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20201005

महात्मा गांधी : साहित्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में

मृत्यु के भय से परे निर्भय करते हैं गांधी जी 

महात्मा गांधी : शिक्षा, साहित्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी


प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा महात्मा गांधी : शिक्षा, साहित्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब गोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि वरिष्ठ गांधीवादी चिंतक एवं समाजसेवी श्री अनिल त्रिवेदी, इंदौर थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि गांधीवादी समाजसेवी श्री किशोर गुप्ता, इंदौर, प्रवासी साहित्यकार श्री शरद चंद्र शुक्ल शरद आलोक,  ओस्लो, नॉर्वे, श्री सुधीर निगम, मुंबई,  डॉ वी के मिश्रा, इंदौर एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। अध्यक्षता डॉ जी डी अग्रवाल ने की।




मुख्य अतिथि वरिष्ठ गांधीवादी समाजसेवी श्री अनिल त्रिवेदी, इंदौर ने कहा कि गांधी के जीवन में इतना सरल था कि उसमें प्राकृतिक आनन्द था। आज पूरा विश्व मृत्यु के भय से ग्रस्त है, गांधी जी मृत्यु के भय से परे निर्भय करते हैं। वे उपदेशक के रूप में जीवन मूल्यों को कहने के बजाय स्वयं के जीवन में उतारते रहे। आज शिक्षण संस्थाएँ समस्या में हैं, उनके सामने कई चुनौतियां हैं। गांधी जी स्वास्थ्य सुधार के बजाय आरोग्य की बात करते हैं। गांधी जी मनुष्य की मानसिक विकलांगता पर चोट पहुंचाते हैं। उन्होंने अहिंसा और सत्य के बल पर पूरे भारत को जगा दिया।




मुख्य वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि गांधीजी ने साहित्य एवं संस्कृति को लेकर महत्त्वपूर्ण चिंतन और प्रयोग किए हैं। उनका संस्कृति चिंतन  व्यापक  विश्व दृष्टि पर टिका हुआ है। उन्होंने अपने जीवन व्यवहार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की शाश्वत मूल्य दृष्टि को आधार बनाया था। संस्कृति और धर्म का कारगर प्रयोग उन्होंने अध्यात्म साधना से आगे जाकर राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक बदलाव के लिए किया। उन्होंने तुलसी को अपना आदर्श माना था। संत कबीर, मीराबाई, नरसी मेहता जैसे भक्तों की वाणी उन्हें पग पग पर आस्था और संबल देती रही। वे गहरी भारतीय आस्था और विश्वास के साथ जिए, किंतु उन्होंने सभी धर्मों और मान्यताओं के प्रति सम्मान और प्रशंसा का भाव जगाया। देश विदेश के साहित्य पर उनके जीवन, कार्य और संदेशों का व्यापक प्रभाव पड़ा है।



विशिष्ट अतिथि श्री संजीव निगम, मुंबई मैं कहा कि गांधी जी का चिंतन समग्रता लिए हुए है। उन्होंने स्वराज की संकल्पना दी, जिसमें शिक्षा, भाषा, अर्थतंत्र आदि सभी बातों पर बल दिया। वे अन्याय का मुकाबला करने के लिए अहिंसा पर बल देते हैं। वे  अपने जीवनकाल में शिक्षा पद्धति में बदलाव लाना चाहते थे। उन्होंने सदियों के लिए पाथेय छोड़ दिया है।





श्री किशोर गुप्ता, इंदौर ने कहा कि गांधी जी अप्रतिम महामानव थे। मनुष्यता से जुड़े सभी पक्षों को उन्होंने छुआ। उनका लिखा और बोला सब संतुलित होता था। भारतीय संस्कृति को उन्होंने निरन्तर जीया। वे बुनियादी शिक्षा को महत्त्व देते हैं, जो जीवन कार्यों से जुड़ी शिक्षा है। वे हृदय के विकास पर बल देते हैं। मनुष्यता जब भी संकट में आएगी, गांधी जी के विचार काम आएँगे।





प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार और अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि नॉर्वे को गांधी विचार ने गहरे प्रभावित किया है। भारत में सबको समान अवसर मिले, सबको सुरक्षा मिले, यह जरूरी है। नॉर्वे में गांधी जी को शिक्षा में स्थान मिला है। नॉर्वेजियन दार्शनिक अर्ने नेस ने गांधी जी को लेकर महत्त्वपूर्ण किताब लिखी है।


जी डी अग्रवाल, इंदौर ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि गांधी के आदर्शों को प्रसारित करने की जरूरत है। उन्होंने प्रसिद्ध कविता मां खादी की चादर दे दे मैं गांधी बन जाऊँ सुनाई।


प्रारंभ में आयोजन की रूपरेखा एवं अतिथि परिचय राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने दिया।


सरस्वती वंदना डॉक्टर लता जोशी ने की। स्वागत भाषण कार्यकारी अध्यक्ष सुवर्णा जाधव, मुंबई ने दिया


कार्यक्रम में डॉ वीरेंद्र मिश्रा, इंदौर, डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉ रश्मि चौबे, डॉ भरत शेणकर, डॉक्टर मुक्ता कौशिक, डॉक्टर रोहिणी डाबरे, डॉक्टर लता जोशी, डॉक्टर तूलिका सेठ, डॉक्टर शिवा लोहारिया, डॉक्टर समीर सैयद आदि सहित अनेक प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।


संचालन अनुराधा अच्छवान ने किया। अंत में आभार श्री अनिल ओझा ने प्रकट किया।


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