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20170721

कुरंडा की अनन्य अनुभूतियों से जुड़े बिम्ब: ऑस्ट्रेलिया प्रवास की जादुई स्मृतियाँ - दो

ऑस्ट्रेलिया के पूर्वोत्तर तट पर क्वींसलैंड राज्य में कैर्न्स नगर के समीपस्थ कुरंडा एक पहाड़ी गांव है। ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख पर्यटन स्थलों में एक कुरंडा अपने नैसर्गिक वैभव, आदिम सभ्यता से जुड़े लोगों की संस्कृति, कला रूपों, सुदर्शनीय रेलमार्ग और स्काई रेल की रोमांचक यात्रा के लिए जाना जाता है। ऑस्ट्रेलिया प्रवास के दौरान कुरंडा से जुड़ी सपनीली यादों के साथ कुछ छायाचित्र यहाँ पेश हैं। 
कुरंडा ऑस्ट्रेलिया में शुरुआती तौर पर बसने वाले लोगों के साथ उष्ण कटिबंधीय वर्षावन की पहाड़ियों पर विकसित होने लगा था। कैर्न्स से मीटर गेज ट्रेन से जाना और लौटने में स्काई रेल की रोमांचकारी सवारी इस यात्रा को अविस्मरणीय बना गए। इस इलाके की प्रमुख नदी बैरोन है। रेल यात्रा के दौरान सम्मोहक बैरोन फॉल्स को निहारने के लिए ट्रेन कुछ देर रुकती है।
कुरंडा में क्वाला और वन्यजीव पार्क 1996 में खोला गया है। यहाँ ऑस्ट्रेलिया की पहचान को निर्धारित करने वाले क्वाला, कंगारू, मगरमच्छ, वेलेबिज, डिंगो, वोम्बेट, कैसॉवरी, छिपकली, मेढक और सांप सहित कई ऑस्ट्रेलियाई मूल के अचरजकारी जीवों को निकट से महसूस करना अनन्य अनुभूति दे गया। 
कुरंडा में अनेक प्रकार का भोजन उपलब्ध है, जो इस क्षेत्र की विविधता को दर्शाता है। दुकानों, कला दीर्घाओं, कैफे और रेस्तरां की दिलचस्प सरणियाँ यहाँ मिलीं, जहाँ से कुछ स्मृति चिह्न भी संचित किए। ऑस्ट्रेलिया के आदि निवासियों, जिन्हें अबोरजिनल कहा जाता है, की कला और सांस्कृतिक विरासत के अवलोकन का यादगार मौका भी इस गाँव में मिला। आदि निवासियों के परिवार से जुड़ा एक युवा एक हाथ में बूमरैंग लिए और दूसरे हाथ में सुषिर वाद्य डिजरीडू (didgeridoo) या डिडजेरिडू बजाते हुए मिला। भारतीय संगीत परम्परा में वायु द्वारा बजाये जाने वाले वाद्य सुषिर वाद्य या वायुवाद्य या फूँक वाद्य कहे जाते हैं, जैसे- बाँसुरी, शंख, तुरही, भूंगल, शहनाई आदि। ऑस्ट्रेलियाई डिजरीडू (didgeridoo) काष्ठ निर्मित वाद्य यंत्र है। डिजरीडू (didgeridoo) ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी समुदाय द्वारा विकसित एक वायुवाद्य है, जिसमें श्वास या वायु द्वारा ध्वनि उत्पन्न की जाती है। अनुमान लगाया जाता है कि इसका विकास उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में पिछले 1500 वर्षों में कभी हुआ था। वाद्य यंत्रों के होर्नबोस्तेल-साक्स वर्गीकरण में यह एक वायुवाद्य है। वैसे तो ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों ने प्रकृति के साथ तादात्म्य लिए तीन वाद्ययंत्र विकसित किए हैं - डिजरीडू (didgeridoo), बुलरोअरर और गम-लीफ। इनमें दुनियाभर में सबसे अच्छी तरह से जाना जाता है  डिजरीडू। यह एक सादी सी लकड़ी की ट्यूब जैसा वाद्य है, जो तुरही की तरह एक वादक के होंठ के साथ मुख मार्ग के नियंत्रणीय अनुनादों से ध्वनिगत लचीलापन हासिल करता है। आधुनिक डिजरीडू प्रायः 1 से 3 मीटर (3 से 10 फ़ुट) लम्बे होते हैं और बेलन या शंकु का आकार रखते हैं। इन पर प्राकृतिक उपादानों से अनुप्राणित बहुत सुंदर अलंकरण किए जाते हैं।
कुरंडा ग्राम की अमिट छाप को सँजोते हुए हम लोगों की कैर्न्स वापसी स्काई रेल के जरिए हुई। स्काई रेल उत्तर क्वींसलैंड के उष्णकटिबंधीय वर्षावनों के माध्यम से 7.5 किमी की दूरी तय करने का एक अनोखा अवसर प्रदान करती है। इसके जरिये दुनिया का अपने ढंग का पहला, सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से प्राचीन उष्ण कटिबंधीय वर्षावन को देखने और अनुभव करने का मौका मिलता है।
स्काई रेल 31 अगस्त 1995 को आम जनता के लिए खोला गया था। केबल वे को मूल रूप से 47 गोंडोला के साथ स्थापित किया गया था, जो प्रति घंटा 300 लोगों की क्षमता से युक्त थी। मई 1997 में इसका उन्नयन पूरा हुआ और गोंडोला की कुल संख्या बढ़कर 114 हो गयी। अब यह प्रति घंटे 700 लोगों को क्षमता रखता है। दिसंबर 2013 में, स्काई रेल ने 11 डायमंड व्यू ग्लास फर्श गोंडोला की शुरुआत की, जिसमें 5 लोगों की सीट है और नीचे के रेन फोरेस्ट के अवलोकन का एक और अद्भुत परिप्रेक्ष्य सामने आया है। कुरंडा नेशनल पार्क और  बैरोन गोर्ज नेशनल पार्क विश्व विरासत में शामिल किए गए ऑस्ट्रेलियाई वर्षा वन के अंग हैं। इनके संरक्षण के लिए अपनाई गई रीतियों से दुनिया बहुत कुछ सीख सकती है।




