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20201008

देवनागरी लिपि और महात्मा गांधी : वैश्विक सन्दर्भ में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

देवनागरी लिपि के माध्यम से अंकित की जा सकती हैं देश - विदेश की सभी भाषाएँ

वैश्विक संदर्भ में देवनागरी लिपि और महात्मा गांधी पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी

नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली और राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा वैश्विक संदर्भ में देवनागरी लिपि और महात्मा गांधी  पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार और अनुवादक श्री शरद चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली, डॉ किरण हजारिका, डिब्रूगढ़, असम, डॉक्टर जोराम आनिया ताना, ईटानगर एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। अध्यक्षता डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। यह कार्यक्रम महात्मा गांधी के 151 वें जयंती वर्ष की शुरुआत के अवसर पर आयोजित किया गया।






मुख्य अतिथि श्री शरद चंद्र शुक्ल शरद आलोक के कहा कि देवनागरी लिपि में  विश्व लिपि के रूप में  प्रगति की  अपार संभावनाएं हैं। नॉर्वे से प्रकाशित द्विभाषी पत्रिकाओं में देवनागरी अंकों का प्रयोग किया जाता है। स्कैंडिनेवियन देशों में हिंदी शिक्षण और जनसंचार माध्यमों में देवनागरी लिपि का प्रयोग निरंतर जारी है। 





मुख्य वक्ता प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि देवनागरी लिपि के माध्यम से देश विदेश की सभी भाषाओं को कतिपय परिवर्द्धन के साथ सटीक ढंग से अंकित किया जा सकता है। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में भारत का प्रथम शिक्षा आयोग गठित किया गया था, जिसमें जनजातीय भाषाओं के लिए रोमन के स्थान पर नागरी लिपि को अंगीकार करने का निर्णय लिया गया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से सामान्य लिपि के रूप में देवनागरी को अपनाने के प्रबल पक्षधर थे। उनकी दृष्टि में भिन्न-भिन्न लिपियों का होना कई तरह से बाधक है। वह ज्ञान की प्राप्ति में बड़ी बाधा है। उनका दृढ़ विश्वास था कि भारत की तमाम भाषाओं के लिए एक लिपि का होना फ़ायदेमंद है और वह लिपि देवनागरी ही हो सकती है। उनकी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए आचार्य विनोबा भावे ने नागरी लिपि के महत्व को स्वीकार किया। उन्होंने यह तक कहा कि हिंदुस्तान की एकता के लिए हिंदी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी देगी। इसलिए मैं चाहता हूँ कि सभी भाषाएं देवनागरी में भी लिखी जाएं।






विशिष्ट अतिथि डॉक्टर हरिसिंह पाल ने नागरी लिपि परिषद द्वारा किए जा रहे कार्यों का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि संपूर्ण देश के विविध क्षेत्रों में नागरी लिपि के प्रचार प्रसार के लिए कार्य किया जा रहा है। अनेक लोक बोलियों के लिए देवनागरी लिपि के प्रयोग की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य हुए हैं। नागरी लिपि का प्रयोग अधिकाधिक हो, इस दिशा में व्यापक संचेतना जाग्रत करने की आवश्यकता है।





कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर शहाबुउद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि विश्व पटल पर देवनागरी लिपि  तेजी से आगे बढ़ रही है। महात्मा गांधी जैसे तेजस्वी व्यक्तित्व देवनागरी लिपि के साथ हैं। आचार्य विनोबा भावे ने क्षेत्रीय भाषाओं की लिपि के साथ देवनागरी लिपि के भी प्रयोग पर बल दिया। वे बहुभाषी देश में सभी भाषाओं को जोड़ने के लिए देवनागरी लिपि को योग्य मानते थे। बच्चों को कोई भी भाषा सिखाएँ, परंतु देवनागरी लिपि के साथ उनका संबंध रहे। यह आवश्यक है। देवनागरी लिपि सर्वगुण संपन्न है और राष्ट्रीय एकता में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।




प्रारंभ में आयोजन की रूपरेखा एवं अतिथि परिचय राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने दिया।


इस अवसर पर डॉ किरण हजारिका, डिब्रूगढ़ और जोराम आनिया ताना, ईटानगर ने पूर्वोत्तर भारत में देवनागरी लिपि की संभावनाओं पर प्रकाश डाला।



