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20201017

एपीजे अब्दुल कलाम : शक्ति संपन्न और आत्मनिर्भर भारत के परिप्रेक्ष्य में - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

सशक्त और आत्मनिर्भर राष्ट्र के निर्माण के लिए डॉ कलाम ने व्यापक संकल्पना दी – प्रो. शर्मा 

भारतरत्न एपीजे अब्दुल कलाम : शक्ति संपन्न और आत्मनिर्भर भारत के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी


प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा भारतरत्न एपीजे अब्दुल कलाम :  शक्ति संपन्न और आत्मनिर्भर भारत के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार और अनुवादक श्री शरद चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। अध्यक्षता शिक्षाविद डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। विशिष्ट अतिथि  साहित्यकार डॉ अर्चना झा, हैदराबाद, डॉक्टर मंजू रूस्तगी, चेन्नई एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। 





प्रमुख अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार और अनुवादक श्री शरद चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि भारतरत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम आदर्श जीवन जीने वाले महान व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने शिक्षकीय कर्म को सर्वोपरि महत्व दिया है। 




मुख्य वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि आत्मनिर्भर और शक्ति संपन्न राष्ट्र के निर्माण के लिए डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने व्यापक संकल्पना दी थी। वे दूरद्रष्टा वैज्ञानिक और विचारक थे। उनकी दृष्टि में यदि हम विकास चाहते हैं तो देश में शांति की स्थिति होना आवश्यक है और शांति की स्थापना शक्ति से होती है। वे विज्ञान को मानवता के लिए एक खूबसूरत उपहार मानते थे, इसलिए हमें इसे विकृत नहीं करना चाहिए। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन अत्यंत सादगी और सहजता के साथ जिया। वे सर्वस्वीकार्य राष्ट्रपति के रूप में सम्मानित हुए। वे करोड़ों लोगों के देश के रूप में सोचने की बात करते हैं। उनकी दृष्टि अत्यंत मानवीय संवेदनाओं पर आधारित थी।  उन्होंने समाज के वंचित और पीड़ित वर्ग के लोगों की चिंता की। आम आदमी भी तकनीक का लाभ ले, इस दिशा में वे प्रयत्नशील बने रहे।




डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की दृष्टि में यदि हमें आत्मविश्वास के साथ जीना है तो आत्मनिर्भर बनना होगा। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन शिक्षा, अनुसंधान और राष्ट्र की सेवा में अर्पित किया। डॉ कलाम के जयंती का अवसर वाचन प्रेरणा दिवस और विद्यार्थी दिवस के रूप में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। कलाम साहब बेहद संवेदनशील थे। उन्हें बच्चों से बातचीत और रुद्रवीणा वादन पसन्द था। उनकी दृष्टि में सपने वे सच्चे होते हैं जो हमें नींद नहीं आने देते हैं। उन्होंने भारतीयों के जनमानस में आत्म गौरव का भाव जगाया था। ग्रंथों के पठन पाठन का संदेश उन्होंने दिया, जिसकी प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है।



आयोजन में डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम के व्यक्तित्व और योगदान पर विभिन्न वक्ताओं ने प्रकाश डाला। इनमें डॉ अर्चना झा, हैदराबाद, डॉ मंजू रुस्तगी, चेन्नई, डॉ निसार फारूकी, उज्जैन, डॉ अनीता मांदिलबार, रायपुर, श्रीमती श्वेता गुप्ता, कोलकाता, डॉक्टर वंदना तिवारी, मुम्बई, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ भरत शेणकर, सीमा निगम, रायपुर, सुनीता चौहान, मुम्बई, डॉ मुक्ता कौशिक आदि प्रमुख थे।





संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने संगोष्ठी की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का परिचय दिया।


स्वागत भाषण डॉ लता जोशी, मुंबई ने दिया। अतिथि परिचय डॉ आशीष नायक रायपुर ने दिया।



कार्यक्रम में श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ मधुकर देशमुख, डॉ अमित शर्मा, ग्वालियर, डॉ वीरेंद्र मिश्रा, इंदौर, अशोक भागवत, पूर्णिमा कौशिक, डॉ शैल चंद्रा, राम शर्मा, डॉ रश्मि चौबे,  डॉक्टर मुक्ता कौशिक आदि सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।


