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20221027

Photography is an art that connects you with the divine | फोटोग्राफी एक ऐसी कला जो आपको परमात्मा से जोड़ती है

फोटोग्राफी एक ऐसी कला जो आपको परमात्मा से जोड़ती है   

फोटोग्राफी : कला से पत्रकारिता तक पर केंद्रित कार्यशाला 

विक्रम विश्वविद्यालय की पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला, हिन्दी अध्ययनशाला और गांधी अध्ययन केन्द्र द्वारा एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। फोटोग्राफी : कला से पत्रकारिता विषय पर आधारित कार्यशाला में अंतरराष्ट्रीय फोटोग्राफर श्री कैलाश सोनी, देवास ने युवाओं को फोटोग्राफी के महत्व और फोटोग्राफ में आवश्यक बातों को प्रायोगिक तरीके से समझाया। कार्यशाला में मुख्य अतिथि कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय, अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार जीवनसिंह ठाकुर, देवास एवं कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, प्रो गीता नायक ने फोटोग्राफी कला के विविध आयामों पर प्रकाश डाला। 




अंतरराष्ट्रीय फोटोग्राफर कैलाश सोनी, देवास ने प्रोफेशनल डीएसएलआर और मोबाइल कैमरे दोनों के प्रयोग के माध्यम से विद्यार्थियों को बताया कि फोटोग्राफी करते हुए किन बातों का ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि फोटोग्राफी एक ऐसी कला है जो आपको परमात्मा से जोड़ती है। इस विधा के लिए समय की पाबंदी और फिट रहना बहुत जरूरी है। फोटोग्राफी के क्षेत्र में एक-एक पल जरूरी होता है। उन्होंने अपने जीवन के कई अनुभव साझा करते हुए बताया कि वह 15-16 साल के थे, तब उन्होंने पहला फोटोग्राफ लिया था। जैसे सब सोचते हैं कि हमारी भाषाशैली अच्छी है तो हमें सब आ गया, यह गलत भाव है इससे बचना चाहिए।  एक फोटोग्राफर के मन में हमेशा नया खोजने और सीखने का भाव होना जरूरी है। कुछ भी अच्छा लगे तो उसे कैमरे में जरूर उतार लेना चाहिए। जिस क्षण में फोटो उतारते हैं, वह क्षण दोबारा नहीं आता। विद्यार्थियों के सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि अभ्यास से ही सीखा जाता है। आपकी निगाह 100 प्रतिशत होनी चाहिए। वर्तमान परिस्थिति में फोटोग्राफी का अस्सी प्रतिशत महत्व बढ़ गया है। सभी के हाथ में कैमरा होने से दुरुपयोग भी बढ़ा है। इससे बचने के लिए कई सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं, इनका उपयोग कर गलत फोटोग्राफ से बचा जा सकता है और सही-गलत का पता लगाया जा सकता है। फोटोग्राफी का भविष्य अच्छा है। जिस तरह वर्तमान समय में शादियों में फोटोग्राफ तैयार की जाती है उसने पूरा परिदृश्य ही बदल दिया है। अब एक फोटोग्राफ को आसानी से विश्व स्तर तक ले जाया जा सकता है। इस कार्यशाला के दौरान उन्होने कई फोटो लेकर विद्यार्थियों को रचनात्मक और साधारण फोटोशूट का अंतर भी समझाया।  




कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि फोटोग्राफी विज्ञान युग की देन है, लेकिन इसने बहुत कम समय में एक श्रेष्ठ सृजन माध्यम का रूप ले लिया है। वर्तमान दौर में विद्यार्थी फोटोग्राफी के क्षेत्र में गहन अभ्यास के साथ कौशल विकसित करते हुए व्यावसायिक सफलता प्राप्त कर सकते हैं।









पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला और हिन्दी अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष शैलेन्द्रकुमार शर्मा ने मध्यप्रदेश के कुछ प्रसिद्ध फोटोग्राफरों की कला के सम्बंध  में बताया, जिन्होंने अत्यंत सीमित संसाधनों के बाद भी अपने दौर में इस कला को उच्चतम स्तर तक पहुँचाया। उन्होंने कहा कि फोटोग्राफी ने हमारी संस्कृति और परम्परागत कला को जीवित  रखा है। इस क्षेत्र में उपलब्ध नवीन तकनीकों और उपकरणों का ज्ञान प्राप्त कर अपनी कला को बेहतर बनाया जा सकता है। पत्रकारिता में इस विधा का अब सूचनात्मकता से आगे जाकर सृजनात्मक प्रयोग हो रहा है। इस विधा के माध्यम से हम प्राचीन दौर, परम्पराओं और यादों से रूबरू हो सकते हैं। 


 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार जीवनसिंह ठाकुर ने कहा कि फोटोग्राफ की शुरूआत लेखन से होती है। फोटोग्राफी एक ऐसी कला है जो संगीत लिखने के बराबर है। संगीत में जैसे एक-एक शब्द का ध्यान रखना होता है वैसे ही फोटोग्राफ में दिखाई दे रहे हर बिन्दु का ध्यान रखना जरूरी है।

कार्यक्रम में वरिष्ठ फोटोग्राफर श्री कैलाश सोनी देवास को साहित्य अर्पित करते हुए उनका सम्मान किया गया।