सरस्वती वंदना डॉक्टर लता जोशी ने की। स्वागत भाषण श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने दिया।


कार्यक्रम में श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ वीरेंद्र मिश्रा, इंदौर, श्री गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, डॉ अशोक सिंह, डॉ आशीष नायक, डॉक्टर राजलक्ष्मी कृष्णन, डॉ अशोक गायकवाड, डॉ पूर्णिमा जेंडे, डॉ शैल चंद्रा, सुनीता चौहान, राम शर्मा, वंदना तिवारी, निरूपा उपाध्याय, डॉ उमा गगरानी, अनिल काले, बालासाहेब बचकर, डॉ दीपाश्री गडक, ललिता गोडके, मनीषा सिंह, डॉ रश्मि चौबे, डॉ भरत शेणकर, डॉक्टर मुक्ता कौशिक, डॉक्टर रोहिणी डाबरे, डॉक्टर लता जोशी, डॉक्टर तूलिका सेठ, डॉक्टर शिवा लोहारिया, डॉक्टर समीर सैयद आदि सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।


संचालन डॉ रागिनी शर्मा ने किया। अंत में आभार डॉ आशीष नायक, रायपुर ने प्रकट किया।


20201005

महात्मा गांधी : साहित्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में

मृत्यु के भय से परे निर्भय करते हैं गांधी जी 

महात्मा गांधी : शिक्षा, साहित्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी


प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा महात्मा गांधी : शिक्षा, साहित्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब गोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि वरिष्ठ गांधीवादी चिंतक एवं समाजसेवी श्री अनिल त्रिवेदी, इंदौर थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि गांधीवादी समाजसेवी श्री किशोर गुप्ता, इंदौर, प्रवासी साहित्यकार श्री शरद चंद्र शुक्ल शरद आलोक,  ओस्लो, नॉर्वे, श्री सुधीर निगम, मुंबई,  डॉ वी के मिश्रा, इंदौर एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। अध्यक्षता डॉ जी डी अग्रवाल ने की।




मुख्य अतिथि वरिष्ठ गांधीवादी समाजसेवी श्री अनिल त्रिवेदी, इंदौर ने कहा कि गांधी के जीवन में इतना सरल था कि उसमें प्राकृतिक आनन्द था। आज पूरा विश्व मृत्यु के भय से ग्रस्त है, गांधी जी मृत्यु के भय से परे निर्भय करते हैं। वे उपदेशक के रूप में जीवन मूल्यों को कहने के बजाय स्वयं के जीवन में उतारते रहे। आज शिक्षण संस्थाएँ समस्या में हैं, उनके सामने कई चुनौतियां हैं। गांधी जी स्वास्थ्य सुधार के बजाय आरोग्य की बात करते हैं। गांधी जी मनुष्य की मानसिक विकलांगता पर चोट पहुंचाते हैं। उन्होंने अहिंसा और सत्य के बल पर पूरे भारत को जगा दिया।




मुख्य वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि गांधीजी ने साहित्य एवं संस्कृति को लेकर महत्त्वपूर्ण चिंतन और प्रयोग किए हैं। उनका संस्कृति चिंतन  व्यापक  विश्व दृष्टि पर टिका हुआ है। उन्होंने अपने जीवन व्यवहार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की शाश्वत मूल्य दृष्टि को आधार बनाया था। संस्कृति और धर्म का कारगर प्रयोग उन्होंने अध्यात्म साधना से आगे जाकर राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक बदलाव के लिए किया। उन्होंने तुलसी को अपना आदर्श माना था। संत कबीर, मीराबाई, नरसी मेहता जैसे भक्तों की वाणी उन्हें पग पग पर आस्था और संबल देती रही। वे गहरी भारतीय आस्था और विश्वास के साथ जिए, किंतु उन्होंने सभी धर्मों और मान्यताओं के प्रति सम्मान और प्रशंसा का भाव जगाया। देश विदेश के साहित्य पर उनके जीवन, कार्य और संदेशों का व्यापक प्रभाव पड़ा है।



विशिष्ट अतिथि श्री संजीव निगम, मुंबई मैं कहा कि गांधी जी का चिंतन समग्रता लिए हुए है। उन्होंने स्वराज की संकल्पना दी, जिसमें शिक्षा, भाषा, अर्थतंत्र आदि सभी बातों पर बल दिया। वे अन्याय का मुकाबला करने के लिए अहिंसा पर बल देते हैं। वे  अपने जीवनकाल में शिक्षा पद्धति में बदलाव लाना चाहते थे। उन्होंने सदियों के लिए पाथेय छोड़ दिया है।