संचालन संस्था की राष्ट्रीय महिला इकाई की महासचिव डॉ रश्मि चौबे ने किया। अंत में आभार श्री अनिल ओझा, इंदौर ने प्रकट किया।



















20201015

नई शिक्षा नीति : साहित्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

संस्कृति संरक्षण और संवर्धन को लेकर आत्म सजग करेगी नई शिक्षा नीति – प्रो. शर्मा 

नई शिक्षा नीति 2020 : साहित्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी

प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा नई शिक्षा नीति  2020 : साहित्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि शिक्षाविद् श्री ब्रजकिशोर शर्मा थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि  वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार और अनुवादक श्री शरद चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, संयुक्त संचालक, शिक्षा श्री मनीष वर्मा, इंदौर एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। अध्यक्षता डॉ जी डी अग्रवाल ने की।




मुख्य वक्ता लेखक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि श्रेष्ठ साहित्य और कलाओं के साथ विद्यार्थियों को जोड़ने की जिम्मेदारी  शैक्षिक संस्थानों की है। नई शिक्षा नीति साहित्य और संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और प्रसार के लिए के लिए आत्म सजग करेगी। देश के शिक्षालयों का दायित्व है कि  अपने इतिहास, संस्कृति और साहित्य के प्रति गौरव का भाव जागृत करें। वास्तविक शिक्षा मनुष्य को संकीर्ण दायरे से मुक्त करती है। भारतीय शिक्षा परम्परा मूल्यकेंद्रित जीवन दृष्टि को आधार में लिए हुए हैं। देश की बहुत बड़ी आबादी शिक्षा से संबंध रखती है। नई शिक्षा नीति में सूचना और ज्ञान से आगे जाकर प्रज्ञा और सत्य की खोज पर बल दिया गया है। वैचारिक चिंतन के साथ रचनात्मक कल्पना शक्ति का विकास नई शिक्षा नीति के आधार में है। इस दिशा में कला, साहित्य और संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका है। हमें सभी स्तरों की पाठ्य सामग्री में विज्ञान और गणित के समान भाषाओं, साहित्य, जीवन मूल्य और संस्कृति को महत्त्व देना होगा।








प्रवासी साहित्यकार और अनुवादक श्री शरद चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो ने कहा कि संपूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति को विशेष सम्मान से देखा जाता है। हमें अपनी संस्कृति और साहित्यिक परंपरा के प्रति गौरव का भाव होना चाहिए। शैक्षिक संस्थाओं में कला और साहित्य के प्रति गहन अभिरुचि उत्पन्न करने के प्रयास होने चाहिए। 



मुख्य अतिथि श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन ने कहा कि शिक्षा सर्वांगीण विकास करती है। साहित्य सुख-दुख के अनुभव के स्पंदन को प्रकट करने का काम करता है। मनुष्य को बेहतर मनुष्य बनाने का कार्य शिक्षा करती है। इस दिशा में भाषा, साहित्य और संस्कृति की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।



साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि शिक्षा का मूल उद्देश्य है विद्यार्थी अपने देश, समाज और संस्कृति को लेकर आत्म गौरव करें। संस्कार और संस्कृति के बिना शिक्षा मात्र व्यवसाय बन कर रह जाती है। हमारे विद्यार्थियों को विदेशी शिक्षा संस्थानों के व्यामोह से मुक्त होना होगा।


अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ जी डी अग्रवाल, इंदौर ने कहा कि शिक्षा प्रणाली में साहित्य और जीवन मूल्य की विशेष भूमिका होनी चाहिए। शिक्षकों को विद्यार्थियों के मध्य भारतीय अस्मिता, अस्तित्व और गौरव को स्थापित करना होगा। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना जैसी संस्थाएं शिक्षकों में अंतर्निहित प्रतिभा को प्रकट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। 



संयुक्त संचालक शिक्षा श्री मनीष वर्मा, इंदौर ने कहा कि नई शिक्षा नीति में भाषाओं के अध्ययन पर विशेष बल दिया गया है। आने वाले समय में पूर्व प्राथमिक स्तर पर सरकारी और गैर सरकारी स्कूल - दोनों अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। 


प्रारंभ में आयोजन की रूपरेखा एवं अतिथि परिचय राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने दिया।


युवा कवि श्रीराम शर्मा परिंदा, मनावर ने अपने चुनिंदा मुक्तकों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।

 

