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20200912

देवनागरी विश्वनागरी के रूप में दुनिया को जोड़ सकती है - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

देवनागरी लिपि को लेकर आत्म गौरव का भाव जगाना होगा – प्रो. शर्मा 

आचार्य विनोबा भावे और सार्वदेशीय लिपि के रूप में देवनागरी पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न


प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा आचार्य विनोबा भावे और सार्वदेशीय लिपि के रूप में देवनागरी पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की मुख्य अतिथि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने की। यह संगोष्ठी आचार्य विनोबा भावे के 125 वें जयंती वर्ष के अवसर पर आयोजित की गई। 






मुख्य अतिथि डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य विनोबा भावे ने देवनागरी लिपि के प्रचार और संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी प्रेरणा से स्थापित नागरी लिपि परिषद देश की विभिन्न भाषाओं और बोलियों को लिपि के माध्यम से जोडने का कार्य कर रही है। परिषद द्वारा कोकबोरोक, कश्मीरी आदि सहित अनेक भाषा और  बोलियों को नागरी लिपि के माध्यम से लेखन के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में देवनागरी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है।




प्रमुख वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन ने कहा कि देवनागरी विश्वनागरी के रूप में दुनिया को जोड़ सकती है। इस लिपि में विश्व लिपि बनने की अपार संभावनाएं हैं। देवनागरी लिपि ध्वनि विज्ञान, लिपि विज्ञान, यंत्र विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी इन सभी दृष्टियों से उपयुक्त लिपि है। आचार्य विनोबा भावे  की संकल्पना थी कि देवनागरी लिपि के माध्यम से उत्तर एवं दक्षिण भारत की भाषाएं जुड़ें। लिपिविहीन लोक और जनजातीय भाषाओं के लिए देवनागरी का प्रयोग करने से राष्ट्रीय एवं भावात्मक एकता में अभिवृद्धि होगी। दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशियाई भाषाओं के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग सहज ही किया जा सकता है। साथ ही यूरोप एवं अन्य महाद्वीपों की भाषाओं को सीखने में देवनागरी सहायक सिद्ध हो सकती है। गांधी जी ने विभिन्न पुस्तकों को अपनी मूल भाषा के लिए प्रचलित लिपि के साथ देवनागरी लिपि में प्रकाशित करने का संदेश दिया था। हमें देवनागरी लिपि को लेकर आत्म गौरव का भाव जगाना होगा। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दौर में देवनागरी लिपि का सामर्थ्य सिद्ध हो गया है।






विशिष्ट अतिथि डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि विनोबा भावे महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे। उन्होंने भूदान आंदोलन के माध्यम से देश में परस्पर सद्भाव और समानता का संदेश दिया था। लिपि के संबंध में उनका संदेश है कि भारत की विभिन्न भाषाएं अपनी - अपनी लिपियों के साथ देवनागरी लिपि के माध्यम से भी लिखी जाएं। वे ही वादी नहीं, भी वादी थे। उन्होंने जय जगत का नारा बुलंद किया था, जो आज भी प्रासंगिक है। 




प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि नार्वे से प्रकाशित दो पत्रिकाएं नॉर्वेजियन और हिंदी दोनों भाषाओं में प्रकाशित की जाती हैं। इनमें नॉर्वेजियन भाषा की रचनाओं को देवनागरी लिपि के माध्यम से भी प्रकाशित किया जाएगा। देवनागरी लिपि के माध्यम से नॉर्वेजियन भाषा की वार्तालाप पुस्तिका एवं स्वयं शिक्षक का प्रकाशन जल्द किया जाएगा। भारत के विभिन्न भागों में फैले लोक और जनजातीय समुदायों की बोलियों को सुरक्षित रखने के लिए देवनागरी का प्रयोग किया जाना चाहिए। 




संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। स्वागत भाषण डॉ रश्मि चौबे ने दिया। 



कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए  साहित्यकार श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुम्बई ने कहा कि देवनागरी लिपि के माध्यम से विभिन्न भाषाओं को सीखना आसान होता है। भारतीय भाषाओं के लिए रोमन लिपि के प्रयोग की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए व्यापक जागरूकता और स्वाभिमान जगाने की आवश्यकता है।  

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कार्यक्रम में साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी इंदौर ने डॉ प्रभु चौधरी की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक देवनागरी लिपि : तब से अब तक की समीक्षा प्रस्तुत की। 