श्री किशोर गुप्ता, इंदौर ने कहा कि गांधी जी अप्रतिम महामानव थे। मनुष्यता से जुड़े सभी पक्षों को उन्होंने छुआ। उनका लिखा और बोला सब संतुलित होता था। भारतीय संस्कृति को उन्होंने निरन्तर जीया। वे बुनियादी शिक्षा को महत्त्व देते हैं, जो जीवन कार्यों से जुड़ी शिक्षा है। वे हृदय के विकास पर बल देते हैं। मनुष्यता जब भी संकट में आएगी, गांधी जी के विचार काम आएँगे।





प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार और अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि नॉर्वे को गांधी विचार ने गहरे प्रभावित किया है। भारत में सबको समान अवसर मिले, सबको सुरक्षा मिले, यह जरूरी है। नॉर्वे में गांधी जी को शिक्षा में स्थान मिला है। नॉर्वेजियन दार्शनिक अर्ने नेस ने गांधी जी को लेकर महत्त्वपूर्ण किताब लिखी है।


जी डी अग्रवाल, इंदौर ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि गांधी के आदर्शों को प्रसारित करने की जरूरत है। उन्होंने प्रसिद्ध कविता मां खादी की चादर दे दे मैं गांधी बन जाऊँ सुनाई।


प्रारंभ में आयोजन की रूपरेखा एवं अतिथि परिचय राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने दिया।


सरस्वती वंदना डॉक्टर लता जोशी ने की। स्वागत भाषण कार्यकारी अध्यक्ष सुवर्णा जाधव, मुंबई ने दिया


कार्यक्रम में डॉ वीरेंद्र मिश्रा, इंदौर, डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉ रश्मि चौबे, डॉ भरत शेणकर, डॉक्टर मुक्ता कौशिक, डॉक्टर रोहिणी डाबरे, डॉक्टर लता जोशी, डॉक्टर तूलिका सेठ, डॉक्टर शिवा लोहारिया, डॉक्टर समीर सैयद आदि सहित अनेक प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।


संचालन अनुराधा अच्छवान ने किया। अंत में आभार श्री अनिल ओझा ने प्रकट किया।


20201001

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : वैचारिक प्रवाह से जोड़ती सार्थक पुस्तक | Mahatma Gandhi : Vichar aur Navachar - Prof. Shailendra Kumar Sharma

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : पुस्तक समीक्षा 

 - अरविंद श्रीधर

भारत के दो चरित्र ऐसे हैं जिनके बारे में  सबसे अधिक लिखा - पढ़ा गया और जिनकी चर्चा उनके स्वयं के काल से लगाकर अब तक निरंतर जारी है। समाज एवं संपूर्ण मानव सृष्टि के लिए उनका अवदान है ही ऐसा कि भले ही आप उनसे असहमत हों, आप उन्हें उपेक्षित नहीं कर सकते। एक है भगवान श्रीकृष्ण और दूसरे हैं महात्मा गांधी.  एक अवतारी पुरुष तो दूसरे ने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व की ऐसी छाप छोड़ी  कि अपने जीवन में ही  किवदंती बन गए। यह कोई छोटी मोटी बात नहीं है कि दुनिया के  150 से अधिक देशों में  महात्मा गांधी के नाम पर  कुछ ना कुछ स्मारक हैं  और इतने ही देशों ने  उनके ऊपर  350 से अधिक  डाक टिकट जारी किए हैं।

  

इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि श्रीमद्भगवद्गीता  महात्मा गांधी को अत्यंत प्रिय रही है। निष्काम कर्म  और अनासक्ति योग का पाठ पढ़ाने वाली गीता किसी भी कर्मयोगी के लिए  प्रेरणा पुंज हो सकती है। उनके विशिष्ट अवदान और चिंतन पर केंद्रित पुस्तक महात्मा गांधी : विचार और नवाचार हाल ही में प्रकाशित हुई है, जिसका सम्पादन लेखक और आलोचक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने किया है।