प्रश्नोत्तरी सत्र का संयोजन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा एवं डॉ अजय शर्मा  ने किया। मुख्य वक्ता के रूप में अंतरराष्ट्रीय फोटोग्राफर कैलाश सोनी मौजूद रहे। पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला के शिक्षक डॉ सुशील शर्मा, डॉ अजय शर्मा आदि विशेष रूप से कार्यशाला में उपस्थित रहे। 

कार्यशाला का संचालन डॉ जगदीशचंद शर्मा ने किया। आभार श्रीमती हीना तिवारी ने माना।






20221026

All India Kalidas Festival 2022 : National Seminar |अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : राष्ट्रीय संगोष्ठी

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 4 से 10 नवम्बर 2022 : उज्जैन 

सारस्वत आयोजन : कालिदास साहित्य के विविध पक्षों पर राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के चार सत्र

अखिल भारतीय अंतरविश्वविद्यालयीन संस्कृत वादविवाद के साथ राज्य स्तरीय अन्तरमहाविद्यालयीन कालिदास काव्य पाठ और हिंदी वादविवाद प्रतियोगिताएँ 



समस्त सारस्वत एवं सांस्कृतिक आयोजनों में आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थनीय है। 

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : आमंत्रण पत्र 

https://drive.google.com/file/d/1Ahh-k1yQ6XrBdobWiISB9cFFEdqbEsGV/view?usp=drivesdk


मध्यप्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन का संयुक्त आयोजन  अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 दिनांक 4 से 10 नवम्बर तक सम्पन्न होगा। समारोह के सारस्वत आयोजनों के अंतर्गत विक्रम विश्वविद्यालय की कालिदास समिति द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी के चार सत्रों के साथ विद्यार्थियों की स्पर्धाओं के अंतर्गत अंतरविश्वविद्यालयीन संस्कृत वाद विवाद, राज्य स्तर की अंतर महाविद्यालयीन कालिदास काव्य पाठ और हिंदी वाद विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन होगा। 


अखिल भारतीय स्तर की अंतरविश्वविद्यालयीन कालिदास संस्कृत वाद विवाद प्रतियोगिता का विषय  कालिदासस्य काव्येषु राजवैभववर्णनम्, संदृश्यते यथा स्पष्टं न तथा लोकजीवनम् रखा गया है। राज्य स्तर की अंतर महाविद्यालयीन कालिदास हिंदी वाद विवाद प्रतियोगिता का विषय है, महाकवि कालिदास की रचनाओं में राजवैभव का स्पष्ट वर्णन हुआ है, लोकजीवन का नहीं। राज्य स्तर की कालिदास काव्य पाठ  प्रतियोगिता में विद्यार्थियों को श्लोकों का चयन महाकवि कालिदास की अमर कृति मालविकाग्निमित्रम् से करना होगा।


यह जानकारी देते हुए विक्रम विश्वविद्यालय की कालिदास समिति के सचिव एवं कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा Shailendrakumar Sharma  ने बताया कि अकादमिक आयोजनों में देश के दस से अधिक राज्यों के विद्वान, शिक्षक, शोधकर्ता और विद्यार्थी भाग लेने के लिए उज्जैन आ रहे हैं। राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में भाग लेने के लिए देश के विभिन्न प्रांतों के प्राध्यापक, शिक्षाविद् एवं शोधकर्ताओं से कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र आमंत्रित किए गए हैं। 

शोध संगोष्ठी के चार सत्रों का आयोजन विश्वविद्यालय मार्ग, उज्जैन स्थित अभिरंग नाट्यगृह, कालिदास संस्कृत अकादमी में होगा। इनमें से एक विशेष सत्र विक्रम कालिदास पुरस्कार विजेता शोधपत्रों की प्रस्तुति का होगा। शोध पत्र प्रस्तुतकर्ता पंजीयन एवं शोध पत्र प्रेषण के लिए कालिदास समिति कार्यालय, सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान, विक्रम विश्वविद्यालय, देवास मार्ग, उज्जैन में सम्पर्क कर सकते हैं। 






Kalidas


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अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : 4 से 10 नवम्बर 2022

मध्यप्रदेश शासन के तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, जिला प्रशासन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन का संयुक्त आयोजन 

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 : सारस्वत आयोजन 

अखिल भारतीय कालिदास समारोह 2022 के समस्त सांस्कृतिक एवं सारस्वत आयोजनों में आपकी उपस्थिति सादर प्रार्थनीय है। राष्ट्रीय संगोष्ठी के साथ स्पर्धाओं के अंतर्गत संस्कृत वाद विवाद, संस्कृत श्लोक पाठ और हिंदी वाद विवाद में सहभागिता का अनुरोध है। विस्तृत जानकारी के लिए लिंक पर जाएँ। 


https://www.facebook.com/100001476965950/posts/5669747819751061/


राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी :

सुधी प्राध्यापक / शिक्षाविद् / शोधकर्ता कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र प्रस्तुति के लिए सादर आमंत्रित हैं।शोध पत्र साहित्य, कला, वास्तु, संस्कृति, इतिहास, पुरातत्व, विज्ञान, पर्यावरण, दर्शन,  जीवन मूल्य, शिक्षा,  समाजविज्ञान, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र आदि के परिप्रेक्ष्य में कालिदास साहित्य के किसी पक्ष से जुड़े हो सकते हैं। सभी सुधीजन कालिदास साहित्य के विविध आयामों पर स्वतंत्र रूप से या अंतरानुशासनिक दृष्टि से शोध पत्र प्रस्तुति के लिए सादर आमंत्रित हैं।


