ट कला है। निरंतर अभ्यास करने से इसमें कुशलता प्राप्त की जा सकती है। किसी भी सभा या बैठक के संचालन के लिए पर्याप्त तैयारी की आवश्यकता होती है।


उद्बोधन में वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि संप्रेषणकर्ता को प्रसन्न मुख होना चाहिए। श्रेष्ठ संचालक वह है जो निरभिमानी होकर अपने कार्य को अंजाम दे। किसी भी कार्यक्रम की सफलता के लिए संचालक की बहुत बड़ी भूमिका होती है। उसे अपने दायित्व का निर्वाह करते हुए सजग और सतर्क रहना चाहिए। इस कला को सदैव  निखारने के प्रयास जरूरी 




संगोष्ठी की प्रस्तावना महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत करते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने एक सौ से अधिक कार्यक्रम कोविड-19 के काल में सफलतापूर्वक संपन्न किए हैं। हम लोग शून्य से सौ तक आए हैं, यह उपलब्धि है। इस दौरान जिन संचालकों ने श्रेष्ठ संचालन किया, उन्हें सम्मानित किया जा रहा है। इससे अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिलेगी।


इस मौके पर कोविड 19 के दौर में आयोजित सौ से अधिक ऑनलाइन कार्यक्रमों में संचालन करने वाले श्रेष्ठ संचालनकर्ताओं को सम्मान पत्र अर्पित उन्हें सम्मानित किया गया। इनमें डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, श्रीमती लता जोशी, मुंबई, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, श्री भरत शेणकर, अहमदनगर, अपर्णा जोशी, इंदौर, सुंदरलाल जोशी सूरज, नागदा, डॉक्टर गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, डॉ रागिनी शर्मा इंदौर सम्मिलित थे।


संगोष्ठी के प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ रूली सिंह, मुंबई ने की। अतिथि परिचय डॉक्टर ममता झा, मुंबई ने दिया। स्वागत भाषण डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई ने दिया। 


संगोष्ठी में श्रीमती गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ सुनीता गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, लता जोशी, मुंबई, अनीता ठाकुर, अर्पणा जोशी, इंदौर, डॉ मनीषा सिंह, मुंबई, रीना सुरड़कर, डॉ सुनीता चौहान, मुंबई, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।


राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉ मनीषा सिंह, मुंबई ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ सुनीता चौहान, मुंबई ने किया।











संप्रेषण कौशल


20210609

महाकवि सूरदास : भारतीय साहित्य, संस्कृति और परम्परा के परिप्रेक्ष्य में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Mahakavi Surdas: Perspectives on Indian Literature, Culture and Tradition - Prof. Shailendra Kumar Sharma

प्रेम की शक्ति और शाश्वतता के अनुपम गायक हैं महाकवि सूर – प्रो. शर्मा 


अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ महाकवि सूरदास : भारतीय साहित्य, संस्कृति और परम्परा के परिप्रेक्ष्य में पर मंथन 


सृजनधर्मियों की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी महाकवि सूरदास : भारतीय साहित्य, संस्कृति और परम्परा के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ऑस्लो, नॉर्वे थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। अध्यक्षता प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। आयोजन के विशिष्ट अतिथि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल, साहित्यकार डॉ शैल चंद्रा, धमतरी, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया।






मुख्य अतिथि श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, नॉर्वे ने कहा कि सूर ने कृष्ण के जीवन से जुड़े सभी प्रसंगों को अपने काव्य में समाहित किया है। उन्होंने अत्यंत सहजग्राह्य और सरल भाषा में कृष्ण का वर्णन किया। उनका काव्य आत्मा तक उतर जाता है। वे वातावरण का सूक्ष्म चित्रण करने में प्रवीण थे। श्री शुक्ल ने सूर काव्य से प्रेरित रचना सुनाई, जिसकी पंक्तियां थीं चलो जमुना के तीरे, यशोदा मैया से कहत नंदलाल।




मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि सूर प्रेम की शक्ति और शाश्वतता के अनुपम गायक हैं। वे अविद्या से मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं। उन्होंने ईश्वर को प्रेम के वशीभूत माना है। हरि नाम को वे सर्वोपरि स्थान देते हैं। सूर बाल से प्रौढ़ मनोविज्ञान के कुशल चितेरे हैं। उन्होंने ब्रज की लोक सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़कर महत्वपूर्ण सृजन किया। लीला पद गान, रासलीला, ऋतु, पर्व एवं अन्य परंपराओं को सूर ने सरस काव्य के माध्यम से प्रतिष्ठा दी। कृषि और गौपालन संस्कृति का जीवंत चित्रण उनके काव्य को अद्वितीय बनाता है। उन्हें अपने समय और समाज की गहरी पकड़ थी। ग्राम्य और शहरी  जीवन का द्वंद्व उन्होंने सदियों पहले गोपिकाओं के माध्यम से संकेतित किया।