महात्मा गांधी के 150 वें जन्म वर्ष पर विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने वर्ष पर्यंत कार्यक्रम शृंखला आयोजित कर उल्लेखनीय कार्य किया है। दरअसल युवा पीढ़ी को महात्मा गांधी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व  से परिचित कराना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है और विश्वविद्यालय इसके लिए सबसे उपयुक्त स्थल हैं। व्याख्यान  और संगोष्ठियों के आयोजन से सीमित लोगों तक विचार पहुंच पाते हैं, जबकि सरल - सुबोध ग्रंथ निरंतर विचार प्रवाह का काम करते रहते हैं।


कार्यक्रम शृंखला के अंतर्गत विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा के संपादन में महात्मा गांधी : विचार और नवाचार ग्रंथ का प्रकाशन  स्वागत योग्य  है।  इसके लिए मैं परम विचारवान, विद्यानुरागी,  संस्कृति एवं हिंदी साहित्य  के अधिकारी प्रवक्ता प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा को विशेष साधुवाद देना चाहूंगा क्योंकि यह उन्हीं की पहल का सुफल है।


ग्रंथ में सम्मिलित आलेख महात्मा गांधी के जीवन, कार्यों और चिन्तन के विविध पक्षों को उभारने में पूर्णत: सक्षम हैं। पूरी संभावना है कि ग्रंथ का पारायण करने के बाद, युवा महात्मा गांधी के बारे में विस्तार से जानने के प्रति उत्सुक हों,  क्योंकि ग्रंथ उत्सुकता जगाने में भी पूर्णत: सक्षम है।


कुलपति प्रोफ़ेसर बालकृष्ण शर्मा ने महात्मा गांधी के प्रिय भजन 'वैष्णव जन तो तैने कहिए' की  व्याख्या के माध्यम से पूरे गांधी दर्शन को प्रकाशित कर दिया है।


डाॅ  मुक्ता का आलेख गांधीजी के मुख्य सरोकार, जीवन सिंह ठाकुर का आलेख गांधी दर्शन - भारतीय आत्मा का दर्शन, डॉ राकेश पांडेय का आलेख प्रवासी साहित्य, समाज और गांधी, डॉ मंजू तिवारी का आलेख लोकगीतों का अकेला लोकोत्तर नायक गांधी, डॉ पूरन सहगल का लेख अनंत लोक के महानायक महात्मा गांधी, डॉ विनय कुमार पाठक का आलेख छत्तीसगढ़ी लोक और शिष्ट साहित्य में गांधी, डॉ बहादुर सिंह परमार का आलेख बुंदेली लोक साहित्य और महात्मा गांधी, प्रोफेसर सत्यकेतु सांकृत का आलेख महात्मा गांधी और छात्र राजनीति, डॉ पुष्पेंद्र दुबे का आलेख खादी की कहानी और श्रीमती अर्चना त्रिवेदी का आलेख  महात्मा गांधी और सत्याग्रह विचार भी गांधी  के जिज्ञासुओं के लिए उपयोगी है।


गांधी चिंतन की जमीन और साहित्य पर गांधी के प्रभाव पर प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा का आलेख उपलब्धि बना है। गांधी चिंतन के साथ साहित्य और संस्कृति के रिश्तों पर केंद्रित जो सामग्री ग्रंथ में समाहित की गई है, वह तो गागर में सागर की तरह है। इतने संक्षेप में इतनी उपयोगी और प्रामाणिक जानकारी निश्चित रूप से विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए उपयोगी साबित होगी।


यह निर्विवाद सत्य है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए गैर हिंदी भाषी महापुरुषों का बहुत बड़ा योगदान रहा है और महात्मा गांधी उन में अग्रगण्य है. इस पर केन्द्रित डॉ दिग्विजय शर्मा, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ जवाहर कर्नावट, डाॅ प्रतिष्ठा शर्मा के आलेख  भी उपयोगी बन पड़े है। डॉ श्वेता पंड्या ने अपने आलेख में सियारामशरण गुप्त के काव्य पर गांधीजी के प्रभाव का विवेचन किया है।


ऋषिराज उपाध्याय ने एक सफर साधारण से महात्मा के माध्यम से डाक टिकटों और मुद्राओं में गांधी के अंकन पर प्रकाश डाला है। शिशिर उपाध्याय की रचना गांधी बाबा पाछा आओ, रफीक नागौरी की रचना बापू एवं डॉ देवेंद्र जोशी की रचना याद आएंगे गांधी बीसवीं सदी के महानायक का मार्मिकता से स्मरण कराती हैं।