शोध पत्र वाचन के लिए राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के चार सत्र अभिरंग नाट्यगृह, कालिदास संस्कृत अकादमी, कोठी रोड, उज्जैन में निम्नानुसार तिथियों एवं समय पर होंगे :


राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी 

प्रथम सत्र 5 नवम्बर 2022 दोपहर 2:30

द्वितीय सत्र 6 नवम्बर 2022 दोपहर 2:30 बजे 

तृतीय सत्र 7 नवम्बर 2022 दोपहर 2:30 बजे 

(विक्रम कालिदास पुरस्कार के लिए चयनित शोध पत्रों की प्रस्तुति)

चतुर्थ सत्र 8 नवम्बर 2022 प्रातः 10:00 बजे

संगोष्ठी स्थान : 

अभिरंग नाट्यगृह

कालिदास संस्कृत अकादमी

विश्वविद्यालय मार्ग, उज्जैन



शोध पत्र प्रस्तुति हेतु पंजीयन के लिए सम्पर्क : 

प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा 

सचिव 

कालिदास समिति 

कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक

विक्रम विश्वविद्यालय

 सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान

 देवास रोड 

उज्जैन मध्य प्रदेश

पिन कोड 456010


ईमेल : 

shailendrakumarsharmaprof@gmail.com



विक्रम पत्रिका के कालिदास विशेषांक के लिए लिंक पर जाएं :




20221005

Awarded Ph. D. Hindi Degree From Vikram University, Ujjain | विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से पीएच डी हिंदी उपाधि प्राप्त शोधकर्ता (2015 - 2022)

हिंदी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से पीएचडी हिंदी उपाधि प्राप्त शोधकर्ता 

(2015 - 2022)

हिन्दी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण अध्ययन, अध्यापन और अनुसंधान की दृष्टि से विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में  हिन्दी अध्ययनशाला की स्थापना वर्ष 1966 ई में हुई।प्रारम्भ से ही यहाँ प्रतिष्ठित विद्वान, शिक्षक एवं अध्येता सक्रिय रहे हैं। आचार्य विश्वनाथप्रसाद मिश्र, आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी, आचार्य शिवसहाय पाठक, आचार्य पवनकुमार मिश्र आदि जैसे आचार्यों ने यहाँ प्रारंभिक दशकों में शोध कार्य को गति दी थी। बाद के दौर में हिंदी अनुसंधान को निरन्तरता देते हुए प्रो भगीरथ बड़ौले निर्मल, प्रो हरिमोहन बुधौलिया, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो गीता नायक, प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा आदि ने शोध निर्देशन करते हुए इस दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। विभाग को देश भर के प्रख्यात साहित्यकारों, मनीषियों के व्याख्यान, संवाद और रचनापाठ  के अवसर मिले हैं। इनमें प्रमुख हैं- सुश्री महादेवी वर्मा, अज्ञेय, नन्ददुलारे वाजपेयी,  शिवमंगलसिंह सुमन, विद्यानिवास मिश्र, भगवतशरण उपाध्याय, नामवर सिंह, देवेन्द्रनाथ शर्मा, कैलाशचन्द्र भाटिया, विश्वम्भरनाथ उपाध्याय, शिवकुमार मिश्र, श्यामसिंह शशि, अशोक वाजपेयी, प्रो गंगाप्रसाद विमल, प्रो सूर्यप्रकाश दीक्षित, महेंद्र भानावत, असगर वजाहत, सूर्यबाला, प्रो रामबक्ष, विजयदत्त श्रीधर आदि।

हाल के दशकों में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में एक साथ कई दिशाओं में महत्त्वपूर्ण शोध कार्य हुए हैं, जिनमें हिन्दी भाषा-साहित्य एवं संस्कृति के विविध आयामों के साथ ही लोक एवं जनजातीय भाषा, साहित्य और संस्कृति, आलोचनाशास्त्र, भाषाविज्ञान के विविध आयाम, वाचिक-अवाचिक भाषा-रूप, शब्दविज्ञान, तुलनात्मक भाषाविज्ञान, हिन्दी कम्प्यूटिंग, इंटरनेट, वेब पत्रकारिता, दृश्य जनसंचार माध्यम, मशीनी अनुवाद, राजभाषा हिन्दी आदि के अधुनातन संदर्भ विशेषतः उल्लेखनीय हैं। यह संस्थान मध्यप्रदेश के साहित्यिक-सांस्कृतिक विकास के लिए सक्रिय सहभागिता कर रहा है।  