संगोष्ठी में डॉ लता जोशी, मुंबई, मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ भरत शेणकर, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ वी के मिश्रा, रामेश्वर शर्मा, श्री अनिल ओझा, इंदौर, गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, दीपिका सुतोदिया, गुवाहाटी, प्रभा बैरागी, श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली, शम्भू पंवार, झुंझुनूं,  रागिनी शर्मा, इंदौर, डॉ शैल चंद्रा, डॉ ममता झा, दीपांकर तालुकदार, अशोक जाधव, सपन दहातोंडे, जी डी अग्रवाल, विनोद विश्वकर्मा, गुरुमूर्ति, अरुणा शुक्ला, ज्योति सिंह, श्वेता गुप्ता, दीपंकर दत्ता, सुरैया शेख, आलोक कुमार सिंह, संदीप कुमार, प्रियंका घिल्डियाल, जब्बार शेख, नयन दास, श्री सुंदरलाल जोशी, नागदा, राम शर्मा, मनावर, मनीषा सिंह, अनुराधा अच्छावन, समीर सैयद, डॉ श्वेता पंड्या, डॉ कुमार गौरव, विजय शर्मा, पंढरीनाथ देवले, विमला रावतले आदि सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।











प्रारंभ में सरस्वती वंदना ज्योति तिवारी ने की।

कार्यक्रम का संचालन सविता नागरे ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ मनीषा शर्मा, अमरकंटक ने किया।


20200910

भारतीय संस्कृति और साहित्य में मातृ तत्त्व - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

मातृ तत्त्व की अपार महिमा का निरूपण हुआ है संस्कृति और साहित्य में – प्रो. शर्मा 

भारतीय संस्कृति और साहित्य में मातृ तत्त्व पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी

प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा भारतीय संस्कृति और साहित्य में मातृ तत्त्व पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। प्रमुख वक्ता साहित्यकार श्री त्रिपुरारिलाल शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन ने की। 






प्रमुख अतिथि लेखक एवं आलोचक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन ने कहा कि भारतीय संस्कृति, परम्परा और साहित्य में मातृ तत्त्व की अपार महिमा का निरूपण हुआ है। शास्त्र और लोक दोनों ने ही मातृ तत्व को अनेक रूपों में महत्त्व दिया है। माँ ही हमें सर्वप्रथम व्यावहारिक और आध्यात्मिक जीवन से जोड़ती है। मां मात्र देवधारी जीव नहीं है, वह आदिशक्ति और जगत जननी का साक्षात् प्रतिरूप है। माँ ही सृजन, उर्वरता, संवेदना और भावी संभावनाओं का मूल आधार है। विभिन्न दर्शनों और पंथों में परस्पर वैचारिक असमानता के बावजूद मातृ तत्त्व के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। मातृ शक्ति के लौकिक और अलौकिक गुणों का गान करने में देव भी स्वयं को असमर्थ पाते हैं। आज स्त्री - पुरुष लैंगिक अनुपात बिगड़ रहा है, ऐसे में हमें स्त्रियों के सम्मान और बेटियों के बचाव के लिए व्यापक जागरूकता लानी होगी।





वन्दनीया गीता देवी चौधरी स्मृति सम्मान से सम्मानित किए गए पांच संस्कृतिकर्मी : 


कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार डॉ शंभू पंवार, झुंझुनू, डॉ भरत शेणकर, राजुर, महाराष्ट्र, डॉ रागिनी स्वर्णकार शर्मा, इंदौर, डॉ. संगीता पाल, कच्छ एवं श्रीमती रेणुका अरोरा, गाजियाबाद को वंदनीया मां गीता देवी चौधरी जयंती सम्मान 2020 से सम्मानित किया गया। उन्हें सम्मान के रूप में शॉल, श्रीफल, प्रशस्ति पत्र और सम्मान राशि अर्पित की गई। 







कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि मां एक व्यक्ति नहीं है, सर्वव्यापी तत्व है। संपूर्ण जीव - जगत की सृष्टि बिना मां के संभव नहीं। पुराणों में संकेत मिलता है कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है लेकिन माता कभी कुमाता नहीं होती। श्रीकृष्ण सरल ने मां को लेकर सुंदर काव्य पंक्तियां प्रस्तुत की हैं, मां वर्ण केवल एक, जिस पर वर्णमाला ही न्यौछावर। शब्द केवल एक, जिसमें अर्थ का सागर भरा है।




डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि इस्लाम में नारी को बहुत ऊंचा दर्जा मिला है। इस्लाम में माना गया है कि मां के पैरों के नीचे जन्नत है। पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने बेटियों के संरक्षण के लिए उन्हें उच्च स्थान दिलाया। हमें अंतर्मन से सोचना होगा कि समाज में स्त्री को सम्मान दिया जाए।




साहित्यकार श्री त्रिपुरारिलाल शर्मा, इंदौर ने कहा कि सभ्यता वास्तव में संस्कृति का अंग है। मन और आत्मा की संतुष्टि के लिए ज्ञान, संस्कार और अध्यात्म से रिश्ता आवश्यक है। भारत में मातृ तत्व को लेकर महत्वपूर्ण विचार हुआ है।



संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि मातुश्री गीता देवी चौधरी की स्मृति में वर्ष 2018 से प्रतिवर्ष विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिभाओं को सम्मानित किया जाता है। स्वागत भाषण डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई ने दिया। संस्था परिचय श्री राकेश छोकर ने दिया। कार्यक्रम में डॉ भरत शेणेकर, राजूर, महाराष्ट्र, डॉ शंभू पंवार, झुंझुनू, डॉ रागिनी स्वर्णकार शर्मा, इंदौर, डॉ. संगीता पाल, कच्छ ने भी विचार व्यक्त किए।  





संगोष्ठी में डॉ लता जोशी, मुंबई, मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉक्टर प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ वी के मिश्रा, रामेश्वर शर्मा, श्री अनिल ओझा, इंदौर, डॉ रश्मि चौबे, श्री राकेश छोकर, डॉ शैल चंद्रा, डॉ ममता झा, श्री सुंदर लाल जोशी, नागदा, राम शर्मा, मनावर, मनीषा सिंह, अनुराधा अच्छावन, समीर सैयद, डॉ श्वेता पंड्या, विजय शर्मा, पंढरीनाथ देवले, मीनाक्षी चौहान आदि सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।




प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ संगीता पाल ने की।

कार्यक्रम का संचालन रागिनी शर्मा, इंदौर ने किया। आभार प्रदर्शन श्री अनिल ओझा, इंदौर ने किया।











20200909

विश्व इतिहास में भारतीय शिक्षा प्रणाली का योगदान अद्वितीय – प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

आत्म तत्व का साक्षात्कार भारतीय शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य 

भारतीय शिक्षा प्रणाली में शिक्षकों का योगदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी


प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा भारतीय शिक्षा प्रणाली में शिक्षकों का योगदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की मुख्य अतिथि शिक्षाविद डॉ. चेतना उपाध्याय, अजमेर थीं। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि ओस्लो, नॉर्वे के वरिष्ठ साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु  चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। 




प्रमुख वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा उज्जैन ने कहा कि विश्व इतिहास में भारतीय शिक्षा प्रणाली का अविस्मरणीय योगदान है। लौकिक जीवन की शिक्षा के साथ आत्म तत्व का साक्षात्कार भारतीय शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य रहा है। इस दिशा में वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग के अनेक शिक्षकों और चिंतकों ने अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है। भारतीय आश्रम व्यवस्था में जीवन के प्रथम चरण ब्रह्मचर्य में शिक्षा अर्जन के प्रति निष्ठापूर्ण समर्पण आवश्यक माना गया है। पुराख्यानों में संकेत मिलते हैं कि अनेक देवों ने इस धरती पर शिक्षक और शिष्य की भूमिका में आकर स्वयं को सार्थक माना है। ज्ञान साधना में पूर्व पक्ष और उत्तर पक्ष की पद्धति भारतीय शिक्षा प्रणाली को वैशिष्ट्य देती है। गुरुकुल पद्धति की शिक्षा में सामाजिक समरसता के दर्शन होते थे।




विशेष अतिथि श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि लॉकडाउन के दौर में शिक्षकों का दायित्व बहुत अधिक बढ़ गया है। विद्यार्थियों को पर्यावरण के साथ रिश्ता सिखाने के लिए शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान वृद्धि को दृष्टिगत रखते हुए पूर्व प्राथमिक शिक्षा के स्तर से ही इस दिशा में कार्य प्रारंभ होने चाहिए।




मुख्य अतिथि डॉ चेतना उपाध्याय, अजमेर ने कहा कि भारतीय चिंतन में शिक्षकों की भूमिका सर्वोपरि मानी गई है। शिक्षकों को सदैव स्वाध्याय करते रहना चाहिए। उन्हें नई तकनीक को भी जानना होगा। विद्यार्थियों के बीच ज्ञान की धार को पैना करने की चेष्टा सदैव शिक्षकों को करते रहना चाहिए। 




संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि विद्यार्थियों के लोक व्यवहार का आधार शिक्षक होता है। विद्यार्थी ब्रह्मांड की यात्रा कर सकता है, जिसका द्वार शिक्षक ही खोल सकते हैं। तथ्यात्मक ज्ञान देना ही शिक्षक का दायित्व नहीं है, वरन चुनौतियों से टकराने की दिशा देना  भी शिक्षकों का महत्वपूर्ण दायित्व है। मस्तिष्क की क्षुधा शिक्षक ही शांत कर सकते हैं।


डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने कहा कि भारतीय शिक्षा पद्धति के केंद्र में गुरुकुल प्रणाली रही है। गुरुकुल व्यावहारिक और आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार की शिक्षा के केंद्र थे। उसमें गुरु और शिष्य एक ही प्रकार के परिवेश और सुविधाओं में रहते थे। वर्तमान में शिक्षकों और विद्यार्थियों की दूरी बढ़ रही है, जो चिंताजनक है। नैतिक मूल्यों का ह्रास रोकने के लिए दोनों का मजबूत रिश्ता जरूरी है।



साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि शिक्षक सही अर्थों में राष्ट्र के निर्माता हैं। नई परिस्थितियों के बीच देश - दुनिया के मार्गदर्शन के लिए शिक्षकगण आगे आएं।


श्री अशोक सिंह, मुम्बई ने कहा कि भारत गुरुओं को महत्व देने वाला देश रहा है। यहां गुरुओं को देव तुल्य माना गया है। 


संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। आयोजन में डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ भरत शेणेकर आदि ने भी विचार व्यक्त किए।  



संगोष्ठी में डॉ लता जोशी, मुंबई, मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ. सुरैया शेख, डॉ कामिनी बल्लाल, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉक्टर प्रवीण बाला, पटियाला, सुश्री आभा श्रीवास्तव, डॉ विनीता ओझा, डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ वी के मिश्रा, श्री सुंदर लाल जोशी, नागदा, बालासाहेब बछकर, मोहिनी कुटे, मीना खरात, समीर सैयद, डॉ श्वेता पंड्या, विजय शर्मा, मीनाक्षी चौहान आदि सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।


प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉक्टर रोहिणी डाबरे ने की।

कार्यक्रम का संचालन सविता नागरे, औरंगाबाद ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ अरुणा शुक्ला ने किया।




20200908

विद्यार्थियों में अंतर्दृष्टि विकसित करते हैं शिक्षक : प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका 

राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षक सम्मान से अलंकृत किए गए पाँच शिक्षक

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका विषय पर केंद्रित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि शिक्षाविद डॉ. कौशल किशोर पांडे, इंदौर थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉ शंभू पंवार, झुंझुनू एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु  चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने की। 







इस अवसर पर श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में अविस्मरणीय योगदान के लिए प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन, डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख, पुणे, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, श्री अविनाश शर्मा, जयपुर एवं श्रीमती शैल चंद्रा, रायपुर को डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षक सम्मान से अलंकृत किया गया। 






मुख्य अतिथि डॉ कौशल किशोर पांडे ने कहा कि भारतीय चिंतन में विद्या को विशेष महत्त्व मिला है। विद्या और अविद्या में से हमें विद्या को महत्व देना होगा, जो हमें अमरता प्रदान करती है। नई तकनीकी और विज्ञान के बढ़ते प्रभुत्व के बीच शिक्षक और माता-पिता हमें उच्च चिंतन से जोड़ते हैं। 




कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि शिक्षक संस्कारों की पाठशाला में मानव चरित्र का निर्माण करते हैं। वे मात्र पाठ्यक्रम ही नहीं पढ़ाते हैं, मानव व्यक्तित्व को नया आकार देते हैं। 



संगोष्ठी के मुख्य वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन ने कहा कि भारतीय चिंतन में ज्ञान से प्रज्ञा और सत्य की खोज को सर्वोपरि महत्त्व मिला है। श्रेष्ठ शिक्षक वह है, जो विद्यार्थियों में अंतर्दृष्टि विकसित करता है। इसीलिए भारतीय संस्कृति और काव्य परम्परा में शिक्षक की अपार महिमा का वर्णन हुआ है। शिक्षक अनगढ़ शिष्य के व्यक्तित्व का रूपांतरण कर श्रेष्ठ नागरिक और राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 


विशिष्ट अतिथि डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि शिक्षक समाज एवं राष्ट्र के निर्माता हैं। वे प्रामाणिकता और तल्लीनता के साथ राष्ट्र की सेवा करते हैं। शिक्षक का आचरण विद्यार्थियों को संस्कार देता है। पश्चिम की सभ्यता मानव को मनुष्य बनाने के बजाय रोजगार की ओर उन्मुख कर रही है। भारत को विश्वगुरु बनाने में शिक्षकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। 


वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि आदर्श शिक्षक वह है जो विद्यार्थियों को सीमित दायरे से मुक्त करता है। 


संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। आयोजन में डॉ शैल चंद्रा, रायपुर, डॉ सुवर्णा जाधव, मुंबई आदि ने भी विचार व्यक्त किए।  


संगोष्ठी में डॉ लता जोशी, मुंबई, मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, डॉ रोहिणी डाबर, अहमदनगर, डॉ भरत शेणकर, डॉक्टर प्रवीण बाला, पटियाला, सुश्री आभा श्रीवास्तव, डॉ विनीता ओझा, डॉक्टर शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ वी के मिश्रा आदि सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।






प्रारंभ में सरस्वती वंदना जय भारती चंद्राकर, रायपुर ने की। कार्यक्रम का संचालन रागिनी शर्मा, पटियाला, पंजाब ने किया। आभार प्रदर्शन श्री अनिल ओझा ने किया।









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