विशिष्ट अतिथि डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने कहा कि महाकवि सूरदास ने कृष्ण की बाल लीलाओं का जीवंत चित्रण किया है। वे बाल मनोविज्ञान और अभिरुचियों के विशेषज्ञ थे। उन्होंने वात्सल्य रस को प्रतिष्ठित किया। सूर काव्य में लोक संस्कृति के दर्शन होते हैं। सूर भक्ति में लीन थे, वही राजसत्ता की तुलना में उनके लिए सर्वोपरि थी। रासलीला का जीवंत वर्णन उन्होंने किया है। भारत की सनातन संस्कृति को उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से जीवंत रखा है।



डॉक्टर शैल चंद्रा, धमतरी ने कहा कि कृष्ण भक्ति की अजस्र धारा में सूर का नाम अद्वितीय है। साहित्य का सृजन समाज से कटकर नहीं हो सकता। सूर ने माता यशोदा और पुत्र कृष्ण की मनो भावनाओं का सरस वर्णन किया है। सखी इन नैनन तें घन हारे पंक्ति को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि सूर का विरह वर्णन अत्यंत मार्मिक है। कृष्ण और गोपों के माध्यम से सूर ने सांस्कृतिक लोकतंत्र स्थापित किया।



कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि सूर का काव्य भक्ति का शृंगार है। वे उच्च कोटि के गायक थे। उन्हें दैवीय वरदान प्राप्त था। उनकी भक्ति भावना दैन्य और प्रेम से समन्वित है। प्रेम मूर्ति कृष्ण उनके आराध्य हैं। संपूर्ण सृष्टि में कृष्ण की ही छटा बिखरी है, इस बात का संकेत उनका काव्य करता है। उनके काव्य में विविध ऋतुओं और पर्वोत्सवों का सुंदर चित्रण हुआ है। उनके पद सरस और अर्थी हैं। युग जीवन की आत्मा का स्पंदन उनके काव्य में है।




साहित्यकार श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि भारतीय भक्ति धारा में सूर का नाम सर्वोपरि है। सूर ने नारी के विविध रूपों का वर्णन अपने काव्य में किया। समाज जीवन के सभी पक्षों को उन्होंने छुआ है। नारी के स्वतंत्र अस्तित्व को लेकर सूर ने प्रभावी चित्रण किया है। सूर काव्य में तत्कालीन समाज और संस्कृति का निरूपण मिलता है।


साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने प्रास्ताविक वक्तव्य देते हुए कहा कि सूरदास जी का ब्रज भाव आज संपूर्ण देश और दुनिया में विशेष पहचान रखता है। उन्होंने संस्था द्वारा कोविड-19 के दौर में एक सौ वेब संगोष्ठियाँ आयोजित करने पर बधाई दी। उन्होंने काव्य पँक्तियाँ प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज नवल इतिहास रच रहा राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना मंच। 


विशिष्ट अतिथि डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने कहा कि महाकवि सूरदास साहित्य जगत में सूर्य माने जाते हैं। पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक वल्लभाचार्य ने उन्हें दीक्षित किया था। सूरदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से विविध भावों की अभिव्यक्ति की है। उनके काव्य में प्रकृति सौंदर्य के चित्रण के साथ श्रृंगार के मिलन और विरह दोनों पक्षों का सुंदर निरूपण हुआ है। उनका काव्य भाव और भाषा दोनों ही दृष्टियों से उत्कृष्ट है।


कोच्ची के शीजू ए ने भी संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त किए। 


संगोष्ठी के प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ सुनीता गर्ग, पंचकूला, हरियाणा ने की। संस्था की गतिविधियों का परिचय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने दिया। स्वागत भाषण डॉ गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा ने दिया। 


संगोष्ठी में डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई, श्रीमती गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे डॉ सुनीता गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, डॉक्टर शैल चंद्रा, धमतरी, शीजू के, कोचीन, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, श्री जी डी अग्रवाल, इंदौर, लता जोशी, मुंबई आदि सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।


राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया। आभार प्रदर्शन  डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने किया।











महाकवि सूरदास जयंती


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