हिंदी अध्ययनशाला द्वारा संयोजित राष्ट्रीय स्तर के आयोजनों में प्रमुख रहे हैं- काव्य प्राध्यापन कार्यशाला, नाट्य प्राध्यापन कार्यशाला, मिथक संगोष्ठी, पुनश्चर्या पाठ्यक्रम, राष्ट्रीय शब्दावली कार्यशाला, सृजन संस्कार वर्ष, देवनागरी लिपि राष्ट्रीय संगोष्ठी, सूचना प्रौद्योगिकी और हिन्दी कार्यशाला, तुलसी पंचशती समारोह, प्रेमचंद जयंती समारोह, महात्मा गांधी 150 वी जयंती वर्ष पर तीन राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी, अनेक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी, छात्र अध्ययन यात्रा आदि। कार्यरत शिक्षकों द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठियों, पुनश्चर्या पाठ्यक्रम, कार्यशालाओं और रचनापाठ के आयोजन में सहयोग-सहकार रहा है। जिन संस्थाओं के साथ विभिन्न अकादमी की गतिविधियां आयोजित की गई, उनमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, भारत सरकार, केंद्रीय हिन्दी निदेशालय, भारत सरकार, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, प्रेमचंद सृजनपीठ, म प्र संस्कृति परिषद, म प्र शासन, नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली, मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा भाषा प्रचार समिति, भोपाल, सप्रे संग्रहालय, भोपाल आदि।

- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 

 


हिंदी अध्ययनशाला में अब तक सैकड़ों की संख्या में शोधार्थियों ने स्तरीय शोध कार्य के माध्यम से इस विभाग के गौरव को बढ़ाया है। यहां वर्ष 2015 से 2022 तक के पीएचडी उपाधि प्राप्त शोधकर्ताओं की सूची प्रस्तुत है।

1. नेहा नागर 2015

2. रोहन सिंह 2015

3. आभा सक्सेना 2015

4. शेबा सैयद 2015

5. योगेंद्र जोशी 2015

6. महेंद्र रणदा 2015

7. श्वेता परिहार 2015

8.  नरेंद्रपाल शर्मा 2015

9.  संदीप कुमार सिंह  2015

10. नंदिता चौहान 2015

11. ईश्वर सिंह पाटीदार 2015

12. चंदनबाला कोठारी  2015

13. वंदना शर्मा 2015

14. मीनाक्षी पुरोहित 2016

15. दीपक शर्मा 2016

16. गीतांजलि मिश्रा 2016

17. दीपक शर्मा 2016

18. प्रिया गंगापुरकर 2016

19. अल्पना बाकलीवाल 2016

20. रूपा भावसार 2016

21. जगदीश परमार 2016

22. सुशील कुमार सिंह 2016

23.  उल्लास सोपान पाटील  2016

24. पिंकी कोठारे 2016

25.  स्मिता करंजगांवकर 2016

26. नम्रता ओझा 2016

27. चंद्रकांता बड़ोले 2016

28. संगीता गुप्ता 2016

29. श्यामलाल निर्मल 2016

30.  तोफानलाल चौहान 2017

31. कविता सूर्यवंशी 2017

32. अर्चना मेहता 2017

33. शीतल सिंह तोमर 2017

34. रेहाना बेगम 2017

35. उर्मिला पोरवाल 2017

36. प्रेरणा ठाकरे परिहार 2017

37. मुकेश चौहान 2017

38. रमाकांत पाल 2017

39. संध्या राजपूत 2017

40. ज्योतिबाला बैस 2017

41.  निशा शर्मा 2017

42.  भूपेंद्र सिंह भदौरिया 2017

43. प्रियंका शर्मा 2017

44. ममता चंद्रावत 2017

45. ज्योति यादव 2016

46.  संजय कुमार राठौर 2018

47. सतीश कुमार 2018

48. श्वेता पंड्या 2018

48. मेघा गुप्ता 2018

50. गायत्री शर्मा 2018

51. रूपाली सारये 2018

52. कादम्बिनी जोशी 2018

53. प्रतिभा गुर्जर 2018

54. कला मौर्य 2018

55. कैलाश चंद्र बाडोलिया 2018

56.  माधवी भट्ट 2019

57. पूर्णिमा पोरवाल 2019

58.  मीनल मेहना 2019 

59. अमित कुमार 2019

60. मुकेश भार्गव 2019

61. मोनिका वैष्णव 2019

62.  बृजेंद्र सिंह तोमर 2019

63. अर्जुन सिंह पंवार 2019

64. संजय अटेरिया 2019

65. भारती ठाकुर 2019

66. श्रुति पाठक 2019

67. केदार गुप्ता 2020

68. स्वप्नदीप परमार 2020

69. विजय कुमार शर्मा 2020

70. उमेश कुमार गुप्ता 2020

71. आस्था व्यास 2020

72.  पंढरीनाथ देवले 2020

73. संदीप कुमार यादव 2020

74. निरूपा उपाध्याय 2020

75. रीता माहेश्वरी 2020

76. भावना शर्मा 2020

77. राम सिंह सौराष्ट्रीय 2020

78. रिपुदमन तिवारी 2020

79. तारा वाणिया 2020

80. अनामिका कतरोलिया  2021

81. आरती परमार 2021

82. प्रियंका नाग 2021

83. स्वर्णलता ठन्ना 2021

84. श्वेता पाण्डेय 2021

85. प्रियंका परस्ते 2021

86. डॉली सिंह नागर 2021

87. सुदामा सखवार 2021

88. कुलदीप जाट 2021

89. उर्मिला शर्मा 2021

90. ममता सोलंकी 2021

91. मणिकुमार मिमरोट 2021

92. ज्योति नाहर 2021

93. हृदयनारायण तिवारी 2021

94. अभिलाषा तिवारी 2021

95. संजय कुमार 2022

96. संतोष चौहान 2022

97. सीमा सेन 2022

98. अनीता अग्रवाल 2022

99. मधुबाला मारू 2022

100. दयाराम नर्गेश 2022

101. शैलेंद्र प्रताप 2022

102. संदीप सिद्ध 2022

103. दीपशिखा परमार 2022

104. दुर्गा राजलवाल 2022


20211205

रामाश्रयी काव्य धारा और तुलसीदास - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Ramashrayi Kavya Dhara and Tulsidas - Prof. Shailendra Kumar Sharma