20170712

गजानन माधव मुक्तिबोध: एक रूपक - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

गजानन माधव मुक्तिबोध: एक रूपक
आलेख प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
Prof Shailendrakumar Sharma

गजानन माधव मुक्तिबोध के जन्मशती वर्ष पर आकाशवाणी के लिए तैयार किये गए विशेष रूपक का वीडियो रूपांतर यूट्यूब पर प्रस्तुत किया गया है। आकाशवाणी से प्रसारित इस रूपक का आलेख प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा का है।
साक्षात्कार: प्रो चंद्रकांत देवताले, प्रो प्रमोद त्रिवेदी, प्रो राजेन्द्र मिश्र, प्रो सरोज कुमार।
प्रस्तुति: सुधा शर्मा एवं जयंत पटेल।
वीडियो रूपान्तरण: प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा।
आभार: आकाशवाणी।
इस रूपक का वीडियो रूपांतर को यूट्यूब पर देखा जा सकता है: 



आधुनिक हिंदी कविता को कई स्तरों पर समृद्ध करते हुए नया मोड़ देने वाले रचनाकारों में गजानन माधव मुक्तिबोध का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। जन्मशताब्दी वर्ष पर मुक्तिबोध पर केंद्रित रूपक का प्रसारण आकाशवाणी, दिल्ली से  साहित्यिक पत्रिका ‘साहित्य भारती’ में हुआ था। इस रेडियो फ़ीचर का लेखन समालोचक एवं विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने किया है। रूपक में मुक्तिबोध के योगदान और रचनाओं के साथ उन पर केंद्रित वरिष्ठ साहित्यकारों के साक्षात्कार भी समाहित किए गए हैं। इनमें वरिष्ठ कवि प्रो चंद्रकांत देवताले, डॉ. प्रमोद त्रिवेदी (उज्जैन), प्रो राजेन्द्र मिश्र और सरोज कुमार (इंदौर) शामिल हैं।

