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20200728

गोस्वामी तुलसीदास : वैश्विक परिप्रेक्ष्य में

तुलसी के मानस को विदेशों में बसे भारतीयों ने दिल से लगाया हुआ है
तुलसी जयंती पर नॉर्वेजियन भाषा में तुलसी के मानस के अंशों का अनुवाद बना ऐतिहासिक उपलब्धि
अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ विश्व फलक पर तुलसी की व्याप्ति और प्रभाव पर विमर्श 


भारत की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा तुलसी जयंती पर अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी गोस्वामी तुलसीदास : वैश्विक परिप्रेक्ष्य में पर एकाग्र थी। आयोजन के प्रमुख अतिथि प्रख्यात प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे एवं मुख्य वक्ता समालोचक एवं विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षाविद् श्री बृजकिशोर शर्मा ने की। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली एवं श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर थे। संगोष्ठी की प्रस्तावना संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की।



प्रमुख अतिथि ओस्लो, नॉर्वे के श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि तुलसी के रामचरितमानस को विदेशों में बसे भारतीयों ने अपने दिल से लगाया हुआ है। भारतवंशी जहां भी गए हैं, वहाँ अपने साथ भाषा, संस्कार और शिष्टाचार के साथ तुलसी जैसे महान् भक्तों की वाणी को ले गए हैं। उन्होंने नॉर्वेजियन भाषा में तुलसी के रामचरितमानस के चुनिंदा अंशों का अनुवाद प्रस्तुत किया, जो संगोष्ठी की ऐतिहासिक उपलब्धि बना। स्वीडन, डेनमार्क, नॉर्वे जैसे देशों में प्रचलित स्केंडनेवियन भाषाओं के बीच पहला होने के कारण यह अनुवाद ऐतिहासिक महत्त्व का है। श्री शुक्ला ने नॉर्वे में बसे भारतवंशियों के जीवन पर तुलसी साहित्य के प्रभाव की भी चर्चा की।





संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में समालोचक एवं साहित्यकार प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने अपने व्याख्यान में वैश्विक संस्कृति पर तुलसी के मानस के प्रभाव और व्याप्ति पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि तुलसी की विश्व दृष्टि अत्यंत व्यापक है। उनका साहित्य विश्व संस्कृति को बहुत कुछ दे सकता है। दुनिया को पारिवारिक और सामुदायिक जीवन में परस्पर प्रेम, बन्धुत्व और समरसता की दृष्टि की आवश्यकता है, जो तुलसी साहित्य से सहज ही मिल सकती है। विश्व के अनेक देशों में तुलसी की कृतियों की अनुगूंज सुनाई देती है। उनकी रचनाएं देश विदेश के लोगों की जीवन दृष्टि के विकास में सहायक बनी हुई हैं। तुलसी का रामचरितमानस मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद जैसे अनेक देशों में बसे लगभग तीन करोड़ लोगों के बीच सांस्कृतिक धरोहर और प्रेरणा पुंज के रूप में जीवंत है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी, रूसी, फारसी आदि भाषाओं के बाद श्री सुरेश चंद शुक्ल द्वारा नॉर्वेजियन में किया जा रहा रामचरितमानस का अनुवाद नई सदी की उपलब्धि है। तुलसी काव्य में निहित सार्वभौमिक जीवन मूल्यों का प्रादर्श विश्व मानव को उनकी विलक्षण देन है। तुलसी का रामराज्य और जीवन दर्शन महात्मा गांधी के यहां स्वराज्य, सत्याग्रह, अहिंसा, असहयोग, आत्म त्याग के रूप में उतरे हैं, जो वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य हुए। गांधी जी ने तुलसी के साहित्य का प्रयोग व्यापक राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए किया।




विशिष्ट अतिथि श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी कृतियों के द्वारा राम के आदर्श को प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने जन भाषा के माध्यम से उदात्त जीवन मूल्यों को प्रसारित करने का अविस्मरणीय प्रयास किया। 




कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्था के अध्यक्ष श्री बृजकिशोर शर्मा ने कहा कि तुलसी का चिंतन अत्यंत व्यापक है। उनका साहित्य संवेदना और विचार का अथाह सागर है। उनकी रचनाएं शांति और सद्भाव का बोध कराती हैं। तुलसी सही अर्थों में महामानव थे। वे एक साथ परंपराशील और प्रगतिशील दोनों हैं।


प्रारंभ में संगोष्ठी की प्रस्तावना रखते हुए संस्था के महासचिव श्री प्रभु चौधरी ने कहा कि तुलसी का साहित्य सही अर्थों में वैश्विक है। उन्होंने जन जन के मध्य भारतीय जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा की।


आयोजन में श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, एवं श्री सुंदर लाल जोशी, नागदा ने तुलसी के जीवन और व्यक्तित्व से जुड़ी कविताएं प्रस्तुत कीं। श्री हरिराम वाजपेयी की कविता तुलसी में की पंक्तियाँ थीं, तुलसी पर्याय है भावना और पवित्रता का। तुलसी पर्याय है अनेकता में एकता का। तुलसी ही भक्त है तुलसी ही भगवान है। राम में बसा है तुलसी तुलसी में राम है। 




कवि श्री सुंदर लाल जोशी की काव्य पंक्तियां थीं, पथ प्रदर्शक जन जन के, आत्माराम सपूत। चित्रकूट के घाट पर, मिला राम का दूत। तुलसी ने संसार को, दिया अनोखा ग्रंथ। पकड़े इसकी राह जो, मिले स्वर्ग का पंथ।

इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में श्री मोहनलाल वर्मा, जयपुर, डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, शम्भू पँवार, जयपुर, डॉ कविता रायजादा, आगरा, तूलिका सेठ, गाजियाबाद, जी डी अग्रवाल, इंदौर, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, श्री अनिल ओझा, इंदौर आदि सहित देश के विभिन्न राज्यों के विद्वानों और प्रतिभागियों ने भाग लिया।


संगोष्ठी की सूत्रधार निरूपा उपाध्याय, देवास थीं। आभार प्रदर्शन साहित्यकार श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने किया।


कार्यक्रम में डॉ. उर्वशी उपाध्याय, प्रयाग, डॉ. शैल चन्द्रा, रायपुर, डॉ हेमलता साहू, अम्बिकापुर, डॉ कृष्णा श्रीवास्तव, मुंबई, डॉ ज्योति सिंह, इंदौर, श्रीमती प्रभा बैरागी, उज्जैन, डॉ. संगीता पाल, कच्छ, डॉ. सरिता शुक्ला, लखनऊ, प्रियंका द्विवेदी, प्रयाग, विनीता ओझा, रतलाम, पायल परदेशी, महू, जयंत जोशी, धार, अनुराधा गुर्जर, दिल्ली, राम शर्मा परिंदा, मनावर, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ संजीव कुमारी, हिसार, अनुराधा गुर्जर, दिल्ली, डॉ श्वेता पंड्या, विजय कुमार शर्मा, प्रियंका परस्ते, कमल भूरिया, प्रवीण बाला, लता प्रसार, पटना, मधु वर्मा, श्रीमती दिव्या मेहरा, कोटा, डॉ. शिवा लोहारिया, जयपुर, सुश्री खुशबु सिंह, रायपुर आदि सहित देश के विभिन्न राज्यों के साहित्यकार, प्रतिभागी और शोधकर्ता उपस्थित थे।

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