रामाश्रयी काव्य धारा और गोस्वामी तुलसीदास - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा


विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज द्वारा वेब पटल पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। इस संगोष्ठी में अनेक वक्ताओं ने अपने विचार प्रकट किए। 






 भारतीय साहित्य को रामाश्रयी काव्यधारा और गोस्वामी तुलसीदास का योगदान अविस्मरणीय है। रामकाव्यधारा का प्रवर्तन वैष्णव संप्रदाय के स्वामी रामानंद से स्वीकार किया जाता है। रामकाव्यधारा में शील, शक्ति और सौंदर्य का अद्भुत समन्वय पाया जाता है। ये विचार मुख्य अतिथि तथा विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, म. प्र. के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने व्यक्त किये। 

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज, उ. प्र. के तत्वावधान में ' रामाश्रयी काव्यधारा : तुलसीदास' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वे उद्बोधन दे रहे थे। डाॅ. शर्मा ने आगे कहा कि सभी रामभक्त कवि विष्णु के अवतार दशरथ पुत्र राम के उपासक हैं। उनके राम परब्रह्म स्वरूप भी है। रामचरितमानस में तुलसी ने आदर्श गृहस्थ, आदर्श समाज और आदर्श राज्य की कल्पना की है।रामकाव्य में ज्ञान,कर्म और भक्ति की अलग अलग महत्ता स्वीकार करते हुए भक्ति को उत्कृष्ट बताया गया है। रामाश्रयी कवियों की भारतीय संस्कृति में पूर्ण आस्था रही है। लोकहित के साथ उनकी भक्ति स्वांत:सुखाय थी। 

विशिष्ट अतिथि डाॅ. चंद्रशेखर सिंह, मुंगेली, छत्तीसगढ ने कहा कि तुलसीदास ने रामचरित मानस को बोली के रूप में मानीजानेवाली अवधी में रचा। मानस में लोकतंत्र की बात निहित है। जीवन जीने का सही रास्ता मानस में बताया गया है। रामचरितमानस को पूरे विश्व में श्रद्धापूर्वक पढा जाता है।

डाॅ. अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, पटना, बिहार ने कहा कि रामाश्रयी शाखा के समस्त कवियों में तुलसीदास जी का स्थान अनुपम है। भारतीय संस्कृति को आधार बनाकर मानस की रचना हुई है। तुलसीदास जी की राम के प्रति दासभक्ति थी। प्रो. स्मिता बहन मिस्री, नवसारी गुजरात ने मंतव्य में कहा कि भारतीय संस्कृति में तुलसी का पौधा और महाकवि तुलसीदास दोनों का गौरवपूर्ण, अद्वितीय और अभूतपूर्व स्थान है। भारतीय जनमानस की नब्ज को पकडकर उनका सटीक उपचार बताने वाले तुलसीदास समाज में व्याप्त विसंगतियों को दूर करके एक स्वस्थ समाज की स्थापना करते हैं। 

रामकथा का सानिध्य गंगास्नान समान अतुल्य है।अत: तुलसी साहित्य आज भी प्रासंगिक है। डाॅ. भारती दोडमनी, कारवार, कर्नाटक ने अपने उद्बोधन में कहा कि तुलसीदास जी की रचनाएँ स्वांत: सुखाय और बहुजन हिताय दोनों में प्रस्तुत है। मानस के सात खंडों में मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को व्यक्त किया गया है। उनकी अधिकांश रचनाएँ लोक कल्याण की कामना व्यक्त करती है।

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उ.प्र. के सचिव डाॅ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने अपने प्रास्तविक भाषण में  गोष्ठी के विषय की महत्ता प्रतिपादित करते हुए संस्थान की गतिविधियों पर विस्तार से प्रकाश डाला। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उ. प्र. के अध्यक्ष डाॅ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि रामाश्रयी काव्यधारा में तुलसीदास जी के पश्चात उनके समक्ष अन्य कोई कवि दिखाई नहीं देता। वे जीवन की समग्रता के गायक थे। रामचरितमानस एक संपूर्ण समाजदर्शन है। 

तुलसीदासजी महान चिंतक, बहुत बडे संत तथा कालजयी महाकवि थे। उनका मानस भारतीय दर्शन का अक्षय भंडार है।
गोष्ठी का शुभारंभ श्रीमती ज्योति तिवारी, इंदौर की सरस्वती वंदना से हुआ। प्रा. रोहिणी बालचंद डावरे, अकोले, अहमदनगर, महाराष्ट्र ने स्वागत भाषण दिया। गोष्ठी का संयोजन श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव 'शैली', रायबरेली ने किया। गोष्ठी का सफल व कुशल संचालन व नियंत्रण  डाॅ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया तथा श्रीमती रश्मि संजय श्रीवास्तव 'लहर' लखनऊ ने आभार प्रदर्शित किया।

