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20201111

दीपावली : लौकिक जीवन पर अलौकिक आभा का पर्व - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

दीपावली के पाँच दिन : लोक के साथ लोकोत्तर को जोड़ने का पर्व

- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

दीपावली उत्सव के पाँच दिन अज्ञात भूतकाल से न जाने कितनी जातीय स्मृतियों, लोक एवं शास्त्र की परम्पराओं और सांस्कृतिक - सामाजिक मूल्यों को लेकर आते हैं। फिर में सब हमारे आसपास से जुड़ी पयार्वरणीय चेतना के साथ दोहराए जाते हैं। ऋतु, अंचल और कृषि उत्पादों के रंग इस उत्सव को चटकीला बनाते हैं। इसकी उत्सवी आभा में चमके चेहरे अमीर-गरीब, छोटे-बड़े का भेद मिटा देते हैं। आखिर सब उल्लास और उमंग में क्यों  न डूबें, जब मौका महज धन-संपदा ही नहीं, इस जगत् की आधार और साक्षात् पराशक्ति लक्ष्मी के इस लोक में विचरण का हो और जो महल तथा झोंपड़ी के बीच अंतर नही करती। 

लक्ष्मी, जिनके बिना सृष्टि के पालनकर्ता  विष्णु भी श्रीहीन हो जाते हैं, इस दौरान स्वयं अपना बसेरा तलाशने के लिए निकलती हैं। दीपावली पर उनके स्वागत को आतुर श्रद्धालु लोकमानस न सिर्फ  इस उत्सव में रमता है, आगामी वर्ष भर सफल होने की तैयारी भी करता है। या यूँ कहें त्रिविध तापों से ग्रस्त लौकिक जीवन पर अलौकिकता की शीतल छाया का रम्य अनुभव पाता है।






धन तेरस से दिवाली तक : जब तीन दिनों में तीन पगों से नापा गया था ब्रह्माण्ड
- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

दीपावली के उद्भव को लेकर कई पौराणिक एवं लोक मान्यताएँ प्रचलित हैं। एक मान्यता का सम्बन्ध देव और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के पौराणिक आख्यान से हैं, जिनके अनुसार इसी दिन समुद्र से लक्ष्मी का आविर्भाव हुआ था और उन्होंने विष्णु का वरण किया था। दीपावली के दो दिन पूर्व मनाए जाने वाले पर्व धनतेरस का संबंध इसी आधार पर विष्णु के एक अवतार धन्वन्तरि से जोड़ा जाता है, जो समुद्र से अर्जित चौदह रत्नों में एक अमृत-कुंभ लेकर प्रकट हुए थे। दूसरी मान्यता का संबंध राजा बलि और विष्णु के वामन अवतार की पौराणिक कथा से हैं। इसके अनुसार असुरराज बलि ने एक बार देवराज इन्द्र को परास्त कर तीनों लोकों में अपना साम्राज्य  स्थापित कर लिया था। विष्णु ने दानवीर बलि से वामन रूप में तीन पग भूमि माँगी और फिर विराट होकर तीनों लोकों को फिर से प्राप्त कर बलि को पाताल में भेज दिया। विष्णु ने दीपावली के दिन ही लक्ष्मी सहित सभी देवी-देवताओं को बंधन से मुक्त कराया था। इसीलिए लक्ष्मी के स्वागत के दीप घर-घर जलाए जाते हैं। 

एक अन्य  मान्यता है कि इस दिन विष्णु ने राजा बलि से प्रसन्न होकर उसका राज्य लौटाया था। तब बलि ने विष्णु से वरदान माँगा था कि दीपावली के तीन दिनों में जो व्यक्ति दीपदान करेगा वह यम की यातना से मुक्त रहेगा और उसके घर लक्ष्मी सदा निवास करेगी। इसी के आधार पर देश के कई भागों में धनतेरस की रात्रि को यम को दीपदान की प्रथा प्रचलन में है। एक मान्यता यह भी है कि विष्णु ने धनतेरस, नरक चतुदर्शी (या रूपचौदस) और दीपावली इन तीनों दिनों में ही तीन लोकों को अपने तीन पगों से नापा था, उसी महत्त्वपूर्ण प्रसंग की स्मृति को समर्पित होते हैं ये दिन। कुछ क्षेत्रों में गोबर से राजा बलि की मूर्ति बनाकर पूजने के पीछे भी यही आख्यान है । 