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार पुस्तक का प्रकाशन और भी उपयोगी तथा सार्थक साबित होगा, यदि यह अधिक से अधिक लोगों तक  पहुंचे, और इस पर केंद्रित चर्चाएं भी आयोजित की जाएं। मुझे उम्मीद है कि विक्रम विश्वविद्यालय इस दिशा में अवश्य पहल करेगा।


पुस्तक का नाम : गांधी विचार और नवाचार 

संपादक :  प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा 

प्रकाशक : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

प्रकाशन वर्ष : 2020   


अरविन्द श्रीधर 

arvindshridhar@gmail.com

20200915

लोक एवं जनजातीय साहित्य और संस्कृति : सार्वभौमिक मानव मूल्य - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

लोक एवं जनजातीय संस्कृति का संरक्षण इस धरती के हित में है - प्रो. शर्मा

लोक एवं जनजातीय साहित्य और संस्कृति : सार्वभौमिक मानव मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी

संजा लोकोत्सव 2020 : अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ दुनिया के कई देशों की लोक संस्कृति पर विमर्श

देश की प्रतिष्ठित संस्था प्रतिकल्पा सांस्कृतिक संस्था, उज्जैन द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित संजा लोकोत्सव के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन रविवार को किया गया। यह संगोष्ठी लोक एवं जनजातीय साहित्य और संस्कृति : सार्वभौमिक जीवन मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में अभिकेंद्रित थी। संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। संगोष्ठी की अध्यक्षता चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं आईसीसीआर हिंदी चेयर, सुसु, चीन के पूर्व आचार्य डॉ नवीनचंद्र लोहनी ने की। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक , हिंदी विभागाध्यक्ष एवं लोक संस्कृतिविद् प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा तथा विशिष्ट अतिथि महात्मा गांधी संस्थान, मॉरीशस की वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ अलका धनपत एवं जनजातीय संस्कृति की अध्येता डॉ हीरा मीणा, नई दिल्ली थीं। संस्था की निदेशक डॉ पल्लवी किशन ने संजा लोकोत्सव एवं संगोष्ठी की संकल्पना और रूपरेखा पर प्रकाश डाला।








मुख्य अतिथि प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने संबोधित करते हुए कहा कि नॉर्वे में जनजातीय समुदाय के लोग भी बड़ी संख्या में रहते हैं। उत्तरी नॉर्वे में रहने वाले सामी जाति के लोगों की विशिष्ट भाषा है। सामी लोग एशियाई  मूल के हैं। नॉर्वे और रूस के उत्तरी क्षेत्र के जनजातीय समुदाय के लोगों ने देशों की राजनीतिक दूरी के बावजूद सरहदों के आर पार मानवीय रिश्ता बनाया हुआ है। उनका गहरा रिश्ता प्रकृति और जीव - जंतुओं के साथ बना हुआ है। सामी लोक संगीत आज भी जीवित है।









कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. नवीन चंद्र लोहनी ने कहा कि उत्तराखंड एवं कौरवी क्षेत्र में अनेक लोक और जनजातीय समुदायों के लोग रहते हैं, जिनकी विशिष्ट परम्पराएँ आज भी प्रासंगिक हैं। चीन में हक्का सहित कई जनजातीय समुदायों की संस्कृति के संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं। वहाँ की जनजातियों के प्राकृतिक वास स्थान को यूनेस्को ने विश्व की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में महत्त्व दिया है। चीन के दर्शन के अनुरूप लकड़ी के ये क्लस्टर बनाए गए हैं। चीन में अनेक प्रकार की चाय मिलती है, जिन्हें जनजातीय समुदाय के लोगों ने संरक्षित किया है। वहाँ की जनजातियां पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती हैं।








मुख्य वक्ता लोक संस्कृतिविद् प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि लोक एवं जनजातीय संस्कृति का संरक्षण और अंगीकार इस धरती के हित में है। मानवीय लोक संस्कृतियों में वैविध्य है, लेकिन वह अंतर बाहरी है। सभी को एक समान जीवन मूल्य आधार देते हैं। सत्य, शांति, अहिंसा, प्रेम, सह अस्तित्व और पर्यावरण संरक्षण जैसे सार्वभौमिक मानव मूल्यों और मानवीय संवेदनाओं का संदेश लोक और जनजातीय संस्कृतियों से मिलता है। संजा जैसे लोक पर्व हमारे व्यावहारिक और ब्रह्मांडीय जीवन को जोड़ते हैं। यह लोक पर्व मनुष्य और प्रकृति के सह अस्तित्व और मानवीय रिश्तों की ऊष्मा के साथ इस धरती के स्त्री पक्ष के सम्मान का सन्देश देता है। हमारे प्राकृतिक संसाधन छीजते जा रहे हैं। परस्पर प्रेम, सद्भाव और समरसता का संसार संकट में है। ऐसे में लोक और जनजातीय संस्कृति के मूल्य, जीवन दृष्टि, संवेदना और जीवन शैली इन संकटों का मुकाबला करने की सामर्थ्य देते हैं।