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मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक और हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय साहित्य को रामाश्रयी काव्यधारा और गोस्वामी तुलसीदास का योगदान अविस्मरणीय है। रामकाव्य धारा का प्रवर्तन वैष्णव संप्रदाय के स्वामी रामानंद से स्वीकार किया जाता है। इस काव्य का आधार संस्कृत साहित्य में उपलब्ध राम-काव्य और नाटक रहे हैं। इस धारा के कवियों ने राम के अवतारी स्वरूप को अंगीकार किया है। सभी रामभक्त कवि विष्णु के अवतार दशरथ - पुत्र राम के उपासक हैं। वे अवतारवाद में विश्वास करते हैं। साथ ही उनके राम परब्रह्म स्वरूप भी हैं। उनमें शील, शक्ति और सौंदर्य का समन्वय है। उनका अवतार लोक-मंगल के लिए हुआ है। रामचरितमानस में तुलसी ने आदर्श गृहस्थ, आदर्श समाज और आदर्श राज्य की कल्पना की है। राम-काव्य में ज्ञान, कर्म और भक्ति की अलग अलग महत्ता स्वीकार करते हुए भक्ति को उत्कृष्ट बताया गया है। तुलसी का मानस विविध मत वाद और समुदायों के बीच समन्वय का सेतु बनाता है। रामाश्रयी कवियों की भारतीय संस्कृति में पूर्ण आस्था रही। लोकहित के साथ-साथ उनकी भक्ति स्वांत: सुखाय थी। तुलसी के काव्य में चिरंतन और सार्वभौमिक जीवन सत्यों की अभिव्यक्ति की अपूर्व क्षमता है। उनके मानस का विश्व मानव पर गहरा प्रभाव पड़ा  है। निजी सम्बन्धों से लेकर समग्र विश्व के प्रति स्नेह-सम्बन्धों की प्रतिष्ठा  राम के समतामूलक जीवन दर्शन के केन्द्र में रही है।  लोकमानस पर अंकित राम का यह बिम्ब सदियों से अखंड मानवता की रक्षा का आधार है।













20211127

मालवी लोकोक्ति और मुहावरे : सदियों के अनुभव और ज्ञान की अक्षय निधि - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Malvi Proverbs and Idioms: A Treasure Trove of Centuries of Experience and Knowledge - Prof. Shailendra Kumar Sharma

मालवी लोकोक्ति और मुहावरे :  सदियों के अनुभव और ज्ञान की अक्षय निधि

प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा


भारत की बहुविध परम्पराओं की गहरी जड़ें लोक संस्कृति में मौजूद हैं। लोक-संस्कृति अतीत की भूली हुई कड़ी या आदिम न होकर सतत वर्तमान है, आज भी हमारे जीवन का अविभाज्य अंग है। लोक-चेतना की यह धारा अविच्छिन्न रूप से सतत प्रवहमान है। वैसे तो परिवर्तन इस जगत् का शाश्वत नियम है, इससे लोक-संस्कृति कैसे अनछुई रह सकती है? उसमें भी पुनराविष्कार और संशोधन का क्रम निरंतर चलता आया है, किंतु उसकी मूल चेतना में सहजता, पारदर्शिता और तरलता सदैव बने रहे हैं। वह समय-समय पर बाहर से आगत तत्त्वों से भी अंतर्क्रिया करती आ रही है। ऐसा करते हुए वह स्वयं को और अधिक व्यापक बनाती चलती है। जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, चाहे वह भाषा हो या साहित्य, विविध कला रूप, आचार-विचार हो या रीति-रिवाज, वस्त्रभूषा हो या खानपान के तरीके, इनमें से कुछ भी लोक परम्परा से विच्छिन्न नहीं है। भारत की लोक और जनजातीय संस्कृति में गहरी संवेदना और ऊर्जा व्याप्त है। उनसे दूरी के दुष्परिणाम आधुनिक समाज के विभिन्न घटकों पर दिखाई दे रहे हैं। इसके अभाव में संस्कृति की नैसर्गिकता खो रही है।


लोक वस्तुतः जीवन्त और ठोस आधार पर गतिशील जन समुदाय का बोधक है। पाश्चात्य लोक तत्त्व विवेचकों ने प्रायः लोक को अविकसित या आदिम या रूढ़िग्रस्त जनसमूह के रूप में देखा है, किन्तु भारतीय संदर्भ में देखें तो ‘लोके वेदे च’ सूत्र का संकेत साफ है कि वेद या शास्त्र के समानांतर, किन्तु पूरक रूप में एक लोकधारा भी यहाँ सतत प्रवाहमान रही है, जो वेद से किसी भी आधार पर हीन नहीं है। इन दोनों धाराओं को समन्वय से ही भारत की पहचान बनी है।


मालवा लोक-साहित्य और संस्कृति की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। यहाँ का लोकमानस अनेक सदियों से कथा-वार्ता, गाथा, गीत, नाट्य, पहेली, लोकोक्ति, मुहावरे आदि के माध्यम से अभिव्यक्ति पाता आ रहा है। जीवन का ऐसा कोई प्रसंग नहीं है, जब मालवजन अपने हर्ष-उल्लास, सुख-दुःख को दर्ज करने के लिये बहुवर्णी लोक-साहित्य का सहारा न लेता हो।  हाल के दशकों में मालवी लोक साहित्य और संस्कृति के विविध पहलुओं पर अनेक शोध, संकलन और प्रकाशन हुए हैं। इसी तरह नए मीडिया पर भी बहुत सी सामग्री उपलब्ध हो रही है। 