रूप चौदस- रूप चतुर्दशी 

मालवा चित्रावण शैली में अखिलेश धूलजी बा की एक कृति 




मांडणे का रचाव

सदियों से मांडना मंगल प्रतीक रहा है। परम्परा के साथ नवाचार ने इस विधा को व्यापक धरातल दिया है। दीपपर्व के साथ साथ यह अब अनेक मांगलिक अवसरों पर बनाया जा रहा है। घर - आँगन से चलकर अब यह बड़ी तादाद में प्रमुख स्थानों और मार्गों की भित्तियों पर भी उकेरा जा रहा है।
 

मांडना अंकन : डॉ. अर्चना गर्गे Archna Garge 








मांडना अंकन : लोक कलाकार श्रीमती द्रौपदी देवी (मेरी पूज्य बुआ जी)





मांडना अंकन : नीतेश पांचाल 




Shailendrakumar Sharma
Mandana Art| मांडना कला 

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Mandana Art | परम्परागत मांडना कला | 
Traditional Art & Craft of India : Mandana, Fad Art, Kawad Art, Kathputali Art, Gavari
पारम्परिक कला और शिल्प रूप : मांडना, फड़, कावड़, कठपुतली, गवरी 

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पारम्परिक कला और शिल्प रूप : मांडना, फड़, कावड़, कठपुतली, गवरी
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संगीत, नृत्य, नाट्य, साहित्य, चित्रकला, लोक और जनजातीय संस्कृति पर एकाग्र वीडियोज् के लिए एक उपक्रम 


अंदर बाहर के अंधकार से मुक्ति का पर्व: दीपोत्सव के पाँच दिन - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 
पत्रिका, परिशिष्ट परिवार, समस्त संस्करण, 8 नवम्बर 2023, बुधवार 

















दीपावली उत्सव के पाँच दिन  - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 



अर्थ की देवी का क्या है अर्थ 
- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा



आखिर अर्थ की देवी लक्ष्मी का अर्थ क्या है। लक्ष्मी जगत् के पालनकर्ता विष्णु की शक्ति हैं। उनका विष्णु के साथ अपृथक् संबंध माना गया है। लक्ष्मी शक्ति हैं तो विष्णु शक्तिमान्, लक्ष्मी धर्म हैं तो विष्णु उन्हें धारण करने वाले अर्थात् धर्मी। श्रीसूक्त, लक्ष्मीतन्त्र आदि में लक्ष्मी के तिरेपन नाम मिलते हैं, जिनमें श्री, देवी, ऋद्धि, ईश्वरी, माता, हेममालिनी, पद्मस्थिता, हिरण्यमयी आदि सम्मिलित हैं। आज अर्थ या धन की देवी की रूप में लोक में पूजित लक्ष्मी के शाब्दिक अर्थ अनेक और व्यापक हैं। वैदिक साहित्य में श्री और लक्ष्मी दोनों अलग-अलग शब्द हैं, कालांतर में दोनों का समन्वय हुआ। लक्ष्मी शब्द के मूल में ‘लक्ष्’ धातु है, जिसका अर्थ है- दर्शन और अंकन इसके आधार पर लक्ष्मी का अर्थ हुआ- सब प्राणियों को साक्षात् करने वाली, उनके शुभ-अशुभ, अच्छे-बुरे को देखने वाली। वे ईश्वर की सवर्सम्पद् हैं अन्य मतों से लक्ष्मी के मूल में ‘ला’ और ‘क्षिप्’ धातुएँ हैं, जिनसे लक्ष्मी शब्द के कई अर्थ निकलते हैं। इनके आधार पर लक्ष्मी दान करने वाली देवी हैं। लक्ष्मी उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय में प्रकृति को प्रेरित करने वाली है। लक्ष्मी लक्षण के योग्य अर्थात् लक्ष्य पदार्थों की अवस्थामयी हैं। एक अन्य व्याख्या से वे प्रकृति, पुरुष, महत् आदि में स्थित होकर उन्हें प्रेरित करती हैं। वे जगत् निर्माण करती हैं, उसे जानती हैं और सबका मापन भी करती हैं। 