महात्मा गांधी संस्थान, मॉरीशस की वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ अलका धनपत ने कहा कि मॉरीशस के लोग अपनी संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए चिंतित हैं। सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण के लिए मॉरीशस वासी निरन्तर प्रयासरत हैं। गौवंश के प्रति गहरी निष्ठा मॉरीशस वासियों में है। मॉरीशस के लोक समुदाय सिद्ध करते हैं कि श्रेष्ठ संस्कार जीवन भर बने रहते हैं। उनकी जड़ें बहुत गहरी हैं। आज भी वहाँ पदयात्रा करते हुए कावड़ यात्रा निकाली जाती है। वर्षा की कामना के लिए भोजपुरी लोकगीत गाए जाते हैं। विवाह के मौके पर हरदी गीत गाए जाते हैं। मॉरीशस के लोगों में लोक संस्कृति अंदर तक रची - बसी है।




जनजातीय संस्कृति की अध्यक्षता डॉ. हीरा मीणा, नई दिल्ली ने कहा कि जनजातीय समुदायों ने सदियों से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया हुआ है। वे मानते हैं कि पूर्वज प्रकृति की रक्षा करते हुए वह धरोहर हमें देकर जाते हैं। इसलिए पुरखों के प्रति श्रद्धा का भाव जनजातीय समुदायों की विशेषता है। वे पुरखों को याद करते हुए पक्षियों और जीवों को भी बुलाते हैं।


संस्था के अध्यक्ष श्री गुलाब सिंह यादव, सचिव कुमार किशन एवं निदेशक डॉ पल्लवी किशन ने वेब पटल पर अतिथियों का स्वागत किया।


संगोष्ठी का संचालन डॉ श्वेता पंड्या ने किया एवं आभार प्रदर्शन संस्था के अध्यक्ष श्री गुलाबसिंह यादव ने किया।

अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का जीवंत प्रसारण प्रतिकल्पा सांस्कृतिक संस्था, उज्जैन के फेसबुक पेज पर किया गया, जिसमें देश - विदेश के सैकड़ों लोक संस्कृतिप्रेमियों, विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और साहित्यकारों ने सहभागिता की। 


20200912

देवनागरी विश्वनागरी के रूप में दुनिया को जोड़ सकती है - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

देवनागरी लिपि को लेकर आत्म गौरव का भाव जगाना होगा – प्रो. शर्मा 

आचार्य विनोबा भावे और सार्वदेशीय लिपि के रूप में देवनागरी पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न


प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा आचार्य विनोबा भावे और सार्वदेशीय लिपि के रूप में देवनागरी पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की मुख्य अतिथि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने की। यह संगोष्ठी आचार्य विनोबा भावे के 125 वें जयंती वर्ष के अवसर पर आयोजित की गई। 






मुख्य अतिथि डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य विनोबा भावे ने देवनागरी लिपि के प्रचार और संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी प्रेरणा से स्थापित नागरी लिपि परिषद देश की विभिन्न भाषाओं और बोलियों को लिपि के माध्यम से जोडने का कार्य कर रही है। परिषद द्वारा कोकबोरोक, कश्मीरी आदि सहित अनेक भाषा और  बोलियों को नागरी लिपि के माध्यम से लेखन के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में देवनागरी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है।