 



यह अत्यंत सुखद है कि मालवीमना रचनाकार और मनस्वी हेमलता शर्मा भोली बेन ने मालवा की समृद्ध लोक संपदा के संकलन - संपादन के साथ उसके गहन शोध में पहलकदमी की। वे लेखन, दृश्य श्रव्य माध्यम, ब्लॉग, यूट्यूब चैनल,  सोश्यल मीडिया जैसे अनेक माध्यमों से मालवी भाषा, साहित्य और संस्कृति की सेवा, संरक्षण और संवर्धन में जुटी हैं। उन्होंने हाल ही में मालवा क्षेत्र में प्रचलित लगभग एक हजार लोकोक्तियों और मुहावरों का संचयन किया है। पूर्व में मालवी लोकोक्ति और मुहावरों के कुछ संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और कुछ शोधकर्ताओं ने इनका विविध दृष्टियों से अनुशीलन भी किया है। हेमलता शर्मा का यह प्रयास इस दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण है कि उन्होंने अनेक बुजुर्गों और परिवारजनों से मिलकर बड़े परिश्रमपूर्वक इन लोकोक्ति और मुहावरों को जुटाया है और उनके अर्थ एवं प्रयोग भी प्रस्तुत किए हैं।  


लोकाक्ति या कहावत सुंदर रीति से कही गई उक्ति या कथन है, जिसकी लोक व्याप्ति कन्ठानुकंठ होती है। ये यूं ही नहीं गढ़ ली जातीं, बल्कि इनके पीछे अनेक सदियों का अनुभव और ज्ञान सन्निहित है। लोकोक्ति के पीछे कोई विशेष प्रसंग, कहानी या घटना होती है, उससे निकली बात बाद में लोगों की जु़बां पर चढ़ जाती हैं। घर - आँगन, खेत - खलिहान, चौपाल - चौबारे, पर्व - त्‍यौहार, मेले और बैठक लोकोक्तियों को अनायास आकार दे देते हैं और फिर ये वाचिक परम्परा का आधार पाकर काल और देश के दायरे से मुक्त हो जाती हैं। कई बार ये अन्य बोली और भाषा में सहज ही रूप परिवर्तन कर प्रचलित होने लगती हैं। लोकोक्तियाँ दिखने मेँ छोटी लगती हैँ, परन्तु उनमेँ गम्भीर विचार और भाव रहते हैं। लोकोक्तियोँ के प्रयोग से आम कथन से लेकर साहित्यिक रचना मेँ भाव एवं विचारगत विशेषता आ जाती है। मालवी लोकोक्तियों में जीवन का मर्म और अनुभव का सार देखने को मिलता है। इनके माध्‍यम से हम मालवा अंचल में वास करने वाले समुदायों की जीवन शैली का सम्यक् अध्‍ययन कर सकते हैं। इनमें लोक मानस के आस्था - विश्‍वास, लोक मान्यताएँ, रीति-रिवाज, खान - पान, रहन - सहन, स्‍वास्‍थ्‍य, लोक पर्व - उत्सव, लोक दर्शन सहित संस्‍कृति के विविध आयाम स्‍पष्‍ट छलकते हैं। मालवा क्षेत्र में प्रचलित कुछ रंजक लोकोक्तियाँ देखिए –

बोलता का बुरा भी बिकी जावे ने बिना बोलता कि जुवार भी नी बिके।

माल खाय माटी को ने गीत गाय बीरा का

शक्कर गरे तो हगरा भेरा वइ जा ने खाल गरे तो कोई नी

माल का मालिक सगला, खाल को कोई नी

जिको मांडवो बिगड़े उको ब्याव बिगड़े

आली लाकडी नमे ने सूख्यां पाछे टूटे

गरीब की जोरू आखा गाम की भाभी।


लोक जीवन में मुहावरों का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। वस्तुतः मुहावरा अरबी भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'अभ्यास'। इनके प्रयोग से भाषा रोचक, रसपूर्ण एवं प्रभावी बन जाती है। इनके मूल रूप मेँ कभी परिवर्तन नहीँ होता अर्थात् इनमेँ से किसी भी शब्द का पर्यायवाची शब्द प्रयुक्त नहीँ किया जा सकता। इसके क्रिया पद मेँ काल, पुरुष, वचन आदि के अनुरूप परिवर्तन अवश्य होता है। मुहावरा अपूर्ण वाक्य होता है। वाक्य प्रयोग करते समय यह वाक्य का अभिन्न अंग बन जाता है। इसीलिए इसका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं किया जा सकता है। दूसरी ओर लोकोक्तियाँ पूर्ण वाक्य के रूप में होती हैं और किसी बात की पुष्टि करते हुए इनका स्वतंत्र रूप से प्रयोग किया जा सकता है। मालवा में बहुप्रचलित कुछ मुहावरे देखिए, जिनकी अपनी खास भंगिमा है : 