लक्ष्मी के एक प्रमुख नाम श्री के भी कई अर्थ हैं इन अर्थों में लक्ष्मी करुण वाणी को सुनने वाली, सज्जनों के पापों को नष्ट करने वाली तथा गुणों से विश्व को व्याप्त करने वाली हैं। वे हरि अर्थात् विष्णु का शरीर हैं। वे शरणागत के पापों को नष्ट करती हैं और सभी कामनाएँ पूरी करती हैं। ऊपरी तौर पर धन-संपदा की देवी लक्ष्मी वस्तुत: साक्षात् ब्रह्म की ही शक्ति हैं, यह जगत् उनका ही रूप माना गया है।








दीपावली: लोक के साथ लोकोत्तर को जोड़ने का पर्वोत्सव - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 

दक्षिण एशिया उपमहाद्वीप अनादिकाल  से व्रत-पर्व-उत्सवों  की पारम्परिक भूमि रहा है । यहाँ के व्रत-पर्व-उत्सव  न जाने कितनी सभ्यताओं, संस्कृतियों और जातीय स्मृतियों को अपने अंदर समाए हुए हैं, जिनमें अलग-अलग अंचलों  की स्थानीय  गंध के साथ-साथ एकात्मता के अनोखे सूत्र उपस्थित हैं। अपने ढ़ंग के इस निराले उपमहाद्वीप का प्रतिनिधि और अनूठा त्यौहार है –दीपावली , जो एक साथ व्रत, पर्व  और उत्सव को अपने में समाहित किए हुए है। 

यह पर्व परम्परा के साथ वैज्ञानिकता,  प्राचीन के साथ आधुनिक, वेद के साथ पुराण-आख्यान, शास्त्र के साथ लोक, संस्कृति के साथ सभ्यता,  देवता के साथ मनुष्य  और जातीय  स्मृतियों के साथ सामाजिक गतिशीलता के अन्त: संवाद का पर्व है। यह लोक के साथ लोकोत्तर को जोड़ने का व्रत है और अनेक माध्यमों से छलकते उल्लास का उत्सव है। दीप पर्व से भारतीय  संस्कृति के विविध तत्वों का संवाद इतना सहज और जैविक है कि यह पता लगाना मुश्किल  लगता है कि किसकी, कहाँ और कितनी हिस्सेदारी है। सही अथों  में यह समूचेपन का, मनुष्य  के भरे-पूरेपन का उत्सव है।


- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
आचार्य एवं अध्यक्ष
हिन्दी विभाग
कुलानुशासक
पूर्व कला संकायाध्यक्ष
विक्रम विश्वविद्यालय
उज्जैन

20201110

पंजाब की संत परंपरा और उसका प्रदेय - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

विश्व बंधुत्व और आत्म त्याग का संदेश दिया है पंजाब के संतों ने – प्रो शर्मा 

अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ पंजाब की संत परंपरा और उसके प्रदेय पर मंथन   

गुरु नानक देव जी की वाणी के चुनिंदा अंशों का नॉर्वेजियन भाषा में अनुवाद प्रस्तुत किया श्री शुक्ल ने

देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश दुनिया के अनेक विशेषज्ञ वक्ताओं ने भाग लिया। यह संगोष्ठी पंजाब की संत परंपरा और उसके प्रदेय पर केंद्रित थी। कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि प्रवासी साहित्यकार और अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रो विनोद तनेजा, अमृतसर एवं शिक्षाविद श्री ब्रजकिशोर शर्मा थे। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ ब्रह्मदेव शर्मा, लुधियाना डॉ राजेंद्र साहिल, श्रीमती पूनम सपरा, लुधियाना, महासचिव डॉ प्रभु चौधरी एवं उपस्थित वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल ने की।