सरस्वती वंदना सुनयना सोहनी ने की। स्वागत भाषण डॉ लता जोशी, मुंबई ने दिया।


कार्यक्रम में डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉ लता जोशी, श्री अनिल ओझा, इंदौर, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ वीरेंद्र मिश्रा, इंदौर, अशोक भागवत, डॉ शैल चंद्रा, राम शर्मा, डॉ रश्मि चौबे,  डॉक्टर मुक्ता कौशिक, डॉ श्वेता पंड्या  आदि सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।


संचालन श्रीमती रागिनी शर्मा ने किया। अंत में आभार श्री अनिल ओझा, इंदौर ने प्रकट किया।




20201014

महात्मा गांधी : शिक्षा और साहित्य के परिप्रेक्ष्य में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

साहित्य वही सार्थक, जो भाषा, देश और संस्कृति  के प्रति सम्मान जाग्रत करे - प्रो शर्मा 

महात्मा गांधी : शिक्षा और साहित्य के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन

प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना एवं स्वामी श्री स्वरूपांनद सरस्वती महाविद्यालय, भिलाई के हिन्दी विभाग के संयुक्त तत्त्वावधान में महात्मा गांधी : शिक्षा और साहित्य के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित  अंतरराष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ शैलेंद्रकुमार शर्मा, अध्यक्ष, हिन्दी अध्ययनशाला विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, विशेष अतिथि डॉ. शहाबुद्दीन शेख, कार्यकारी अध्यक्ष, नागरी लिपि परिषद पुणे, विशिष्ट अतिथि डा प्रभु चौधरी सचिव राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन, मुख्य वक्ता श्री सुरेश चन्द्र शुक्ल शरद आलोक, साहित्यकार और अनुवादक, ओस्लो नार्वे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. दीपक शर्मा, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय ने की। महाविद्यालय की प्राचार्य डा. हंसा शुक्ला विशेष रूप से उपस्थित रहीं। 



मुख्य अतिथि डा. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने अपने उदृबोधन में कहा कि महात्मा गांधी चाहते थे विद्यार्थियों को मातृभाषा में शिक्षा दी जानी चाहिये। हम अपने भावों एवं विचारों को मातृभाषा में अच्छे से व्यक्त कर सकते है। आज देश में 80 से 90 प्रतिशत आबादी कृषि कार्यों से जुडे़ हुये हैं, पर कृषि पर कोई शिक्षा नहीं दी जाती है।  उन्होंने कहा कि जो साहित्य भाषा, देश, संस्कृति  के प्रति सम्मान जागृत करे, वहीं वास्तविक साहित्य है। पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली हमारे संस्कृति के प्रति हमें तिरस्कार करना सिखाती है। प्रो शर्मा ने महात्मा गांधी विचार और नवाचार के बारे में विस्तृत जानकारी दी।






विशिष्ट अतिथि डा शहाबुद्दीन शेख ने महात्मा गांधी के शिक्षा सिद्धांतों की विवेचना की। उन्होंने कहा  कि महात्मा गांधी की धारणा थी, शिक्षा सरकार की अपेक्षा समाज के अधीन होना चाहिए। 14 वर्ष तक अनिवार्य शिक्षा व शिक्षा का माध्यम मातृ भाषा होनी चाहिए। क्योंकि मातृभाषा में शिक्षा होने से बच्चों का सर्वांगीण विकास होता है। साथ ही शिक्षा ऐसी हो जो बच्चे को आत्म निर्भर बनाये अतः गांधी जी का मत था व्यावहारिक एवं बुनियादी शिक्षा दी जानी चाहिये।





मुख्य वक्ता डा. सुरेशचन्द्र शुक्ल ने कहा नार्वे में स्थान-स्थान पर गांधी की प्रतिभा है व लोग महात्मा गांधी व उनके सिद्धांतों से परिचित हैं। वस्तुतः गांधी युग पुरूश थे प्राणी मात्र के प्रति साकारात्मक चिंतन ही अहिंसा है स्वीकार करते थे। मन, वचन व कर्म से किसी के प्रति हिंसा न करें, यही अहिंसा का सच्चा मार्ग है।



डा. प्रभु चौधरी ने आमंत्रित अतिथियों का परिचय कराया और विषय की उपादेयता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गांधी व्यक्ति नहीं युग थे। आज जब चारों ओर हिंसा की भावना बलवती हो रही है तब हमें गांधी के चिंतन व मूल्य आधारित शिक्षा की आवश्यकता है।