गेले आणों, गेले जाणो

काम ती काम राखणो

दूसरा की पंचायती नी करनी

नाना मोटा को कण कयदो राखणो

चारी आड़ी का हापटा नी भरणा

मुंडा हामें को काम पेला करणो

सोची हमजी ने पग रखणो

फाटा में पग नी फसाणो

रोज ढांकी ने खाणो

जतरो पचे वतरो खाणो

हुणनी सबकी ने करनी मन की

दाँत काड़ी ने हामे आणो 

वगर काम के नी बोलणो

बीच-बीच में लाड़ा की भुवा नी वणनो

दूसरा की मजाक नी उड़ानी

वस्तुतः भाषा और बोलियाँ मनुष्य होने की पहचान हैं। वे मनुष्य के आन्तरिक और बाह्य जीवन को जोड़ती हैं। इस संसार को समझने और अभिव्यक्त करने के लिए माध्यम का काम करती हैं। मातृभाषा बच्चे अपने आप सीख लेते हैं, यद्यपि उसके साहित्यिक पक्ष का ज्ञान उन्हें अधिकतर औपचारिक शिक्षा के जरिए होता है। वर्तमान में अंग्रे़ज़ी हमारी शिक्षा - व्यवस्था में प्रमुख भाषा बनती जा रही है। अंग्रेज़ी का ज्ञान शिक्षित होने का पर्याय बनता जा रहा है। ऐसे में भारतीय भाषाओं और बोलियों की उपेक्षा हो रही है और उन्हें हीन भाव से देखा जा रहा है। हम यह भूल जाते हैं कि अंग्रेज़ी जानने वाला व्यक्ति भी अज्ञानी हो सकता है। इधर लोक बोली का प्रयोक्ता भी ज्ञान और अनुभव सम्पन्न हो सकता है, किंतु कई बार उन्हें अनदेखा किया जाता है। अंग्रेजी पर अतिनिर्भरता के कारण आज हमारा देश सभी क्षेत्रों में नकलचियों का देश बनकर रह गया है। महर्षि अरविन्द अपनी पुस्तक भारतीय संस्कृति के आधार में कहते हैं, प्राचीन भारत में जीवन के प्रत्येक पक्ष पर गंभीर सृजनात्मक कार्य हुआ था जो आज भी हमारे लिए आदर्श है। अंग्रेजी पर अनावश्यक निर्भरता के कारण हम अपनी भाषाओं में संचित ज्ञान संपदा से दूर हो रहे हैं। एक बार जे. कृष्णमूर्ति ने हताशा के स्वर में पूछा था, "इस देश की सृजनशीलता को क्या हो गया है।" प्राचीन काल में जब संसार के अधिकांश देशों का अस्तित्व भी नहीं था, न विकास का कोई मॉडल विद्यमान था, हमारे पूर्वजों ने अपनी भाषा संस्कृत और उसके स्थानीय रूपों के माध्यम से मानव जीवन के गहनतम रहस्यों को खोज लिया था, जो आज भी हमारे ही नहीं, समूची मानव जाति के लिए मार्गदर्शक हैं। एक विदेशी भाषा के अनुपातहीन महत्त्व से हमारी अपनी भाषाओं की उपेक्षा की हुई है और परिणामस्वरूप भारतीय मेधा का विकास अवरुद्ध हो गया है।


मालवी, निमाड़ी, मेवाड़ी सहित विविध भाषाएँ और बोलियाँ सदियों से हमारे घर – आँगन में संवेदना, ज्ञान, संस्कृति और परम्पराओं की संवाहिका बनी हुई हैं। हिंदी की विविध बोलियाँ सदियों से हिंदी की सहज संगिनी और आधार रही हैं और आगे भी रहेंगी।  इन्हें इसी रूप में जीवन्त बने रहना चाहिए, न कि राष्ट्रभाषा हिन्दी की विरोधिनी के रूप में उन्हें खड़े करना चाहिए। फिर इन बोलियों के कई स्थानीय रूप भी हैं, उनमें से किसे मानक भाषा का दर्जा दिया जाएगा, यह तय करना भी चुनौतीपूर्ण होगा। किसी भी एक बोली के अलग होने से निकटवर्ती बोलियाँ भी कमजोर होंगी और हिन्दी भी। पड़ोसी बोलियों के मध्य रिश्तों में कटुता आएगी और हिन्दी का तो इससे बहुत अधिक अहित होगा। भारतीय भाषाओं और बोलियों के ऐक्य बन्धन को अधिक मजबूती के साथ निरन्तर बने रहना चाहिए, इसी में सबका हित है। 


वर्तमान में मालवी लोक संपदा के संरक्षण – संवर्द्धन  की दिशा में व्यापक प्रयत्नों की दरकार है। हेमलता शर्मा ने विविध रूपों में मालवी की सेवा का दृढ़ संकल्प लिया है, जिसके एक पुष्प के रूप में अपणो मालवो के अंतर्गत मालवी कहावतों और मुहावरों का संग्रह प्रकाश में आया है। विश्वास है लोक भाषा के प्रेमी इसका अंतर्मन से स्वागत करेंगे और अपने जीवन में इस लोक संपदा के भाषिक प्रयोगों के लिए सदैव तत्पर रहेंगे। 


प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

विभागाध्यक्ष

हिंदी विभाग 

कुलानुशासक 

विक्रम विश्वविद्यालय 

उज्जैन मध्यप्रदेश 


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