प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि सिख धर्म सेवा व्रत और परस्पर सहयोग को महत्त्व देता है। उन्होंने गुरु नानक देव जी की वाणी से चुनिंदा अंशों का नॉर्वेजियन भाषा में अनुवाद प्रस्तुत किया।






कार्यक्रम के मुख्य वक्ता लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि पंजाब की संत परंपरा ने भारतीय संस्कृति के विकास में अविस्मरणीय योगदान दिया है। पंजाब के महान संतों ने विश्व बंधुत्व और आत्म त्याग का संदेश दिया है, जो आज अधिक प्रासंगिक हो गया है। गुरु नानक देव जी और उनकी परंपरा के गुरुओं ने सदियों से सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्र में व्याप्त अंधकार को निस्तेज कर प्रकाश फैलाया था। गुरु नानक देव जी की विश्व दृष्टि अत्यंत व्यापक और स्वानुभूति पर आधारित है। उन्होंने भारतीय भक्ति परम्परा का नवसंस्कार किया। वे परमात्मा से प्रेम भक्ति के अनुग्रह के अभिलाषी हैं। उनकी वाणी में सृष्टि की विराट आरती का दृश्य देखते ही बनता है। गुरु ग्रंथ साहिब में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की त्रिवेणी है। उसका सन्देश है कि भक्तिहीन मनुष्य का जीवन निरर्थक है। गुरु ग्रंथ साहिब सत्संग और सदाचारी जीवन का अक्षय प्रेरणा स्रोत है। पंजाब के संतों ने श्रमशीलता के साथ  प्राणी मात्र के प्रति अनुराग, समरसता और सद्व्यवहार का संदेश दिया। 




डॉ. प्रवीण बाला, पटियाला ने दशम गुरु दशम ग्रंथ के अंतर्गत चंडी चरित्र के सबद देह शिवा बर मोहे इहै से कार्यक्रम की शुरुआत की।



नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि पंजाब के संतों का संदेश अत्यंत प्रासंगिक है। प्रभु को वही प्राप्त कर सकता है, जो प्रेम करता है। सभी मतों को समाहित करने का कार्य गुरु ग्रंथ साहिब करता है। सन्तों ने जीवनानुभवों के आधार पर जो दिया है वह प्रेरणादायी है। पंजाब के सन्तों ने समग्र मानवता के कल्याण के लिए शिक्षा दी।



प्रारंभ में संगोष्ठी की संकल्पना, स्वागत भाषण एवं संस्था का प्रतिवेदन राष्ट्रीय महासचिव श्री प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत किया।  






संस्था के अध्यक्ष श्री बृजकिशोर शर्मा, उज्जैन ने कहा कि सांस्कृतिक चेतना के प्रसार में पंजाब की संत परंपरा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। गुरुओं ने वैराग्य के साथ  आक्रांताओं से मुकाबला करने की प्रेरणा दी। जीवन के पुरुषार्थों के सम्यक् निर्वाह की प्रेरणा गुरु ग्रंथ साहिब से मिलती है।






डॉ ब्रह्मदेव शर्मा, लुधियाना ने अपने उद्बोधन में कहा कि कुछ लोग ऐसा कार्य कर जाते हैं, सदियों तक याद किए जाते हैं। गुरु तेग बहादुर जी का योगदान इसी प्रकार का है। भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए सिख गुरुओं ने अविस्मरणीय योगदान दिया। गुरु तेग बहादुर जैसे संतों ने परोपकार के लिए जन्म लिया था।  उनमें वैराग्य का भाव बाल्यकाल से ही उत्पन्न हो गया था। सांसारिकता के स्थान पर उन्होंने भक्ति पर बल दिया। उन्होंने संसार रूपी मृगतृष्णा से मुक्त होने का आह्वान किया। अनासक्त कर्म योग का आजीवन निर्वाह उन्होंने किया।




विशिष्ट अतिथि डॉ राजेंद्र साहिल, लुधियाना ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि सिख परंपरा के सभी गुरुओं का अविस्मरणीय योगदान रहा है। गुरु नानक देव जी ने संवाद की महत्वपूर्ण परंपरा की शुरुआत की। गुरु अमर दास जी ने लंगर की परंपरा को व्यवस्थित स्वरूप दिया। कृषि के साथ ही व्यवसाय को महत्व देते हुए गुरु रामदास जी ने नगरीकरण की शुरुआत की।








मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ विनोद तनेजा, अमृतसर ने कहा कि पंजाब की संत परंपरा अत्यंत समृद्ध रही है। सिख पंथ ने कथनी से अधिक करनी पर बल दिया। गुरु गोविंद सिंह जी गुरुओं के शब्द के मर्म को जानने का आह्वान करते हैं। सन्त नामदेव से लेकर गुरु तेग बहादुर तक का तीन सौ वर्षों का चिंतन गुरु ग्रंथ साहिब में समाहित है। गुरु गोविंद सिंह जी निस्वार्थ भाव से कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। उनकी वाणी कालजयी है। उन्होंने आदि ग्रंथ को गुरु ग्रंथ का उच्च स्थान दिलाया।


डॉ प्रवीण बाला, पटियाला ने गुरु नानक देव जी के अवदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गुरु नानक देव जी को आदि गुरु के रूप में सम्मान दिया जाता है। उन्होंने गृहस्थ जीवन में रहते हुए सांसारिकता से ऊपर उठने का संदेश दिया। उन्होंने जात - पात और आडंबर से मुक्त समाज की कल्पना की। मार्ग से भटके हुए मनुष्यों को सार्थक दिशा उन्होंने दी। 





श्रीमती पूनम सप्रा, लुधियाना ने गुरु अमर दास जी की वाणी के योगदान पर प्रकाश डाला। वे महान रहस्यवादी, कवि और समाज सुधारक थे। उन्होंने स्त्री पुरुष समानता पर बल दिया। सामाजिक बुराइयों और पाखंड को दूर करने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण प्रयास किए। उन्होंने न केवल दूसरों को सेवा करने का उपदेश दिया,  वरन स्वयं आजीवन सेवाव्रत का निर्वाह किया।



सरस्वती वंदना पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने की। अतिथि परिचय डॉ प्रवीण बाला, पटियाला ने दिया।





कार्यक्रम में सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉक्टर समीर सैयद, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर पूनम सप्रा, लुधियाना, पंजाब, राव कुलदीप सिंह, भोपाल, डॉ संगीता पाल, कच्छ, डॉ विनोद, डॉक्टर पूनम गुप्ता, पंजाब, डॉ रश्मि चौबे, आगरा, डॉ विभा कुमारिया शर्मा, मंजू रुस्तगी, चेन्नई, पोपटराव अवाटे, डॉ राजकुमार मलिक, पंजाब, डॉ श्वेता पंड्या, उज्जैन, डॉ अतुला भास्कर आदि सहित अनेक प्रतिभागी उपस्थित थे। 




कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर मुक्ता कौशिक रायपुर में किया। आभार प्रदर्शन डॉ विनोद बिश्नोई, पंजाब ने किया।



20201103

वाल्मीकि : इतिहास और मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

आदि कवि वाल्मीकि ने सत्य और धर्म की प्रतिष्ठा पर बल दिया है – प्रो शर्मा 

अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ आदि कवि वाल्मीकि : इतिहास और मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में पर मंथन   

ओस्लो के साहित्यकार श्री शुक्ल ने नॉर्वेजियन भाषा में पाठ किया  रामायण के अंशों का


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश -दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ वक्ताओं ने भाग लिया। यह संगोष्ठी आदि कवि वाल्मीकि : इतिहास और मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित थी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल, डॉ राजेन्द्र साहिल, लुधियाना, महासचिव डॉ प्रभु चौधरी एवं उपस्थित वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने की।