मुक्तिबोध का जन्म 13 नवम्बर 1917 को मध्य प्रदेश के श्योपुर कस्बे में हुआ था। उन्होंने स्कूली शिक्षा उज्जैन में रहकर प्राप्त की। 1935 में उज्जैन के माधव कॉलेज में पढ़ते हुए साहित्य लेखन आरंभ हुआ। उनकी आरंभिक कविताएँ माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा संपादित ‘कर्मवीर’ सहित कई साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने बी. ए. की पढ़ाई इन्दौर के होल्कर कॉलेज से की थी। उनकी अधिकांश रचनाएँ 11 सितम्बर 1964 को निधन के बाद ही प्रकाशित हो सकीं। उनके कविता संग्रह हैं चांद का मुँह टेढ़ा है और भूरी भूरी खाक धूल, कहानी संग्रह हैं काठ का सपना, सतह से उठता आदमी तथा उपन्यास विपात्र भी चर्चित रहा है। उनकी आलोचना कृतियाँ में प्रमुख हैं- कामायनी: एक पुनर्विचार, नयी कविता का आत्मसंघर्ष, नये साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र, समीक्षा की समस्याएँ, एक साहित्यिक की डायरी। उनकी सभी रचनाएं 1980 में छह खंडों में प्रकाशित मुक्तिबोध रचनावली में संकलित हैं। मुक्तिबोध का सही मूल्यांकन उनके निधन बाद ही संभव हो पाया, लेकिन उनकी कविताएँ और विचार निरन्तर प्रेरणा देते आ रहे हैं।

मुक्तिबोध का उज्जैन से गहरा तादात्म्य था। सेंट्रल कोतवाली में आवास और माधव कॉलेज में अध्ययनरत रहे तार सप्तक के इस कवि का जन्मशती वर्ष मनाया गया। उज्जयिनी जैसे पुरातन नगर की कई छबियाँ उनकी कविताओं में नई अर्थवत्ता के साथ उतरी हैं। तार सप्तक के वक्तव्य में उन्होंने मालवा और उज्जैन को कुछ इस तरह याद किया है:

तार सप्तक/ गजानन माधव मुक्तिबोध / वक्तव्य

मालवे के विस्तीर्ण मनोहर मैदानों में से घूमती हुई क्षिप्रा की रक्त-भव्य साँझें और विविध-रूप वृक्षों की छायाएँ मेरे किशोर कवि की आद्य सौन्दर्य-प्रेरणाएँ थीं। उज्जैन नगर के बाहर का यह विस्तीर्ण निसर्गलोक उस व्यक्ति के लिए, जिसकी मनोरचना में रंगीन आवेग ही प्राथमिक है, अत्यन्त आत्मीय था।

उस के बाद इन्दौर में प्रथमतः ही मुझे अनुभव हुआ कि यह सौन्दर्य ही मेरे काव्य का विषय हो सकता है। इसके पहले उज्जैन में स्व. रमाशंकर शुक्ल के स्कूल की कविताएँ—जो माखनलाल स्कूल की निकली हुई शाखा थी- मुझे प्रभावित करती रहीं, जिनकी विशेषता थी बात को सीधा न रखकर उसे केवल सूचित करना। तर्क यह था कि वह अधिक प्रबल होकर आती है। परिणाम यह था कि अभिव्यंजना उलझी हुई प्रतीत होती थी। काव्य का विषय भी मूलतः विरह-जन्य करुणा और जीवन-दर्शन ही था। मित्र कहते हैं कि उनका प्रभाव मुझ पर से अब तक नहीं गया है। इन्दौर में मित्रों के सहयोग और सहायता से मैं अपने आन्तरिक क्षेत्र में प्रविष्ट हुआ और पुरानी उलझन-भरी अभिव्यक्ति और अमूर्त करुणा छोड़ कर नवीन सौन्दर्य-क्षेत्र के प्रति जागरूक हुआ। यह मेरी प्रथम आत्मचेतना थी। उन दिनों भी एक मानसिक संघर्ष था। एक ओर हिन्दी का यह नवीन सौन्दर्य-काव्य था, तो दूसरी ओर मेरे बाल-मन पर मराठी साहित्य के अधिक मानवतामय उपन्यास-लोक का भी सुकुमार परन्तु तीव्र प्रभाव था। तॉल्स्तॉय के मानवीय समस्या-सम्बन्धी उपन्यास—या महादेवी वर्मा ? समय का प्रभाव कहिए या वय की माँग, या दोनों, मैंने हिन्दी के सौन्दर्य-लोक को ही अपना क्षेत्र चुना; और मन की दूसरी माँग वैसे ही पीछे रह गयी जैसे अपने आत्मीय राह में पीछे रह कर भी साथ चले चलते हैं।