प्राचार्य डा. हंसा शुक्ला ने कहा साहित्य में गांधी जी के विचारों व सिद्धांतों को महत्वपूर्ण स्थान मिला, गांधी के विचारों को हम पढ़ रहें है पर हम उन्हें जी नहीं रहे हैं। जीवन में गांधी के सिद्धांतों को समावेश करना होगा। गांधी जी प्रार्थना पर बहुत भरोसा करते थे। प्रार्थना में बहुत बल होता है। 


डा दीपक शर्मा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में हिन्दी विभाग की सराहना करते हुये कहा गांधी जी ज्ञान आधारित शिक्षा के स्थान पर आचरण आधारित शिक्षा के समर्थक थे। वे शिक्षा को सर्वांगीण विकास के सशक्त माध्यम मानते थे। वर्धा योजना में वे प्रथम सात वर्ष निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा पर बल दिया। प्रारंभिक स्तर पर मातृभाशा में शिक्षा व राश्ट्रीय एकता के लिये कला सात तक हिन्दी भाषा में ही शिक्षा प्रदान करने के पक्ष में थे। वे बुनियादी शिक्षा के द्वारा विद्यार्थियों में कौशल विकसित करना चाहते थे जिससें विद्यार्थी लघु व कुटीर उद्योगों के माध्यम से स्वावलंबी बन सकें। 


कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुये डा. सुनीता वर्मा ने कहा जीवन के विविध पहलुओं पर महात्मा गांधी का चिंतन विशाल था। उन्होंने सत्य के प्रयोग में अपनी भूलों का सार्वजनिक रूप स्वीकार किया है गांधी जी का जीवन चरित्र उन्हें वैरिस्टर मोहनदास गांधी से महात्मा एवं बापू संबोधन तक ले जाता है और यही व्यक्तित्व और जीवन दर्षन की गहरीछाप लगभग सभी भारतीय भाशाओं के साहित्य पर पड़ी। उनका शिक्षा सिद्धांत व्यवहारिक मूल्यों पर आधारित और  स्वरोजगार मूलक था महात्मागांधी अब गुजरते वक्त के साथ प्रासंगिक होते जा रहे है।


कार्यक्रम की संयोजिका डा. सुनीता वर्मा विभागाध्यक्ष हिन्दी एवं तकनीकी सहयोग स.प्रा. निशा पाठक एवं स.प्रा. टी बबीता ने प्रदान किया।


डा मीता अग्रवाल, रायपुर, डा. मीना सोनी उड़ीसा, डॉ. शमा ए बेग स्वरूपानंद महाविद्यालय भिलाई ने अपने शोध पत्र पढ़े। 500 से अधिक शोधार्थी, विद्यार्थियों ने भाग लिया । कार्यक्रम में मंच संचालन डा सुनीता वर्मा विभागाध्यक्ष हिन्दी व धन्यवाद ज्ञापन डा शमा ए बेग विभागाध्यक्ष माइक्रोबायोलॉजी ने किया। कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राध्यापक शामिल हुए।














20201013

देवशिल्पी विश्वकर्मा और उनका अवदान - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

प्राचीन भारतीय विज्ञान की समृद्ध परम्परा से जुड़ने का प्रयत्न करें 

देवशिल्पी विश्वकर्मा पूजन और उनके व्यापक अवदान पर केंद्रित सारस्वत संगोष्ठी  

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी - एसओआईटी में भगवान विश्वकर्मा पूजन और सारस्वत संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह अकादमिक  संगोष्ठी देवशिल्पी विश्वकर्मा और उनके व्यापक अवदान पर केंद्रित थी। आयोजन के मुख्य अतिथि कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय थे। विशिष्ट अतिथि कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, शासकीय  अभियांत्रिकी महाविद्यालय के प्रो. संजय वर्मा एवं डीएफओ श्री पंड्या थे।

 