लेखक और आलोचक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि आदिकवि वाल्मीकि की रामायण में जातीय स्मृतियों, इतिहास, संस्कृति और मानवीय मूल्यों का जीवन्त रूपांकन हुआ है। वाल्मीकि ने रामकथा के माध्यम से सत्य और धर्म की प्रतिष्ठा पर बल दिया है। उनकी दृष्टि में सत्य ही संसार में ईश्वर है और धर्म भी उस सत्य  के ही आश्रित है। उन्होंने एक ऐसे उदात्त चरित्र को महाकाव्य के केंद्र में रखा है, जो लोगों को परस्पर प्रेम, बन्धुत्व और समरसता में बांध सके। उनकी मूल्य दृष्टि बहुत गहरी है। वे परिवार, मित्र, समाज और राज धर्म - सभी का प्रादर्श रचते हैं। उनका सन्देश है कि समस्त देश और कालों के लोग सुखी हों। वाल्मीकि रामायण में वर्णित अनेक स्थानों से जुड़े पुरातात्विक प्रमाण, ऐतिहासिक साक्ष्य और लोक अनुश्रुतियाँ उपलब्ध हैं। उन पर समग्रता से अनुसन्धान की आवश्यकता है। 




कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि वाल्मीकि सही अर्थों में विश्व कवि हैं। उनकी रामायण के माध्यम से विश्व में संस्कृत को गौरव मिला। उनकी रामायण का अनुवाद दुनिया के विभिन्न भाषाओं मैं होना चाहिए। श्री शुक्ल ने वाल्मीकि रामायण के प्रारंभिक श्लोकों का प्रथम बार नॉर्वेजियन भाषा में अनुवाद कर उनका पाठ  किया। 






विशिष्ट अतिथि डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने कहा कि वाल्मीकि ने राम कथा के माध्यम से आसुरी वृत्तियों और अनाचार के दमन और उन पर विजय का शाश्वत संदेश दिया है। वाल्मीकि रामायण के आधार पर दुनिया के अनेक देशों में राम काव्य लिखे गए हैं।








विशिष्ट अतिथि डॉ राजेंद्र साहिल, लुधियाना ने कहा कि आदि कवि वाल्मीकि का पंजाब के साथ गहरा संबंध रहा है। पंजाब की पांच नदियों के किनारे वैदिक सभ्यता का विकास हुआ है। पंजाब भारतीय संस्कृति का उद्गम केंद्र है। अमृतसर के समीप स्थित रामतीर्थ में वाल्मीकि का आश्रम था। वहीं रहकर लव और कुश का पालन पोषण हुआ और वहीं रहकर उन्होंने विद्यार्जन किया था। वाल्मीकि की रामायण से प्रेरणा लेकर पंजाबी में अनेक रामायण एवं राम पर केंद्रित रचनाएं लिखी गईं। गुरु गोविंद सिंह जी ने रामावतार जैसे महत्वपूर्ण काव्य की रचना की। 





प्रारम्भ में आयोजन की संकल्पना एवं स्वागत भाषण संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने देते हुए वाल्मीकि के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने संस्था के उद्देश्य और भावी गतिविधियों का परिचय दिया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि वाल्मीकि का व्यक्तित्व सार्वभौमिक है। गोस्वामी तुलसीदास ने वाल्मीकि के जीवन के अनेक प्रसंगों का विस्तार से वर्णन किया है। उन्होंने श्री राम और वाल्मीकि की भेंट का मार्मिक चित्रण अपने मानस में किया है।


साहित्यकार डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि वाल्मीकि की रामायण भविष्य के लिए महत्वपूर्ण संदेश देती है। यह ग्रंथ श्रेष्ठ समाज के निर्माण में अनेक सदियों से विशिष्ट भूमिका निभा रहा है।



राष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ शहाबुउद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉ भरत शेणकर,  अहमदनगर, डॉ आशीष नायक, रायपुर, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉक्टर समीर सैयद, अहमदनगर, पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ लता जोशी, मुंबई, डॉ ज्योति मईवाल, उज्जैन, डॉ राधा दुबे, डॉ प्रियंका द्विवेदी, प्रयागराज, डॉ अमित शर्मा, ग्वालियर, डॉ महेंद्र रणदा, पंढरीनाथ देवले आदि सहित अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे। 


संगोष्ठी के प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ लता जोशी मुंबई ने की। 


अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का संचालन संस्था सचिव डॉ रागिनी शर्मा, इंदौर ने किया। आभार प्रदर्शन संस्था के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष डॉ शहाबुउद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने किया। 








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