मेरे बाल-मन की पहली भूख सौन्दर्य और दूसरी विश्व-मानव का सुख-दुःख—इन दोनों का संघर्ष मेरे साहित्यक जीवन की पहली उलझन थी। इस का स्पष्ट वैज्ञानिक समाधान मुझे किसी से न मिला। परिणाम था कि इन अनेक आन्तरिक द्वंद्वों के कारण एक ही काव्य-विषय नहीं रह सका। जीवन के एक ही बाजू को ले कर मैं कोई सर्वाश्लेषी दर्शन की मीनार खड़ी न कर सका। साथ ही जिज्ञासा के विस्तार के कारण कथा की ओर मेरी प्रवृत्ति बढ़ गयी।इस का द्वन्द्व मन में पहले से ही था। कहानी लेखन आरम्भ करते ही मुझे अनुभव हुआ कि कथा-तत्त्व मेरे उतना ही समीप है जितना काव्य। परन्तु कहानियों में बहुत ही थोड़ा लिखता था, अब भी कम लिखता हूँ। परिणामतः काव्य को मैं उतना ही समीप रखने लगा जितना कि स्पन्दन; इसीलिए काव्य को व्यापक करने की, अपनी जीवन-सीमा से उस की सीमा को मिला देने की चाह दुनिर्वार होने लगी। और मेरे काव्य का प्रवाह बदला।

मुक्तिबोध पर एकाग्र विशेष रूपक यहाँ प्रस्तुत है: प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा


















20170701

सुरम्य सिडनी - ऑस्ट्रेलिया प्रवास की जादुई स्मृतियाँ - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Sydney - Unforgettable Australia Tour - Prof. Shailendra Kumar Sharma