संगोष्ठी के मुख्य अतिथि कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में शिल्पज्ञ विश्वकर्मा जी का अद्वितीय योगदान है। अपने इतिहास को लेकर हमें गौरव का भाव होना चाहिए। भारत में प्राचीन काल से तक्षशिला, उज्जयिनी, नालन्दा जैसे महत्त्वपूर्ण विद्या केंद्र रहे हैं। दुनिया में निर्यात का एक चौथाई भाग भारत से निर्यात किया जाता था। हमारी तकनीक अत्यंत समृद्ध रही है। नए दौर में समाज में श्रम के महत्त्व को जानना होगा। वास्तु, धातु विद्या, रसायन विज्ञान आदि सभी क्षेत्रों में हमें प्राचीन भारतीय विज्ञान की परम्परा से जुड़ना होगा। भारतीय मनीषा द्वारा किए गए शून्य के आविष्कार पर आज का कम्प्यूटर विज्ञान टिका हुआ है। नदियों को जोड़ने की दिशा में आज विचार किया जा रहा है। प्राचीन काल में भगीरथ ने गंगा के उद्गम और विराट जलधारा को तैयार किया। भगवान शिव ने जल संरक्षण का उदाहरण प्रस्तुत किया था। रसायन विद्या के क्षेत्र में संजीवनी बूटी जैसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं। हेड ट्रांसप्लांट के उदाहरण भी प्राचीन ग्रंथों में  मिलते हैं। हमें ब्रिटिश राज से उपजी गुलाम मानसिकता से मुक्त होना होगा।  


विशिष्ट अतिथि कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भगवान विश्वकर्मा इस सृष्टि की परम अभियांत्रिकी के पुरोधा हैं। भारतीय परंपरा मानती है कि उन्होंने इस विराट ब्रह्मांड का शिल्पन किया है। वैदिक मान्यता है कि विश्व में जो कुछ भी दृश्यमान है, उसके रचयिता विश्वकर्मा हैं। शिल्प उनका श्रेष्ठतम कर्म है। उनसे जुड़े अनेक साहित्यिक साक्ष्यों का संकेत है कि वे यंत्रों के अधिष्ठाता, नगरों, भवनों और आभूषणों के परिकल्पक के साथ अत्यंत शक्तिशाली आयुधों के आविष्कारक हैं। भारतीयों ने सदियों से शिल्प कर्म को उच्च स्थान दिया है, जिसके कारण दुनिया को चकित कर देने वाले असंख्य निर्माण भारत में हुए। राजा भोज के काल में मालवा क्षेत्र में विज्ञान और तकनीक का व्यापक विकास हुआ। उस दौर में समरांगण सूत्रधार जैसे अनेक ग्रन्थ लिखे गए। पुरातन विज्ञान के अध्ययन के साथ शिक्षक एवं विद्यार्थी स्वयं के ज्ञान को निरंतर अद्यतन करते रहें।




प्रो संजय वर्मा ने कहा कि भगवान विश्वकर्मा ने अनेक नगरों का नियोजन किया।  भारतीय परंपरा में उनकी शिल्पज्ञ के रूप में मान्यता रही है। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए प्राचीन ज्ञान विज्ञान के साथ जुड़ने के लिए प्रयास करें। हमें विभिन्न यंत्रों, दवाइयों का आयात कम कर आत्मनिर्भर बनना होगा। सीखने को आतुर छात्र और सिखाने के लिए समर्पित शिक्षक से ही शिक्षा का स्तर बेहतर हो सकता है। 




संगोष्ठी के प्रारम्भ में भगवान विश्वकर्मा और यंत्र का पूजन किया गया। 


संस्थान के निदेशक डॉ डी डी बेदिया ने कुलपति प्रोफेसर पांडे एवं अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ अर्पित कर किया।


अकादमिक संगोष्ठी की संकल्पना संस्थान के निदेशक डॉ डी डी बेदिया ने प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि भगवान विश्वकर्मा जी का योगदान देव शिल्पी के रूप में सुविख्यात है। उनके अविस्मरणीय कार्यों से हमें टेक्नो मैनेजमेंट की प्रेरणा लेनी चाहिए।


डीएफओ श्री पंड्या ने कहा कि नए कार्य के लिए मौलिकता जरूरी है। कल्पनाशीलता और रचनात्मकता से नया कार्य सम्भव होता है।


कार्यक्रम में डॉ कमलेश दशोरा, डॉ स्वाति दुबे, डॉ राजेश्वर शास्त्री मुसलगांवकर आदि सहित संस्थान के अनेक शिक्षक, कर्मचारी, विद्यार्थी एवं प्रबुद्ध जन उपस्थित थे। 


इस अवसर पर संस्थान परिसर में वट, नीम और पीपल की पौध त्रिवेणी का रोपण कुलपति प्रोफेसर पांडे एवं अतिथियों ने किया। संस्थान के शिक्षकों, कर्मचारियों और विद्यार्थियों द्वारा एक सौ ग्यारह पौधों का रोपण परिसर में किया गया।