प्रमुख वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन ने कहा कि देवनागरी विश्वनागरी के रूप में दुनिया को जोड़ सकती है। इस लिपि में विश्व लिपि बनने की अपार संभावनाएं हैं। देवनागरी लिपि ध्वनि विज्ञान, लिपि विज्ञान, यंत्र विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी इन सभी दृष्टियों से उपयुक्त लिपि है। आचार्य विनोबा भावे  की संकल्पना थी कि देवनागरी लिपि के माध्यम से उत्तर एवं दक्षिण भारत की भाषाएं जुड़ें। लिपिविहीन लोक और जनजातीय भाषाओं के लिए देवनागरी का प्रयोग करने से राष्ट्रीय एवं भावात्मक एकता में अभिवृद्धि होगी। दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशियाई भाषाओं के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग सहज ही किया जा सकता है। साथ ही यूरोप एवं अन्य महाद्वीपों की भाषाओं को सीखने में देवनागरी सहायक सिद्ध हो सकती है। गांधी जी ने विभिन्न पुस्तकों को अपनी मूल भाषा के लिए प्रचलित लिपि के साथ देवनागरी लिपि में प्रकाशित करने का संदेश दिया था। हमें देवनागरी लिपि को लेकर आत्म गौरव का भाव जगाना होगा। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दौर में देवनागरी लिपि का सामर्थ्य सिद्ध हो गया है।






विशिष्ट अतिथि डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि विनोबा भावे महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे। उन्होंने भूदान आंदोलन के माध्यम से देश में परस्पर सद्भाव और समानता का संदेश दिया था। लिपि के संबंध में उनका संदेश है कि भारत की विभिन्न भाषाएं अपनी - अपनी लिपियों के साथ देवनागरी लिपि के माध्यम से भी लिखी जाएं। वे ही वादी नहीं, भी वादी थे। उन्होंने जय जगत का नारा बुलंद किया था, जो आज भी प्रासंगिक है। 




प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि नार्वे से प्रकाशित दो पत्रिकाएं नॉर्वेजियन और हिंदी दोनों भाषाओं में प्रकाशित की जाती हैं। इनमें नॉर्वेजियन भाषा की रचनाओं को देवनागरी लिपि के माध्यम से भी प्रकाशित किया जाएगा। देवनागरी लिपि के माध्यम से नॉर्वेजियन भाषा की वार्तालाप पुस्तिका एवं स्वयं शिक्षक का प्रकाशन जल्द किया जाएगा। भारत के विभिन्न भागों में फैले लोक और जनजातीय समुदायों की बोलियों को सुरक्षित रखने के लिए देवनागरी का प्रयोग किया जाना चाहिए। 




संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं संस्था की कार्ययोजना महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। स्वागत भाषण डॉ रश्मि चौबे ने दिया। 



कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए  साहित्यकार श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुम्बई ने कहा कि देवनागरी लिपि के माध्यम से विभिन्न भाषाओं को सीखना आसान होता है। भारतीय भाषाओं के लिए रोमन लिपि के प्रयोग की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए व्यापक जागरूकता और स्वाभिमान जगाने की आवश्यकता है।  

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कार्यक्रम में साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी इंदौर ने डॉ प्रभु चौधरी की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक देवनागरी लिपि : तब से अब तक की समीक्षा प्रस्तुत की। 




संगोष्ठी में डॉ लता जोशी, मुंबई, मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ भरत शेणकर, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉ वी के मिश्रा, रामेश्वर शर्मा, श्री अनिल ओझा, इंदौर, गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, दीपिका सुतोदिया, गुवाहाटी, प्रभा बैरागी, श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली, शम्भू पंवार, झुंझुनूं,  रागिनी शर्मा, इंदौर, डॉ शैल चंद्रा, डॉ ममता झा, दीपांकर तालुकदार, अशोक जाधव, सपन दहातोंडे, जी डी अग्रवाल, विनोद विश्वकर्मा, गुरुमूर्ति, अरुणा शुक्ला, ज्योति सिंह, श्वेता गुप्ता, दीपंकर दत्ता, सुरैया शेख, आलोक कुमार सिंह, संदीप कुमार, प्रियंका घिल्डियाल, जब्बार शेख, नयन दास, श्री सुंदरलाल जोशी, नागदा, राम शर्मा, मनावर, मनीषा सिंह, अनुराधा अच्छावन, समीर सैयद, डॉ श्वेता पंड्या, डॉ कुमार गौरव, विजय शर्मा, पंढरीनाथ देवले, विमला रावतले आदि सहित देश के विभिन्न भागों के शिक्षाविद्, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।











प्रारंभ में सरस्वती वंदना ज्योति तिवारी ने की।

कार्यक्रम का संचालन सविता नागरे ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ मनीषा शर्मा, अमरकंटक ने किया।


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