सिडनी टॉवर: आधुनिक स्थापत्यकला का बेजोड़ उदाहरण

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 

सिडनी टॉवर आधुनिक स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। इससे सिडनी महानगर की चमकीली इमारतों, सड़कों, पुलों, सागर तटों और सिडनी ऑपेरा हाउस का अवलोकन यादगार अवसर बन गया।  यह सिडनी की सबसे ऊंची इमारत है और  दक्षिणी गोलार्ध में दूसरा सबसे बड़ा अवलोकन टॉवर है। ऑकलैंड का स्काई टॉवर इससे अधिक ऊँचा है, लेकिन सिडनी टॉवर के मुख्य अवलोकन डेक ऑकलैंड के स्काई टॉवर के अवलोकन डेक की तुलना में लगभग 50 मीटर (164 फीट) अधिक ऊँचे हैं। सिडनी टॉवर नाम का उपयोग दैनिक उपयोग में सामान्य हो गया है, हालांकि यह टॉवर सिडनी टॉवर आई, एएमपी टॉवर, वेस्टफील्ड सेंट्रॉवेंचर टॉवर, सेंट्रॉवेंचर टॉवर या सिर्फ सेंपईवॉयर के रूप में भी जाना जाता है। सिडनी टॉवर, ग्रेट टावर्स के वर्ल्ड फेडरेशन का सदस्य है।
टॉवर की ऊंचाई 309 मीटर (1014 फीट) है। यह टॉवर बाज़ार स्ट्रीट पर पिट और कैसलरिग स्ट्रीट्स के बीच वेस्टफील्ड सिडनी शॉपिंग सेंटर के ऊपर स्थित है। यहाँ पिट स्ट्रीट मॉल, मार्केट स्ट्रीट या कैसलरिग स्ट्रीट से पहुँचा जा सकता है। टॉवर आम जनता के लिए खुला है और शहर के सबसे प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक है। यह पूरे शहर और आसपास के उपनगरों से कई सुविधाजनक स्थानों से दिखाई देता है।
ऑस्ट्रेलियाई वास्तुकार डोनाल्ड क्रोन ने सिडनी टॉवर की पहली योजना मार्च 1968 में बनाई थी। 1970 में इसके कार्यालय भवन और 1975 में टॉवर का निर्माण शुरू हुआ। टावर के निर्माण से पहले, हवाई जहाजों द्वारा सुरक्षित अतिप्रवाह को अनुमति देने के लिए सिडनी की ऊंचाई सीमा 279 मीटर (915 फीट) निर्धारित की गई थी। टावर का सार्वजनिक उपयोग अगस्त 1981 में शुरू हुआ। निर्माण की कुल लागत $ 36 मिलियन थी। 1998 में, टॉवर की कुल ऊंचाई 309 मीटर (1,014 फीट) तक बढ़ा दी गई, जो कि समुद्र तल से 327 मीटर (1,073 फीट) है।
टॉवर के चार खंड जनता के लिए खुले हुए हैं, वहीं तीन खण्ड सिडनी टॉवर डाइनिंग के पास हैं। 360 बार और डाइनिंग सिडनी टॉवर के पहले लेवल पर स्थित है, जो सिडनी की क्षितिज रेखा के घूमने वाले मनोरम दृश्य पेश करता है। सिडनी टॉवर बुफे, टॉवर के दूसरे स्तर पर स्थित एक समकालीन स्वयं-चयन रेस्तरां है। तीसरे लेवल पर स्थित स्टूडियो दक्षिणी गोलार्ध में सबसे ऊंचा आयोजन स्थल है, जहाँ दो सौ से ज्यादा लोग पार्टी का आनन्द ले सकते हैं। सिडनी टॉवर आई नामक अवलोकन डेक, सिडनी टॉवर के चौथे स्तर पर स्थित है। इस स्तर तक पहुंचने के लिए आगंतुक ऑपरेटिंग कंपनी या गेट पर एक पास खरीद सकते हैं। यह पास सिडनी के अन्य आकर्षणों के अवलोकन का भी अवसर देता है, जिसमें वाइल्ड लाइफ सिडनी और सिडनी एक्वैरियम शामिल हैं। सिडनी टॉवर आई जमीनी स्तर से 250 मीटर (820 फीट) ऊपर स्थित है। शहर और आस-पास के क्षेत्रों के 360 डिग्री दृश्यों के साथ इसमें एक पूरी तरह से संलग्न दृश्य मंच है। इस मंजिल में एक छोटी गिफ्ट शॉप, बहुभाषी और पढ़ा जाने योग्य टचस्क्रीन भी है, जो हवा की गति, दिशा और टावर के अन्य आंकड़ों के बारे में डेटा प्रदर्शित करता है।
23 सितंबर, 2011 को, सिडनी के विभिन्न स्थानों से फुटेज के साथ एक फिल्म दिखाने के लिए आर्केड की चौथी मंजिल पर एक 4डी सिनेमा खोला गया था। यह थिएटर ऑस्ट्रेलिया में अपनी तरह का पहला है और इसके विशेष प्रभावों में हवा, बुलबुले और आग शामिल हैं। दर्शकों को चमत्कृत करते इस 4डी फ़िल्म का अवलोकन भी यादगार अनुभव बन पड़ा।
टॉवर के शीर्ष के निकट स्थित गोल्डन बुर्ज में अधिकतम 960 लोगों की क्षमता है। अवलोकन डेक तक पहुंचाने के लिए तीन उच्च गति वाले डबल-डेक लिफ्टों का प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक में 8 से 10 लोगों की क्षमता है। हवा की स्थितियों के आधार पर, लिफ्टें पूर्ण, आधा या चौथी गति पर यात्रा करती हैं। पूरी गति से लिफ्टें 45 सेकंड में डेक तक पहुंच जाती हैं।
इस पर स्काईवॉक एक ओपन-एयर ग्लास फर्श वाला प्लेटफ़ॉर्म है, जो सिडनी टॉवर आई की सतह पर 268 मीटर (879 फीट) की ऊंचाई पर है। देखने के मंच डेक की मुख्य संरचना के किनारे पर फैले हुए हैं। यह 18 अक्टूबर 2005 को खोला गया था। इसका निर्माण करने के लिए $ 3.75 मिलियन की लागत और डिजाइन करने में चार साल लगे हैं। दो महीने के निर्माण इस मंच तक केवल योजनाबद्ध और बुक किए गए टूर के भाग के रूप में पहुंचा जा सकता है।