कार्यक्रम का संचालन राशि चौरसिया एवं प्रतिभा सराफ ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ विष्णु कुमार सक्सेना ने किया।












20201011

अब तक 75 : कोरोना काल पर दुनिया का प्रथम व्यंग्य संग्रह - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

अब तक 75 : श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ का लोकार्पण

हास्य - व्यंग्य जीवन के अनिवार्य तत्व - कुलपति प्रो पांडेय  

अब तक 75 : कोरोना काल पर दुनिया का प्रथम व्यंग्य संग्रह - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा Shailendrakumar Sharma

मध्यप्रदेश लेखक संघ के तत्वावधान में इंडिया नेट बुक्स, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित देश के व्यंग्यकारों का व्यंग्य संग्रह 'अब तक 75' का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। व्यंग्य संकलन का सम्पादन लालित्य ललित ( नई दिल्ली) Lalitya Lalit और हरीशकुमार सिंह (उज्जैन) Harish Kumar Singh ने किया है। 



आयोजन के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडे थे। सारस्वत अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं समालोचक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। अध्यक्षता प्रोफेसर हरिमोहन बुधौलिया ने की।  विशिष्ट अतिथि डॉ लालित्य ललित, नई दिल्ली, श्री संजीव कुमार एवं श्री रणविजय राव, Ranvijay Rao नई दिल्ली थे।





मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डा अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि त्रासदी काल में इस व्यंग्य संकलन का प्रकाशन उल्लेखनीय घटना है। हास्य और व्यंग्य जीवन के अनिवार्य तत्व हैं। वर्तमान में मानसिक अवसाद के प्रकरण सामने आ रहे हैं और ऐसे में आनन्द सूचकांक नीचे आ रहा है। नई शिक्षा नीति में भी आनन्द सूचकांक महत्वपूर्ण विषय है। व्यंग्य में यह जरूरी है कि व्यंग्यकार अपनी बात कह भी दे और किसी को बुरा भी न लगे।




सारस्वत अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो  शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि अब तक 75 के जरिए व्यंग्य की एक मुकम्मल तस्वीर सामने आई है। कोरोना काल की यह विश्व की किसी भी भाषा में प्रकाशित  व्यंग्य विधा में यह पहली कृति है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। व्यंग्य विधा का उज्जैन में स्वर्णिम इतिहास रहा है और अनादि काल से व्यंग्य की समृद्ध परम्परा रही है। पद्मभूषण पंडित सूर्यनारायण व्यास, शरद जोशी और डॉ शिव शर्मा से लेकर अब तक व्यंग्य की गतिशीलता बनी रही है। यह संकलन शिव जी को सही समर्पितं किया गया है, क्योंकि शिव जी की रचनाएं मालवा का मैला आँचल हैं। संग्रह की अधिकांश रचनाएँ कोरोना - कोविड 19 की विभीषिका से उपजी होकर समकालीनता का बोध कराती हैं। 




अध्यक्षीय उद्धबोधन में प्रो. हरिमोहन बुधौलिया ने कहा कि व्यंग्य लेखन एक साधना है और  उज्जैन के शिव शर्मा जी  देश के प्रमुख व्यंग्यकार रहे और यह संकलन , शिव जी को समर्पित कर  मालवा की व्यंग्य परम्परा का सम्मान है।




विशेष अतिथि श्री लालित्य ललित ने कहा कि अब तक 75 कि रचनाओं में विषय का वैविध्य है और देश भर के प्रख्यात व्यंग्यकारों को इसमें सम्मिलित हैं। मालवा की भूमि देव भूमि के साथ व्यंग्यकारोँ, साहित्यकारों की भूमि भी है और उज्जैन ने हमें पुस्तक मेले के जरिये साठ लेखक दिए।



स्वागत भाषण देते हुए सचिव श्री देवेंद्र जोशी ने कहा कि इस संकलन के जरिये संपादक द्वय ने देश के व्यंग्यकारोँ को जोड़ने का कार्य किया है। उज्जैन व्यंग्य की धरा रही है और उसी परम्परा को आगे यह संकलन बढ़ाता है। यह संकलन प्रख्यात व्यंग्यकार डॉ शिव शर्मा को समर्पित है।




इंडिया नेटबुक्स के निदेशक संजीव कुमार ने कहा कि उज्जैन व्यंग्यनगरी है और मालवा के व्यंग्यकारों पर संकलन आना आज की आवश्यकता है। 




अतिथियों को स्मृति चिन्ह इंडिया नेटबुक्स की सीईओ डॉ मनोरमा और निदेशक कामिनी मिश्रा ने प्रदान किया। 

व्यंग्यकार रणविजय राव ने कहा कि लॉकडाउन के समय में यह संकलन  लेखकीय रचनात्मकता का एक श्रेष्ठ उदाहरण है। 





सरस्वती वंदना सीमा जोशी ने प्रस्तुत की। अतिथियों ने दीप अलोकन कर लोकार्पण प्रसंग का शुभारंभ किया।




स्वागत देवेंद्र जोशी , हरीशकुमार सिंह , संजय जोशी सजग , संदीप सृजन , डॉ अभिलाषा शर्मा , डॉ उर्मि शर्मा , पुष्पा चौरसिया आदि ने किया।

आयोजन में संपादक श्री श्रीराम दवे , संतोष सुपेकर, राजेश रावल , सुरेंद्र सर्किट आदि उपस्थित थे। 

संचालन दिनेश दिग्गज ने और आभार पिलकेन्द्र अरोरा ने व्यक्त किया।





इंडिया नेट बुक्स द्वारा प्रकाशित देश के पचहत्तर व्यंग्यकारोँ के व्यंग्य संग्रह 'अब तक 75' में उज्जैन शहर के व्यंग्यकार सर्वश्री  डॉ.  पिलकेन्द्र अरोरा, डा देवेंद्र जोशी, संदीप जी सृजन, राजेन्द्र नागर और डा हरीशकुमार सिंह सम्मिलित हैं।


इस संकलन में उज्जैन शहर के व्यंग्यकारों के साथ रतलाम से आशीष दशोत्तर, संजय जोशी सजग, इंदौर से मृदुल कश्यप, जवाहर चौधरी, मुकेश राठौर, सुषमा व्यास राजनिधि आदि सम्मिलित हैं। देश के अन्य व्यंग्यकारों में अनिला चड़क, अजय अनुरागी, अजय जोशी, अतुल चतुर्वेदी, अनिता यादव, अनुराग वाजपेयी, अमित श्रीवास्तव, अरविंद तिवारी, अरुण अर्णव खरे, अलका अग्रवाल, अशोक अग्रोही, अशोक व्यास, आत्माराम भाटी, आशीष दशोत्तर, कमलेश पांडे, कुन्दनसिंह परिहार, के पी सक्सेना दूसरे, गुरमीत बेदी, चंद्रकांता, जयप्रकाश पांडे, जवाहर चौधरी, टीकाराम साहू, दिलीप तेतरबे, दीपा गुप्ता, देवकिशन पुरोहित, डा देवेंद्र जोशी, निर्मल गुप्त, नीरज दहिया, डा पिलकेन्द्र अरोरा, प्रभात गोस्वामी, प्रमोद तांबट, डा प्रेम जनमेजय , प्रेम विज, बलदेव त्रिपाठी, बुलाकी शर्मा, भरत चंदानी, मलय जैन, मीना अरोरा, मुकेश नेमा ,मुकेश राठौर ,मृदुल कश्यप, रणविजय राव, रत्न जेसवानी, रमाकांत ताम्रकार, रमेश सैनी, रवि शर्मा, रश्मि चौधरी, राकेश अचल, राजशेखर चौबे, राजेन्द्र नागर, राजेश कुमार, रामविलास जांगिड़, लालित्य ललित, वर्षा रावल, विवेकरंजन श्रीवास्तव, वीना सिंह, वेद माथुर, वेदप्रकाश भारद्वाज, शरद उपाध्याय, श्यामसखा श्याम, संजय जोशी, संजय पुरोहित, संजीव निगम, संदीप सृजन, समीक्षा तेलंग, सुदर्शन वशिष्ठ, सुधीर केवलिया, सुनीता शानू, सुनील सक्सेना, सुषमा व्यास राजनिधि, सूरत ठाकुर, स्वाति श्वेता, हनुमान मुक्त, डा हरीश नवल और डा हरीशकुमार सिंह सम्मिलित हैं। इस संग्रह के आवरण को प्रख्यात चित्रकार व व्यंग्यकार पारुल तोमर ने बनाया है।












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