फ़ोटो सौजन्य: http://www.smileflingr.com/ संग Magic Memories https://www.magicmemories.com

20170624

सिडनी - ऑस्ट्रेलिया में प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा साहित्य सिंधु सम्मान से अलंकृत

सिडनी में आयोजित हुआ अंतरराष्ट्रीय साहित्य समारोह और शोध संगोष्ठी


सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में आयोजित अंतरराष्ट्रीय साहित्य समारोह और शोध संगोष्ठी में समालोचक एवं विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा को साहित्य सिंधु सम्मान से अलंकृत किया गया। अंतरराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा वाइब सभागार, सिडनी में आयोजित इस समारोह में पहले दिन प्रो शर्मा को सम्मान - पत्र, प्रतीक चिह्न, सम्मान राशि,  शॉल, रुद्राक्ष एवं स्फटिक माला अर्पित कर प्रमुख अतिथि एम. एल. सी. डॉ जयपाल सिंह व्यस्त, डॉ प्राण जग्गी, अमेरिका,  पूर्व कुलपति डॉ रवींद्र कुमार वर्मा, डॉ विद्याबिन्दु सिंह, डॉ महेश दिवाकर  एवं डॉ देवकीनंदन शर्मा ने सम्मानित किया। यह सम्मान वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री हरिशंकर आदेश द्वारा स्थापित किया गया है।

 प्रो. शर्मा ने दिनांक 15-16 जून 2017 तक आयोजित अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह में ‘हिंदी का वैश्विक महत्त्व और संभावनाएं’ पर एकाग्र बीज वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि यह दौर हिंदी की वैश्विक महत्ता और स्वीकार्यता के साथ विविध क्षेत्रों में उसकी नई संभावनाओं के विस्तार का दौर है। विश्वभाषा के रूप में हिंदी की प्रतिष्ठा के लिए हिंदी प्रेमियों और निकायों से लेकर शासन-प्रशासन, शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों और हिंदीसेवियों के अविराम प्रयत्नों की दरकार है। विश्व स्तर पर हिन्दी के शिक्षण – प्रशिक्षण के लिए योजनाबद्ध प्रयत्न आवश्यक हैं। विदेशों में राजनयिक क्षेत्रों में हिन्दी के प्रयोग -  प्रसार के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंध दस्तावेजों के हिंदी में आदान - प्रदान की व्यवस्था अनिवार्य हो। इसी तरह डिजिटल संसार में विश्व की प्रमुख भाषाओं के बीच हिंदी की हिस्सेदारी उसके प्रयोक्ताओं के अनुपात में कम दिखाई दे रही है। इस लक्ष्य को अगले दशक के मध्य तक हासिल करना बेहद जरूरी है। व्यापार – व्यवसाय से लेकर विज्ञान-प्रौद्योगिकी सहित विविध ज्ञानानुशासनों के अध्ययन - अनुसन्धान में हिन्दी के प्रयोग में वृद्धि हो। हिंदी सूचना, मनोरंजन या सृजन की भाषा ही न रहे, वह ज्ञान, विज्ञान और विचार की संवाहिका बने, यह जरूरी है।




         इस अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में शासकीय माधव कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, उज्जैन की प्रो. राजश्री शर्मा 'उच्च शिक्षा संस्थानों में माध्यम भाषा की चुनौती और संभावनाएं' विषय पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। इस अवसर पर उन्हें अतिथियों द्वारा  साहित्यश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। आयोजन में किशोर कलाकार अंश शर्मा को अतिथियों ने सम्मानित कर आशीर्वाद दिया।
















इस अंतरराष्ट्रीय समारोह एवं शोध संगोष्ठी में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया सहित भारत के पन्द्रह से अधिक राज्यों के साहित्य मनीषी, शिक्षाविद् और संस्कृतिकर्मियों ने भाग लिया। इस अवसर पर काव्य एवं विचार गोष्ठियों का आयोजन भी किया गया।

प्रो शर्मा की इस उपलब्धि पर अनेक शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी और साहित्यकारों ने हर्ष व्यक्त कर प्रो शर्मा को बधाई दी।  विगत तीन दशकों से समीक्षा एवं अनुसंधानपरक लेखन में निरंतर सक्रिय प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। उन्होंने शब्दशक्ति सम्बन्धी भारतीय और पाश्चात्य अवधारणा तथा हिन्दी काव्यशास्त्र, देवनागरी विमर्श, मालवा का लोकनाट्‌य माच और अन्य विधाएं, हिन्दी भाषा संरचना, मालवी भाषा और साहित्य, अवन्ती क्षेत्र और सिंहस्थ महापर्व आदि सहित तीस से अधिक पुस्तकों का लेखन एवं सम्पादन किया है। शोध पत्रिकाओं और ग्रन्थों में उनके 250 से अधिक शोध एवं समीक्षा निबंधों तथा 750 से अधिक कला एवं रंगकर्म समीक्षाओं का प्रकाशन हुआ है। आपने भाषा, साहित्य और लोक संस्कृति से जुड़ी अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर की अनेक संगोष्ठी और कार्यशालाओं का समन्वय किया है।

(प्रस्तुति: डॉ अनिल जूनवाल)







20170507

सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' से आत्मीय संलाप

नॉर्वे में निवासरत रचनाकर श्री सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' का उज्जैन आगमन यादगार रहता है। उज्जैन प्रवास पर उनकी टिप्पणी और लिंक के लिये आत्मीय धन्यवाद।

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

वे लिखते हैं-
विश्व हिंदी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र  
बहुत से लोग मध्यप्रदेश, भारत की प्राचीन नगरी  उज्जैन को महाकाल मंदिर कालिदास की कर्मस्थली के रूप में जानते हैं।वहां विक्रम विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग, लोककला संग्रहालय के अतिरिक्त विश्व हिंदी संग्रहालय की परिकल्पना और उसको निरंतर विकास के आयाम देने में रत साहित्यकार बन्धु प्रो.  शैलेन्द्रकुमार शर्मा के साथ मुझे सबसे पहले दिसंबर 2013 में और उसके बाद कई बार देखने का अवसर मिला है। आशा है जहां आगे चलकर हिंदी का वैश्विक केंद्र स्थापित होगा - शरद आलोक
डॉ शुक्ल का ब्लॉग लिंक और परिचय देखें:

http://sureshshukla.blogspot.in/2013/03/blog-post_13.html

Suresh Chandra Shukla


I am an Indian born Hindi poet,writer and Film director setteled in Oslo,Norway.I am member of following institutions : 1. Norwegian journlist union. 2. Norwegian Film Association 3. Norwegian writer center 4. Editor of cultural magazines SPEIL and VAISHVIKA and www.speil.no I writes regularly in Hindi and Norwegian both languages.I am the author of the many books in Hindi and Norwegian literature like: POETRY IN HINDI: ---------------- * Vedna * Rajni * Nange paanvon ka sukh * Deep jo bujhte nahi * Sambhavnao ki talash * Ekta ke swar * Neer mein phanse pank.... POETRY IN NORWEGIAN: -------------------- * Fremede fugler * Mellom linjene COLLECTION OF SHORT STORIES: ---------------------------- * Ardhratri Ka Suraj * Prawasi Kahaniyan TRANSLATION FROM NORWEGIAN/DANISH TO HINDI: ------------------------------------ * Norway ki lokkathayen * Hans Kristian Anderson ki kathayen I can be reached through following addresses : sshukla@online.no speil.nett@gmail.com
























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